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Showing posts from February, 2018

“अफीम की खेती तथा उससे जुडे कुछ तथ्य "

“अफीम की खेती तथा उससे जुडे कुछ तथ्य " मप्र जिला नीमच जहां अफीम की खेती की जाती है । निजी कार्य से नीमच प्रवास के दौरान अफीम के खेत में जाने का अवसर मिला , खेत पर काम करने वाले मजदूरों से बात करते हुए मैने इस कृषि के लाभ हानि तथा बीज बोने की प्रक्रिया के बारे में जानना चाहा तब मजदूर ने कहा कि पहली बात तो यह कि यह खेती अच्छी पूंजी और सरकारी पकड वाला ही कर सकता है । इसकी खेती सरकारी नियन्त्रण में की जाती है , फसल लगाने के पूर्व ही सरकारी अमला अनुमानतः एक एकड में एक फसल से लगभग  आठ से दस किलो अफीम जमा कराना निर्धारित कर देती है जिसे शासन स्वयं १५०० रूपये किलो पर खरीदती है । फसल समाप्ति तक अफीम के फलों से ३००से ४०० ग्राम अफीम निकलती है । अफीम उस फल का दूध है जिसे प्रतिदिन एक विशेष औजार से कट मारने पर निकलता है जो दूसरे दिन सूख जाता है तब उस सूखे दूध को विशेष औजार रूपी पात्र में एकत्र किया जाता है । इस तरह अफीम के फल पर प्रतिदिन कट लगाकर अफीम निकाला जाता है । मजदूर के कथन अनुशार अफीम निकालकर सरकार को बेचने में लागत और मजदूरी भी प्राप्त नहीं होती परन्तु अनुबंध के कारण केवल सरकार को ही

"जनजाति धर्म और धर्म कोड पर विचार करें ।"

"जनजाति धर्म और धर्म कोड पर विचार करें ।" जनजातीय समुदाय धार्मिक मामले में एकजुटता का परिचय दें ! धर्मकोड धर्म कालम पर जनगणना 2018 की चिंता करे अन्यथा आपकी रूढि परंपरा स्वतः छिन्न हो जायेगी यही रूढी आपकी पहचान बनाकर रखेगी । और आपकी रूढी आपके संस्कार मान्यता परंपराओं पर टिकी है  आपके मेढा सीवाना ग्राम देवता खेतखिलहान और प्रकृति आस्था केंद्र पर टिकी है गैर धर्मी होकर आप अपनी रूढी परंपरा को सुरक्षित नहीं रख सकते । जब आप यह सुरक्षित नहीं रखेंगे तो आपकी जनजातीय पहचान नहीं रहेगी जनजातीय पहचान मिटने पर पुनः सर्वे होगा तब हमारा क्या होगा जरा सोचें । इस संदर्भ में एक पत्र रजिस्ट्रार जनरल को पत्र भेजा गया है जिसका नमूना प्रस्तुत है आशा है इस तरह धार्मिक मामले में एकजुटता संभव है । इस पर कोई सुझाव हो तो अवश्य प्रेषित करें । प्राप्त जानकारी के अनुशार आपको अवगता हो कि 2021 की जनगणना कालम में षडयंत्र के तहत अन्य के कालम को भी विलोपित किया जा रहा है तब हम जनजाति के लोग किस पर  टिक लगवायेंगे क्या लिखेंगे ?-gsmarkam टीप:- हिन्दी में लिखा है इसलिये धर्म शब्द को उपयोग किया गया है अन्यथा ध

"हम सब गण हैं जाति नहीं ।"

"हम सब गण हैं जाति नहीं ।" मित्रों जरा संभल के यह मामला बहुत संवेदन शील है  मप्र में भील, भिलाल ! राजस्थान में मीणा, मीना ! छग में गोंड ,राजगोंड !महाराष्ट्र में राजगोड, परधानगोंड ! की खाई को वैचारिक रूप से पाटना आवश्यक है, ताकि भविश्य में व्यवहारिक रूप से पट सके ।अभी रोटी बेटी व्यवहार के विवादों में ना पडकर अपने जल जंगल जमीन की समस्या ,अस्मिता और अस्तित्व की रक्षा को लेकर तो बीच के अंतर को पाटा जा सकता है । कारण कि हम सब गण हैं तभी तो जनजाति सूचि के एक एक क्रमांक में ही 20 तो कहीं 47 तो किसी क्रमांक में 25 उपजातियां एक साथ समाहित हैं जिन्हें षडयंत्र पूर्वक अलग अलग क्रमांक देकर जातियों के रूप में अलग किया गया है । इसके मूल कारण को समझे बिना उपजातियां अपने आप को स्वतंत्र जाति के रूप में अंकित कराने की होड में लगी रहती हैं ।-gsmarkam

"लेखन विधा में आगे आने वाले मित्रों को समर्पित ।"

"लेखन विधा में आगे आने वाले मित्रों को समर्पित ।" लेखन शैली विकसित करने के कुछ टिप्स इस समाचार पत्र में दिया गया है तो मैने सोचा कि इसका सदुपयोग कैसे हो इस बावद यह पोस्ट हमारे मित्रों को समर्पित है कारण कि लेखन और पत्रकारिता के मामले में आदिवासी समुदाय अन्य वर्गों से काफी पीछे दिखाई देता है । हालांकि मैने अपने पिछले एक पोस्ट "आओ अपना इतिहास लिखें" नाम के शीर्षक सें कुछ रास्ता निकालने का प्रयास किया है कि हम केसे लिखें जो मेंरे "अखण्ड गोंडवाना ब्लाग" में सुरक्षित है । यह पेपर कटिंग हमारे लेखन शैली में कुछ मार्ग दर्शन कर सकता तो है तो निश्चित ही इस पोस्ट की सार्थकता होगी ।-gsmarkam

"अनुसूचित क्षेत्र और लोक सभा विधान सभा के चुनाव ।"

"अनुसूचित क्षेत्र और लोक सभा विधान सभा के चुनाव ।" कुछ मित्रों का कहना है कि पांचवीं अनुसूचि लागू होने पर विधान सभा के चुनाव उन क्षेत्रों में नहीं होगे । मित्रों विधानसभा और लोक सभा के चुनाव के दायरे में अनुसूचित क्षेत्र भी आयेंगे परन्तु ग्राम से लेकर ब्लाक और जिला स्वायत्त परिषदें उन जिलो विकासखण्डों में पूरी तरह प्रभावशाली होंगी वे अपनी सामाजिक धार्मिक सांस्कृतिक न्याायिक व्यवस्था जल जंगल जमीन की मिल्कियत का कैसे उपभोग करना है स्वयं तय करेंगी इन स्वायत्त परिषदों के निर्णयों में विधायक सांसदों की दखलंदाजी नहीं होगी सांसद तथा विधायक के द्वारा अपने खर्च किये जाने वाले मद से स्वायत्त परिषद के विकास कार्य में सहयोग देगा । अनुसूचित क्षेत्रों में केंद्रीय बजट का सीधा पैसा स्वायत्त परिषदों के खाते में जायेगा जिससे जनजातीय वर्ग अपनी मर्जी से अपना विकास करेगा । इसी को कहते हैं स्वशासन । स्वशासन का मतलब यह नहीं कि हम देश के संविधान से अलग हैं जनजातियों को संविधान के दायरे में रहकर पांचवी अनुसूचि के अपने अधिकारों का उपभोग करना है जिसमें संविधान किसी की दखल नहीं देने के निर्द

“गोंडवाना की भाषा,धर्म,संस्क्रति को पकड के रखो , जकड के रखो लेकिन वर्तमान में जियो”-गुलजार सिंह मरकाम)

(1) “गोंडवाना की भाषा,धर्म,संस्क्रति को पकड के रखो , जकड के रखो लेकिन वर्तमान में जियो”-गुलजार सिंह मरकाम) गोंडवाना आन्दोलन के प्रमुख तीन आधारिक बिन्दू भाषा,धर्म,संस्क्रति में निरन्तर ताजगी बनाये रखना है । साथ ही वर्तमान स्वयं की जीविका के लिये संघर्ष करना है । केवल जीविका के लिये जीवित रहना जानवर का जीवन है । भाषा,धर्म,संस्क्रति की रक्छा करते हुए जीविकोपार्जन के साथ जीना इंसान की पहचान है । (2) मप्र में जनजातियों की रूढिजन्य विधी संहिता को मिलेगा सवैधानिक मान्यता गैर गोंडी या गैर आदिधर्मियों को होगी अडचन ५वी अनुसूचि में धर्मांतरित अन्य धर्म के लोग होंगे बेदखल । आदिवासियों को अन्य धर्म के धर्मांतरित लोग कहते हैं आदिवासियों का कोई धर्म नहीं0 केवलr गुमराह करने वाली बात है । आदिवासी/गोंडियन का अपना धर्म है उसे मानें पांचवी अनुसूचि का धर्म से गहरा संबंध है जागरूक सगाजन इस पर अवश्य ध्यान दें । कोई शंका हो तो मुझसे जरूर बात क़रे-gsmarkam

गोंडवाना के 12 सगा घटकों को एक सूत्र में लाने से ही गोंडवाना राज का सपना साकार हो सकेगाा ।

गोंडवाना के 12 सगा घटकों को एक सूत्र में लाने से ही गोंडवाना राज का सपना साकार हो सकेगाा । देश और दुनिया का सबसे प्राचीन और व्यवस्थित और जनसंख्या में बडा गोंडियन समुदाय गोंडवाना राज की बात करता है लेकिन राज कैसे स्थापित होगा इसके मूल पर काम नहीं करता । छोटे बडे जातीय संगठन बनाकर हम छोटी मोटी समस्याओं का निराकरण तो करा सकते हैं पर गोंडवाना राज राज लाना स्थापित करना है तो गोंडवाना के 12 सगा घटकों को एक सामाजिक मंच पर बैठाना होगा । आज ये घटक 1 से 7 देव तक विभिन्न जातियों कुनबों में बिखरे हुए हैं । गोंडवाना की गण व्यवस्था में जाति का कोई अस्तित्व नहीं था यही कारण है कि गोंडवाना गोंदोला में आज की गण व्यवस्था वाली आज की कथित जातियों ने एक गोत्र एक टोटम और एक संस्कृति संस्कार और आचरण को लेकर अप्रत्यक्ष में बडी ताकत के रूप में दिखते हैं परन्तु जाति व्यवस्था का शिकार बनकर अपनी गण व्यवस्था को भूल कर असंगठित व्यवहार करते हैं  यदि गणराज स्थापित करना है तो गणों को संगठित करना होगा पांच महाशक्ति के भुमकाओं को महत्व देना होगा उनका सम्मान करना होगा । जिनके मार्गदर्शन में गोंडवाना की गढ व्यवस्था चल

"समुदाय की केंद्रीय शक्ति है अखिल भारतीय गोंडवाना गोंड महासभा"

"समुदाय की केंद्रीय शक्ति है अखिल भारतीय गोंडवाना गोंड महासभा"  (13 वां अखिल भारतीय गोंडवाना गोंड महासभा का राष्ट्रीय अधिवेशन सफलता पूर्वक संपन्न हुआ ।)  आजादी पूर्व 1931 में जिन् प्रस्ताओं को हमारे पुरखों ने समय समय पर पारित कर शासन प्रशासन को अवगत कराने का काम करते रहे वे मुख बिन्न्दु भाषा धर्म संस्कृति हैं जो समुदाय को संगठित करने के लिये आवश्यक है जिन्हें 1947 के बाद बने संगठनो ने अपने अपने स्तर पर उठाने का प्रयास किया और लÛातार कर रहे हैं परन्तु एक साथ मिलकर निजी राजनी तिक सरोकारों से उपर उठकर ,क साथा नहीं उठने बैठने के कारण सामुदायिक दबाव नहीं बनता था इस कारण बरसों से हमारे इन प्रस्तावित बिन्दुओ पर शासन प्रशासन और सत्ताधारियों के कान में जूं नहीं रेंगता था । परन्तु हर्रई अधिवेशन का सुनियोजित व्यवस्थित कार्यकृम शासन प्रशासन का ध्यान अपनी ओर खींचने में सफल रहा । सभी राजनीतिक दलों के समुदाय के प्रतिनिधियों का एक साथ दिखाई देना समुदाय के राष्ट्रीय शक्ति के रूप में उभर कर सामने आया । किसी सरकार राज्यपाल और व्यवस्था मुख्यमंत्री के माध्यम से गोंडी भाषा को आठवीं अनुसूचि में शा
महामहिम राज्यपाल को क्या कहना है जनजातीय समुदाय मार्गदर्शन करता है । तब हमारा संरक्षक राज्यपाल बोलता है ।  प्रस्तुत है जनजातियों की संरक्षक महामहिम राज्यपाल मप्र द्वारा दिनांक 10 फरवरी 2018 को अभागोंगोंम के राष्टीय अधिवेशन के उदघाटन में दिये जाने वाले संबोधन की समुदाय के चिंतक "गुलजार सिंह मरकाम" द्वारा प्रस्तावित लिखित भाषण जिसके आधार पर महामहिम को अभिभाषण करना है । यह संवैधानिक परंपरा है ।

अखिल भारतीय गोंडवाना गोंड महासभा के तीन दिवसीय कार्यकृम के अतिथियों का समय निर्धारित

अखिल भारतीय गोंडवाना गोंड महासभा के तीन दिवसीय कार्यकृम के अतिथियों का समय निर्धारित कौन कब आयेगा जानकारी निम्नलिखित है । दिनांक 10 फरवरी 2018 प्रथम सत्र उदघाटन महामहिम राज्यपाल मध्यप्रदेश एवं नागेश घोडाम सांसद तेलंगाना मा0 अरविंद नेताम पूर्व केंद्रीय मंत्री मा0 सोहन पोटई पूर्व सांसद एवं कार्यकृम संयोजक मा0 फग्गन सिंह कुलस्ते सांसद सहित अखिल भारतीय गोंडवाना गोंड महासभा के राष्ट्रीय पदाधिकारी दिनांक 10 फरवरी 2018 द्वितीय सत्र छिंदवाडा सांसद मा0 कमलनाथ मा0 अरविंद नेताम पूर्व केंद्रीय मंत्री मा0 सोहन पोटई पूर्व सांसद एवं कार्यकृम संयोजक मा0 फग्गन सिंह कुलस्ते सांसद सहित अखिल भारतीय गोंडवाना गोंड महासभा के राष्ट्रीय पदाधिकारी 11 फरवरी 2018 प्रथम सत्र मा0 रमन्ना ट्रास्पोर्ट मंत्री रमन्ना कर्नाटका मा0 अरविंद नेताम पूर्व केंद्रीय मंत्री मा0 सोहन पोटई पूर्व सांसद एवं कार्यकृम संयोजक मा0 फग्गन सिंह कुलस्ते सांसद सहित अखिल भारतीय गोंडवाना गोंड महासभा के राष्ट्रीय पदाधिकारी द्वितीय सत्र मा0 हीरासिंह मरकाम मा0 अरविंद नेताम पूर्व केंद्रीय मंत्री मा0 सोहन पोटई पूर्व सांसद एवं कार्यकृम स

अखिल भारतीय गोंडवाना गोंड महासभा के कार्यकृम संबंधी समीक्षा

10 11 12 फरवरी 2018 को हरर्रई जिला छिंदवाडा चलो । अखिल भारतीय गोंडवाना गोंड महासभा के कार्यकृम संबंधी समीक्षा अखिल भारतीय गोंडवाना गोंड महासभा एक एैतिहासिक संस्था है जिसने देश की कथित आजादी के पूर्व से ही शासक रहे गोंडवाना के गणों की मान मर्यादा और सम्मान के लिये लगातार प्रतिवर्ष प्रत्येक राज्य में राष्ट्रीय अधिवेशन बुलाकर गोंडवाना के गणों के सर्वागीण विकास का मूल्यांकन कर कमी बेसी के संबंध में अगली रणनीति तय की जाती रही है । देश की आजादी के बाद इनमें  से कुछ लोग चुनाव चक्कर और कांग्रेस के झांसे में आकर अपना हित कांग्रेस में सुरक्षित मानकर उसके साथ हो लिये । परन्तु कुछ स्वाभिमानी लोग जिसमें राजा महाराजा और अन्य बुदिजीवि सदैव गोंडवाना समुदाय के हित चिंतन में लगे रहे उदाहरण के लिये हर्रई ,पानाबरस, कवर्धा, गढचिरोली के राजाओं के साथ राजा लाल श्यामशाह जी गंडई तथा मण्डला के समाजसेवी धोकल सिंह मरकाम और राजा प्रवीणचंद भंजदेव का नाम सम्मान से लिया जा सकता है फिर भी अनेक बुद्विजीवि और राजपरिवारों ने समुदाय हित के लिये लगातार अखिल गोंडवाना गोंड महासभा के कार्यकृम को जारी रखे जिसका परिणाम था कि

“आओ मप्र में गोंडवाना के गौरव का परचम लहरायें”

“आओ मप्र में गोंडवाना के गौरव का परचम लहरायें” अखिल भारतीय गोंडवाना गोंड महासभा १३ वां राष्ट्रीय अधिवेशन १०,११,१२ फरवरी २०१८ को सफल बनाना मप्र के प्रत्येक गोंडवाना के गणों की जिम्मेदारी है । देश के विभिन्न राज्यों से आने वाले सगा जन मप्र को हर मायने में अपना अग्रज मानते हैं । मप्र ने गोंडवाना आन्दोलन को मजबूती देने में सदैव अग्रणी भूमिका निभाई है । गोडवाना आन्दोलन की आजादी पूर्व प्रथम भूमिका में यहां के राजपरिवार, सामान्य गोंडवाना के गण तथा उनके बुद्धिजीवियों का स्थान प्रथम पंक्ति में रहा है । पुन: अग्रज होने का यह ऐतिहासिक सुअवसर हम मप्र के गोंडवाना के गणों को प्राप्त हुआ है , आओ सब मिलकर पुन: इतिहास काे दुहरायें ! -gsmarkam

"इंसानी संघर्ष और प्रकृति के अन्य जीव"

"इंसानी संघर्ष और प्रकृति के अन्य जीव" इंसान इंसान का दुश्मन है प्रतिस्पर्धा के लिये छुरी, चाकू, तलवार ,बंदूक ,अणुबम बनाता है । यह दुश्मनी तो समझ में आती है । लेकिन इस इंसानी प्रतिस्पर्धा और बर्चस्व की लडाई में पेड पौधे, पक्षी, जानवर, कीडे मकोडे और जल जंगल जमीन ने इंसान का क्या बिगाडा है जो इसे क्यों नष्ट कर रहे हो । वह तो तुम्हें ही सहारा देते हैं । सहारे को नष्ट करोगे तो हे इंसान तुम कब तक इस दुनिया में सुरक्षित रह पाओगे प्रकृति के विनास के पहले तुम्हारा विनाश सुनिश्चित है ।-gsmarkam