"अब ना शासन चल पायेगा,आश्वासन और नारों से ।"
राजा थे ये राज्य हमारा,लिखदो अब दीवारों पे ,
अब ना शासन चल पायेगा,आश्वासन और नारों से ।टेक।
आस लगाये बैठे थे,कुछ तब होगा कुछ अब होगा ,
भूख मिटी ना बेरोजगारी ही,नालायक गद्दारों से ।।१।।
कहते हैं हर बार ताज दो,देश को आगे कर देंगे ,
खाली खाता खुलवालो तुम, पन्द्रह लाख से भर देंगे ।
अब भी क्या आशा करते हो, झूठे और लब्बारों से ।।२।।
हाथ उस्तरा दे दी तुमने , बंदर से नौसिखियों को ।
राज पाट का ज्ञान नहीं है, देश के इन भिखमंगों को ।
गोंडवाना को मुुक्त कराओ,इन भ्रष्टाचारी दलालों से ।।३।।
परजीवी से अमर बेलों को , नाहक गले लगा बैठे ।
सत्ता की चाबी दे देकर , कौवों को हंस बना बैठे ।
वक्त मिला है इन्हें हटा दो , सत्ता के गलियारों से ।।४।।
उठो सुप्त सी तलवारों पर , धार लगाना शुरू करो ।
मूलनिवासी बीज रक्त को , गले लगाना शुरू करो ।
मुक्त कराओ गोंडवाना को , परदेशी अय्यारों से ।।५।।
अब ना शासन चल पायेगा , आश्वासन और नारों से ।।-gsmarkam
अब ना शासन चल पायेगा,आश्वासन और नारों से ।टेक।
आस लगाये बैठे थे,कुछ तब होगा कुछ अब होगा ,
भूख मिटी ना बेरोजगारी ही,नालायक गद्दारों से ।।१।।
कहते हैं हर बार ताज दो,देश को आगे कर देंगे ,
खाली खाता खुलवालो तुम, पन्द्रह लाख से भर देंगे ।
अब भी क्या आशा करते हो, झूठे और लब्बारों से ।।२।।
हाथ उस्तरा दे दी तुमने , बंदर से नौसिखियों को ।
राज पाट का ज्ञान नहीं है, देश के इन भिखमंगों को ।
गोंडवाना को मुुक्त कराओ,इन भ्रष्टाचारी दलालों से ।।३।।
परजीवी से अमर बेलों को , नाहक गले लगा बैठे ।
सत्ता की चाबी दे देकर , कौवों को हंस बना बैठे ।
वक्त मिला है इन्हें हटा दो , सत्ता के गलियारों से ।।४।।
उठो सुप्त सी तलवारों पर , धार लगाना शुरू करो ।
मूलनिवासी बीज रक्त को , गले लगाना शुरू करो ।
मुक्त कराओ गोंडवाना को , परदेशी अय्यारों से ।।५।।
अब ना शासन चल पायेगा , आश्वासन और नारों से ।।-gsmarkam
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