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Showing posts from 2019

CAA कानून के आने से आदिवासी समाज में क्या प्रभाव पड़ेगा ?

" CAA कानून के आने से आदिवासी  समाज में क्या प्रभाव पड़ेगा ? ( इस विषय पर परिचर्चा, जनचर्चा, ज्ञापन, प्रदर्शन कर रद्द कराने में देश के सभी आंदोलनकारियों के साथ खड़े होकर अपना योगदान दें।) इस  कानून में संविधान की छठवीं अनुसूची के अंतर्गत आने वाले पूर्वोत्तर राज्यों की संस्कृति, पहचान और जनसंख्या को प्रदान की गई संवैधानिक गारंटी की  संरक्षा और बंगाल पूर्वी सीमांत  विनियम- 1973 की "आंतरिक रेखा प्रणाली"(inner line) के अंतर्गत आनेवाले क्षेत्रों को भी कानूनी संरक्षण प्राप्त है, को बरकरार रखा  गया है परंतु पांचवी अनुसूचित क्षेत्र में आने वाले राज्यों के लिये किसी भी प्रकार का एक्ट में जिक्र नहीं किया गया है । इसका मतलब यह भी होगा कि जिस तरह आसाम के स्थानीय गरीब लोग,अंग्रेजीकाल में चाय बगानों में गये विभिन्न राज्यों के भारतीय जो अपनी नागरिकता साबित करने में नाकाम हो रहे हैं।अब आदिवासी को भी अपने आप को भारत का नागरिक होना सिद्ध करना पड़ेगा। यानि आपकी पुरातन जड़ों को उखाड़ कर नये पौधों की कतार में खड़ा होना होगा,अब आप देश में विशेष नहीं रह जायेंगे। जो सरकार का आगामी एजेंडा &

"अपनी तो धूल नहीं रही है, दूसरों की धोने चले" ।

NRC/CAA "अपनी तो धूल नहीं रही है, दूसरों की धोने चले" । जब 1947 में बंटवारे के बाद जो लोग चाहे वो हिन्दू मुस्लिम सिख इसाई बोद्ध जैन पारसी हो यदि उस देश को चॉइस से अपनाकर वहां के नागरिक बन गए । वे हमारे देश के लिए विदेशी हो गए । अब देश की सरकार को अपने देश के नागरिकों विकाश की प्राथमिकता से चिंता करनी चाहिए। कोई भी वर्ग या जाति जो अपने अपने देश में है ,वहां की सरकार अपने नागरिकों की चिंता करें। हमारे या किसी देश में वहां के नागरिकों के साथ कोई अन्याय होता है । तो विश्व मानवाधिकार संगठन हस्तक्षेप करता है। तब हमें दूसरे देशों के लोगों की क्यों चिंता करना चाहिये। इतनी उदारता दिखाकर भारत देश में बाहरी लोगों को बड़ी तादात में नागरिकता देकर भारत की जनसंख्या बढ़ाकर आफत और ,बेरोजगारी को निमंत्रण देना भारत के हित में नहीं। क्या बाहरी लोगों को नागरिकता देकर ही यह देश विकास करेगा ? एक ओर हम भारत की गरीबी बेरोजगारी के लिए जनसंख्यावर्द्धि को दोष देते हैं वहीं CAA लाकर जनसंख्या बढ़ाने में तुले हैं । क्या सत्ताधारी देश को डुबो देना चाहते हैं ? वैसे भी विश्व में हम विकास के हर मुद्दे पर पि

NRC, CAA और आदिवासी

"नागरिक संशोधन कानून" और "विदेशी शरणार्थी"  नागरिक संशोधन बिल २०१९ पास होना बहुत बड़ी भयावह स्थिति का संकेत है,ऐसे कानून की आरंभिक शुरुआत कांग्रेस ने भी की थी जिसमें बांग्लादेशी शरणार्थियों, सिंधी शरणार्थियों को भारत देश में बसाकर उन्हें देश के विभिन्न स्थानों की खाली भूमि इसमें कृषि, मैदानी और वन भूमि शामिल थी को दे दिया गया इस नये कानून में जहां 6 वीं अनुसूचि वाले राज्यों में प्रभावशील नहीं होने की बात जोड़ी गई है वहीं पांचवीं अनुसूचि के राज्यों के ऐसे क्षेत्र जहां पांचवीं अनुसूचि के अंतर्गत घोषित हैं इनका उल्लेख नहीं है। इसका सीधा मतलब है इन क्षेत्रों में भारत के बाहर से लाये जाने वाले शरणार्थियों को पुन: बसाये जाने की योजना है।ताकि आदिवासी जनसंख्या घनत्व कम की जा सके। जबकि पहले से बसाये गये  बंगला शरणार्थी सिंधी शरणार्थी देश के मूल निवासियों के लिए खतरा बने हुए हैं । अब जो कुछ भी बची जमीने हैं उन्हें बाहर के देशों से शरणार्थी बुलाकर देश की जमीन को उनको दे दिया जाएगा क्या भारत देश चारागाह का अड्डा है जिसकी भूमि बाहर से विदेशियों को लाकर दे दिया जाए और यहां के

एन आर सी और शरणार्थी

"नागरिक संशोधन बिल और शरणार्थी" नागरिक संशोधन बिल २०१९ पास होना बहुत बड़ी भयावह स्थिति का संकेत है,जिसकी आरंभिक शुरुआत कांग्रेस ने भी की थी जिसमें बांग्लादेशी शरणार्थियों, सिंधी शरणार्थियों को भारत देश में बसाकर उन्हें देश के विभिन्न स्थानों की खाली भूमि इसमें कृषि मैदानी और वन भूमि शामिल थी को दे दिया गया आज वही बंगला शरणार्थी सिंधी शरणार्थी देश के मूल निवासियों के लिए खतरा बने हुए हैं । अब जो कुछ भी बची जमीने हैं उन्हें बाहर के देशों से शरणार्थी बुलाकर देश की जमीन को उनको दे दिया जाएगा क्या भारत देश चारागाह का अड्डा है जिसकी भूमि बाहर से लाकर लोगों को भी दे दिया जाए और यहां के मूल निवासियों को उनकी जमीन से बेदखल उनके कानूनी अधिकारों से वंचित कर उन्हें नक्सलवादी करार देकर मारा जाए जब बात है कि हिंदू सिख बौद्ध पारसी आदि को यहां बसाने की बात है तब वहां के मुस्लिमों के लिए भी यह बात लागू होना चाहिए लेकिन यह सोची-समझी साजिश के तहत किया जा रहा है इसलिए इसका जोरदार विरोध हो। भले यह बिल लोकसभा राज्यसभा में पारित होकर लागू भी हो जाए पर इसके दूरगामी परिणाम को जनता के बीच लाकर जागरू

एन आर सी और आदिवासी क्षेत्र

"एन आर सी के तहत आदिवासी भी अपने इलाके में प्रभावित होने से नहीं बचेगा इसलिए समय पूर्व सावधानी जरूरी है" मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ सहित अन्य अनुसूचित जनजाति के अंतर्गत पांचवी एवं छठी अनुसूची मैं आने वाले राज्य जिला एवं विकासखंड अपने क्षेत्रों में बसे अवैधानिक रूप से सिंधी और बंगाली शरणार्थियों को बाहर करने के लिए आंदोलन चलाएं सबसे पहले ज्ञापन फिर धरना फिर आंदोलन इसमें यह लिखा जाए की पांचवी अनुसूची क्षेत्रों में इन शरणार्थियों को पहुंचाने का बस आने का अध्यादेश कब जारी हुआ यदि इन क्षेत्रों में इस तरीके का कोई भी संसदीय विधानसभा से कोई फरमान जारी हुआ है तो वह संवैधानिक रूप से अवैध है इसलिए ऐसे हालात में पुनः आपके इन आरक्षित क्षेत्रों में बाहर के शरणार्थियों को बसा दिया जाएगा ऐसे में यदि आप पूर्वोत्तर की तरह आंदोलन हो उससे पहले अपनी मंशा सरकार और जनता के बीच जाहिर कर दें,अन्यथा समय पूर्व जागृति नहीं होने से,nrc कानून आपके इलाकों में जबरदस्ती थोप दी जाएगी,तत्काल विरोध करने पर आपको पुलिस और मिलिट्री के बंदूक का सामना करना पड़ेगा।जिसका सामना आप नहीं कर पाएंगे। ऐसा करना इसलिए भी आवश्यक

आपकी भी जिम्मेदारी है।

"आपकी भी जिम्मेदारी है" क्या देश में  पुलिस,अर्द्धसैनिक बल,और मिलिट्री के जवानों में संविधान की समझ नहीं होती ? सत्ताधारी यदि राष्ट्र में असंतोष फैलाये, मनमानी करने लगे, देश के संविधान की धज्जियां उड़ाने लगे तब क्या,हमारे सैनिकों को इस पर विचार नहीं करना चाहिये ? आज जब देश के बुद्धिजीवि ,अर्थशास्त्री, न्यायविद , कलाकार , और नामी सामाजिक संगठन और विचारक,देश की अर्थव्यवस्था , मंहगाई,अत्याचार और देश का विश्व समुदाय में गिरते साख पर लगातार चिंता की जा रही है, तब ऐसे मौके पर आपको भी हस्ताक्षेप करना होगा, देश का नागरिक कहीं ना कहीं दुखी हैं,प्रताड़ित है। चूंकि वह कहीं आपका पिता,माता भाई बहन पत्नि बेटा भतीजा भी है,कहीं पर वह आपका परम मित्र हैं, पड़ोसी है, क्या बिना सोचे समझे उस पर गोलियां चला  दोगे। नहीं जितनी जिम्मेदारी आपकी देश रक्षा की है उतनी ही जिम्मेदारी देश के नागरिकों की रक्षा और उनके वाजिब हक अधिकारों पर अपना दखल रखने की है। आप अंग्रेजी राज्य के सैनिक मत बनो,जो चंद शासकों के पागलपन के आदेश पर अपनों पर ही गोलियां चला दो। आज देश अंग्रेजों से मुक्त है। आज आपको देश हित समाज ह

विभिन्न राजनीतिक दलों की शाखा और प्रभाग की जिम्मेदारी

"विभिन्न दलों के आदिवासी (जनजाति) शाखा/प्रभाग और मोर्चा की जिम्मेदारी तय हो" यदि किसी राजनीतिक दल की आदिवासी(जनजाति) शाखा/मोर्चा या प्रभाग के नेता कहते हैं कि हम सब आदिवासी एक हैं तब ऐसे सभी दलों के संबद्ध आदिवासी(जनजाति)  मोर्चा के कार्यकर्ताओं की संयुक्त बैठक होनी चाहिए । ताकि आदिवासी हित में वे अपने अपने दलों पर दबाव बना सकें यदि कोई दल अपने मोर्चा की बात नहीं माने तो उसकी पूरी इकाई अन्य दल के आदिवासी मोर्चा में बेझिझक शामिल होने का ऐलान कर दे। यदि इन दलों के मोर्चा एकजुटता का परिचय नहीं देते तो आदिवासी (जनजाति) समुदाय उनका बहिष्कार कर दे, आखिर किसी दल ने आदिवासी (जनजाति) शाखा खोल रखा है तो इसका यह मतलब नहीं कि उसका पदाधिकारी केवल आदिवासी वोट संग्रह के लिए है। जिस तरह राजनीतिक दलों के अरक्छित छेत्र से चुने हुए जनप्रिनिधियों की जिम्मेदारी समुदाय हित के लिए है,उससे भी बड़ी जिम्मेदारी दलों के आदिवासी शाखा/प्रभाग या मोर्चा के कार्यकर्ता और पदाधिकारी की है , जो जनप्रतिनिधि के लिए समुदाय के पास वोट मांगने जाता है। समुदाय को चाहिए कि इन शाखाओं पर भी कड़ी नजर रखे। (गुलजार सिंह

gondwana aur aadivasi rajniti

"गोंडवाना और आदिवासी राजनीति का भविष्य" एक विश्लेषण (लेखक के अपने निजी विचार हैं आवश्यक नहीं कि इससे सभी सहमत हों) गोंडवाना की भाषा धर्म संस्कृति ऐतिहासिक धरोहर काफी समृद्ध है। परन्तु इसके नाम का राजनीतिक पक्छ काफी कमजोर दिखाई दे रहा है, राजनीति में जिस कोर वोट के दम पर आगे बढ़ा जा सकता था वह कोर आदिवासी हो सकता था परन्तु आदिवासी शब्द का परहेज,या परिणाम मूलक प्रयास नहीं होना भी शायद गोंडवाना के राजनीतिक  भविष्य को स्थापित  नहीं कर सका,यही कारण है कि जिन बड़े आदिवासी समूहों, भील,भिलाला बरेला,कोरकू कोल, शहरिया, भूमिया, और तो और गोंड की उपजातियां प्रधान मवासी बैगा भारिया का भी इस राजनीतिक आंदोलन से दूरी बनाए रखना कहीं ना कहीं इस तरह की राजनीतिक स्वीकारिता को  नजरअंदाज करते नजर आता है। गोंडवाना आंदोलन के अन्य क्रियाकलाप यथा इतिहास धर्म संस्कृति रूडी परंपराओं के विभिन्न धार्मिक सामाजिक सांस्कृतिक संगठनों के प्रयास से यह कोर आदिवासी समुदाय काफी हद तक प्रभावित हुआ है।अपने आचरण में बदलाव ला रहा है। सांस्कृतिक रूप से "जय सेवा जय जोहार" जैसे संयुक्त शब्दावली को आत्मसात कर

समुदाय और सरकार की चुनौती

मध्यप्रदेश में सरकार और आदिवासियों के लिए प्रमुख चुनौती होगी। (१) गोंडी भाषा तथा अन्य आदिवासी भाषाओं के प्राथमिक शिक्षा के लिए बनी समिति के उचित क्रियान्वयन पर समाज की मॉनिटरिंग। तथा ८ वीं अनुसूची में शामिल किए जाने हेतु विधानसभा से प्रस्ताव पारित कर केंद्र सरकार को भेजने के लिए  दबाव। (२) पांचवीं अनुसूची के उपबंध पेसा कानून के उचित क्रियान्वयन के लिए उसके नियम बनाए जाने हेतु समिति का गठन एवम् समाज द्वारा उसकी मॉनिटरिंग। (३)जनजातीय घोषित जिले एवम् विकासखंडों में हर विभाग में जनजातीय समुदाय के अधिकारी कर्मचरियों की नियुक्ति कराने हेतु सरकार पर दबाव। (४) वनाधिकार के व्यक्तिगत,और सामुदायिक दावों का ईमानदारी और निष्ठा से अनुपालन। तथा राज्य सरकार की ओर से सुप्रीकोर्ट में जोरदार पैरवी हेतु सामाजिक दबाव। (५) अनुसूचित घोषित जिले और विकास खंडों में नगर निकाय नगर पालिका की घुसपैठ को प्रतिबंधित करना। (६) ग्राम सभाओं के प्रस्ताव को हर स्तर पर महत्व देना। (७) अनुसूचित घोषित क्षेत्रों में स्वायत्त परिषद या समिति का गठन कराने पर दबाव बनाना। (८) टी एस पी की राशि का दुरुपयोग रोकने पर वक्र दृष्

जे एन यू प्रसंग

"जेएनयू प्रसंग" (निःशुल्क शिक्षा की दरकार है देश को) राष्ट्र को चहुंमुखी समृद्ध करना है,इसकी ख्याति दूर-दूर तक पहुंचाना है, विश्व गुरु बनाना है, तब हमें अच्छे शिक्षित डॉक्टर, इंजीनियर,राजनीतिज्ञ, फिलॉसफर, इतिहासविद, अर्थशास्त्री पैदा करना होगा और ऐसे लोग केवल शिक्षा से ही संभव है जब राष्ट्र का गौरव शिक्षा से ही संभव है,तब शिक्षा को प्राइमरी से लेकर डिग्री स्तर तक निशुल्क क्यों नहीं किया जा सकता ? क्या हम राष्ट्र के गौरव को नहीं बढ़ाना चाहते ? यदि हमारी नियत ठीक है तो हम अन्य  मदों से कटौती करके राष्ट्र के गौरव को बढ़ाने वाली शिक्षा के लिए इतना तो कर ही सकते हैं।(गुलज़ार सिंह मरकाम राष्ट्रीय संयोजक गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन)

भारतीय विकास की अवधारणा

"भारतीय विकास की अवधारणा" हमारे देश में राजनतिक दल या नेता विकास की असली अवधारणा समग्र विकास जिसमें जीवित रहने के लिए रोजी रोटी, रोजगार, स्वास्थ, शिक्षा, पर्यावरण ,भाई चारा सौहार्द्र जैसे मूलभूत आवश्यक कार्यों को प्राथमिकता में रखकर जनता को अपनी ओर आकर्षित कर सत्ता हासिल करना चाहिए लेकिन इन विषयों को प्राथमिकता देने की बजाय जनता की मानसिकता में विकास का पर्याय केवल रोड, बिजली,सड़क या भावनात्मक मुद्दे जिससे समग्र विकास का कोई सरोकार नहीं, को भर दिया गया है, जिसके कारण विकास की असली अवधारणा गौढ़ हो जाती है, जनता इसे ही विकास मानकर किसी दल या नेता के प्रति आकर्षित होकर उसे सत्ता सौंप देती है, भारत देश की जनता की इसी कमजोर मानसिकता ने भारत को पिछड़ा करके रखा है। जबकि जनता को सत्ता या नेता से अपनी मूलभूत आवश्यकता के बारे में सवाल करना चाहिए पर वह रोड बिजली सड़क पर सवाल करके उस पर आश्वासन पाकर खुश हो जाता है। गली चौराहों चौपालों में बस यही बात तैरती रहती है पूरे पांच साल इसी में गुजर जाते है, चुनाव आया फिर से यही कहानी दोहराई जाती है,जनता पुनः इस जाल का शिकार हो जाती है। स

"नाचलो गा लो या अधिकार हासिल कर लो"

"नाचलो गा लो या अधिकार हासिल कर लो" सहनशील साहसी और ताकतवर आदिवासी की आक्रामक क्षमता जिसके बल पर वह भुखमरी से लड़ लेता है,जंगल में शेर भालू से लड़कर उसे परास्त कर देता है ,विश्व के मानवशास्त्री इसकी अक्रामक क्षमता को भारत ही नहीं दुनिया के स्तर पर कमजोर करने के लिये इनके ,निजी सांस्कृतिक जीवन में खुसी के मौके ,या समय समय पर किये जाने वाले नृत्य तथा गायन को ही उसकी सम्पूर्ण पहचान बताकर उसे मात्र मनोरंजन का पात्र बना दिया गया है। जिसके कारण अब वह अपने संवैधानिक हक अधिकारों तक को हाशिल करने के लिये अक्रामक तरीके से प्रस्तुत नहीं होता,मेरा मानना है कि आदिवासियों को चाहिये कि वे अपनी नृत्य गायन को अपने पुरखों की भांति अपने तीज त्यौहार,जन्म विवाह या फसल आने  के अवसर पर ही परंपरागत तरीके से आनंद लें। किसी छोटे आर्थिक लाभ या किसी नेता मंत्री के सम्मान के लिये सार्वजनिक प्रदर्शन न करें। अपनी माता बहनों के पारंपरिक इज्जत को सरेराह ना बेचा जाये। आज के इस कठिन और प्रतियोगिता भरे समय समय में अपने हक अधिकारों को हाशिल करने के लिये,ज्ञान विज्ञान के साथ अक्रामक रूख अख्तियार करना आवश्यक ह

आदिवासी और जनगणना 2021

"जनगणना 2021 और आदिवासी समुदाय" ट्राईबल रिलीजन कोड की मुहिम में लगे सभी आदिवासी धार्मिक संगठनों से अपील है कि वे एक दूसरे से संपर्क करके मुहिम को तेज करें ताकि देश में आने वाला जनगणना कार्य 2 020 से आरंभ हो जायेगा। जनगणना आरंभ होने के पूर्व यदि हमारे आदिवासी,मूलवासी, आदिम समूह के विभिन्न पंजीकृत अपँजीकृत संगठन यदि एकजुट होकर कोड/कालम में एक नाम को रजिस्ट्रर्ड नहीं करा पाये तो आने वाली पीढ़ी,हमें माफ नहीं करेगी । हमसे यह प्रश्न जरूर करेगी कि हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई बौद्ध पारसी भी अपने धर्म समूह में अलग पहचान बनाकर  अपने तरीके से अलग अलग  पूजा पद्धति अपनाकर कार्य करते हैं पर जनगणना के समय एक ही धर्म कोड में अपनी उपस्थिती या गणना कराते हैं। क्या आदिवासी समुदाय अपने विभिन्न अपनी पहचान को सुरक्षित रखते हुए एक कालम/कोड में  सामुदायिक पहचान को राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित नहीं कर सकता ? यदि नहीं तो आने वाले समय में यह इतिहासिक भूल आदिवासी इतिहास में काले पन्नों का अध्याय बनेगा। आज इतनी सामाजिक जनचेतना के बावजूद अनेकों सेमिनार और चर्चा के बाद भी हम ऐसा नहीं कर सके तो,इसके जवाबदे

वन कानून 1927 का प्रस्तावित संशोधन बिल

" सामूहिक समस्या सामूहिक उत्तरदायित्व" वन अधिनियम 1927  कानून का प्रस्तावित संशोधन आदिवासियों ही नहीं वरन् वन क्षेत्र में निवास करने वाले अन्य परंपरागत वन निवासियों की स्वच्छंदता स्वायत्तता और परंपरागत कृषि, स्वास्थ्य उपचार और पर्यावरण संरक्षण की दिशा में आदिवासी ही नहीं देश के भूगोल और पर्यावरण को भी तहस-नहस करने के लिए लाया जा रहा है। प्रस्तावित कानून के ड्राफ्ट में आदिवासी जंगल से स्वास्थ्य के लिए जड़ी बूटी, अपने मकान बनाने तथा हल बखर, बैलगाड़ी के लिए लकड़ी नहीं ला पायेगा । इस नए संशोधित कानून का प्रारूप वन अधिकार अधिनियम 2006 तथा पेसा कानून के प्रावधानों को पूरी तरह खारिज करता है, उदाहरण के लिए यदि कोई व्यक्ति किसी की स्वास्थ्य उपचार हेतु जंगल में जड़ी बूटी लेने जाता है तो उसे वन कर्मी बिना पूछताछ किए जंगल में घूमने का आरोप लगाकर जेल भेज सकता है या उसकी मर्जी के हिसाब से नए कानून के आधार पर प्राप्त बंदूक से उसका एनकाउंटर कर सकता है। जिसकी सुनवाई केवल वन विभाग तंत्र की रिपोर्ट के आधार पर ही संभव है। वन कर्मी अभी कह दे तीन संदिग्ध रूप में वन क्षेत्र में घूम रहा था तो उ

"सत्ता का चरित्र"

"सत्ता का चरित्र" "सत्य,नैसर्गिक है सबके लिये समान है,पर सत्ताऐं केवल अपने सत्य को ही सर्वोपरी मानती है,तथा अपने सत्य के विरोधी को दंड देती है। इसलिए सत्य के विजय के लिए सत्ता से संघर्ष करना पड़ता है । सत्ता अपने हित को जनहित बताकर जनता को नहर, बांध, अभ्यारण, उद्योग लगाने के नाम पर विस्थापन के लिए मजबूर कर देती है। वहीं। विकास के नाम गलत निर्णय लेकर जनता के धन का दुरुपयोग कर लेती है। जनता के द्वारा ऐसे फैसले का विरोध यानी सत्ता का विरोध होता है,तब सत्ता दंड स्वरूप गिरफ्तारी,कारावास या गोली चालन करती है। सत्ता का यही चरित्र है। " (गुलजार सिंह मरकाम राष्ट्रीय संयोजक गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन)

मध्यप्रदेश में गोंडवाना राज्य का पुनर्गठन

"मध्य प्रदेश स्थापना दिवस और गोंडवाना राज्य" आजाद भारत के बाद राज्यों के पुनर्गठन १ नवंबर १९५६ में यदि सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है तो वह है गोंडवाना राज्य का हुआ, देश में सभी राज्य क्षेत्रीय भाषाई आधार पर सीमांकित किये गये पर गोंडवाना राज्य(सीपी &बरार) जिसकी राजधानी नागपुर थी,  की भाषायी ,सांस्कृतिक,और भूगोल को तहस नहस कर दिया गया था। गोंडी भाषिक जनता को मराठी,तेलुगू,उड़िया और बुंदेलखंडी बोलने के लिये विवश कर दिया। सांस्कृतिक पहचान को भी रंग बिरंगे टुकड़ों के साथ जोड़ दिया। यही कारण है कि देश के सभी राज्य अपनी स्थानीय भाषा संस्कृति को सुरक्षित करने के साथ अपनी पहचान बनाये रखकर स्वाभिमान और गौरव के साथ उत्तरोतर विकास की ओर अग्रसर हैं,ऐसे राज्यों में राजनीति का केंद्र भी स्थानीय समुदाय के हाथों में रहता है, परंतु मप्र को अभी तक ऐसे किसी महत्त्वपूर्ण बिन्दु पर खास सफलता नहीं मिल पा रही है,ना ही सत्ता का केंद्र स्थानीय सरोकारों के लिये वचनबद्ध दिखाई देती है। हजारों किलोमीटर दूर का ढोकला,गरबा ,इटली डोसा ,कत्थक , चाऊमीन इस प्रदेश की पहचान बन रहा है पर यहां का कोदों कुटकी,ला

"दबाव और प्रभाव"

"दबाव और प्रभाव" मध्यप्रदेश में आदिवासी हुंकार यात्रा की जानकारी अब लोगों तक पहुंचने लगी है। जिन लोगों को पांचवी अनुसूची पेसा कानून वनाधिकार  से संबंधित अधिकारों की समझ है , विस्थापन और पलायन के दंश को समझते हैं, ऐसे लोग व संगठन स्वस्फूर्त चेतना के साथ आंदोलन को सफल बनाने में दिन रात लगे हुए है साथ ही जिन लोगों को जानकारी नहीं है उन्हें लगातार मीटिंग के माध्यम से बताने का प्रयास कर रहे है। प्रदेश में यह पहला मौका है जब पूरे प्रदेश के चारों ओर से लोग हैं, सुप्रीकोर्ट में लंबित वनाधिकार के निर्णय का पूर्वानुमान लगाते हुए जनविरोधी परिणाम के विरूद्ध अपनी ताकत का एहसास कराने को तैयार हैं। साथियों,जनता के अधिकारों के विरुद्ध यदि कोई सरकार हो या सुप्रीकोर्ट ही क्यों ना हो विपरीत निर्णय देने की मंशा रखेगी तो उसका भी विरोध करने का अधिकार जनता को है, आखिर सुप्रीकोर्ट के बाद कहां जाया जा सकता है ।जनता के हित को यदि कोई कानून या निर्णय प्रभावित करता है तो जनता उसे अपनी एकता और ताकत से बदलवा सकती है। कारण है कि "जनता की सुविधा के लिए कानून है ना कि कानून के लिए जनता है" निवेद

"लोकतंत्र की पाठशाला है शेड्यूल्ड एरिया"

"लोकतंत्र की पाठशाला है शेड्यूल्ड एरिया" भारतीय संविधान के निर्माताओं ने शेड्यूल्ड एरिया को प्रजातंत्र की पाठशाला के रूप में चिन्हित किया था ताकि भारत संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न लोकतंत्रात्मक गणराज्य बन सके । देश के बहुत सारे हिस्सों में आजादी के बाद भी जमीदारी,पूंजीवादी अधिनायक वादी ताकतें लगातार देश की व्यवस्था को अंग्रेजों की भांति अपने इर्द-गिर्द रखना चाहती थी परंतु संविधान निर्माताओं ने "सुंदर,स्वस्थ्य,समृद्ध समाज और राष्ट्र की कल्पना के लिए  प्रयोगशाला के बतौर "शेड्यूल्ड एरिया" घोषित किया जिससे प्रेरणा लेकर ये फासीवादी, अतिवादी,पूंजीवादी मानसिकता के बिगड़ैल लोगों में कुछ सुधार हो सके। इन ‌चिन्हित क्षेत्रों जिसमें गरीबी और अभाव के बीच भी शांति और भाईचारा कायम था,और अब भी उसके अवशेष जीवित हैं,ये लुट जाते हैं पर किसी को लूटने का साहस नहीं कर पाते, सामूहिक निर्णय लेने की परंपरा जिसे प्रजातंत्र का असली स्वरूप कहा जा सकता है, बतौर प्रयोगशाला में स्पष्ट दिखाई दे रहा था परंतु आधुनिक व्यवस्था के संचालकों ने प्रजातंत्र की इन चिन्हित प्रयोगशालाओं में दखल करते हुए शिक

आदिवासी हुंकार यात्रा १७/११/२०१९

"आदिवासी हुंकार यात्रा" आदिवासियों के अधिकार सहित उनकी अस्मिता और पहचान को बरकरार रखने के लिये प्रदेश के समस्त पंजीकृत/अपंजीकृत  आदिवासी संगठन और आदिवासी हित में अपना बहुमूल्य और सतत् योगदान देने वाले पंजीकृत/अपंजीकृत  जनसंगठनों से अपील है कि "सिविल सोसायटी" यानि "जल जंगल जमीन जीवन बचाओ साझा मंच" के माध्यम से २अक्टूबर २०१९ से आरंभ "आदिवासी हुंकार यात्रा " के माध्यम से दिनांक १७ नवम्बर २०१९ को भोपाल में एकत्र होकर प्रदेश स्तरीय एक विशाल यात्रा का समापन किया जायेगा।यात्रा के दौरान आंदोलन में शामिल व्यक्ति और संगठन प्रमुखत: जल जंगल जमीन और जीवन कैसे सुरक्षित रहे  तथा इसका संरक्षक आदिवासी के अस्तित्व और अस्मिता को बगैर सुरक्षित किये कदापि संभव नहीं। इस विषय पर जन चेतना पैदा करते हुए । उनके संरक्षण के लिये बने कानून और नियमों यथा, वनाधिकार अधिनियम,पांचवीं अनुसूचि,पेसा और मेसा कानून, जलाशय और अभ्यारणों के कारण भूअधिगृहण , विस्थापन और पुनर्वास नियमों की  जानकारी देते हुए वनाधिकार के तहत ग्रामसभा द्वारा पारित व्यक्तिगत,निस्तारी और सामुदायिक दावा प

वनाधिकार कानून और ऐतिहासिक‌ भूल

"वनाधिकार हाशिल कर लो,अन्यथा हमसे भी "ऐतिहासिक भूल" ना हो जाये।" जल जंगल जमीन के अधिकार के लिए हमेशा संघर्ष करने वाले व्यक्ति और संगठनों से अपील है कि मप्र में वनाधिकार अधिनियम के तहत प्रस्तुत किये गये पूर्व के दावे जिन्हें साक्ष्य अभाव या दावा पत्र की विधिवत जानकारी के अभाव में लाखों दावे निरस्त किये गये हैं, ऐसे निरस्त दावों को पुनर्विचार के लिये पुन:  ग्राम सभा के माध्यम से समिति के पास प्रस्तुत किया जाना है,तथा कोई दस्तावेज की कमी है या भरने में त्रुटि है सुधार की व्यवस्था ",वनमित्र एप" के माध्यम से की जायेगी यह एप प्रत्येक गाँव में रोजगार सहायक के पास उपलब्ध होगी , जिसके माध्यम से वनाधिकार दावों का पंजीकरण होगा,इससे पूर्व यह भी ध्यान देना होगा कि जहां पर वनाधिकार समिति अच्छे से क्रियाशील हैं,इन समितियों को एप के माध्यम से आजाकवि प्रशासन में पंजीकृत कराना होगा।यदि जहां पर समितियों का कार्य शून्य है या इस संबंध में कोई जानकारी नहीं,या किसी समिति में सदस्यों की मृत्यु या स्तीफा के कारण क्रियाशील नहीं है, ऐसे ग्रामों में ग्राम सभा आयोजित करके समिति का व

"आदिवासी और भारत में विदेशी निवेश"

"आदिवासी और भारत में विदेशी निवेश" भारत में तीन खरब (3000000000000 ) डालर  का निवेश विदेशी कंपनियां किस लालच से करेंगी । क्या भारत के लोगों की क्रय छमता बढ़ गई  है। या  कोई और मतलब है। चुकी कोई इन्वेस्टर लागत वहां लगाता है जहां उसे ज्यादा फायदा दिखे,और वहां लगाएगा जहां उसे लाभ का पक्का भरोसा  दिलाने की गारंटी देने वाला मिले। आओ पता लगाएं की आखिर विदेशी इन्वेस्टर भारत में इतनी बड़ी पूंजी लगाने के लिए क्यों तैयार हो रहे हैं, कौन सी ऐसी महत्वपूर्ण पूंजी है जिससे इन्वेस्टर्स को फायदा होने वाला है, आपको जानकर आश्चर्य होगा की भारत में सारी पूंजी धरती के अंदर जमा है और यह जमा पूंजी खनिज पदार्थ के रूप में लोहा कोयला सोना यूरेनियम तांबा आदि के रूप में प्रचुर मात्रा में विद्यमान है इन्वेस्टर को इसी बात से लुभाया गया है और गारंटी भी दी गई है कि, आप जहां कहेंगे वहां से आपको खनिज निकालने का लाइसेंस दे दिया जाएगा परंतु इन्वेस्टर्स ने कहा की यह भूमि यह खनिज तो जंगल क्षेत्रों में आदिवासियों के पास  है और जंगल क्षेत्रों में आदिवासियों का निवास है इन क्षेत्रों में पांचवी और छपी अनुसूची लाग

tribal relegion code २२/०९/२०१९ Raipur

२२/०९/२०१९ को बिलासपुर छग में आयोजित  धर्मकोड/कालम में शामिल बुद्धिजीवियों  विनम्र अपील- भारत की जनगणना 2021 के परिपेक्ष में लगातार देशभर में विभिन्न धार्मिक सामाजिक संगठनों के माध्यम से जनजाति को एक कोड कॉलम मिले इस पर प्रयास चल रहा है विभिन्न धार्मिक समूहों के माध्यम से एक कोर्ट पर सहमति के लिए राष्ट्रीय स्तर पर समन्वय समिति का भी गठन किया गया है । जो लगातार विभिन्न धार्मिक समूहों से रायशुमारी करते हुए समन्वय बनाने का प्रयास किया जा रहा है इसमें काफी सफलता भी मिली है यही कारण है कि देश में प्रमुख बड़े जातीय समूह संथाल मुंडा हो आदि सरना धर्म को लेकर कार्यरत हैं वही भील भिलाला और उनसे सहोदर जातियां भी आदि धर्म के नाम पर अपने आप को संगठित किए हुए हैं वही कोया/गोंडी पुनेम के नाम पर गोंड प्रधान तथा उनके उप शाखाएं लगातार कार्यरत हैं इस तरह देश में प्रमुख 3 क्षेत्रों से सरना आदि/ आदिवासी धर्म या कोया /गोंडी पुनेम के नाम पर अपनी पहचान और पूजा पद्धति संस्कारों को सहेजने का काम कर रहे हैं मेरा मानना है की यह तीनों बड़े ग्रुप अपने क्षेत्रीय पहचान को अपने संस्कार पूजा पद्धति को बरकरार रखें

क्रांतिकारी रक्त जरूर उबलता है

"क्रांतिकारी रक्त जरूर उबलता है।" बैतूल जिला आजादी के पूर्व से क्रांतिकारियों की जन्म स्थली रही है। यहां पर अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष करने वाले सरदार विष्णु सिंह गौड़ एवं मंसू ओझा जैसे क्रांतिकारियों ने अंग्रेजी सरकार के छक्के छुड़ा दिए थे, यह रक्त अपने अधिकारों को भली-भांति समझता है । वे यह जान रहे हैं की आज की सरकार भी अंग्रेजों की भांति हमें जहां चाहे वहां से बेदखल कर देती है, हम शांत रहते हैं इसका मतलब यह नहीं कि हमेशा हम दबे रहें अब ऐसा नहीं होगा जैसे हमने अंग्रेजों से अपने अधिकार के लिए मुकाबला किए हैं तो देसी सरकार से भी हम मुकाबला करने को लिए तैयार हैं,वैसे भी वनाधिकार के नाम पर हमारे साथ उचित न्याय नहीं किया जा रहा है। सामुदायिक वन अधिकार के तहत हमें वन भूमि का सामुदायिक मालिकाना हक दे दिया जाना चाहिए लेकिन यह नहीं मिल रहा है इसलिए हम अपने आप  सामुदायिक वनाधिकार हासिल करके सरकार को जवाब देंगे (सामुदायिक वन अधिकार से वंचित समुदाय की आवाज) द्वारा-गुलजार सिंह मरकाम राष्ट्रीय संयोजक गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन

हम अपने आप को कहां पाते हैं,वहीं से बेहतर काम कर सकते हैं।

हम अपने आप को कहां पाते हैं,वहीं से बेहतर काम कर सकते हैं। :-यही जाति सेवा,समुदाय सेवा,समाज सेवा है। संविधान के दायरे में रहकर कर रहे हैं ,इसलिए देश सेवा भी है।:- "देश प्रदेश स्तर में गठित पंजीकृत/अपंजीकृत महत्वपूर्ण स्वयं सेवी संगठन" (१)जाति संगठन (२)समुदायिक संगठन (३)सामाजिक संगठन    ........................ (१)जाति संगठन :- उद्देश्य  संविधान के दायरे में रहकर केवल जातीय इकाई का समग्र उत्थान  (२) समुदायिक संगठन :- उद्देश्य, संविधान के दायरे में रहकर केवल अन्य सहोदर जातीय समूहों (वर्ग)का समग्र उत्थान (३) सामाजिक संगठन :- उद्देश्य , संविधान के दायरे में रहकर विभिन्न जातीय,सामुदायिक, वर्गीय समूह में  बंटे सम्पूर्ण भाग का समग्र उत्थान । (गुलजार सिंह मरकाम राष्ट्रीय संयोजक गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन) 

"वनाधिकार के मामले में,शासन प्रसाशन ने भृम फैलाने का प्रयास किया है।"

"वनाधिकार के मामले में,शासन प्रसाशन ने भृम फैलाने का प्रयास किया है।" शासन प्रशासन ने वनाधिकार अधिनियम में व्यक्तिगत दावे को प्राथमिकता देते हुए आदिवासी को अन्य लोगों से अलग-थलग कर दिया यही कारण है की वनाधिकार के मामले में केवल आदिवासी ही आगे आकर संघर्ष करने का प्रयास कर रहे हैं जबकि शासन प्रशासन यदि व्यक्तिगत दावों की अपेक्षा सामुदायिक दावा, निस्तार दावों को प्राथमिकता देती तो शायद आदिवासियों के लिए यह स्थिति पैदा नहीं हो पाती सामुदायिक दावे,ग्राम के समस्त नागरिकों के लिए लागू है यदि पहले से सामुदायिक और निस्तार दावा के प्रति जनता को जागरूक किया जाता तो गांव में आदिवासियों और गैर आदिवासियों के बीच वैमनस्यता नहीं होती, शासन प्रसासन के नियोजित षडयंत्र जो नागरिकों को जानबूझकर जानकारी नहीं पहुंचाना, के अभाव में वन भूमि अधिकार को केवल आदिवासी के इर्दगिर्द केंद्रित कर दिया गया ,जिसके कारण वह सबकी नजरों में चढ़ गया । यह तो ठीक ऐसा ही हुआ है जैसे अन्य पिछड़ा वर्ग को आरक्षण देते वक्त हुआ था। वह अपने ही अधिकार का विरोध करने के लिये सड़क पर उतर गया था। वनाधिकार का मामला भी ठीक उसी

संकीर्ण सोच से समुदाय और समाज का नुकसान होता है।"

"संकीर्ण सोच से समुदाय और समाज का नुकसान होता है।" ट्राइबल रिलिजन कालम पर देश का सभी जन जाति वर्ग सहमत है, यथा संथाल, मुंडा, हो और उरांव सभी सहमत हैं परंतु अपनी सरना पहचान को बनाए रखेंगे। इसी तरह भील भिलाला बरेला मीना यह सब ग्रुप जब "ट्राइबल" कालम नाम पर सहमत हैं तब कुछ तत्व इस बात से क्यों सहमत नहीं है। यह शब्द केवल यूनिटी का परिचायक ,यह शब्द आपकी छेत्रीय मूल पहचान को यथास्थिति बनाए रखने की छूट देता है। शब्द के पीछे मत भागो,यूनिटी होने के आशय को समझो,यदि अच्छे से समझना है तो "हिन्दू" शब्द के अंदर जाओ कितना डरावना और वीभत्स है,सबको मालूम है,फिर भी मनुवादी सोच ने इस शब्द को भी गौरवपूर्ण बनाकर, गौरवान्वित महसूस कर रहा है ,भले ही हम उसका कोई भी मायना निकाल ले,पर एकता का लक्छ्य तो पूरा हो रहा है। हमें भी शब्दों के जाल में ना फंसकर समुदाय हित म ें व्यापक सोच विकसित करना है। "संकीर्ण सोच से समुदाय और समाज का नुकसान होता है।" (गुलजार सिंह मरकाम राष्ट्रीय संयोजक गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन)

कैसे होगा बेड़ापार,कैसे मिलेंगे वन के अधिकार

"कैसे होगा बेड़ापार,कैसे मिलेंगे वन के अधिकार" आदिमजाति कल्याण विभाग मप्र " वन मित्र एप" क्या वनाधिकार कानून के तहत प्रारूप  (क)व्यक्तिगत (ख) निस्तार  और (ग)सामुदायिक हक के तहत वनाधिकार दिला पाएगा ? जब अन्य राज्यों में यह कारगर सिद्ध नहीं हुआ तो ,मप्र जैसे कम शिछित राज्य में कैसे सफल होगा। चिंतनीय है। जिन ग्राम सचिवों को ट्रेनिंग दी गई है उन्हें अभी भी वनाधिकार के तीनों फॉरमेट का ज्ञान ही नहीं तब "कैसे होगा बेड़ापार,कैसे मिलेंगे वन के अधिकार" (गुलजार सिंह मरकाम राष्ट्रीय संयोजक गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन)

26 नवंबर 2019 को संसद नहीं सुप्रीकोर्ट तय करेगा आदिवासियों की किस्मत क्या आप जानते

"26 नवंबर 2019 को संसद नहीं सुप्रीकोर्ट तय करेगा आदिवासियों की किस्मत क्या है।" 2020 से आदिवासियों के लिए खतरे की घंटी बज चुकी है समान नागरिक संहिता में विशेष दर्जा प्राप्त आदिवासी अपनी पहचान खो देगा ।26 नवंबर 2019 से यह प्रक्रिया आरंभ हो रही है 1927 का वन कानून संशोधन 2019 का प्रारूप तैयार है ,जो आदिवासी के बहुत से संवैधानिक अधिकार को छीन लेगी, यह गेंद सरकार ने सुप्रीमकोर्ट के पाले में  डाल दी है,जिसका निर्णय 26 नवंबर तक हो जाना है जिसमें आपके जल जंगल और जमीन पर से सारे अधिकार सरकार के हाथों वन और राजस्व मंत्रालय के हाथों आ जाना है 26 नवंबर 2019 के पूर्व यदि आदिवासी आंदोलित नहीं हुआ तो 2020 आपके लिए खतरे की घंटी है आखिर 26 नवंबर महत्वपूर्ण क्यों क्योंकि 26 नवंबर को वनाधिकार पर अंतिम सुनवाई है यह सुनवाई 12 सितंबर को क्यों नहीं हो सकी सरकार का वकील सुप्रीम कोर्ट के सामने क्यों खड़ा नहीं हुआ । कारण कि सुप्रीम कोर्ट में आदिवासियों के विरुद्ध निर्णय होने वाला है,यदि सरकार का वकील वहां खड़ा होता  और हारता तो केंद्र की बदनामी होती, इससे आदिवासी नाराज होता, जिससे झारखंड और महाराष्

नागरिक ज्वलंत समस्याओं (मुद्दों) को प्राथमिकता दे।

"नागरिक ज्वलंत समस्याओं (मुद्दों)  को प्राथमिकता दे।" केंद्र सरकार के जनमानस का ज्वलंत मुद्दों से माइंड डाइवर्ट करने वाले राष्ट्रीय मुद्दों को छोड़कर देश के नागरिकों को चाहिए कि वह स्थानीय ज्वलंत  मुद्दों पर अपना ध्यान केंद्रित करें । इसके लिए धरना,प्रदर्शन,और आंदोलन करें।  (गुलज़ार सिंह मरकाम राष्ट्रीय संयोजक गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन)

"सुप्रीम कोर्ट की आड़ में संसद के परोक्ष तीर"

"सुप्रीम कोर्ट की आड़ में संसद के परोक्ष तीर" संसद में विपक्ष पक्ष विपक्ष के बीच किसी विषय पर खींचतान होती है, सरकारों को बहस मैं जनता के कटघरे में खड़ा होना पड़ता है इसलिए अब सुप्रीम कोर्ट की आड़ में सरकार बहुत से जनविरोधी, समुदाय विरोधी फैसले लेकर कानून का वास्ता देगी, जिसे राष्ट्र हित, समाज हित, न्याय हित में मानने को बाध्य होना पड़ेगा अन्यथा सुप्रीम कोर्ट आपको राष्ट्र द्रोही भी करार दे सकती है। हाल ही में वनाधिकार अधिनियम के तहत वनभूमि के पट्टे निरस्तीकरण का काला आदेश, अब विविधता के अधिकार प्राप्त लोगों के लिए समान नागरिक संहिता पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी, अयोध्या विवाद पर तटस्थता, आरक्षण पर साफगोई, निजी करण पर चुप्पी, आखिर ऐसा क्यों जब सरकार को लगती है की संसद से काम नहीं बनने वाला तो अपनी गेंद सुप्रीम कोर्ट के पाले में डाल देती है। (गुलजार सिंह मरकाम राष्ट्रीय संयोजक गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन)

"बड़े मुद्दों के लिए बड़ी ताकत चाहिये ।

"बड़े मुद्दों के लिए बड़ी ताकत चाहिए" अपने-अपने रीजनल क्षेत्रों में संघर्ष जारी रहे संघर्ष जारी रहे परंतु सभी क्षेत्रीय संघर्ष पूरब से लेकर पश्चिम तक जल जंगल जमीन के मुद्दे पर एक दूसरे से कनेक्ट होकर एक बड़ा आंदोलन खड़ा करें ! तभी शासन और प्रशासन का ध्यान हमारी तरफ जाएगा अन्यथा क्षेत्रीय मुद्दों के संघर्ष में आदिवासी समुदाय का कॉमन और बड़ा मुद्दा "जल जंगल जमीन" पेशा कानून ;पांचवी अनुसूची और स्वायत्तता के संघर्ष में कमजोरी दिखाई देगी इससे शासन प्रशासन पर दबाव नहीं पड़ेगा और आपके मुद्दों को दरकिनार कर दिया जाएगा, इसी को ध्यान में रखते हुए आगामी समय में प्रदेश स्तर का एक सम्मेलन भोपाल में आयोजित किए जाने का प्रस्ताव है जिसमें हमारे राष्ट्रीय और प्रांतीय स्तर के मुद्दों को लेकर सबसे पहले क्षेत्रों में जन जागरण और रैली सभाओं का आयोजन किया जाएगा जिसमें जिला और संभागीय स्तर पर क्षेत्रीय मुद्दों के साथ राष्ट्रीय मुद्दों को भी शामिल कर विधिवत राज्यपाल के नाम से ज्ञापन दिया जाएगा क्षेत्रीय स्तर पर ज्ञापन के पश्चात भोपाल में बड़ी रैली करके शासन प्रशासन को चेतावनी देने का काम

आदिवासी उपयोजना (TSP) की राशि का उचित उपयोग के संबंध।

प्रति, माननीय मुख्यमंत्री महोदय मप्र शासन भोपाल। विषय:- आदिवासी उपयोजना (TSP) की राशि का उचित उपयोग के संबंध। महोदय, मप्र में आदिवासी उप योजना (टीएसपी)के लिए आवंटित राशि का राज्य TAC तथा जिला TAC की सलाह और अनुमोदन के पश्चात ही व्यय किया जाय,ताकि जनजातीय क्षेत्र तथा उन क्षेत्रो में निवास करने वाले नागरिकों के विकास की प्रत्याशा में आबंटित राशि का सदुपयोग हो सके। ज्ञात हो कि अब तक की तत्कालीन  सरकारों ने इस मद की आबंटित राशि का भरपूर दुरूपयोग किया है। आपसे आशा है कि यह राशि जिन क्षेत्र और नागरिकों के उत्थान के लिये आबंटित है उन्हें उन्हीं के हाथों निर्णय लेकर सीधा लाभ पहुंचाने की कोशिष की जाये। अत: आपसे अनुरोध है कि ऐसे निर्देश जारी करते हुए की गई कार्यवाही से जनहित में संगठन को भी अवगत कराने का कष्ट करें। भवदीय गुलजार सिंह मरकाम रासंगोंसक्रांआं मो. 8989717254

जिला एवं विकासखंड स्तर की जनजाति सलाहकार समिति जी

प्रति, माननीय कमलनाथ जी मुख्यमंत्री एवम् अध्यक्ष जनजाति मंत्रणा परिषद मध्य प्रदेश विषय:-जिला एवं विकासखंड स्तर की जनजाति सलाहकार समिति शीघ्र गठित कराये जाने के संबंध में। महोदय, उपरोक्त विषय में यह कि मप्र राज्य,भारतीय संविधान की पांचवीं अनुसूचि के अंतर्गत घोषित राज्य की सूचि का हिस्सा है। जिसमें प्रदेश के चार जिले पूर्णत: तथा विभिन्न जिलों के 89 विकासखंड एवं माडा क्षेत्र पांचवीं अनुसूचि के अंतर्गत घोषित हैं ,जिन्हें जनजातिय विकास के लिये विशेष दर्जा प्राप्त है। राज्य के सभी नागरिकों के समग्र उत्थान के लिये राज्य सरकार द्वारा आर्थिक बजट तैयार किया जाता है। जनजातियों और  अनुसूचित घोषित क्षेत्रों को इस बजट के अतिरिक्त "आदिवासी उपयोजना" के तहत केंद्र सरकार की ओर से विशेष सहायता राशि का आबंटन होता है। अतिरिक्त आबंटन के बाद भी आदिवासी का जीवन स्तर, शिक्षा,स्वास्थ तथा आर्थिक मामले में  अन्यों की तुलना में आज भी काफी पीछे है। इसका सीधा मायना है कि इस राशि का कोई विशेष लाभ इस वर्ग को नहीं मिला है। इससे यह प्रतीत होता है कि यह विशेष राशि बंदरबांट का हिस्सा होती रही है। इसके

गोंडवाना आंदोलन की सफलता का सूत्र"

" गोंडवाना आंदोलन की सफलता का सूत्र" गोंडवाना की भाषा, धर्म,संस्कृति और साहित्य का आंदोलन समाज के आधार को मजबूत करने के लिए चलाया गया है जब तक समाज का आधार मजबूत नहीं हो जाता तब तक उस के बल पर सामाजिक,धार्मिक आंदोलन को सफलता मिलना कठिन है । गोंडवाना के नाम पर अब तक कुछ हद तक(वह भी आंशिक) केवल मूल समूह गोंड आंदोलित हो पाया है।उसका सहोदर समूह जिसे उप जाती भी कहा जा सकता है अभी तक गोंडवाना आंदोलन पर विश्वास नहीं जमा पाया है, कारण जो भी हो परंतु इसे सूझ-बूझ से दुरुस्त करना पड़ेगा अपने उप समूह को भाषा धर्म संस्कृति के प्रति जागरुक करना पड़ेगा तभी हम गोंडवाना आंदोलन के सामाजिक लक्ष को पूरा कर सकते हैं अन्यथा सामाजिक आधार पर छोटी छोटी ताकत बनाकर उसे बेचा और खरीदा जा सकता है,समाज के पूर्ण लक्ष को कभी हासिल नहीं किया जा सकता। इसलिए गोंडवाना आंदोलन की सफलता उनके उप समूह को साथ लेने पर ही संभव है। (गुलजार सिंह मरकाम राष्ट्रीय संयोजक गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन)

जनगणना २१ और प्रथक धर्म कालम"

"जनगणना २१ और प्रथक धर्म कालम" आदिवासी का प्रथक धर्म कालम इसलिये नहीं कि केवल आरक्षण से जोड़कर देखा जाय ,यह इसलिये आवश्यक है कि प्रकृति के प्रर्यावरण और मानवता को जीवित बनाये रखने में इसकी महत्त्वपूर्ण  भूमिका है,दुनिया में यदि इस मार्ग का अनुसरण होने लगे तो यह दुनिया शायद लम्बे समय तक चले वर्ना ग्लोबल वार्मिंग , लगातार बढ़ती हिंसा और नैतिक पतन के कारण दुनिया के लोग परेशानी महसूस करने लगे हैं। इसलिये आवश्यक है प्रकृतिवाद के तत्त्वों से भरपूर आदिवासी का मार्ग पंथ या साधारण भाषा में धर्म कहा जा सकता है। (गुलजार सिंह मरकाम रा.सं.गों.स.क्रां.आं.)

मुख्यमंत्री मप्र को ज्ञापन

प्रति,      माननीय मुख्यमंत्री महोदय जी। (१) प्रमुख सचिव आदिम जाति कल्याण मप्र (२) मुख्य सचिव मप्र शासन (३) मंत्री आदिम जाति कल्याण मप्र विषय:- मप्र के बेरोजगार युवक/युवतियों को रोजगार में प्राथमिकता के संबंध में। महोदय , उपरोक्त विषय में यह कि प्रदेश का बेरोजगार युवा सरकार के वचन पत्र और प्र्रदेश के युवाओं का हित हो ऐसी आपकी भावनाओं को लेकर आशान्वित हैं। और तत्संबंध में निवेदन के साथ सुझाव प्रस्तुत कर रहा है जो आपकी सोच का संबल हो सकता है ।अत:आपसे अनुरोध है कि इस विषय को संज्ञान में लेकर आवश्यक कदम उठायेंगे। मध्यप्रदेश राज्य की सेवाओं में भर्ती के लिए मध्य प्रदेश से जारी जाति प्रमाण पत्र को आधार माना जाए ना की मूल निवासी प्रमाण पत्र को कारण की मध्यप्रदेश में लगातार 10 वर्षों से रहने वाले अन्य राज्यों के व्यक्तियों का भी मूलनिवासी प्रमाण पत्र बन जाता है यह मध्य प्रदेश का मूल होने का साक्ष्य नहीं है यदि मूल साक्ष्य के रूप में सही पहचान करना है तो केवल जाति प्रमाण पत्र ही असली साक्ष्य के रूप में हो सकता है चाहे वह अनुसूचित जाति, जनजाति या अन्य पिछड़े वर्ग  या अनारक्षित वर्ग के ल

सामुदायिक चिंतन

1.""सामुदायिक चिंतन"" "जरुरी नहीं कि समुदाय का लड़का लड़की दोनों शासकीय सेवा में हों" लड़की उम्र दराज हो रही है  शिक्षा प्राप्त है सर्विस में है, शादी नहीं हुई है,यदि बेरोजगार लड़का मिलता है तो समाज से ही शादी करके लड़के को मदद करके व्यापारी या उद्योगपति बना दो यदि लड़का सर्विस में है लड़की शिक्षित है तो  संबंध बना कर समाज की साख को बचाया जा सकता है अन्यथा हमारी मेहनत हमारी दी गई शिक्षा और उस पर किए गए खर्च का लाभ यदि गैर समाज में  शादी करके उसके पास जाता है तो यह समाज के लिए नुकसानदायक है। यदि विषम परिस्थितियों में बच्चों के लिए मज़बूरी है तो आदिवासी समाज की किसी भी शाखा में संबंध जोड़ें। ( गुलजार सिंह मरकाम राष्ट्रीय संयोजक गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन) 2."जरूरी नहीं कि किसी के साथ चलो पर यह जरूरी है की किसी विचार के साथ सहयोगी बनो" गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन वर्तमान परिपेक्ष में भाषा और धर्म के साथ जल जंगल जमीन पांचवी अनुसूची रूढ़ी  परंपराओं पर  अपना ध्यान केंद्रित कर रही है आशा है इस मुहिम में समुदाय बढ़ चढ़कर हिस्सा लेगा (गुलजा

"परंपरागत वनाधिकार मामले पर सुप्रीकोर्ट की बेदखली आदेश के विरुद्ध जनसंवाद"

"परंपरागत वनाधिकार मामले पर सुप्रीकोर्ट की बेदखली आदेश के  विरुद्ध जनसंवाद" अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत वन निवासी वन अधिकारों की मान्यता अधिनियम 2006 में '"जंगल में निवास करने तथा वन भूमि पर वर्षों से काबिज होकर अपनी आजीविका चलाने वाले उन जनजातियों जो जंगलों में पीढ़ियों से रहते हैं" परंतु जिनके अधिकारों को दर्ज नहीं किया जा सका था, के अधिकारों और उनके कब्जे को पहचानना और उनके अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए पारित किया गया था यह अधिनियम जंगल में रह रहे अनुसूचित जनजातियां तथा अन्य पारंपरिक वन निवासी जो वन पारिस्थितिकी तंत्र के अस्तित्व और स्थिरता के अभिन्न अंग हैं, के साथ हुए ऐतिहासिक अन्याय को पूर्ववत करने को किया गया था यह अधिनियम जनजाति तथा अन्य पारंपरिक व निवासी को निवास और आजीविका के लिए वन भूमि में रहने, परंपरागत काबिज भूमि पर कृषि करने का अधिकार तथा अन्य महत्वपूर्ण अधिकार जैसे लघु वन उपज के संग्रहण उपयोग और निपटान का अधिकार दिया गया है।  इसमें सबसे महत्वपूर्ण अधिकार सामुदायिक हक  का है दावेदार सरकारी रिकार्ड ,भौतिक गुण पारंपरिक संरचनाएं वंशावली अ

हर हर मोदी घर घर मोदी।।

"आंधी के रुख को देखना होगा। इसमें मिले जहर को परखना होगा।।" हर हर मोदी घर घर मोदी के खोखले विकास की आंधी के साथ गांव में कुछ और भी पहुंचा है। ग्राम्य संस्कृति,संस्कार स्वावलंबन, स्वशासन और संसाधन पर हमला से आर्थिक गुलामी का धीमा जहर जो मनुवादी विचार का निर्धारित लक्छय है। (गुलज़ार सिंह मरकाम राष्ट्रीय संयोजक गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन)

भक्तिकाल की परिस्थितियां और वर्तमान दौर"

"भक्तिकाल की परिस्थितियां और वर्तमान दौर" जब भारत देश में भक्ति काल के समय मनुवाद का आतंक था उस समय समाज सेवा का काम करने वाले लोग मनुवाद के खिलाफ सीधा संघर्ष ना करते हुए दोहे गीत और कविताओं के माध्यम से लोगों को जागृत करने का काम करते थे ऐसे महात्माओं जिनमें नानक ,कबीर दास, रविदास, चोखा मेला जैसे कवि लोगों को मनुवाद के विरुद्ध, जनमानस तैयार करने में आसानी हो, ताकि हम मानवीय अत्याचारी व्यवस्था का समूल नष्ट हो सके। आपको बता दूं कि आज भी मनुवाद के खिलाफ सीधा भाषण देने या किताब लिखकर उसका विरोध करने की बजाय आज कवि सम्मेलनों के माध्यम से लोगों में वर्तमान व्यवस्था के खिलाफ बात कही जा रही है तो ऐसे आयोजनों को सरकार भी मना नहीं कर सकती ,यही समय और परिस्थितियां कबीर नानक और रविदास के जमाने में थी उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से लोगों को जागरूक करके एक बड़ा माहौल पैदा करने का काम किए जो आज भी हमारे लिए अविस्मरणीय हैं। इसलिए मेरा मानना है की ट्राईबल मूवमेंट में इनडायरेक्ट कहने वाले कवि पैदा हो, जिससे छोटे बड़े पढ़े लिखे लोग भी उसे मनोरंजन के साथ-साथ ज्ञान का लाभ लेकर वर्तमान व्यव

"एकता और संगठन के लिए कुछ भी करो।"

"एकता और संगठन के लिए कुछ भी करो।" आदरणीय सगा जनों मैं चाहता हूं कि २४,२५ अगस्त पोर्ट ब्लेयर अंडमान निकोबार के धर्मकोड/ धर्म कालम के इस सेमिनार में सभी आदिवासी, जनजाति,  देशज बंधु अपने अपने अहम को छोड़कर आदिवासी, जनजाति, ट्राइबल यदि यूनिटी के लिए थोड़ा कोसैक्रिफाइ करके एक जुटता का परिचय देंगे, इसी तरीके से हमारी ताकत का लोहा मनवाया जा सकता है यही एकता हमारे समस्याओं के निदान का कारक बन सकता है इसलिए पुनः अपील है की पोर्ट ब्लेयर सेमिनार में एक साथ एक आवाज और एक नाम के साथ देश को एक संदेश देंगे कि "एक तीर एक कमान सभी जनजाति एक समान" गुलजार सिंह मरकाम राष्ट्रीय संयोजक गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन

अस्वस्थता में परहेज आवश्यक है।"

"अस्वस्थता में परहेज आवश्यक है।" देश में हजारों चैनल हैं कम से कम ABP या इस तरह के चैनलों से परहेज़ रखो,कि वह तुम्हारे दिमाग को कैसे डाइवर्ट करता है या किया जा रहा है, यदि देखते हो तो समझकर,उसकी तोड़ निकालकर,जनता के सामने प्रस्तुत करें। यही आपकी बुद्धिमानी है अन्यथा सोशल मीडिया में अपनी छोटी और ओछी बातों से बुद्धिजीवियों को बोर मत करो। (गुलज़ार सिंह मरकाम राष्ट्रीय संजोयक गोंडवाना समग्रक्रांति आंदोलन)
"ओबीसी, एससी और हमारा आदिवासी समुदाय" ओबीसी ने गुजरात के हार्दिक पटेल,तथा अनुसूचित जाति ने जिग्नेश मेवानी को साथ देकर हीरो बना।क्या जनजाति समुदाय ने "डा हीरा अलावा" को उस स्तर तक सम्मान देने की कोशिश की, यही पर आदिवासी समुदाय केकड़ा मानसिकता का परिचय दे देता है,इस पर हम चिंतन करना चाहिए। (गुलजार सिंह मरकाम राष्ट्रीय संयोजक गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन)

हर रचनात्मक कार्य को प्रोत्साहन दें।

"गोंडवाना भूमि के आदीवासी आंदोलन के हर रचनात्मक कार्य  को प्रोत्साहन दें" साथियों गोंडवाना आंदोलन में हर व्यक्ति कहीं ना कहीं किसी न किसी स्तर पर कुछ करने की कोशिश करता है, कर रहा है परंतु उसकी गंभीरता को समझना सबकी जिम्मेदारी है यदि कोई रचनात्मक काम हो रहा है और वह सही दिशा में है तो उसका भरपूर सहयोग और समर्थन करना चाहिए सिवनी जिले से एडवोकेट रावेन शाह उइके जी ने " कोयां दा विजन" के माध्यम से एक ऑनलाइन साक्षात्कार का आयोजन किया है निश्चित ही वह हमारे समुदाय के लोगों को किसी भी साक्षात्कार में सफल होने में सहायक प्रतीत हो रहा है इसलिए अधिक से अधिक लोग इसमें भाग लेकर आयोजक के साथ उस संस्था का जो अपने स्तर पर प्रतियोगी परीछाओ के सामान्य ज्ञान में बढ़ोतरी का प्रयास कर रहा है, उसमें भाग लेकर संस्था और संस्था के संचालकों को प्रोत्साहित किया जाए। इसी तरह एक और मित्र ट्राईबल एप के नाम पर अपने रचनात्मक कार्य को समुदाय के बीच प्रसारित करने का प्रयास कर रहा है ऐसे संचालक को भी प्रोत्साहित करके हम अपने समुदाय के चहुमुखी विकास में अपना बहुमूल्य योगदान दे सकते हैं (गुलजार सिंह

मोदी और शाह से भयभीत हैं भाजपा के मंत्री विधायक और सांसद।

"मोदी और शाह से भयभीत हैं भाजपा के सांसद,विधायक और पदाधिकारी ।" और अंदर ही अंदर से भयभीत है कथित उच्च वर्गीय समुदाय भी,जो भाजपा को अपना संगठन मानकर चलती है। अब तक जिस आर एस एस ने सत्ता को अपने इशारों पर नाचने का नचाने का प्रयास किया उसकी आंतरिक ताकत भी कमजोर दिखाई देने लगी, कारण की मोदी और शाह उस ओर बढ़ रहे हैं जहां उन्हें कोई संगठन या पदाधिकारी से डरने की जरूरत नहीं वह उन्हें भी अपनी कमांड में लेकर भय का वातावरण तैयार करके तानाशाह बनना चाहते हैं । यही नहीं जितने भी आर एस एस और भाजपा के अग्रणी नेतृत्व थे उन्हें धीरे धीरे किनारे लगा दिया गया और लगाते जा रहे हैं । यह जोड़ी भाजपा और आर एस एस के बीच भी इतना भय पैदा कर चुकी है कि कोई भी नेता,मोदी या शाह के विरुद्ध एक शब्द भी नहीं बोल पा रहे हैं । उनके अच्छे या बुरे कामों की आलोचना नहीं कर पा रहे हैं। इससे लगता है कि भारतीय लोकतंत्र तानाशाही सत्ता की ओर बढ़ रहा है । अन्य विपक्षी यदि सामने खड़ा होकर विरोध करते हैं तो उन्हें किसी न किसी तरह उलझाने या फसाए जाने का प्रयास भी तानाशाही का एक नमूना है अर्थात विरोधियों को खड़ा नहीं होने

"9 अगस्त और मूलनिवासी/मूलवासी संगठन"

"9 अगस्त और मूलनिवासी/मूलवासी संगठन" इस देश में बहुत सारी विचारधाराएं संचालित हैं यदि किसी व्यक्ति ,समूह या संगठन को विचारधाराओं का सम्यक ज्ञान ना हो तो उन्हें एक ही विचारधारा के रास्ते पर चलना चाहिए भारत में जैसे हजारों जातियां और हजारों संगठन हैं इसलिए इनकी  विचारधारा की आस्था का कोई पता नहीं चलता इसलिए भारत का मूलनिवासी भटक कर , कभी किसी नेतृत्व या कभी किसी संगठन के साथ जाकर अपने मूल संगठन शक्ति और विचारधारा को कमजोर करता है इसलिए जब तक नेतृत्व और संगठनों का और उनकी विचारधारा,आस्था को समझा नहीं जाए तब तक किसी बहाव में बह कर उसे आत्मसात करते हुए चलना मूर्खता से कम नहीं। मूलवासी /मूल निवासियों की विचारधारा एक है तो उन्हें एक्शन में भी एक तरीके से व्यवहार करना होगा तभी समझ में आएगा कि हम एक सोच एक विचार और एक व्यवहार में चलने को राजी हैं भले ही हमारे अनेक संगठन है । इसलिए कहा गया है कि संगठित समाज या समूह अनेक संगठन बनाकर भी शक्तिशाली और सत्तासीन हो जाता है और असंगठित समाज या समुदाय के कुछ संगठन भी सही ढंग से संचालित नहीं हो पाते यही अंतर है, संगठित मनुवाद और असंगठित मूलवास

"आदिवासी शब्द सामुदायिक एकता का माध्यम बन गया है"

"आदिवासी शब्द सामुदायिक एकता का माध्यम बन गया है" भारत देश का मूलवासी समुदाय जो देश के विभिन्न राज्यों में थोडा बहुत अपनी स्थानीय संस्कृति संस्कार और पहचान को कायम रखते हुए संविधान की जनजातीय अनुसूचि में कायम है। इसलिये वह सूचि में शामिल सभी जाति उपजाति को अपना भाई मानता है, एक समुदाय का हिस्सा मानता है। कारण कि एक सूचि में होने से उसमें सामुदायिक समझ विकसित हो चुकी है,इस वजह से वह अन्य गैर जनजातीय समुदायों की एकता और एकजुटता को देखता है,तब उसके मन में विचार आना स्वाभाविक है कि ,मेरा समुदाय भी संगठित रहे, यही कारण है कि वह आदिवासी शब्द को अपना मान कर चल रहा है कुछ अपवाद स्वरूप अन्य शब्द भी मूलवासी वातावरण में आ रहे हैं परंतु इनकी संख्या नगण्य है ऐसे में यदि हमें एक होकर देश में एक ताकत के रूप में अपनी साख को स्थापित करना है तो कुछ सैक्रिफाइस करना पड़ेगा किसी एक नाम पर सहमत होना पड़ेगा जो देश का 90 से 99 प्रतिशत मूलवासी चाहता है , हम यह नहीं कहते कि आप अपने और अपनी जाति 4 समूह की पहचान को खत्म करें अपने रोटी बेटी को सुरक्षित ना रखें पर यदि                                   

"बार बार नहीं एक ही बार"

"बार बार नहीं एक ही बार" देश की समृद्धि और विकास के लिए बनी सभी शासकीय अर्ध शासकीय और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को बारी बारी से बेचने की जगह एक साथ सारे देश का और उसकी व्यवस्था का संचालन करने हेतु विश्व के सभी देशों से निविदा आमंत्रित कर नीलामी कर दी जाए ताकि ऑक्शन में जीत हासिल करने वाले देश कम से कम इस देश को अपने स्तर पर तो ला ही देंगे। (गुलज़ार सिंह मरकाम राष्ट्रीय संयोजक गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन)

अस्तीन के सांपों से सावधान

"अस्तीन के सांपों से सावधान"   "वादा किया है तो निभाना पड़ेगा, नहीं निभाया तो भुगतना पड़ेगा" मध्य प्रदेश सरकार ने जनता पर कोई नया टैक्स नहीं लगा कर अच्छा काम किया है पर वन भूमि के काबीजों पर लगातार अतिक्रमण विरोधी अभियान चलाकर माननीय मुख्य मंत्री जी के निर्देशों की अवहेलना सरकार को महंगी पड़ सकती है। किसानों की कर्ज माफी के नाम पर कमलनाथ सरकार कटघरे में आ सकती है। जिलों में प्रशासनिक अधिकारी यह कह रहे हैं की यह केवल फसल ऋण योजना के तहत कर्ज माफी हुई है बाकी पम्प,ट्रैक्टर या अन्य काम जोकि कृषि से संबंधित हैं,(जबकि वचनपत्र में किसानों की कर्ज़ माफी का वचन दिया गया है ) का कर्ज लिया है तो उसे पटाना पड़ेगा इससे किसान आहत है अंदर ही अंदर कर्ज माफी के नाम पर किसानों में असंतोष पैदा हो रहा है। जो भविष्य में कमलनाथ सरकार के विरुद्ध जाने की संभावना है जिसका उपयोग विपक्षी दल कर सकता है। इसलिए जैसा कहा है वैसा किया जाए। (गुलजार सिंह मरकाम राष्ट्रीय संयोजक गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन)

"सोनभद्र यूपी हत्या कांड के मृतकों को श्रद्धांजलि"

"सोनभद्र यूपी हत्या कांड के मृतकों को श्रद्धांजलि" जमीन जायजाद के विवाद व्यक्तिगत तो होते ही हैं परंतु विशेष संगठनों के माध्यम से उसे सामुदायिक हवा दिए जाने का प्री प्लान भी रहता है,जो आर एस एस की योजना का हिस्सा है जिसे व्यक्तिगत भूमि विवाद पर कुछ लोग नहीं समझ पाते चाहो एसटी एससी ओबीसी हो या समान्य वर्ग ,उन संगठनों का शिकार हो जाते हैं जिन्हें धर्म और जाति के नाम से पहले से ही जाल में फंसा कर रखा गया है ऐसी परिस्थितियों में दोनों पक्षों में आपसी चर्चा की जानी चाहिए परंतु ऐसे संगठन चर्चा की जगह संघर्ष को बढ़ावा देते हैं ताकि उनके संगठन का वर्चस्व उस समुदाय के लिए हितकारी लगे। निश्चित ही सोनभद्र कांड मानवता को शर्मसार करने वाला है लेकिन उसके पीछे जो षड्यंत्र चला है वह विकृत मानसिकता वाले सामाजिक संगठन के माध्यम से रची गई सोची समझी साजिश , जिसमें वर्ग विशेष को जानबूझकर दबंग बता कर झगड़े को शांत करने के बजाय उसमें रोटी सेकने का काम किया गया है यही बात दुखदाई है आपको पता है कि यह संघर्ष आदिवासी और ओबीसी के बीच हुआ है लेकिन उसके मूल में सवर्ण समाज की मानसिकता रही है जिसका खामिया

दूरियां दूर करो, गोंडियन या आदिवासी।।

दूरियां दूर करो, गोंडियन या आदिवासी।। आज की मांग है, मिलकर चलें सब मूलवासी। सामने अन्याय है,अस्तित्व भी है खतरे में। धर्म का कोड भी चुनौती बना सामने है। एक आवाज में हुंकार भरो मूलवासी। दूरियां दूर करो गोंडियन और आदिवासी।। (गुलजार सिंह मरकाम रासंगोंसक्रांआं)

विश्व आदिवासी दिवस विकास की समीक्षा दिवस है।

9अगस्त को विश्व आदिवासी/देशज दिवस में निर्धारित विषय के विकास की समीक्षा तथा अन्य ज्वलंत मुद्दों पर विचार करें। नाच गान के लिये तो मौसमी गायन वादन और नृत्य हमारे पुरखों ने पूर्वकाल से निर्धारित किया हुआ है। (गुलजार सिंह मरकाम रासंगोंसक्रांआं)

"शोसल मीडिया और उसका जनप्रतिनिधियों पर प्रभाव"

"शोसल मीडिया और उसका जनप्रतिनिधियों पर प्रभाव" गैर आदिवासी नेतृत्व वाले दलों से जीतकर आते कुछ आदिवासी सांसद और विधायक अब इतना तो सोच रखने लगे हैं जो विधान सभा या लोकसभा में समुदाय के बात को रखने की हिम्मत करने लगे हैं,इनमें अग्रणी रूप से निवास विधान सभा के विधायक डा0 मर्सकोले और मनावर विधायक डा0 हीरा अलावा जी इनके साथ कुछ जागरूक विधायक भी पार्टी लाइन से ऊपर उठकर एक साथ आवाज उठा रहे हैं,यह समुदाय के लिये शुभ संकेत हैं।इसी तरह राजस्थान के सांसद किरोड़ी लाल मीणा एवं बीटीपी के विधायकों का समुदाय हित में आवाज को भी समुदाय हित के लिये पाजेटिव कहा जा सकता है,वहीं केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते जी में भी समुदाय हित में खुलकर बोलने की हिम्मत आती दिखाई दे रही है। इस तरह की सोच पैदा कर दबाव बनाने का काम समुदाय के सोसल मीडिया के माध्यम से अधिक हुआ है,इसलिये इसका श्रेय सोसल मीडिया से जुड़े मित्रों को जाता है।इस कार्य में आपको योगदान के लिये बहुत बहुत बधाई ,यह आज के दौर का सशक्त माध्यम है,इसे और अधिक मजबूत करें। (गुलजार सिंह मरकाम रासंगोंसक्रांआं)

"आर्डिनेंस उद्योग का निजीकरण और राष्ट्रीय सुरक्षा"

"आर्डिनेंस उद्योग का निजीकरण और राष्ट्रीय सुरक्षा" जब देश की रक्षा करने वाली और उसके उपकरण बनाने वाली फैक्ट्री को सरकार निजी हाथों में बेच दे, निजी कंपनियां केवल लाभ देखती है सामाजिक सरोकार नहीं और वे निजी कंपनियां  कंपनियां अच्छे लाभ की लालच में हमारे देश के दुश्मन के साथ सौदा करके ऑर्डिनेंस के उपकरण जिसमें, बम, तोप,गोली ,बारूद और व्हिकल आदि की छमता में,कमजोरी कर दें तो देश की सुरक्षा का क्या होगा।जब इन कमजोरियों से देश ही नहीं बचेगा।तब आम नागरिक को तो पुन: गुलाम ही होना है। विजय माल्या हो या फ्राड हीरा व्यापारी मोदी हो या देश की जनता को लूटकर विदेशों में पैसा जमा करने वाले नेता हों,जब ये देश का हित ना सोचकर केवल लाभ के लिये देश को चूना लगा देते हैं। तो प्रायवेट कंपनी अपने लाभ के लिये,देश के रक्षा उपकरणों के उत्पाद में भी स्वलाभ के लिये दुश्मन से सौदा करने में नहीं हिचकेगी। (गुलजार सिंह मरकाम रासंगोंसक्रांआं)

संघर्ष और आनंद एक साथ संभव नहीं !"

"संघर्ष और आनंद एक साथ संभव नहीं !" नाच गान करते रहो, हक की करो न बात। यही बात है जग जाहिर,नहीं लड़ने की औकात।। तीर धनुष और टांगिया, सिर में बंधा गुफान, फिर भी पिटते दीखते, ढोल गंवार समान।। क्या तुलसी की सीख ने किया तुम्हें बेजान, या मनु की चाबुक से बंद हुआ है जुबान।कीड़ा भी तकलीफ़ से मारे डंक उठाय , तुम तो मानुष जीव हो, क्या इतना समझ ना आय। (गुलजार सिंह मरकाम रासंगोंसक्रांआं)

मूलनिवासी/मूलवासी संगठन"

"9 अगस्त और मूलनिवासी/मूलवासी संगठन" इस देश में बहुत सारी विचारधाराएं संचालित हैं यदि किसी व्यक्ति ,समूह या संगठन को विचारधाराओं का सम्यक ज्ञान ना हो तो उन्हें एक ही विचारधारा के रास्ते पर चलना चाहिए भारत में जैसे हजारों जातियां और हजारों संगठन हैं इसलिए इनकी  विचारधारा की आस्था का कोई पता नहीं चलता इसलिए भारत का मूलनिवासी भटक कर , कभी किसी नेतृत्व या कभी किसी संगठन के साथ जाकर अपने मूल संगठन शक्ति और विचारधारा को कमजोर करता है इसलिए जब तक नेतृत्व और संगठनों का और उनकी विचारधारा,आस्था को समझा नहीं जाए तब तक किसी बहाव में बह कर उसे आत्मसात करते हुए चलना मूर्खता से कम नहीं। मूलवासी /मूल निवासियों की विचारधारा एक है तो उन्हें एक्शन में भी एक तरीके से व्यवहार करना होगा तभी समझ में आएगा कि हम एक सोच एक विचार और एक व्यवहार में चलने को राजी हैं भले ही हमारे अनेक संगठन है । इसलिए कहा गया है कि संगठित समाज या समूह अनेक संगठन बनाकर भी शक्तिशाली और सत्तासीन हो जाता है और असंगठित समाज या समुदाय के कुछ संगठन भी सही ढंग से संचालित नहीं हो पाते यही अंतर है, संगठित मनुवाद और असंगठित मूलवास

मप्र में ९ अगस्त २०१९

प्रति, माननीय मुख्यमंत्री महोदय जी      मप्र शासन भोपाल विषय :- 9 अगस्त 2019 का विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर सामाजिक स्तर के विभिन्न आयोजनों में सक्षम अधिकारियों को उपस्थित होने के निर्देश जारी करने बावद ।  महोदय जी,         उपरोक्त विषय में यह कि मप्र शासन द्वारा 9 अगस्त के लिये प्रदेश में सार्वजनिक अवकाष घोषित किये जाने के लिये धन्यवाद । तत्संबंध में प्रदेश के समस्त जिला कलेक्टरों को दिये निर्देश एवं मप्र आदिम जाति कल्याण विभाग द्वारा भी अनुसूचित घोषित विकास खण्डों में कार्यकृृम आयोजन के साथ राशि भी स्वीकृत की गई है यह भी प्रसंसनीय है । परन्तु माननीय महोदय जी मुझे लगता है कि जल्दबाजी में लिये गये कुछ निर्णय विश्व आदिवासी दिवस की गरिमा और उद्देश्य को कहीं ना कहीं चोट पहुंचाता प्रतीत होता है । कारण कि प्रदेश के बहुत से जिले तथा विकासखण्ड जिनमें आदिवासी बहुलता है जहां 9 अगस्त को प्रति वर्ष विश्व आदिवासी दिवस का आयोजन होता है एैसे जिले या विकासखण्ड को भी शासकीय आयोजन में शामिल किया जाना आवश्यक है वहीं संयुक्त राष्ट् संघ,प्रति वर्ष आदिवासियों के किसी महत्वपूर्ण विषय को लेकर पूरे व

९अगस्त और ८ प्रतिशत भारत के लोग

"९अगस्त और ८ प्रतिशत भारत के लोग" मूलवासी, आदिवासी, इंडीजीनियस, देशज कौन,जनजाति की सूची  में शामिल मात्र 8 प्रतिशत लोग या इसके अतिरिक्त,जनजाति कायदों को जिंदा रखने वाला आसाम,बिहार, अंडमान निकोबार या अन्य राज्य का व्यक्ति जो जनजाति की सूची में ना होकर पिछड़ा वर्ग या अनु-जाति की सूची में शामिल है। प्रश्न पेचीदा है पर हमारी आंख खोलने के लिए काफी है। हमे विश्व आदिवासी/मूलवासी या इंडीजीनियस दिवस पर यूनिटी चाहिए या शब्दजाल में फंसकर बिखराव ? जरा सोचो ! (गुलजार सिंह मरकाम रासंगोंसक्रांआं)

"भारत में फासीवादी राजनीति आरंभ हो चुकी है।"

"भारत में फासीवादी राजनीति आरंभ हो चुकी है।" प्रधानमंत्री मोदी ने देश के सभी राजनीतिक दलों को ईवीएम के माध्यम से भयभीत कर दिया है,कुछ विपक्षी दल के सांसदों को मोदी और शाह की टीम ने प्रायोजित तरीके से जितवाया है और हरवाया भी है, जिसमें ईवीएम का रोल महत्वपूर्ण रहा है देश के सभी विपक्षी राजनीतिक दल अपने आप को कमजोर महसूस कर रहे हैं अब उनके नेता मोदी की कृपा से जीतने के लिए मोदी के खिलाफ कुछ नहीं बोल रहे हैं यदि ज्यादा बोला तो जांच बैठा दी जाती है यह सीधा सीधा दबाव और आतंक की राजनीति है जिसमें सभी विपक्षी दलों को एकजुट होकर साथ ही सामाजिक संगठनों का साथ लेकर मोदी के इस आतंक को रोकना होगा अन्यथा भय और आतंक इतना बढ़ जाएगा की सरकार कुछ भी करें उसके खिलाफ कोई भी नहीं बोल पाएगा अंततः इस देश में आर एस एस की कल्पना को एकात्म राष्ट्रवाद या जिसे फासीवाद भी कहा जा सकता है के माध्यम से देश का शासन चलने लगेगा तब फासीवाद का कोई विरोधी नहीं होगा सिर्फ फासीवाद के आसरे पर उनके इशारों पर चलने वाला ही खड़ा हो सकता है आंदोलनकारियों को या तो जेल या तो माबलिंचिग के माध्यम से हटा दिया जाएगा यही है फ

"9 अगस्त आदिवासियों के विकास की समीक्षा का दिवस है"

"9 अगस्त आदिवासियों के विकास की समीक्षा का दिवस है" 9 अगस्त विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर यदि हम जिस भी स्तर, राज्य/ जिला/विकास खण्ड या ग्राम स्तर पर समारोह का आयोजन कर रहे हैं, ऐसे मौके पर उस स्तर के प्रशासनिक अधिकारी को उपस्थित रहने के लिए आयोजन समिति के द्वारा पत्र लिखकर आमंत्रित करें ताकि उस स्तर पर जनजातियों की अब तक हुए विकास तथा  किए गए प्रशासनिक प्रयास की समीक्षा हो सके। राज्य स्तर पर प्रमुख सचिव आदिम जाति कल्याण विभाग जिला स्तर पर सहायक आयुक्त तथा विकासखंड स्तर पर विकासखंड अधिकारी तथा ग्राम स्तर पर पंचायत के सचिव को आमंत्रित करें । ताकि वह आदिवासियों के हित में अब तक किए गए प्रयासों की रिपोर्ट तैयार करके समारोह में उपस्थित हो तथा सबके सामने उस रिपोर्ट का वाचन करें। साथ ही जनता द्वारा आदिवासी हित में लिए गए निर्णयों के प्रस्ताव पर स्वयं के भी हस्ताक्षर सहित उच्च एजेंसी को अग्रेषित करे। यही सार्थकता है विश्व आदवासी दिवस मनाए जाने की ! (गुलजार सिंह मरकाम रासंगोंसक्रांआं)

आदिवासी सामंजस्य का प्रतीक है।

हमारे विचार अलग पर आज जिसकी सत्ता है उससे संघर्ष कर अपनी बात को मनवाना है तो हमारी ताकत को उनके द्वारा किए घोषणा को मनवाने के लिए धरातल पर उतरना होगा। ५ साल तक हमारी लड़ाई का तरीका यही होना चाहिए। यदि कोई सरकार इस पर अमल करती है तो हम उसको धनवाद करेंगे ।यदि नहीं करते तो ५ th अनुसूची छेत्र में पंचायत चुनाव को रोकने का काम या बहिष्कार करेंगे। फिर परिणाम जो भी हो। जनचेतना,सबसे बड़ा हथियार है। (गुलजार सिंह मरकाम राष्ट्रीय संजोयक gska)

स्त्री शूद्रो न धीयताम

"स्त्री शूद्रो न धीय्ताम" हवाई यात्रा में हाई प्रोफाइल लोग चलते हैं इसलिए वहां एयर होस्टेज कुंवारी और सुंदर लड़कियों की भर्ती की जाती है जहां योग्यता में मानक सुंदरता को प्राथमिकता है ,प्राइवेट सेक्टर के किसी भी संस्था में खूबसूरत जवान लड़कियों को रिसेप्शनिस्ट बनाया जाता हैं बीयर बार से लेकर हर जगह (शासकीय दफ्तरों/संस्थाओं) को अपवाद स्वरूप छोड़ दी जाए तो वहां भी यही काम होता है यह किस मानसिकता का परिचायक है, क्या यह स्त्री और पुरुष के बीच भेदभाव का उदाहरण नहीं । इसकी नींव मनुस्मृति काल से डाली गई है जिसे कोई भी हटाना नहीं चाहता।इस पर राष्ट्रीय स्तर पर बहस की आवश्यकता है। (गुलजार सिंह मरकाम रासंगोंसक्रांआं)

"भारत का भविष्य आपके कंधों पर है

"भारत का भविष्य आपके कंधों पर है सेना पुलिस होमगार्ड और अर्धसैनिक बल में तैनात मूलवासी/मूलनिवासी क्या मुट्ठीभर शोषकों के विरूद्ध बगावत नहीं कर सकते ? जब आपने अंग्रेजों के विरूद्ध बगावत की है तो शोषकों के विरूद्ध भी बगावत करना होगा।अन्यथा अनुशासन,राष्ट्रवाद और आदेश का वास्ता देकर सत्ताधारी तुम्हारी गोली से तुम्हारे मां बाप भाई बहन खानदान को भुनवाने में कोई कसर नहीं छोडेगा/कसर नहीं छोड़ रहा है। जिस तरह अंग्रेजों से बगावत कर देश को आजाद कराया है उसी तरह इन अन्यायी अत्याचारी शोषक सत्ताशीशों से देश और देश की आम जनता को मुक्त कराओ। अब सिर से ऊपर पानी आ चुका है। देश की जनता के साथ आपको भी डूब जाना है,शोषक अपना आशियाना विदेशों में बना चुका है। पानी जहाज या हवाई जहाज से फुर्र से उड़ जायेगा।आपको गृहयुद्ध के चक्रव्यूह में फंसाकर। (गुलजार सिंह मरकाम रासंगोंसक्रांआं)

आदिवासी उपयोजना और आदिवासी विकास

आदिवासी उपयोजना "टीएसपी (आदिवासी उपयोजना) का पैसा प्रचार प्रसार के लिए नहीं बल्कि आदिवासियों के उत्थान के लिए है" केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय का काम यह है कि केंद्र सरकार के द्वारा विभिन्न विभागों के क्रियाकलाप और उनके प्रचार एवं प्रसार के लिए अपने मद से राशि आवंटित करना, परंतु मध्य प्रदेश सरकार की कम अकली कहै या अज्ञानता जिसमें आदिवासी विभाग के अंतर्गत आने वाले वनाधिकार अधिनियम के प्रचार प्रसार के लिए आदिम जाति कल्याण विभाग द्वारा प्रस्ताव भेजा जा रहा है जो कि सरासर गलत है यह प्रपोजल वनाधिकार के संबंध में प्रचार प्रसार के लिए सूचना एवं जनसंपर्क विभाग मध्यप्रदेश की ओर से जाना चाहिए परंतु यह प्रपोजल आदिम जाति कल्याण विभाग मध्यप्रदेश के द्वारा भेजा जाना यानी टीएसपी के पैसे से ही प्रचार प्रसार किया जाएगा जबकि टीएसपी का पैसा वनों में काबिज आदिवासियों के समग्र उत्थान के लिए आवंटित होता है इसलिए आप सभी से अनुरोध है की टीएसपी के पैसे से प्रचार-प्रसार नहीं वरन् वनाधिकार से संबंधित वर्गों के उत्थान के लिए जिसमें उनके व्यवस्थापन, शिक्षा चिकित्सा ,रोजगार बिजली आदि के लिए किया

हमारी नई शिक्षा नीति

"हमारी नई शिक्षा नीति २०१९-२०२०" हमारे देश का मानव संसाधन(शिक्षा)मंत्री देश की शिक्षा नीति में लाखों वर्ष पूर्व के ज्ञान को सिलेबस में लाने वाला है। जिसमें परा विज्ञान से भारत का भविष्य संवारा जायेगा। भूकम्प सहित,किसके भाग्य में क्या लिखा या होने वाला है,ज्योतिष शास्त्र या हस्तरेखा के माध्यम से पूर्वानुमान लगाया जा सकेगा। किसी जांच के लिये मंहगी मशीनों पर अपव्यय नहीं करना पड़ेगा। सीमा पर मृत्युंजय यज्ञ तथा हनुमान चालीसा का पाठ करके दुश्मन के छक्के छुड़ा दिया जायेगा । ग्लोबल वार्मिंग ,अल्प वर्षा या अतिवृष्टि कोई समस्या नहीं बनेगी इंद्र देवता के आव्हान का मंत्र पाठ्यकृम में शामिल रहेगा ,लक्ष्मी जी का आव्हान मंत्र हमारे राजकोष को धन से भर देगा। अब देश बदल रहा है,अच्छे दिन जल्द आयेंगे। (गुलजार सिंह मरकाम रासंगोंसक्रांआं)

एक आस एक प्रयास !

"एक आस एक प्रयास" (आदिवासी जनप्रतिनिधि अपने संविधान प्रदत्त अधिकारों को हासिल करने के लिये संबंधित अपनी पार्टी आस्था से ऊपर उठकर संगठित प्रयास करें।) भारतीय संविधान में कुछ कमियों के बावजूद अजजा के विकास के लिये सबसे अधिक प्रावधान जोड़े गये हैं। पांचवीं ,छठीं अनुसूचि के साथ पेसा और वनाधिकार से संबंधित कानून आदिवासी समुदाय के स्वशासन और समृद्धि के लिये अनुकूल अवसर देते हैं। परंतु दुर्भाग्य से देश की आजादी और संविधान निर्माण के बाद आदिवासी हितों पर उनके जनप्रतिनिधी जानकारी के अभाव में या,दल विशेष में आदिवासी अधिकारों के प्रति उदासीनता के कारण यह विषय राष्ट्रीय पटल पर उभरकर नहीं आ सका। जबकि आदिवासी की सुरक्षा,संरक्षण और विकास का मुद्दा संयुक्त राष्ट्रसंघ (UNO)ने पहले ही तय कर रखा है।जिन देशों तथा वहां के आदिवासी जनप्रतिनिधियों ने इसे गंभीरता से लिया वहां उनकी अपनी स्वतंत्र पहचान और अधिकार प्राप्त हो रहे हैं। आज सूचना तंत्र से विश्वव्यापी ज्ञान के आदान प्रदान ने भारत देश के आदिवासियों को भी अधिकारों के प्रति सजग किया है। पढ़ा लिखा आदिवासी युवा अपने देश और संयुक्त

आरक्षण और आर्थिक आधार

 पर आरच्छण की वकालत हो पर कुछ ऐसे हो” १- जातिगत समानता (ऊंची,नीची जाति की भावना समाप्त हो) २- शिच्छा में समानता(समान शिच्छा प्रणाली) ३- भूमि का समान बंटवारा हो (प्रति व्यक्ति पर) ४- रूपया और संपत्ति का समान बंटवारा(प्रति व्यक्ति) ५- शासकीय सेवा के पदों का समान बंटवारा हो (जनसंख्या के अनुपात में) ६- समस्त व्यापार,उद्योग का राष्ट्रीयकरण हो(उसमें प्रति व्यक्ति की हिस्सेदारी सुनिश्चित हो) ७- चुनाव प्रक्रिया से भरे जाने वाले सभी राजनीतिक पदों पर का बंटवारा हो (जनसंख्या के अनुपात में) (इतना काम करके समान नागरिक संहिता बनालो,आरच्छण समाप्त कर दो, संविधान बदल दो हमें मंजूर है ।)ये मेरे व्यक्तिगत विचारद्रष्टि है जरूरी नही कि हर मूलवासी इस बात से सहमत हो-gsmarkam

आर एस एस और आदिवासी

‌वर्तमान परिस्थितियों में हममें भी ‌कट्टर संघ या भाजपा का समर्थक की तरह कुटिल बौद्धिक हो जाना चाहिए,जब समय और परिस्थितियां देखकर दुश्मन आपके हित की भाषा बोलने लगे तो अपने मे भी इतनी चालाकी और समझदारी होना चाहिए की हमें भी उनका जवाब उन्हीं की तरीके से देकर अपने पक्ष को उनका साथ लेकर या उनकी कथित भावनाओं को देखकर उनके साथ  में दिखाना चाहिए जैसा वे करते हैं वैसा हम भी करके वातावरण को बैलेंस किया जा सकता है ,फिर अपनी बात को प्रमुखता से रखते हुए उसे महत्वपूर्ण बनाकर देश की जनता का विश्वास अर्जित किया जा सकता है-gsmarkam

ट्राईबल पर्सनल ला।

किसी समुदाय का पर्सनल ला जाति नहीं धर्म संस्कृति संस्कार परंपराओं पर आधारित है" जनजाति समुदाय की महिला ने अलग जाति के पुरूष से शादी कर ली तो वह उस जाति की धर्म संस्कृति परंपरा से शासित होकर अपनी मूल पहचान को खो देती है। इसलिए उस महिला पर एट्रोसिटी एक्ट लग सकता है। उसके द्वारा एट्रोसिटी एक्ट लगाना अवैध है। हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट भी यही फैसला देगा। और जनजाति की महिला या पुरुष भी यदि गैर जनजाति पर इस एक्ट का उपयोग करना चाहता है तो उसे जनजातिय होने का मापदंड अपनाना होगा। इसकी पहली शर्त है कि वह किस पर्सनल ला से संबंध रखता है। और सभी समुदाय के पर्सनल ला प्रथक हैं। आपको अवगत हो कि पर्सनल ला का आधार धर्म संस्कृति परंपरा और मान्यताएं हैं। ऐसे में जनजातीय समुदाय यदि प्रथक धर्म का पालन कर रहा है तो वह जनजाति नहीं रहेगी। इस तरह के केस भी सुप्रीम कोर्ट में जीते गये हैं। ट्राईबल धर्मकोड के नाम पर हम सभी सेमिनार और आंदोलन इसलिए कर रहे हैं,ताकि हमें जनगणना में प्रथक कालम मिल सके। ताकि भविष्य में हमें किसी पर्सनल ला की जद में लाकर हमारे जनजातीय अधिकार छीनने ना जा सकें। सावधान यदि एट्रोसिटी आरक

गोटुल विश्विद्यालय

"गोंडवाना गोटुल विश्वविद्यालय" भारतीय संविधान व कानूनों के मंशा के अनुरूप समाज में आदिवासी इतिहास, संस्कति, परम्पराओं, गोटुल, लोकनृत्य, लोककलाओं के प्रति  युवाओं को शिक्षित, प्रशिक्षित कर आदिवासियों का समीकरण, प्रकृतिवाद का संरक्षण, विस्तारण कर आदिवासी समाज को मुुख्य धारा से जोडना ,एवं राष्ट्र निर्माण में सहभागिता। विजन :- आदिवासी समाज की इतिहास, संस्कति, परम्परा और प्रकृतिवाद के आधार पर समतार्पूण समाज निर्माण। मिशन:- प्रकतिवाद के आधार पर सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक क्षमता वर्धन कर आदिवासी युवाओं का सक्षमीकरण और समुदाय का विकास व पहचान की सुनिश्चितता। उददेश्य :- 1- आदिवासी गोटुल विश्व विद्यालय की स्थापना। 2- पारम्परिक ज्ञान, संस्कति, लोक-कला, लोक-संगीत, परम्परा के प्रति संवेदनशीलता,व उसका सरंक्षण। 3- आदिवासी युवाओं की नेतृत्व क्षमता का विकास एवं आजीविका की सुनिश्चतता। 4- आदिवासी समाज में प्रचलित ? गोटुल सहित अन्य प्रगतिशील परम्पराओं व ज्ञान का विस्तारीकरण। 5- आदिवासी ज्ञान व प्राकृतिक संसाधनों पर आधारित आजीविका के संसाधनों का उन्नतीकरण व युवाओं  का उनसे जुडाव।

जनगणना २०२१

" जनगणना 2021" "सरक ार ना माने तो खुद को तैयार करो" मित्रों हम राष्ट्रीय स्तर पर ट्राईबल नाम के धर्मकोड की स्थापना के लिए देश का समस्त जनजाति समुदाय लगा हुआ है क्योंकि भारत देश तीन बड़े आदिवासी हिस्सों जिसमें झारखंड बंगाल उत्तर प्रदेश उड़ीसा को लेकर कोलारियन बेल्ट कहलाता है जिसमें संथाल जनजाति की जनसंख्या सबसे ज्यादा है फिर वहां उरांव हो, मुंन्डा है लोहरा है यह सब मिलकर एक कोलारियन बेल्ट में सरना धर्म का नेतृत्व करते हैं जहां पर सरना को मानने वाले या उसके छोटे-छोटे समूह को मानने वाले बहुत सी जनजाति समुदाय एकजुट होते नजर आ रहे हैं वह ट्राईबल के नाम पर नेशनल लेवल पर ट्राईबल रिलिजन को महत्व देने के लिए तैयार है लेकिन स्थानीय स्तर पर अपने आपको सरना  के रूप में अपने संप्रदाय के रूप में स्थापित करने की बात कर रहे हैं वहीं भारत का सबसे बड़ी  जनसंख्या की दृष्टि जनजाति हैं भील भिलाला, मीणा बारेला आदि जो लगभग तीन चार राज्यों में फैली हुई है राष्ट्रीय स्तर पर ट्राईबल रिलीजन की मान्यता के लिए तैयार हैं परंतु वे कहते हैं कि हमारा स्थानीय आदिधर्म है। आदिवासी धर्म के लिए  अपन