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Showing posts from June, 2019

आदिवासी सामंजस्य का प्रतीक है।

हमारे विचार अलग पर आज जिसकी सत्ता है उससे संघर्ष कर अपनी बात को मनवाना है तो हमारी ताकत को उनके द्वारा किए घोषणा को मनवाने के लिए धरातल पर उतरना होगा। ५ साल तक हमारी लड़ाई का तरीका यही होना चाहिए। यदि कोई सरकार इस पर अमल करती है तो हम उसको धनवाद करेंगे ।यदि नहीं करते तो ५ th अनुसूची छेत्र में पंचायत चुनाव को रोकने का काम या बहिष्कार करेंगे। फिर परिणाम जो भी हो। जनचेतना,सबसे बड़ा हथियार है। (गुलजार सिंह मरकाम राष्ट्रीय संजोयक gska)

स्त्री शूद्रो न धीयताम

"स्त्री शूद्रो न धीय्ताम" हवाई यात्रा में हाई प्रोफाइल लोग चलते हैं इसलिए वहां एयर होस्टेज कुंवारी और सुंदर लड़कियों की भर्ती की जाती है जहां योग्यता में मानक सुंदरता को प्राथमिकता है ,प्राइवेट सेक्टर के किसी भी संस्था में खूबसूरत जवान लड़कियों को रिसेप्शनिस्ट बनाया जाता हैं बीयर बार से लेकर हर जगह (शासकीय दफ्तरों/संस्थाओं) को अपवाद स्वरूप छोड़ दी जाए तो वहां भी यही काम होता है यह किस मानसिकता का परिचायक है, क्या यह स्त्री और पुरुष के बीच भेदभाव का उदाहरण नहीं । इसकी नींव मनुस्मृति काल से डाली गई है जिसे कोई भी हटाना नहीं चाहता।इस पर राष्ट्रीय स्तर पर बहस की आवश्यकता है। (गुलजार सिंह मरकाम रासंगोंसक्रांआं)

"भारत का भविष्य आपके कंधों पर है

"भारत का भविष्य आपके कंधों पर है सेना पुलिस होमगार्ड और अर्धसैनिक बल में तैनात मूलवासी/मूलनिवासी क्या मुट्ठीभर शोषकों के विरूद्ध बगावत नहीं कर सकते ? जब आपने अंग्रेजों के विरूद्ध बगावत की है तो शोषकों के विरूद्ध भी बगावत करना होगा।अन्यथा अनुशासन,राष्ट्रवाद और आदेश का वास्ता देकर सत्ताधारी तुम्हारी गोली से तुम्हारे मां बाप भाई बहन खानदान को भुनवाने में कोई कसर नहीं छोडेगा/कसर नहीं छोड़ रहा है। जिस तरह अंग्रेजों से बगावत कर देश को आजाद कराया है उसी तरह इन अन्यायी अत्याचारी शोषक सत्ताशीशों से देश और देश की आम जनता को मुक्त कराओ। अब सिर से ऊपर पानी आ चुका है। देश की जनता के साथ आपको भी डूब जाना है,शोषक अपना आशियाना विदेशों में बना चुका है। पानी जहाज या हवाई जहाज से फुर्र से उड़ जायेगा।आपको गृहयुद्ध के चक्रव्यूह में फंसाकर। (गुलजार सिंह मरकाम रासंगोंसक्रांआं)

आदिवासी उपयोजना और आदिवासी विकास

आदिवासी उपयोजना "टीएसपी (आदिवासी उपयोजना) का पैसा प्रचार प्रसार के लिए नहीं बल्कि आदिवासियों के उत्थान के लिए है" केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय का काम यह है कि केंद्र सरकार के द्वारा विभिन्न विभागों के क्रियाकलाप और उनके प्रचार एवं प्रसार के लिए अपने मद से राशि आवंटित करना, परंतु मध्य प्रदेश सरकार की कम अकली कहै या अज्ञानता जिसमें आदिवासी विभाग के अंतर्गत आने वाले वनाधिकार अधिनियम के प्रचार प्रसार के लिए आदिम जाति कल्याण विभाग द्वारा प्रस्ताव भेजा जा रहा है जो कि सरासर गलत है यह प्रपोजल वनाधिकार के संबंध में प्रचार प्रसार के लिए सूचना एवं जनसंपर्क विभाग मध्यप्रदेश की ओर से जाना चाहिए परंतु यह प्रपोजल आदिम जाति कल्याण विभाग मध्यप्रदेश के द्वारा भेजा जाना यानी टीएसपी के पैसे से ही प्रचार प्रसार किया जाएगा जबकि टीएसपी का पैसा वनों में काबिज आदिवासियों के समग्र उत्थान के लिए आवंटित होता है इसलिए आप सभी से अनुरोध है की टीएसपी के पैसे से प्रचार-प्रसार नहीं वरन् वनाधिकार से संबंधित वर्गों के उत्थान के लिए जिसमें उनके व्यवस्थापन, शिक्षा चिकित्सा ,रोजगार बिजली आदि के लिए किया

हमारी नई शिक्षा नीति

"हमारी नई शिक्षा नीति २०१९-२०२०" हमारे देश का मानव संसाधन(शिक्षा)मंत्री देश की शिक्षा नीति में लाखों वर्ष पूर्व के ज्ञान को सिलेबस में लाने वाला है। जिसमें परा विज्ञान से भारत का भविष्य संवारा जायेगा। भूकम्प सहित,किसके भाग्य में क्या लिखा या होने वाला है,ज्योतिष शास्त्र या हस्तरेखा के माध्यम से पूर्वानुमान लगाया जा सकेगा। किसी जांच के लिये मंहगी मशीनों पर अपव्यय नहीं करना पड़ेगा। सीमा पर मृत्युंजय यज्ञ तथा हनुमान चालीसा का पाठ करके दुश्मन के छक्के छुड़ा दिया जायेगा । ग्लोबल वार्मिंग ,अल्प वर्षा या अतिवृष्टि कोई समस्या नहीं बनेगी इंद्र देवता के आव्हान का मंत्र पाठ्यकृम में शामिल रहेगा ,लक्ष्मी जी का आव्हान मंत्र हमारे राजकोष को धन से भर देगा। अब देश बदल रहा है,अच्छे दिन जल्द आयेंगे। (गुलजार सिंह मरकाम रासंगोंसक्रांआं)

एक आस एक प्रयास !

"एक आस एक प्रयास" (आदिवासी जनप्रतिनिधि अपने संविधान प्रदत्त अधिकारों को हासिल करने के लिये संबंधित अपनी पार्टी आस्था से ऊपर उठकर संगठित प्रयास करें।) भारतीय संविधान में कुछ कमियों के बावजूद अजजा के विकास के लिये सबसे अधिक प्रावधान जोड़े गये हैं। पांचवीं ,छठीं अनुसूचि के साथ पेसा और वनाधिकार से संबंधित कानून आदिवासी समुदाय के स्वशासन और समृद्धि के लिये अनुकूल अवसर देते हैं। परंतु दुर्भाग्य से देश की आजादी और संविधान निर्माण के बाद आदिवासी हितों पर उनके जनप्रतिनिधी जानकारी के अभाव में या,दल विशेष में आदिवासी अधिकारों के प्रति उदासीनता के कारण यह विषय राष्ट्रीय पटल पर उभरकर नहीं आ सका। जबकि आदिवासी की सुरक्षा,संरक्षण और विकास का मुद्दा संयुक्त राष्ट्रसंघ (UNO)ने पहले ही तय कर रखा है।जिन देशों तथा वहां के आदिवासी जनप्रतिनिधियों ने इसे गंभीरता से लिया वहां उनकी अपनी स्वतंत्र पहचान और अधिकार प्राप्त हो रहे हैं। आज सूचना तंत्र से विश्वव्यापी ज्ञान के आदान प्रदान ने भारत देश के आदिवासियों को भी अधिकारों के प्रति सजग किया है। पढ़ा लिखा आदिवासी युवा अपने देश और संयुक्त

आरक्षण और आर्थिक आधार

 पर आरच्छण की वकालत हो पर कुछ ऐसे हो” १- जातिगत समानता (ऊंची,नीची जाति की भावना समाप्त हो) २- शिच्छा में समानता(समान शिच्छा प्रणाली) ३- भूमि का समान बंटवारा हो (प्रति व्यक्ति पर) ४- रूपया और संपत्ति का समान बंटवारा(प्रति व्यक्ति) ५- शासकीय सेवा के पदों का समान बंटवारा हो (जनसंख्या के अनुपात में) ६- समस्त व्यापार,उद्योग का राष्ट्रीयकरण हो(उसमें प्रति व्यक्ति की हिस्सेदारी सुनिश्चित हो) ७- चुनाव प्रक्रिया से भरे जाने वाले सभी राजनीतिक पदों पर का बंटवारा हो (जनसंख्या के अनुपात में) (इतना काम करके समान नागरिक संहिता बनालो,आरच्छण समाप्त कर दो, संविधान बदल दो हमें मंजूर है ।)ये मेरे व्यक्तिगत विचारद्रष्टि है जरूरी नही कि हर मूलवासी इस बात से सहमत हो-gsmarkam

आर एस एस और आदिवासी

‌वर्तमान परिस्थितियों में हममें भी ‌कट्टर संघ या भाजपा का समर्थक की तरह कुटिल बौद्धिक हो जाना चाहिए,जब समय और परिस्थितियां देखकर दुश्मन आपके हित की भाषा बोलने लगे तो अपने मे भी इतनी चालाकी और समझदारी होना चाहिए की हमें भी उनका जवाब उन्हीं की तरीके से देकर अपने पक्ष को उनका साथ लेकर या उनकी कथित भावनाओं को देखकर उनके साथ  में दिखाना चाहिए जैसा वे करते हैं वैसा हम भी करके वातावरण को बैलेंस किया जा सकता है ,फिर अपनी बात को प्रमुखता से रखते हुए उसे महत्वपूर्ण बनाकर देश की जनता का विश्वास अर्जित किया जा सकता है-gsmarkam

ट्राईबल पर्सनल ला।

किसी समुदाय का पर्सनल ला जाति नहीं धर्म संस्कृति संस्कार परंपराओं पर आधारित है" जनजाति समुदाय की महिला ने अलग जाति के पुरूष से शादी कर ली तो वह उस जाति की धर्म संस्कृति परंपरा से शासित होकर अपनी मूल पहचान को खो देती है। इसलिए उस महिला पर एट्रोसिटी एक्ट लग सकता है। उसके द्वारा एट्रोसिटी एक्ट लगाना अवैध है। हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट भी यही फैसला देगा। और जनजाति की महिला या पुरुष भी यदि गैर जनजाति पर इस एक्ट का उपयोग करना चाहता है तो उसे जनजातिय होने का मापदंड अपनाना होगा। इसकी पहली शर्त है कि वह किस पर्सनल ला से संबंध रखता है। और सभी समुदाय के पर्सनल ला प्रथक हैं। आपको अवगत हो कि पर्सनल ला का आधार धर्म संस्कृति परंपरा और मान्यताएं हैं। ऐसे में जनजातीय समुदाय यदि प्रथक धर्म का पालन कर रहा है तो वह जनजाति नहीं रहेगी। इस तरह के केस भी सुप्रीम कोर्ट में जीते गये हैं। ट्राईबल धर्मकोड के नाम पर हम सभी सेमिनार और आंदोलन इसलिए कर रहे हैं,ताकि हमें जनगणना में प्रथक कालम मिल सके। ताकि भविष्य में हमें किसी पर्सनल ला की जद में लाकर हमारे जनजातीय अधिकार छीनने ना जा सकें। सावधान यदि एट्रोसिटी आरक

गोटुल विश्विद्यालय

"गोंडवाना गोटुल विश्वविद्यालय" भारतीय संविधान व कानूनों के मंशा के अनुरूप समाज में आदिवासी इतिहास, संस्कति, परम्पराओं, गोटुल, लोकनृत्य, लोककलाओं के प्रति  युवाओं को शिक्षित, प्रशिक्षित कर आदिवासियों का समीकरण, प्रकृतिवाद का संरक्षण, विस्तारण कर आदिवासी समाज को मुुख्य धारा से जोडना ,एवं राष्ट्र निर्माण में सहभागिता। विजन :- आदिवासी समाज की इतिहास, संस्कति, परम्परा और प्रकृतिवाद के आधार पर समतार्पूण समाज निर्माण। मिशन:- प्रकतिवाद के आधार पर सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक क्षमता वर्धन कर आदिवासी युवाओं का सक्षमीकरण और समुदाय का विकास व पहचान की सुनिश्चितता। उददेश्य :- 1- आदिवासी गोटुल विश्व विद्यालय की स्थापना। 2- पारम्परिक ज्ञान, संस्कति, लोक-कला, लोक-संगीत, परम्परा के प्रति संवेदनशीलता,व उसका सरंक्षण। 3- आदिवासी युवाओं की नेतृत्व क्षमता का विकास एवं आजीविका की सुनिश्चतता। 4- आदिवासी समाज में प्रचलित ? गोटुल सहित अन्य प्रगतिशील परम्पराओं व ज्ञान का विस्तारीकरण। 5- आदिवासी ज्ञान व प्राकृतिक संसाधनों पर आधारित आजीविका के संसाधनों का उन्नतीकरण व युवाओं  का उनसे जुडाव।

जनगणना २०२१

" जनगणना 2021" "सरक ार ना माने तो खुद को तैयार करो" मित्रों हम राष्ट्रीय स्तर पर ट्राईबल नाम के धर्मकोड की स्थापना के लिए देश का समस्त जनजाति समुदाय लगा हुआ है क्योंकि भारत देश तीन बड़े आदिवासी हिस्सों जिसमें झारखंड बंगाल उत्तर प्रदेश उड़ीसा को लेकर कोलारियन बेल्ट कहलाता है जिसमें संथाल जनजाति की जनसंख्या सबसे ज्यादा है फिर वहां उरांव हो, मुंन्डा है लोहरा है यह सब मिलकर एक कोलारियन बेल्ट में सरना धर्म का नेतृत्व करते हैं जहां पर सरना को मानने वाले या उसके छोटे-छोटे समूह को मानने वाले बहुत सी जनजाति समुदाय एकजुट होते नजर आ रहे हैं वह ट्राईबल के नाम पर नेशनल लेवल पर ट्राईबल रिलिजन को महत्व देने के लिए तैयार है लेकिन स्थानीय स्तर पर अपने आपको सरना  के रूप में अपने संप्रदाय के रूप में स्थापित करने की बात कर रहे हैं वहीं भारत का सबसे बड़ी  जनसंख्या की दृष्टि जनजाति हैं भील भिलाला, मीणा बारेला आदि जो लगभग तीन चार राज्यों में फैली हुई है राष्ट्रीय स्तर पर ट्राईबल रिलीजन की मान्यता के लिए तैयार हैं परंतु वे कहते हैं कि हमारा स्थानीय आदिधर्म है। आदिवासी धर्म के लिए  अपन

एक नज़र इधर भी

" एक नज़र इधर भी" आपसी स्वार्थ के चलते खंड खंड होता आदिवासी बोट बैंक, बेअसर होते जा रहे है जनजातीय राजनैतिक दल, अंदरूनी तौर से यह संगठन भी अब खंड खंड हो गया है और बड़ी संख्या में इनके नेता अपनी अपनी पुरानी पार्टियों की तरफ पलायन के मूड में है। कांग्रेस और भाजपा की विचारधारा से इतर सिर्फ और सिर्फ आदिवासियों को शोषणमुक्त और उनके हितों का कल्याणमात्र से जन्मे ये राजनैतिक दल के कार्यकर्ता और छोटे नेता तो पथभृष्ट नही हुए परन्तु इनका नेतृत्व करने बाले भाजपा और कांग्रेस पार्टी के इसारो पर भांगड़ा कर रहे है , इससे व्यथित हो भोले भाले आदिवासी घरवापसी का मन बना रहे है उनका मानना है कि यही सब होना है तो आदिवासियों के नाम पर राजनैतिक रोटियां सिर्फ अपने नेता ही क्यों खाएँ या खाने दे ?……………..* राकेश प्रजापति *  मध्यप्रदेश में छोटे राजनीतिक दलों की भूमिकाओ ने अक्सर राजनीतिक परिणामों पर हमेशा से ही असर डाला है । कई बार सरकार में भी इनकी सम्मानजनक उपस्थिति देखने को मिली। भारतीय जनता पार्टी और इंडियन नेशनल कांग्रेस, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी,भारतीय गोंडवाना पार्टी, जयस जैसे कई दल है जो आगा

कोया पुनेम और धर्माचार्य

"बस्तर से नारवेन केशव टेकाम को समर्पित" दादी आपने सही लिखा है,परंतु एक समय था जब समुदाय लगातार रेला की तरह बामनी संस्कारों की तरफ बहता था रहा था जिसमें नौकरी पेशा वालों की तादात ज्यादा थी तब उनके इस रेला को रोकने के लिये ऐसे लोगों को समझाया गया कि गोंडवाना मिशन तुम्हैं ऐसा ही विकल्प दे सकती है,तब कुछ लोग की सहमति के साथ रंगेल सिंह,मंगेल सिंह की मूल किताब पुनेम सार को लेकर डा०पी एस मरावी जबलपुर एवं उनके साथियों ने गोंडी मंत्रों का संकलन करके एक पुस्तक का प्रकाशन कराया जिसमें मंत्र सहित पूजा विधान उल्लेखित है । अर्थाभाव से इसकी ज्यादा प्रतियां नहीं छपीं परंतु डा०पीएस मरावी एवं उनके साथ के लोग नौकरी पेशा में थे चंदा करके कुछ प्रतियां लेकर जबलपुर संभाग के कुछ जिलों में जाते और उसी विधान से पूजा कराते रहे समुदाय को इनका यह कार्य पसंद आने लगा।अब नौकरी पेशा वाले भी इस विकल्प की ओर आकर्षित होने लगे,उस समय के पूर्व से हमने पहला गोंडवाना तिथि पत्रक केलेंडर भोपाल से निकालना आरंभ कर दिया था,इसके पूर्व गोंडवाना किरण संचालित हुआ जो तेकाम बंधुओं की व्यक्तिगत संपत्ति थी। सन २००० के बाद छग

खरी खरी

"खरी खरी" गोंडवाना का सामाजिक,धार्मिक सांस्कृतिक आंदोलन लगातार निर्बाध बढ़ रहा  है, परंतु इसका राजनैतिक पक्ष दलाली और बिकाऊपन का शिकार होकर अस्ताचल की ओर जा रहा है। समुदाय का सामाजिक,धार्मिक सांस्कृतिक आंदोलन में विश्वास बढ़ा है लेकिन राजनीतिक आंदोलन पर से लगातार निराशा के कारण वोटबैंक कमजोर हुआ है,अब इसे रोकना कठिन हो गया है। गोंडवाना का राजनीतिक आंदोलन केवल तनाव या टेंशन मूव्हमेंट रह गया है जो थोड़ा बहुत दबाव बना सकता है पर परिणाम नहीं दे सकता। भाजपा अपने लाभ के लिये इसे कुछ दिन और जीवित रखने का प्रयास कर सकता है पर कांग्रेस इसे किसी भी कीमत पर पूरी तरह समाप्त कर देना चाहता है। इसलिये समुदाय सामाजिक,धार्मिक सांस्कृतिक आंदोलन के आधार को मजबूत करें,भविष्य में किसी भी रूप में गोंडवाना के राजनीतिक आंदोलन की पुनः वापसी संभव है।(गुलजार सिंह मरकाम रासंगोंसक्रांआं)