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Showing posts from May, 2013

naxlwad aur aadivasi

नक्सलवाद के नाम पर आदिवासियों को टारगेट बनाया जाना काफी पुरानी बात हो चुकी है इस टारगेट में अब तक हजारो आदिवासी मरे जा चुके है बीजेपी सरकार के एस पी ओ बटालियन हो या कांग्रेश द्वारा चलाया गया सलवा जुडूम दोनों ही एक सिक्के के दो पहलु है दोनों का लक्छ्य दोनों और से आदिवासी मरे ! दोनों कार्यक्रम आदिवासी को बचाने के लिए चलाया गया लेकिन इनमे आदिवासी का ही बड़ा नुकसान हुआ फायदा इन दोनों दलों का हुआ आदिवासियों ने इनकी सर्कार को अपना समझा कमुनिस्ट पार्टी भी इन्हें अपना बनाने के लिए कोई कार्यक्रम चलाती है तो कोई अलग नहीं है परन्तु सत्ताधारी अ एवम बी टीम जो अन्दर से एक हैआदिवासिओ को दूसरे के साथ क्यों जुड़ने देंगे लड़ाई बस इसी बात की है जल जंगल जमींन से हर जगह आदिवासी बेदखल हो रहा है चुकी वहा आदिवासी अ या ब टीम का सहारा है इसलिए कोई बात नहीं इसी तरह पूर्वोत्तर राज्यों में प्रारम्भिक समय में यही स्तिथि थी छठवी अनुसूची लागु होते ही जब जल जंगल जमींन का अधिकार आदिवासी स्वायत्त परिषदों के हाथ में आई समस्या समाप्त ! प्रारम्भ में उन राज्यों में भी सुरछा बलो का प्रयोग किया गया ! स्वायत्त

tribal population in india

 है कि इनमें से कितने लोग सामाजिक उत्तरदायित्व का निर्वहन करते हैं नहीं करते । प्रत्येक आरक्षित वर्ग को संविधान में हिस्सेदारी उस वर्ग के प्रति उत्तरदायी होने की प्रेरणा देती है । उस वर्ग के सामाजिक धार्मिक सांस्कृतिक आर्थिक षैक्षणिक तथा राजनैतिक पहचान कायम रखते हुए उत्थान की जिम्मेदारी देती है । अर्थात संस्कृति संस्कारों को बचाकर रखने का संवैधानिक अधिकार प्रदान करता है । इसलिये शडयंत्र के कारण आज तक जनजाति की सूचि में षामिल नहीं हैं लेकिन स्वाभाव से जनजातीय संस्कारों में जीवन जीते हुए अपनी मूल पहचान को सुरक्षित रखे हुए हैं । एैसे जाति या समूह को नजदीक लाने तथा उन्हे जनजाति की सूचि में षामिल कराने का प्रयास किया जाये ताकि समाजबोध से भावात्मक एकता कायम हो सके । यह एकता आपकी राश्टीय ताकत होगी जो हर स्तर के संघर्श में प्रभावी भूमिका अदा करेगी ।           एैसा प्रयास इसलिये आवष्यक है कि जनजातियों की मूल संस्कृति मूल संस्कार जो हमारी पहचान है श्रेणी विभाजन के कारण कमजोर हो रही है । जनजातीय संस्कारों वाला व्यक्ति या समाज श्रेणी विभाजन की संवैधानिक मजबूरी के कारण धीरे धीरे स्थापित श्रेणी क

tribal population in india

 देष में जनजातियों की जनसंख्या 25 प्रतिषत है ।                      गुलजार सिंह मरकाम  भारत जनगणना आयोग देष में जनजातियों की संख्या को लगभग आठ प्रतिषत मानता है। जनजाति वर्ग तथा जनजाति वर्ग पर विभिन्न समस्याओं पर विभिन्न आयामों से काम करने वाले विद्वानों की भी यही धारणा है । लेकिन हमारा ध्यान उस ओर नहीं गया जिसमें जनजातीय पहचान होते हुए भी जनजातियों की सूचि में षामिल नहीं किया गया । जिसके कारण हमें संविधान में जितनी हिस्सेदारी प्राप्त होनी थी नहीं हो पायी । संसदीय कमेटी की षिफारिष के बाद भी देष के एैसे बहुत से हिस्से जिन्हे अनुसूचित धोशित किया जाना था आज तक नहीं हुआ । हमारा ध्यान केवल आठ प्रतिषत हिस्सेदारी की तरफ ही रहा । जनसंख्या आंकडे में अल्प संख्या के कारण हम राश्टीय स्तर पर राजनीतिक ताकत निर्माण करने की हिम्मत नहीं जुटा पाये । अर्थात संख्या हीनता का षिकार होते रहे । विभिन्न प्रदेषों में भी हम अपने षासकीय आकडों के प्रतिषत के आधार पर अपनी मानसिकता बनाये रखे फलस्वरूप जनजाति समुदाय केवल सत्ता समीकरण में तथा प्रषासनिक पदों को प्राप्त करने में दया का पात्र बना रहा । हिस्सेदारी मिली तो
TRIBAL FREEDOM FIGHTERS OF INDIA