Skip to main content

Posts

Showing posts from 2023

बेरोज़गार युवा और पेंशन युक्त पेंशनधारी

 "आज की जरूरत" पढ़े लिखे बेरोज़गार युवा रोजगार के अवसर खोजने गांव से शहर की ओर प्रस्थान करें । वहीं शहरों से "रोजगार मुक्त पेंशनधारी" अपने पेतृक गांव की ओर पहुंच कर अपने अनुभव को समाज के बीच रखकर अपनी बुद्धि विवेक विज्ञान के माध्यम से गांव को आर्थिक धार्मिक सांस्कृतिक राजनीतिक विषयों पर समृद्ध करने का प्रयास करें, तो कुछ होना संभव है। - गुलजार सिंह मरकाम (राष्ट्रीय अध्यक्ष क्रांति जनशक्ति पार्टी)

जनजाति सूची में ही शामिल होने की कोषिश क्यों ?

 "जनजाति सूची" में ही शामिल होने की कोषिश क्यों ? भारतीय समाज को उनकी विशेषताओं को चिन्हित करके, उनके समग्र उत्थान की अवधारणा को लेकर, अजजा,अजा, अन्य पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यक के रूप में संविधान में सूचिबद्ध कर दिया गया है। सबको अपनी सूची में रहकर संवैधानिक अधिकार पाने के पूरे अवसर उपलब्ध है। परन्तु इस मूलनिवासी समुदाय,में वर्गीकृत श्रेणियां केवल "अजजा" की सूची में ही क्यों शामिल होना चाहती है, चिंता का विषय है। मेरा व्यक्तिगत मानना है कि जनजाति की सूची में शामिल होने के जो(जनजातीय) मापदंड है, उन मापदंडों को पूरा किए बगैर कोई इस सूची में आने की कोशिश करता है, वह केवल जनजाति आदिवासी के संवैधानिक अधिकारों को आसानी से हासिल करने के मात्र का उद्देश्य रखता है। मणिपुर की घटना यही संकेत देती है। देश के अनेक हिस्सों में, आदिवासी की बहन बेटियों से विवाह संबंध बनाना और उनके नाम पर जमीन जायदाद हासिल करने की घटनाएं आम हो चुकी है, भूमि हस्तांतरण से लेकर शिक्षा रोजगार आदि के संवैधानिक प्रावधानों को ताक में रखकर, गलत नीयत से "जनजाति सूची" में शामिल होने की कोशिश, जनजातीय

अपनी जिम्मेदारी निभायें

 "अपनी जिम्मेदारी निभायें" मौलवी,पादरी,निहंग , जैन मुनि,भिक्खू , पंडित  पुजारी आज भी अपनी अपनी धर्म रक्षा के लिए त्याग और बलिदान करते हुए, अधिकतर अविवाहित रहकर प्रचारक बनते हैं, उनका एक ही लक्ष्य है कि मेरे धर्म संस्कृति का ध्वज दुनिया में लहराता हुआ दुनिया को अपनी धार्मिक विचारधारा में चलने के लिए प्रेरित करते रहते हैं। यहीं से इन पंथों में शसक्त और शक्तिशाली एकता का प्रादुर्भाव होता है। जो सत्ता और सरकारों को अपने दरवाजे पर माथा टेकने के लिए मजबूर कर देती है। गोंडवाना के आंदोलन में क्या ऐसे त्याग और बलिदान करने वाले लोग दिखाई देते हैं ? गोंडवाना के इतिहास और संस्कृति के पारंपरिक प्रचारक क्या अपनी भूमिका निभा रहे हैं ? गोंडवाना की रूढ़ि प्रथा और पारंपरिक इतिहास को बचाने की जिम्मेदारी, गांव में बैगा पडिहार, एवं समाज में परधान पठारी की होती है,क्या ये अपनी भूमिका निभा रहे हैं, जिम्मेदारी है तो निभाना चाहिए,मैं यह भी चाहता हूं कि बैगा, पडिहार,परधान पठारी वर्तमान विकास की दौड़ में अव्वल रहे, आगे बढ़े शिक्षा से संपत्ति से अग्रणी रहें,पर शिक्षा संपत्ति के स्तर को बनाए रखते हुए गों

विचारधारा और उपविचारधारा

 अमर शहीद वीर भगत सिंह की शहादत तिथि की याद में समर्पित!!!!! "विचारधारा और उपविचारधारा" विचारधारा का विचारधारा से मतभेद स्वाभाविक है होगा ही, होना भी जरूरी है। परन्तु भारत देश में एक ही विचारधारा के अनेक विचारक पैदा हो गये जिसका कारण देश में जाति व्यवस्था है। जातियों ने एक विचारधारा को अपनी जाति/समुदाय, संरक्षण के नाम पर उसे उप विचारधारा के रूप में स्थापित कर लिया, चाहे यह विचारधारा के रूप में सामाजिक संगठन बन गये हैं या राजनीतिक संगठन,भारतीय समाज और संस्कृति इन्हीं उपविचारधाराओं के जाल में फंसकर रह गई है। जिसका हल संविधान में दिया जा चुका है यथा जातियों में वर्गीय मानसिकता के लिए अनु.जनजाति/अनु.जाति/अन्य पिछड़ा वर्ग/अल्पसंख्यक तथा सवर्ण वर्ग के रूप में उल्लिखित है, परन्तु भारतीय समाज अभी भी जातीय मानसिकता से उबर नहीं पाया है,तब विचारधाराओं के अंतर को कैसे समझे। उपविचारधाराओं तथा उनके दोयम दर्जे के विचारकों के पीछे भागती हुई अपनी जनशक्ति को बिखराकर रखती है। समय है आ गया है कि भारतीय समाज देशी,विदेशी,मिश्रित विचारधारा और उनसे उत्पादित उपविचारधाराओं के मार्ग पर चलने वाले सामाजि

असली और प्रायोजित मुद्दा

 "असली और प्रयोजित मुद्दे को पहचानो" में एक बार पुनः लिख रहा हूं, भारत में कांग्रेस भाजपा के अतिरिक्त मूलनिवासियों के नेतृत्व में "तीसरी शक्ति" का निर्माण ना हो जाए इसे रोकने के लिए मरते हुए कांग्रेस को जीवनदान देने के लिए प्रयोजित तरीके से "राहुल गांधी" को प्रचारित करने के लिए सारा खेल चल रहा है, एक ओर मूलनिवासियों की पार्टियां ईवीएम, पिछड़े वर्ग की जनगणना, बेरोजगारी, कालेजियम, मंहगाई, आरक्षण कोटा, किसानों की समस्या, बैंकों से डकैती, निजीकरण आदि विषयों पर जनता का ध्यान आकर्षित करने का प्रयास कर रही हैं,सदन में इन मुद्दों को उठाने का प्रयास करती हैं, तब सदन के महत्वपूर्ण और मंहगे समय को फालतू और व्यक्तिगत बातों (राहुल प्रकरण) को लाकर सदन का समय बर्बाद कर रहे हैं। कारण भी है कि भाजपा को और भी मजबूत करने के लिए कांग्रेस के द्वारा मूलनिवासियों की खासकर अनु.जाति/जनजाति और अल्पसंख्यक समुदाय के कुछ मतदाताओं को अपने आसपास बनाये रखना चाहती है ताकि भाजपा को 2024 में संविधान बदलने लायक बहुमत दिला सके। जबकि भाजपा के सांसद और अतिवादी समर्थक बार बार इस बात का संकेत दे

गोदी मीडिया बनाम गोदी पार्टियां

 "गोदी मीडिया बनाम गोदी पार्टियां " सर्व विदित है भारत में सरकार की गोद में बैठकर गोदी मीडिया करोड़ों का विज्ञापन ले रही है, पैसा लेकर सरकार की चाटुकारिता की सभी हदें तोड़ चुके हैं। राजतंत्र के जमाने में राजा अपने राजकाज की बडाई या यशोगान के लिए "भाट" रखते थे जिनका खर्चा राजा उठाता था। आज लोकतंत्र है सरकार जनता के पैसे से चलती है मीडिया का किसी सरकार की भाटगिरी करने अधिकार नहीं सरकार के अच्छे बुरे काम को जनता के बीच लाने की जिम्मेदारी है।   हमारे लोकतंत्र में आजकल गोदी मीडिया की तरह गोदी प्रत्याशी या गोदी पार्टियों का ट्रेंड चल निकला है, गोदी पार्टियां किसी खास पार्टी को लाभ दिलाने के लिए खास पार्टी से सहयोग लेकर चुनाव मैदान में उतरती है। जीतना उसका मकसद नहीं होता,खास प्रत्याशी को जिताने लायक वोट काटना होता है। ऐसा ट्रेंड भारतीय लोकतंत्र के लिए ख़तरनाक साबित होगा। लोकतंत्र पैसे के इर्दगिर्द खड़ा होकर गोदी पार्टियों को गोद में लेकर लोकतंत्र का का गला घोंटने का काम करेंगी। - गुलजार सिंह मरकाम

गोंडी भाषा शब्द

 "भाषा काल और शब्द विवेचना " आदिवासी समुदाय में तिवारी लाल मार्को,हो या दुबे सिंह मार्को नाम या झाड़ू लाल मरकाम इनके मां बाप या समुदाय के लोग इन शब्दों का मारना भी समझते रहे होंगे, या  ऐसे शब्द धारक बामन समुदाय का ऐसे भूभाग में प्रवेश भी नहीं हुआ होगा तभी तो इन शब्दों का इस्तेमाल हुआ, अन्यथा कोई समुदाय अन्यों के सर्नेम का उपयोग अपने बच्चों के नाम पर कैसे कर सकते थे, ठीक इसी तरह झाड़ू हिंदी भाषा का शब्द है जिसे सफाई के लिए उपयोग किया जाता है, इसका मतलब है कि ऐसे क्षेत्रों में हिंदी का प्रसार नहीं हुआ था ऐसे क्षेत्रों के लोग यदि झाड़ू को सफाई औजार समझते तो उस समय की गोंडी भाषा में "कैसार" शब्द पर नामकरण करते! जबकि कैसार नाम पर भी नामकरण होता रहा है जो जानकारी होने के बाद भी रखा जाता था। इस विषय पर विचार रखे का यह मतलब है कि कौन सी भाषा कब कहां पहुंची इसका अनुमान लगाया जा सके।- गुलजार सिंह मरकाम (गोंसक्रांआं)

हिंदू या मूलनिवासी पर्व

 चैत्र से नव वर्ष प्रारंभ मूलनिवासी गैर हिन्दू का या सनातनी मनुवादी हिंदुओं ?  यदि हिंदुओं का होता तो बामन बनिया राजपूतों के नाम चैतू,चेतराम चैती,बैसाखू बैसाखी अषाढू सवनू सवनी,भदिया भद्दू ,कार्तिक कतिये,अघनूअघनी ,पूसू पुसिया माहू माहे फागू फगनी, जैसे उपयोग में आते परन्तु उनके कथित गृंथों में ऐसे नाम नहीं मिलते, परन्तु मूलनिवासियों के अधिकांश परंपरागत पुराने नामकरण इसी के इर्द-गिर्द होते थे, इससे यही निष्कर्ष निकलता है कि चैत्र नव वर्ष का संबंध मूलनिवासी परंपराओं का हिस्सा है ना कि हिंदुओं का ! - गुलजार सिंह मरकाम (gska)

भावनात्मक दोहन

 "सैनिक पेंशन और जनभावनाओं का दोहन" सुप्रीम कोर्ट भी मोदी की तरह सैनिकों के पेंशन की आड़ में जनता की भावनाओं को कोलेजियम नियुक्ति यथास्थिति रहे एसटी/एस सी/ओबीसी को सुप्रीम कोर्ट में कभी भागीदारी ना मिले का खेल तो नहीं चल रहा?  -गुलजार सिंह मरकाम (gska)

संतोषी आदिवासी

 आज राष्ट्रीय स्तर पर आदिवासी समुदाय के "कामन इशू" पर कुछ चर्चा होने लगी है, आदिवासी को रिझाने के लिए, राष्ट्रपति, राज्यपाल जैसे पदों का झुनझुना भी पकड़ाया जाने लगा है,मप्र तो और भी आगे जाकर आदिवासी महिलाओं को प्रति माह १००० की सौगात तक देने की बात कर बैठी, सभी जानते हैं कि यह क्यों, मेरा मानना है कि यह आदिवासियों के अलग अलग हो रहे क्षेत्रीय आंदोलनों का प्रतिफल है। यदि प्रदेश नहीं राष्ट्रीय स्तर पर आदिवासी एकजुट होकर आंदोलन कर लें तो इसके क्या परिणाम हो सकते हैं। सबको स्वयं समझना और समाज को समझाने की जरूरत है।

पेसा

 पेसा कानून का लाभ प्रदेश के सभी आदिवासियों को नहीं मिलेगा।" पेसा कानून का फायदा मात्र ८९ विकास खंडों में,शेष  मध्यप्रदेश के आदिवासी इस कानून के लाभ से वंचित रहेंगे । इसका एकमात्र इलाज है, शेष मध्यप्रदेश के आदिवासी बहुल जिला एवं विकास खंडों को मध्यप्रदेश सरकार चिन्हित कर नये जिलों की घोषणा की तरह आदिवासी बहुल क्षेत्रों को पांचवी अनुसूची के अंतर्गत अधिसूचित करने का प्रस्ताव विधानसभा में पारित कर महामहिम राष्ट्रपति को प्रेषित करें तभी मप्र के शेष आदिवासियों को पेसा कानून का लाभ मिल पाएगा ।-गुलजार सिंह मरकाम (रा.अ.क्रांति जनशक्ति पार्टी)

Evm

 जब दुनिया के अधिकांश विकसित देशों ने "ईवीएम वोटिंग मशीन" को अविश्वसनीय मानकर उसका उपयोग बंद कर दिया तो हमारे देश के तथाकथित नेता या सरकार उसे हटाने को क्यों राजी नहीं? या देश की जनता इसको हटाये जाने के प्रति गंभीर नहीं! - गुलजार सिंह मरकाम (राष्ट्रीय अध्यक्ष क्रांति जनशक्ति पार्टी)

"जनता का टेक्स से भरा खजाना और जनता पर ही एहसान जताना"

 "जनता का टेक्स से भरा खजाना और जनता पर ही एहसान जताना" भारत भूमि में जितने खनिज,वन और जल संसाधन हैं,इनसे प्राप्त राजस्व तथा आम नागरिक से प्राप्त टेक्स से हमारे देश का खजाना भरता है, देश प्रदेश की किसी की भी पार्टी की सरकार बने , ये जो रेवड़ी बांटने का काम हो रहा है क्या पार्टियां अपने पार्टी फंड से देती है, कतई नहीं ये सब जनता के खून पसीने की राशि है, इसलिए पार्टी और सरकारें इनका एहसान जनता के ऊपर लादने की बात करती है,जो सरासर बेईमानी है, इसे गहराई से, समझें और पार्टियों की घोषणा और संकल्प से प्रभावित न हों बल्कि सरकार से प्रश्न करें कि केंद्र और राज्य सरकारें इतने वर्षों तक क्या कर रही थी जो अब देने की बात कर रही हैं। -गुलजार सिंह मरकाम