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Showing posts from 2018

"राजनीतिक दलों में चुनाव प्रक्रिया का संवेदनशील चरण डेमेज कंट्रोल"

"राजनीतिक दलों में चुनाव प्रक्रिया का संवेदनशील चरण डेमेज कंट्रोल" मप्र विधान सभा चुनाव 2018 में गोंगपा भी अपने समर्थक समर्पित कार्यकर्ताओं और गोंडवाना आंदोलन के वफादारों को लेकर चुनाव मैदान में है । चुनावी प्रक्रिया के आरंभिक चरण का समापन हुआ । प्रत्याशी चयन पर वादविवाद से लेकर अधिकृत उम्मीदवार के पक्ष में नाराज आवेदकों जिन्हें अधिकृत नहीं किया जा सका है की नाम वापसी तक की प्रक्रिया भी काफी कठिन है परन्तु इस चरण को भी हम सफलता पूर्वक सम्पन्न कर लेते हैं तो गोंडवाना आंदोलन को राजनीतिक सफलता अवश्य मिलने वाली है । आप सभी ने देखा है कि राजनीति के इस महासमर में हर छोटे बडे राजनैतिक दल में टिकिट को लेकर नाराजगी दिखी है कोई पाला बदला तो कोई मारपीट किया परन्तु पार्टियां अपने संगठन और समर्थकों के भरोशे चुनाव मैदान में डटी हुई हैं । संगठन में एक एक व्यक्ति महत्वपूर्ण होता है। प्रत्येक संगठन में गुटबंदी स्पष्ट दिखाई देती है इसका मतलब यह नहीं कि कोई भी पदाधिकारी संगठन का नुकसान चाहता है। चुनाव का यह चरण सभी दलों के लिये कठिन होता है । परन्तु समय के साथ सबकुछ ठीक हो जाता है संतुष्ट असं

कोई हारे , हमें जीतना है

"कोई हारेगा कोई जीते, यहां तो हमें जीतना है।" मूलनिवासी समुदाय को किसी मनुवादी दल या मनुवादी समुदाय के राष्ट्र वाद के नारे के झांसे में नहीं आना है,ना ही कांग्रेस भाजपा के गुलाम आदिवासी कार्यकर्ता या जनप्रतिनिधियों के चक्कर में पड़ना है। कांग्रेस या कांग्रेस का गुलाम आदिवासी कार्यकर्ता, हमें भय दिखायेगा कि गोंडवाना गणतंत्र पार्टी को वोट देने से भाजपा जीत जायेगा हमारे अधिकार छिन जायेंगे आरक्षण खत्म हो जाएगा आदि आदि.....पर आपको तुरंत जवाब देना होगा,कि जब मूलनिवासियों के अधिकारों पर हमला किया जा रहा था तब कांग्रेस करता कर रही थी। ईवीएम मुद्दे पर आज क्यों मौन है। हमारे अधिकारों का हनन करने वाले समुदाय को मूलनिवासी जनसंख्या के अनुपात में अधिक विधानसभा टिकिट क्यों दे रही है।जब हमारी पार्टी है तो हमें भी अपने मूलनिवासी समुदाय को साथ लेकर सरकार बनाना है। कौन जीतेगा कौन हारेगा इससे हमें कोई सरोकार नहीं। हमें तो अपनी पार्टी को जिताना है। अपनी समस्या का समाधान हम अपने हाथों से करेंगे। विधानसभा मप्र को अब गोंडवानामय करेंगे। इतना जवाब तैयार रखें।-gsmarkam

गोंडवाना का उठता ज्वार

"गोंडवाना के उठते ज्वार को कमजोर करने कांग्रेस भाजपा सक्रिय।" गोंडवाना के राजनीतिक आंदोलन के लिए २०१८ सुनहरा अवसर है, समाज को इस अवसर से नहीं चूकना चाहिए। कांग्रेस से गठबंधन की संभावनाएं क्षीण होते ही, कांग्रेस मानसिकता के छद्मवेशी आदिवासी जो कि गोंडवाना से गठबंधन की आस लगाकर गोंडवाना की टिकिट पाने के लिए सक्रिय थे पर जैसे जैसे गोंडवाना के टिकटों की आधिकारिक घोषणा होने लगी तब कांग्रेस ने अन्य क्षेत्रों में अपने प्रायोजित लोगों को गोंडवाना से टिकिट पाने के नाम पर आगे आने तथा टिकिट नहीं मिलने पर विरोध का वातावरण तैयार करने का प्रयास किया जाने लगा है। कुछ गोंडवाना के लोग भी थोड़ी सी लालच के कारण प्रायोजित कांग्रेसी टिकिटार्थियों को टिकिट दिलाने की कोशिश करते दिखाई दे रहे हैं। ताकि प्रायोजित प्रत्याशी समय पर कांग्रेसी प्रत्याशी को परोक्ष मदद कर सके। अभी दूसरे दौर का हमला भाजपा की ओर से होगा जिसमें क्षेत्रों से गोंगपा कार्यकर्ता या समाज में थोड़ा बहुत प्रतिष्ठित व्यक्ति को चुनाव लडने के लिए उकसाया जायेगा। ऐसे निर्दलीय लोगों की संख्या काफी हो सकती है जो फार्म भरने से लेकर उठाने न

NTPA IN INDIA

NTPA (नेशनल ट्रायबल पार्टी एलाईंस) की गठन प्रक्रिया सम्पन्न । गोंडवाना भूभाग के आदिवासी नेतृत्व वाले प्रमुख दल  जीजीपी (GGP), बीटीपी (BTP) अभागोंपा (ABGP) एवं झारखंड पार्टी सहित इन पार्टियों के संस्थापक/अध्यक्ष एवं प्रमुख पदाधिकारियों जिसमें प्रमुख रूप से  मा० छोट भाई वसावा (विधायक) गुजरात,मा०हीरासिंह मरकाम पूर्व विधायक छग, मा० देव कुमार धान पूर्व मंत्री झारखंड, एवं मा० महेश भाई वसावा विधायक गुजरात , मा० दरबू सिंह उईके पूर्व विधायक मप्र एवं गुलजार सिंह मरकाम संयोजक गोंगपा की प्रमुख उपस्थिती में दिल्ली स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ शोसल साइंस हाल,लोदी रोड नई दिल्ली में दिनांक १४/११/२०१८ को विधिवत "नेशनल ट्रायबल पार्टी  ‌एलाईंस" (NTPA) की नींव रख दी गई। सभी वक्ताओं ने इस पहल को भारतीय राजनीति में राष्टीय स्तर पर आदिवासी नेतृत्व उभारने के लिए अहम फैसला बताया। NTPA में शामिल के सभी दलों के प्रमुखों ने देश के विभिन्न राज्यों में होने वाले चुनावों में एक दूसरे को सहयोग और समर्थन देने की वचनबद्धता दोहराई तथा २०१९ के आम चुनाव में आरक्षित ४७ संसदीय क्षेत्र सहित जिन अनारक्षित संसदीय क

पिंक पाईंट का समय है गोंडवाना में भटकाव न हो।

"पिंक पाईंट का समय है गोंडवाना में भटकाव न हो" कांग्रेस का गोगपा से गठबंधन नहीं हो पा रहा है, पहला गोगपा को कमजोर करने के नेशनल लोगों को लेकर कांग्रेसी प्रयास विफल होने के बाद गठबंधन के फेल होने की स्थिति में अगला दूसरा पुनः प्रयास किया जाने लगा है इसलिए वह गोंडवाना के बीच वोट विभाजन की तकनीक का प्रयास कर रहा है। गोंडवाना के युवा हों या समर्थक यह समझ लें कि मप्र चुनाव २०१८ गोडवाना के लिए अस्तित्व और अस्मिता रक्षा के लिए राजनीति का अंतिम अवसर होगा । ऐसे अवसर को हम अपने हाथों से जाने ना दें। व्यक्तिगत बुराई या ईगो को दरकिनार कर। गोंडवाना को मजबूत करने में लग जायें यहीं मेरा निवेदन है। राजनीतिक उठा-पटक और होने वाले तोड़ फोड़ की आशंकाओं को मैंने पूर्व से ही शोसल मीडिया के माध्यम से अवगत कराया है। आशा है मेरे पिछले पोस्टों का पुनर्पाठ करेंगे । बस इतना ही संदेश समझदारी के लिए काफी है।जय सेवा जय जोहार।-(गुलजार सिंह मरकाम रा०संयोजक गोंगपा एवं महासचिव-NTPA)

"6सितंबर 2018 कथित भारत बंद।"

1- "6सितंबर 2018 कथित भारत बंद।" आरक्छन और अनुसूचित जाति जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम का विरोध यानी कि सवर्ण अपनी कमजोरी खुद दिखा रहे हैं जबकि यह मात्र कानून है ,कोई कानून का उल्लंघन ना करें इसलिए रास्ता है, इसका विरोध करने का मतलब इन्हें अन्याय अत्याचार की खुली छूट मिले, इन्हें नौकरियों में सभी सीटों पर कब्जा करने का अवसर मिले यही है उनका आशय है जब उच्च वर्ग अन्याय नहीं करेगा तो उस कानून के रहने से भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा। कानून को संविधान में लिखा रहने दो आप अन्याय अत्याचार मत करो तो उस कानून की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी ,आप सही हिस्सेदारी दो तो तुम्हें आरक्षण के विरोध की जरूरत नहीं पड़ेगी ,लेकिन सब कुछ थोड़े से लोग हड़प जाना चाहते हैं इसलिए इस तरह के कानून का विरोध करते हैं।-gsmarkam 2- "आदिवासी नेतृत्व वाले दलों को सुझाव" (देश की वर्तमान परिस्थितियों के संदर्भ में) जनजातियों का नेतृत्व करने वाले राजनीतिक दल और सन्गठन में यदि सवर्ण कार्यकर्ता या पदाधिकारी हैं ,यदि वे उस पार्टी में रहना चाहते हैं तो ऐसे दलों को चाहिए कि वह सवर्ण कार्यकर्ताओं पदाधिकारियों से

"गोंडवाना के आदिवासियों को राजनीति के प्रति अपना माइंड सेट कर लेना चाहिए

"गोंडवाना के आदिवासियों को राजनीति के प्रति अपना माइंड सेट कर लेना चाहिए" मप्र में गोंडवाना का राजनीतिक आंदोलन शनै: शनै:, सत्ता का बेलेंसिंग पावर के रूप में स्थापित हो चुका है। कांग्रेस के द्वारा गोंडवाना को विभाजित करने के लाख कोशिशों के बावजूद गोंडवाना के सिपाही नहीं डगमगा रहे हैं। इसका परिणाम यह निकलकर सामने आ रहा है कि कांग्रेस को गोंडवाना सहित अन्य दलों के लिए ७० सीटें छोड़ने की प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ द्वारा समाचार माध्यम से अधिकृत घोषणा करने को मजबूर होना पड़ा। गोंडवाना की यह ताकत आदिवासी राजनीति के लिए महत्वपूर्ण है। जयस जैसा गैर राजनीतिक संगठन भी यदि गोंडवाना के साथ चलकर पश्चिम मप्र में आदिवासी एकता का परिचय देती है तो आदिवासी सरकार की कल्पना को साकार किया जा सकता है। यदि एक साथ नहीं भी होकर जयस पश्चिम क्षेत्र में स्वतंत्र निर्णय लेता है तो गोंगपा को कोई आपत्ति नहीं। परंतु जयस स्वतंत्र चर्चा कर अपना नुकसान होता देख। संविधान,आरक्षण, और आदिवासी अस्मिता के सवालों को दरकिनार कर इन सवालों के विरुद्ध खड़ा होता है तो इसका दोषी वह स्वयं होगा। इसलिए मप्र का आदिवासी अपने माइंड

"जेखर घर नौ लाख गाय,दूसर घर मही मांगने जाय"

मप्र में विद्युत ऊर्जा प्रसंग। "जेखर घर नौ लाख गाय,दूसर घर मही मांगने जाय" मध्यप्रदेश देश का एकमात्र अजूबा राज्य है, जहां जल और कोयला से 18000 हजार मेगावाट बिजली पैदा करने की क्षमता है। और प्रदेश की विभिन्न, उपयोग जैसे उद्योग , घरेलू तथा कृषि के लिये कुल खपत 9000 मेगावाट है फसल की सिंचाई के समय यह खपत 12000 मेगावाट हो जाती है। फिर भी औसतन 6000 मेगावाट बिजली का उपयोग नहीं होने के कारण अन्य राज्यों को लागत से भी कम दाम में बेचना पड़ता है। वे राज्य जिनमें दिल्ली शामिल है ,दिल्ली राज्य सरकार अपनी जनता को मप्र की जनता को मिलने वाली प्रति यूनिट बिजली दर से आधे से भी कम कीमत पर बिजली प्रदाय कर रही है। दूसरों को लागत से  कम कीमत में बिजली देने की  बजाय मप्र की जनता को कम कीमत में बिजली नहीं दी जा सकती ? वहीं दिल्ली का मुख्यमंत्री मप्र में आकर अपनी सरकार की बिजली की कीमत पर वाहवाही लूट रहा है। बतायें कि कौन मुख्यमंत्री बेवकूफ है ? इस पर विचार करें।  क्या जनता की आंखों में धूल झोंकने वाली सरकार को माफ करेंगे ? इसलिए शिक्षित बेरोजगारों,नवजवानों,मजदूर किसानों जागो ! "अबकी बार ग

"एक छोटे से भूल से अंबेडकरी आंदोलन दिग्भ्रमित हो गया।"

"एक छोटे से भूल से अंबेडकरी आंदोलन दिग्भ्रमित हो गया।" कहने को तो देश का मूलवासी, मूलनिवासी संविधान निर्माता बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर के मार्ग पर चलने की बात करता है लेकिन डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जी के साहित्य को पढ़ो तो ऐसा लगता है की उनके साहित्य से ज्ञान तो अर्जित किया गया लेकिन बाबा साहब ने जिस महत्वपूर्ण कड़ी के तहत आंदोलन को चलाने की बात कही थी उस के पदचिन्हों पर ना चल कर बाबासाहेब के साहित्य मैं मीठा जहर डाल कर एक शैतान ने सारे आंदोलन की दिशा ही बदल दी , यह एक ऐसा टर्निंग पॉइंट था जिसमें बड़े-बड़े अंबेडकरवादी या बुद्धिजीवी भी इस पर ध्यान नहीं दे सके और आज भी उसी क्रम में अपने आप को अंबेडकरवादी कहते चले आ रहे हैं वह कड़ी यह है कि बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर ने अपने साहित्य में सदैव महात्मा बुद्ध का अनुसरण करते हुए बुद्धम शरणम गच्छामि, धम्मं शरणं गच्छामि और संघम शरणम गच्छामि इस क्रम में आंदोलन की रचना की थी उसी क्रम में डॉक्टर अंबेडकर साहब ने एजुकेट, एजिटेट एंड ऑर्गेनाइज शब्द क्रम को रखा था लेकिन उनके मरने के बाद जब उनका यह साहित्य हिंदी ,मराठी आदि कई भाषाओं में छापा गया तो

प्रधानमंत्री को जान का खतरा नहीं,"क्राउन आप इंडिया" का खतरा है।

प्रधानमंत्री को जान का खतरा नहीं,"क्राउन आप इंडिया" का खतरा है। यह बात भले ही अतिशयोक्ति पूर्ण लगे लेकिन मेरी दृष्टि से यह प्रसंग जान का नहीं वरन भारत की धन धरती और उसकी माल्कियत का है।जिन बुद्धजीवियों चाहे वे कम्युनिस्ट विचारधारा के हों या समाज वादी, प्रकृतिवादी विचार के हों,भारत की आत्मा से अच्छी तरह परिचित हैं। उन्हें लगा कि इस देश के मूल वंशजों के साथ कहीं ना कहीं नाइंसाफी हो रही है।उनकी धन धरती से लगातार उन्हें विस्थापित किया जाना उन्हें जंगली,असभ्य कहकर उनकी सरलता,सहजता को अग्यानता कहकर उनके विकास के नाम पर उन्हें समूल नष्ट करने के सत्ताधारी प्रयासों को मानवता वादी समझ रहा था । इसलिए उनमें वैचारिक , व्यवहारिक चेतना पैदा करने के लिए उनके बीच उन्ही की तरह जीवन जीकर एहसास किया। उनके दुख दर्द को मिटाने का संकल्प लेकर साहित्य सृजन के साथ उनके स्वाभिमान को जगाने का प्रयास किया गया उसका परिणाम यह हुआ कि भूमिपुत्रों में आत्मविश्वास जागृत हुआ। सर्वहारा वर्ग की श्रेणी का एहसास हुआ। भूमिपुत्र इन साम्यवादी, समाजवादी, वर्तमान अम्बेडकरी विचारों से लगातार  चैतन्य होता गया। आज वह तैय

"सांस्कृतिक युद्ध में प्रजातंत्र के राजनीतिक अस्त्र का इस्तेमाल करो।"

"सांस्कृतिक युद्ध में प्रजातंत्र के राजनीतिक अस्त्र का इस्तेमाल करो।" गोंडवाना के आदिवासियों की भाषा, धर्म, संस्कृति और अस्तित्व को बचाना है ,देश को हिटलर की तानाशाही विचारधारा से मुक्त कराना है ,तो संघ और भाजपा को भारत भूमि से उखाड़ फेंकना होगा। यह समय सांस्कृतिक युद्ध का है,जो राजनीति के अस्त्र से लड़ा जाना है। इस युद्ध में जो भी व्यक्ति, समुदाय और राजनीति, गैर राजनीतिक संगठन शामिल होंगे, उन्हें आने वाली पीढ़ियां सदैव क्रांतिकारियों के रुप में याद रखेंगी । -gsmarkam

"मप्र में जूते चप्पल की राजनीति"

"मप्र में जूते चप्पल की राजनीति" ‌सवाल यह नहीं कि इन जूते चप्पलों में केंसर पैदा करने वाला तत्व पाया गया। यह बात तो जगजाहिर है कि संघ के एजेंडे में मूलवासी मूलनिवासी समाज के लिए,खान पान से लेकर मानसिक विकृतियों ,नश्ल और जीन तक को कमजोर करने के लिए औषधियों में परोक्ष रूप से जहर जैसे तत्त्व को मिलाये जाने का लिखित दस्तावेज मिलते हैं जूते चप्पल के माध्यम से कैंसर भी ऐसे एजेंडे का हिस्सा हो सकता है। पर इसके अतिरिक्त सवाल यहां सीधे सीधे भ्रष्टाचार, मनमानी और अनिक्षा से जुड़ा है। ज ूते चप्पल की क्वालिटी उसकी मानकता (मापदंड)पर निर्धारित है। कि इसमें कंपनी और खरीददार एजेंसी के बीच कितनी दलाली तय हुई । एक ओर तेंदू पत्ता संग्राहक की मेहनत की राशि को सीधा न देकर उसकी अनिक्षा से,कि उसकी प्राथमिक आवश्यक है कि नहीं,उसके हिस्से की राशि को मनमाने ढंग से चप्पल जूते के रूप में थोपना । यानि जनता के मेहनत को भी सरकार के द्वारा दिए जा रहे एहसान के रूप में प्रस्तुत करना। सरेआम आंखों में धूल झोंकने जैसी बात है। इसे गंभीरता से जनमानस के बीच लाना होगा। ताकि इनके द्वारा किये जा रहे कृत्यों की पोल खुल

"गोगपा की मध्यप्रदेश में राजनीति स्थिति स्पष्ट"

"गोगपा की मध्यप्रदेश में राजनीति स्थिति स्पष्ट" (भाजपा को सत्ता से हटाने के लिए गोंगपा मप्र में अग्रणी भूमिका निभायेगी) देश और प्रदेश में लगातार संविधान विरोधी गतिविधियां अनुसूचित वर्ग के विरुद्ध लगातार चल रहे षडयंत्र तथा कमजोर तबकों पर अमानवीय अत्याचार अन्याय की घटनाओं से आहत समाज की भावनाओं को लेकर गोंगपा ने भाजपा को सत्ता से बाहर करने का स्पष्ट ऐलान कर दिया है। गोंडवाना के इस मुहिम के साथ मप्र में जितने भी राजनीति संगठन साथ मिलकर चलना चाहते हैं उन्हें उनकी संख्या और बजनदा री के साथ महत्त्व दिया जायेगा, कांग्रेस भी यदि भाजपा को सत्ता से बाहर करने के लिए इस मुहिम में अग्रणी भूमिका निभाने को तैयार है तो गोंगपा इसका स्वागत करती है । कांग्रेस यदि अति आत्मविश्वास के कारण इस मुहिम से दूर रहती है तो यही समझा जायेगा कि कांग्रेस, संविधान विरोधी एवं अतिवादियों को परोक्ष रूप से समर्थन के पक्ष में है। इसी तरह गैरराजनीतिक संगठन भी इस मुहिम में एकजुटता का परिचय दें अन्यथा उन पर भी संविधान विरोधी भाजपा और उसकी मातृ संस्था का परोक्ष सहयोगी माना जायेगा। यह कठोर निर्णय लेने के पीछे कारण स

वर्तमान व्यवस्था के विरुद्ध बगावत करें"

"वर्तमान व्यवस्था के विरुद्ध बगावत करें" देश की आजादी के लिए सबसे पहले अंग्रेजो के विरुद्ध आदिवासियों ने जंग छेड़ा था। आज हमें पुनः देश को अन्याई अत्याचारियों के विरुद्ध आजादी की लड़ाई लड़ना होगा। अंग्रेज भी तो  यही करते थे। जो आज के सत्ता धारी कर रहे हैं। अंग्रेजों के जमाने में हमारे बीच के ही कुछ गद्दार अपने ही भाइयों के साथ गद्दारी करते थे उसी तरह आज भी हमारे बीच से ही कुछ गद्दार सत्ता धारियों की गुलामी में फंस कर हमसे गद्दारी कर रहे हैं इन्हें भी पहचान कर रखना होगा। देशकी आंतरिक पुलिस व्यवस्था में तैनात लोग हों या मिलिट्री से लेकर, शासकीय सेवा में लगे लोग हों । इन सबको वर्तमान व्यवस्था के विरूद्ध लामबंद होना होगा । अंग्रेजी शासन व्यवस्था के विरुद्ध जिस तरह असहयोग और बगावत की चिंगारी फूंकी गई थी उसी तरह वर्तमान व्यवस्था के विरुद्ध हमें बगावत करना होगा। हमारे अपने माईन्ड को सेट करना होगा । देश की जागरुक लोग यदि अंग्रेजों के विरुद्ध उठकर बगावत नहीं करते उनके विरुद्ध आंदोलन नहीं छेड़ते तो आज भी अंग्रेज हमारे देश से नहीं जाते। आज भी मुट्ठी भर मनुवादी अंग्रेजों की तरह बहुसंख्

"कहीं एैसा तो नहीं कि गोंडवाना समग्र क्रांति आन्दोलन का राजनीतिक पक्ष अभी भी अपने शैशव काल में है।"

"कहीं एैसा तो नहीं कि गोंडवाना समग्र क्रांति आन्दोलन का राजनीतिक पक्ष अभी भी अपने शैशव काल में है।" गोंडवाना समग्र क्रांति आन्दोलन की विभ्न्नि महत्वपूर्ण शाखायें भाषा धर्म संस्कृति एवं साहित्य के क्षेत्र में शनैः शनैः अग्रसर हो रहीं हैं । हालांकि इन रास्तों में भी अनेक बाधाऐं हैं । गोंडियन धार्मिक रास्ते में धार्मिक आंदोलनकारी कुछ अलग अलग तरीके से गोंडवाना के इस पक्ष को रखकर आगे बढ रहे हैं पर जय सेवा के मंत्र को आत्मसात करके चल रहे हैं । कोई बात नहीं हिन्दू धर्म में कई शाखायें हैं वे शैवमती वैष्णवमती या गायत्री के माध्यम से हिन्दुत्व को बरकरार रखकर मौके पर हिन्दुत्व को अपना अंतिम हथियार मान लेते हैं । इसी तरह गोंडवाना आंदोलन का धार्मिक पक्ष भले ही बडादेव बूढादेव के झंझट में उल्झा हो या मूलवासी मूलनिवासी कौन की व्याख्या में लगा हो तथा ज्यूडीशियल नान ज्यूडीशियल को अपने रीतिरिवाज को अपना अस्त्र बनाकर संगठित हो रहा हो पर सब एक ही धारा के पक्षधर हैं इसलिये हम एक तीर एक कमान आदिवासी आदिवासी एक समान हैं यह भावना बलवती हो रही है । जो भविष्य में सांस्कृतिक धार्मिक समर में सब एकदूसरे

*खबरदार होशियार संविधान को ऐसे लोगों से भी खतरा है*

*खबरदार होशियार संविधान को ऐसे लोगों से भी खतरा है* (समुदाय और पद की गरिमा को भी गिरवी रखने से नहीं चूकते पार्टियों के गुलाम आदिवासी जनप्रतिनिधि) ‌आदिवासी स्वाभिमान को ठेस पहुंचाने और संवेधानिक पद की गरिमा को गिरवी रखने का मामला प्रकाश में आया है पांचवी सूची अंतर्गत आने वाले ब्लाक चिचोली जिला बैतूल से चिचोली जनपद पंचायत के अध्यक्ष हैं आदिवासी चिरोंजीलाल कवडे। यह कवडे महोदय जिस पार्टी के इशारे से अध्यक्ष बनें हैं पार्टी नेताओं के इतने गुलाम हो चुके हैं कि 15 अगस्त जैसे राष्ट्र ीय पर्व मैं अपने जनपद क्षेत्र में आयोजित मुख्य ध्वजारोहण समारोह जिसमें वे शासन के नियमानुसार संवैधानिक हकदार हैं । परंतु अज्ञात कारण कहें या अज्ञात भय जिसके कारण चिचोली नगर परिषद् के अध्यक्ष जोकि गैर आदिवासी है उन्हें ध्वजारोहण के लिए अधिकृत कर दिया। ऐसी बात नहीं कि वे इस समारोह में शामिल नहीं होंगे । शामिल तो होंगे लेकिन अपनी गुलामगिरी और व्यक्तिगत अक्षमता को समुदाय की अक्षमता का नमूना दिखाकर अपने समुदाय और संवेधानिक पद की गरिमा को कालिख पोतते दिखाई देंगे। ‌ जबकि आयोजन के लिए हुई मीटिंग में तहसीलदार के द्वारा जन

*प्रकृतिवाद और द्रविण मूल*

"प्रकृतिवाद और द्रविण मूल" (9 अगस्त विश्व आदिवासी, इंडीजीनियस, मूलवासी, देशज दिवस के अवसर पर विशेष प्रस्तुति) आज देश में आदिवासी चेतना का ज्वार उठ रहा है । यह समुदाय अपने हक अधिकारों को समझकर देश भर में एकता का बिगुल बजा रहा है । 9 अगस्त विश्व आदिवासी दिवस ने एक ओर इन्हें अपने अधिकारों का ज्ञान बढाया तो कुछ पढे लिखे नवजवानों ने संविधान के पन्ने पलटना शुरू किये । परिणामस्वरूप अन्याय,अत्याचार,शोषण,पलायन,विस्थापन से हताश समुदाय या तो खुदकुशी कर ले या फिर क्रांति का बिगुल बजा दे । दोनों ही काम हो सकते थे, परन्तु संविधान में अपनी सुरक्षा की ग्यारंटी के कारण अधिकार प्राप्ति के लिये जन चेतना को अस्त्र बनाना तय किया । यह जनचेतना शोषण के विरूद्ध लोकतंत्र में वोट के रूप में अपनी प्रमुख भूमिका अदा करेगा । इस आसरा में आदिवासी समुदाय अपने आप को लामबंद करने में लगा हुआ है । इस लामबंदी में भाषा,धर्म,संस्कृति,क्षेत्रीयता,नस्ल और जाति की महीन सी दीवार दिखाई देती है । इस बारीक दीवार को ढहाते वक्त इस बात का खयाल रखना होगा कि आदिवासी मूलतः दृविण नश्ल की प्रजाति है । जोकि मानव विकास कृम में वि

चुनाव में आरक्षण का झुनझुना

*चुनाव में आरक्षण का झुनझुना* आरक्षण के मामले में सुप्रीम कोर्ट जब राज्य सरकारों से अनुसूचित जाति जनजाति के रिक्त एवं भरे गए पदों की जानकारी मांग रहा है तब राज्य सरकार यह जानकारी लेकर सुप्रीम कोर्ट को प्रस्तुत क्यों नहीं कर रही है। इसका मतलब मध्यप्रदेश में शासकीय सेवकों की संख्या मैं कहीं ना कहीं धांधली हुई है। जबकि अनुसूचित जाति और जनजातियों की जनसंख्या के अनुपात में अभी तक उनका कोटा पूरा नहीं हुआ है। वही अन्य पिछड़ी जातियों को भी अनुपातिक प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाया है। यह आरक्षित जातियां 50% की सीमा को भी लग नहीं रही है। इसका मतलब यह है की सामान्य श्रेणी के लोग 50% शासकीय सेवाओं में भी पूरी तरह काबिज हैं, साथ ही आरक्षित वर्गों के रिक्त पदों को भी सामान्य प्रचारित करके उनमें भी काबिज हैं। इसलिए मध्य प्रदेश की सरकार सुप्रीम कोर्ट को कुल शासकीय पद और रिक्त पदों की जानकारी देने से कतरा रही है। मोटी मोटी जानकारी देकर आरक्षित वर्ग और सुप्रीम कोर्ट को गुमराह कर रही है। सरकार की इस गुमराही के चक्कर में अजाक्स जैसे संगठन भी आ चुके हैं। अन्यथा इतने दिनों में कुल शासकीय पद, रिक्त पद, आरक्षित
*विश्व आदिवासी दिवस,और आदिवासी सामाजिक दबाव*  "प्रदेश में 22 प्रतिशत आदिवासी समुदाय है, परंतु यह संख्या शायद सरकार के सामने कोई मायने नहीं रखता, कारण भी है की सत्ताधारी दल के आदिवासी जनप्रतिनिधि पूरी तरह गुलाम बने हुए हैं । सरकारों की नींद चुनाव वर्ष में खुली है कि अब शासकीय स्तर पर 9 अगस्त विश्व आदिवासी मनाया जाय । यही नहीं विश्व आदिवासी दिवस पर जिन जिलों में सरकार के माध्यम से विश्व आदिवासी दिवस मनाने का ढोंग किया जा रहा है, उनमें इस तरह शासकीय सेवकों की ड्यूटी  लगाकर शासकीय आयोजन नहीं कराते, इसका सीधा सा मतलब है की आम नागरिकों द्वारा आयोजित कार्यक्रम में व्यवधान पैदा कराना है। इससे यह साबित होता है की आदिवासी जनता को बड़ी आसानी से विभाजित किया जा सकता है। समाज का यह विभाजन सामाजिक दबाव को कमतर करता है। ठीक यही स्थिति गैर सत्ताधारी आदिवासी जनप्रतिनिधियों की है। जो विपक्ष में बैठकर भी 9 अगस्त की छुट्टी के लिए विशेष पैरवी नहीं कर सके,इनकी भी अपनी डफली अपना राग है। सरकार अभी भी आदिवासियों को मात्र भीड़ मानती है। उसे अभी भी विश्वास है कि इस समुदाय को खरीदा जा सकता है, बहलाया फुसला

सच सुनता नहीं, बोलता है।

"सच सुनता नहीं बोलता है" हम तो बेवकूफ हैं थोड़े में हीं झुक जाते हैं। समाज का वास्ता देकर हमें वो छल जाते हैं।। तमाम कोशिशें तरकीबों को भी आजमाया। एक वो शख्स हैं जो, चुपके दगा दे जाते हैं।। इतना तो अक्ल है करतूत उनकी ना समझें । फिर भी खुली आंखों में वे,धूल झोंक जाते हैं ।। जिसको कहना है,उस तक पहुंच जाये ये खत । लोग तो डाक को भी चुपके से पढ़ जाते हैं ।। इस हकीकत की इबारत को भले ही ना समझो। ये तो इक दर्द है कभी लिखते में आ जाते हैं ।। -Gsmarkam

"प्रकृतिवाद और द्रविण मूल"

"प्रकृतिवाद और द्रविण मूल" (9 अगस्त विश्व  आदिवासी, इंडीजीनियस, मूलवासी, देशज दिवस के अवसर पर विशेष प्रस्तुति) आज देश में आदिवासी चेतना का ज्वार उठ रहा है । यह समुदाय अपने हक अधिकारों को समझकर देश भर में एकता का बिगुल बजा रहा है । 9 अगस्त विश्व आदिवासी दिवस ने एक ओर इन्हें अपने अधिकारों का ज्ञान बढाया तो कुछ पढे लिखे नवजवानों ने संविधान के पन्ने पलटना शुरू किये । परिणामस्वरूप अन्याय,अत्याचार,शोषण,पलायन,विस्थापन से हताश समुदाय या तो खुदकुशी कर ले या फिर क्रांति का बिगुल बजा दे  । दोनों ही काम हो सकते थे, परन्तु संविधान में अपनी सुरक्षा की ग्यारंटी के कारण अधिकार प्राप्ति के लिये जन चेतना को अस्त्र बनाना तय किया । यह जनचेतना शोषण के विरूद्ध लोकतंत्र में वोट के रूप में अपनी प्रमुख भूमिका अदा करेगा । इस आसरा में आदिवासी समुदाय अपने आप को लामबंद करने में लगा हुआ है । इस लामबंदी में भाषा,धर्म,संस्कृति,क्षेत्रीयता,नस्ल और जाति की महीन सी दीवार दिखाई देती है । इस बारीक दीवार को ढहाते वक्त इस बात का खयाल रखना होगा कि आदिवासी मूलतः दृविण नश्ल की प्रजाति है । जोकि मानव विकास कृम में वि

*मप्र में राजनीतिक चेतना के लिये विधान परिषद का गठन होना चाहिये ।*

*मप्र में राजनीतिक चेतना के लिये विधान परिषद का गठन होना चाहिये ।* "मध्यप्रदेश में राजनीतिक चेतना की कमी का कारण प्रदेश में विधान परिषद का गठन नहीं होना भी हो सकता है कारण कि जिस तरह से विधान परिषद का चुनाव होता है उसमें भाग लेने वाले मतदाता कालेज स्थानीय निकाय और विधायकों द्वारा चुने जाते हैं । जब संसद में दो सदन हैं तो संसदीय परंपरानुशार प्रत्येक राज्य में दो सदन होना चाहिये । क्या मप्र राज्य के नेता विधायिका शक्ति का विकेंद्रीकरण नहीं चाहकर एक सदन के माध्यम से मनमानी करना  चाहते हैं ।" *विधान परिषद्* भारतीय संसद के उच्च सदन राज्यसभा की तरह विधानपरिषद एक स्थायी निकाय है जो कभी विघटित नहीं होतीण् इसका प्रत्येक सदस्य यएमएलसीद्ध छह वर्ष के लिए अपनी सेवा देता है और इसके एक तिहाई सदस्य प्रत्येक दो वर्ष में सेवामुक्त हो जाते हैं वर्तमान में भारत के छह राज्यों में विधान परिषद है आंध्र प्रदेश बिहार जम्मू और कश्मीर कर्णाटक । महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश । *विधान परिषद् सदस्य बनने के लिए योग्यताएं* 1.वह व्यक्ति भारत का नागरिक हो 2.30 वर्ष की आयु पूर्ण कर चुका होण् 3.वह मानसिक

"मनुवाद के विरूद्ध एकजुटता का परिचय देने का वक्त आ गया है ।"

"मनुवाद के विरूद्ध एकजुटता का परिचय देने का वक्त आ गया है ।"  देश में एक बहुत बडी धटना घट गई जिसे किसी मीडिया ने प्रसारित नहीं किया थोडा बहुत छपा भी तो एक कोने का समाचार बनकर रह गया है । यह घटना है देश में अम्बेडकरी मिशन का सबसे बडा बौद्धिक वर्ग बामसेफ का राजनैतिक संगठन बीएमपी का लोकतांत्रिक जनता दल में विलय । अब यह बौद्धिक वर्ग शरद यादव को पीछे से बहुत बडी ताकत के रूप में खडा हो चुका है । सभी को ज्ञात है कि वामन मेश्राम जी के नेतृत्व में चल रहा बामसेफ ही मात्र एैसा संगठन है  जो आज आरएसएस जैसे संगठन को खुली चुनौती देता दिखाई देता है । बामसेफ के अनुशासित बौद्धिक कार्यकर्ता पूरे देश भर में फैले हैं जो मनुवादी व्यवस्था के विरूद्ध लगातार अपने आंदोलन को चलाकर मूलनिवासियों का माईड सेट कर रहे हैं । आरएसएस और भाजपा की मूलनिवासी विरोधी खुली चुनौती के चलते देश में राष्ट्रीय स्तर पर बौद्धिक वर्ग ने चिंतन मनन शुरू कर दिया है । सभी राजीतिक सामाजिक संगठन एकजुटता के लिये प्रयासरत हैं एैसे में गोंडवाना का आदिवासी आंदोलन अलग थलग ना पड जाय इसका ख्याल रखना होगा । अन्यथा उदित राज ,रामविलास पासव

‌‌ *धरातल के आंदोलन को भूलो मत*

‌‌ *धरातल के आंदोलन को भूलो मत* "पत्थर गढ़ी पूर्णतः संवैधानिक और वैद्य है" (प्रत्येक ग्राम में पत्थर गढ़ी करें लेकिन कैसे ?) 1. संबंधित ग्राम में पत्थर गढ़ी करने के पहले विशेष ग्राम सभा का आयोजन किया जाकर ग्रामीण संसाधनों पर ग्राम सभा के अधिकार नियंत्रण एवं प्रबंधन प्राप्त किए जाने का स्पष्ट प्रस्ताव पारित करवाया जाए ग्राम सभा की भूमि पर पत्थर गढ़ी कर उस पर सूचना अंकित किए जाने का प्रस्ताव करवाया जाना चाहिए। 2. ग्राम का निस्तार पत्रक पटवारी से या जिला अभिलेखागार से प्राप्त कि या जाना चाहिए यदि अधिकार अभिलेख उपलब्ध है तो उसमें गैर खाते की भूमियों के दर्ज ब्योरों की प्रति प्राप्त की जानी चाहिए वर्तमान खसरा पंजी में दर्ज गैर खाते की भूमियों और से संबंधित ब्योरे प्राप्त किए जाने चाहिए। 3. ग्राम सभा के प्रस्ताव की सूचना विधिवत कलेक्टर ,सीईओ जिला पंचायत एवं जनपद पंचायत अनुविभागीय अधिकारी एवं तहसीलदार तथा थाना प्रभारी को पंचायत की ओर से प्रेषित की जानी चाहिए -gsmarkam

आदिवासियों को समूल नष्ट करने के बजाए उनके धैर्य की सीमा को ही मर्यादित कर दिया जाए,

1.आदिवासियों को समूल नष्ट करने के बजाए उनके धैर्य की सीमा को ही मर्यादित कर दिया जाए, ताकि वह अपने शोषण और लूट का प्रतिकार सत्ताधारियों, शोषकों के विरुद्ध ना कर सके। शासक वर्ग के लिए इससे अच्छा गुलाम बनाने का हथियार कोई नहीं हो सकता।-gsmarkam "प्रजातांत्रिक व्यवस्था में कार्यपालिका विधायिका एवं न्यायपालिका की संवैधानिक मर्यादाएं एवं संवैधानिक सीमाएं सुनिश्चित हैं जिसका पालन करने और प्रजा से पालन करवाए जाने कि प्रजातंत्र का नाम दिया गया है। संवैधानिक मर्यादाओं एवं संवैधानिक सीमाओं के उल्लंघन की चिंताजनक वास्तविकताओं के बीच आदिवासी क्षेत्रों एवं आदिवासियों को किस धैर्य का परिचय देना होगा इसका भी निर्धारण कार्यपालिका विधायिका एवं न्यायपालिका को सुनिश्चित कर ही देना चाहिए।"-gsm 2. "खबर और ख़बरनवीस" ख़बरनवीस का भी खबर से विश्वास उठ गया । मुर्दा इंसान भी आज जिंदा छप गया ।। मरे थे भूख से जहां लाखों गरीब जन। खबर पढ़ा तो आंकड़ा दहाई,इकाई में आ गया । रोज देखता था उसे सड़क पर पन्नी बटोरते । रिकॉर्ड,और खाना पूर्ति के लिये ख़बरों में डान हो गया ।। ख़बरनवीस हूं खबरें तो मैं स

"9 अगस्त को अजा/जजा एकता बनायें रखें ।"

"9 अगस्त को अजा/जजा एकता बनायें रखें ।" 9 अगस्त विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर भारत बंद अनु0 जाति /जनजाति के बीच दरार पैदा करने का प्रयास है । अनु0 जाति के भाइर्यों से निवेदन है कि आप भले ही इस आयोजन में शामिल ना हों पर बंद का समर्थन ना करें । यदि इस विषय पर भारत बंद करना है तो अन्य दिवस तय कर लें आपका छोट भाई अनु जनजाति उस बंद के लिये 2 तारीख के बंद की तरह कंघे से कंघा मिलाकर बंद का समर्थन करेगा जेसा पहले किया है ,इसलिये शडयंत्रकारियों के बहकावे में ना आवें । इससे हमारी आरक्षित वर्ग एकता विभाजित होगी और दुश्मन इसमें सफल होगा । -गुलजार सिंह मरकाम (रा0संयोजक गोंसक्रांआं एवं गोगपा)

"2 अगस्त 2018 को भोपाल में भाजपा विरूद्ध मूलनिवासी आंदोलन का शंखनाद"

"2 अगस्त 2018 को भोपाल में भाजपा विरूद्ध मूलनिवासी आंदोलन का शंखनाद" (भाजपा के विरूद्ध तीसरे मोर्चा का शंखनाद कांग्रेस यदि संविधान बचाना चाहती है तो इनके साथ मिलकर गठबंधन करे ।) आज देश में भाजपा के क्रियाकलापों से देश का मूलनिवासी परिचित हो गया है । उसके संविधान बदलकर मनुस्मृति के संविधान की वकालत खुलकर सामने आ चुकी है । एैसे मौके पर देश का मूलनिवासी समुदाय जिसमें अनु0जाति जनजाति पिछडा वर्ग एवं धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय एकत्र होकर इस संविधान विरोधी भाजपा के विरूद्ध एक साथ नही ं हुए तो मूलनिवासी समुदाय का भविष्य अंधेरे की गर्त में जाता दिखाई दे रहा है । इनके विजयी सांसद खुला बयान दे रहे हैं कि हम संविधान बदलने के लिये जीत कर आये हैं । और अभी संविधान के रहते हम समान नागरिक संहिंता का बिल लाकर देश में नागरिको के लिये समान नागरिक संहिता बनायेंगे । आप ही सोचें जब संविधान में समान नागरिक संहिंता लागू होगी सभी सामान्य नागरिक होगे तब आपको संविधान में प्रदत्त विशेष अधिकार आरक्षण का क्या होगा । अनुसूचित जाति जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम का क्या होगा । प्रमोशन में आरक्षण जैसे विशेषाध

"आदिवासियों के पास पांचवी अनुसूची के अधिकार है,पर शक्ति राजपाल के पास गिरवी है"

"आदिवासियों के पास पांचवी अनुसूची के अधिकार है,पर शक्ति राजपाल के पास गिरवी है" पांचवी अनुसूची में आदिवासियों के अधिकार सुरक्षित हैं , पर आदिवासियों को अधिकार प्राप्त करने की शक्ति से वंचित किया गया है । यही कारण है कि बिना शक्ति के आदिवासी पांचवी अनुसूची के प्रावधानों के होते हुए भी अपने अधिकार प्राप्त नहीं कर पा रहा है उसे पैसा नाम का झुनझुना पकड़ा कर पांचवी अनुसूची के संशोधन पेसा कानून में पंचायती राज व्यवस्था लागू करके रूढी पंचायत की जगह ग्राम सभा को अधिकार संपन्न बनाया ग या है । पांचवी अनुसूची की सारी शक्तियां राज्यपाल पर केंद्रीय कर दी गई हैं उसके बिना पांचवी अनुसूची के लागू होते हुए भी आदिवासी अधिकार संपन्न तो है लेकिन शक्तियों की कमी के कारण अपने अधिकार हासिल करने में अक्षम है। राज्य की TAC भी राज्यपाल के आदिवासियों के हित में लिए जाने वाले निर्णय और विषय का इंतजार करती है, यहां पर टीएसी भी राज्यपाल के विवेक के अधीन है। अर्थात आदिवासी के पास अधिकार तो है,पर उस अधिकार को हासिल करने की शक्ति राज्यपाल के विवेक के अधीन गिरवी है है । हमारा दबाव राज्यपाल पर हो । हमारी क

लोकतंत्र व्यवस्था वाले देश में हैं तो सवाल उठाना पडेगा ।"

"लोकतंत्र व्यवस्था वाले देश में हैं तो सवाल उठाना पडेगा ।" में भारत देश लोकतांत्रिक व्यवस्था से देश का संचालन होता है । इस व्यवस्था में सबसे बडी भूमिका चैाथे स्तंभ मीडिया की होती है । यही कारण है कि इस लोकतंत्र में जनता और सत्ताधारी पार्टी के बीच माध्यम का काम मीडिया का होता है । जिसके लिये बकायदा केंद्र में सूचना प्रसारण तथा राज्यों में जनसंपर्क विभाग की स्थापना है । इनका दायित्व सरकार की योजनाओं को जनता तक जानकारी के रूप में पहुंचाना तथा जनता के दुख तकलीफ को शासन तक हूबहू अर्थात वास्तविक बात को सत्ताधारी तक पहुंचाने की जिम्मेदारी है । इसके बावजूद सरकारी तंत्र ने मीडिया के प्रायवेट एजेंसी के लिये भी निश्चित बजट बनाती है । उसके लिये सरकारी खजाने से आम जनता का धन खर्च करने की व्यवस्था बनाई गई है ताकि सरकारी तंत्र से पूरी जानकारी ना मिले तो । विज्ञापन दृष्य और श्रव्य के माध्यम से जनता तक पहुचाई जा सके । परन्तु वर्तमान समय में शासकीय मीडिया के साथ साथ प्रायवेट मीडिया भी आम जनता की आवाज बनने की बजाय सत्ताधारी पार्टी के विचारधारा का अगुवा बनकर काम कर रहा है । भले ही आम जनता को क

गोंडवाना के लिये गोंड परधान की जिम्मेदारी ।" मैं तो गोंडवाना के स्वर्णिम अवसर लाने के लिये

"गोंडवाना के लिये गोंड परधान की जिम्मेदारी ।" मैं तो गोंडवाना के स्वर्णिम अवसर लाने के लिये गोंडवाना का एक सेवक हूं । चाहे कुर्बानी दौलत की या जान की हो इसके लिये सदैव तत्पर हूं । भले ही जाति गोंड में ही सही पर उपजाति परधान का हूं जाया । मैं ही इस गोंड का साया हूं । भले ना मुझको कभी नहीं भाया । पर मुझे इतना ज्ञान है लोंगों । मेरे बिन तुम नहीं हो कुछ गोंडो । मेरे बिन मिल नहीं सकते तुम अपने पुरखों से मेरे बाना के आगे तुम नहीं हो कुछ गोंडो । मेरा सम्मान मत करो भी सही । बडादेव से क्या कह सको गोंडो । मेरे बाना औ कींकरी की कसम । चल सको तो चल कर दिखाओ एक कदम । बडादेव भी तुमको नकार देवेगा पिछले पुरखों का हिसाब मागेंगा । उसको दिये हिस्से का हिसाब मांगेगा हिसाब तो रखा है हर साल भाई का गोंडो। कितना दिया है भाई तो बंटवारा मांगेगा । नहीं दिया तो तुम कर्जदार हो छोटे भाई के । हिसाब देने के लिये बने हो छोटे भाई के । वह तो हर बार तुमसे कहता है हंसिया कुल्हाडी और थाली का हिस्सा मांगेगा । नहीं दिया तो देना होगा तुमको बडे भाई का फर्ज निभाना है तुमको । तुम अपने फर्ज को निभ

जुग जुग जियो, पूतों फलो, टुकना में ढांकत तक जियो।"

"जुग जुग जियो, पूतों फलो, टुकना में ढांकत तक जियो।" मुझे लगता है कि इसकी व्याख्या गलत हो रही है गोंडी भाषा में जुग जुग का मतलब प्रकाशमान होना है । पूतों को गोंडी भाषा के मूल शब्द पूयता यानि फूल के पुष्पित होने का संकेत है । फूल से फल होकर इतना जियो कि तुम्हें टोकनी से भी ढंका जा सके इतना जियो । उपरोक्त लोकोक्ति की आज परिभाषा ही बदल दी गई है। जुग जुग को युग युग पुष्पित होने को पूत या पुत्र टुकना ढंकत तक यानि पूर्ण स्वस्थ होकर अपनी पूर्ण आयु तक जीने  का संदेश है । मुझे लगता है कि उपरोक्त लोकोक्ति को पुनर्परिभाषित करना चाहिये । कारण कि गोंडियन दर्शन में चार युगों की कल्पना नहीं है ।-gsmarkam

गोन्वाना की राजनीतिक सन्गठन गोगपा को विरोधी हमले से सुरक्षित किया जा सकता है"

"गोन्वाना की राजनीतिक सन्गठन गोगपा को विरोधी हमले से सुरक्षित किया जा सकता है" गोन्डवाना आंदोलन से जुड़े समर्थक समर्पित एवं आम कार्यकर्ताओं, इस चुनाव वर्ष में गोंडवाना की राजनीति को कमजोर करने के लिए विरोधी शक्तियां लगातार प्रभावशील हैं उनसे बचने के लिए गोन्वाना आंदोलन के सभी संवेदनशील जनता बिना कोई आधिकारिक पत्र ,जो कि पार्टी के लेटर हेड पर हो उसमें उस पदाधिकारी के हस्ताक्षर हो ऐसी कोई अधिकृत सूचना प्रसारित होती है वही सत्य है ,मौखिक बयानों से सूचनाओं से हकीकत का कोई दूर-दूर से रिश्ता नहीं होता ऐसी कार्यवाहियां केवल गोन्वाना की राजनीति को डिस्टर्ब करने के लिए प्रसारित किए जाते हैं,इसलिए गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के ग्राम इकाई से लेकर राष्ट्रीय इकाई तक कोई भी पदाधिकारी यदि मौखिक बयान देता है तो वह पार्टी  विरोधी गतिविधियों में शामिल माना जाएगा या उसे पार्टी को तोड़ने वाले के रूप में रेखांकित किया जाएगा जिसकी जिम्मेदारी उसकी स्वयं की होगी।-राष्ट्रीय संयोजक गोंडवाना गणतंत्र पार्टी

आदिवासी नेतृत्व और भटकता युवा"

"आदिवासी नेतृत्व और भटकता युवा" नेशनल जयस के कुछ मित्रों का कहना है कि देश प्रदेश में आदिवासी नेतृत्व नहीं है। गैर कांग्रेस और गैर भाजपा वाले आदिवासी नेतृत्व के दल देश में मौजूद हैं, आदिवासी नेतृत्व अभी देश में मौजूद हैं। देश में छोटू भाई वसावा ,हीरा सिंह मरकाम ,शिबू सोरेन जैसे आदिवासी नेतृत्व के रहते आपको और कैसे नेतृत्व की आवश्यकता है आज आदिवासी कम से कम पार्टी बनाकर आगे चल रहे हैं तो सभी युवाओं को उन दलो का उस राज्य में साथ देना चाहिए। यह कहना गलत कि आदिवासी नेता नहीं है । इन्हीं पार्टियों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराकर युवा आगे आ सकते हैं। यह अच्छी बात है कि किसी दल का किसी राज्य में एक दूसरे से हस्तक्षेप नहीं है। कांग्रेस भाजपा मैं तो अनेक गुलाम नेता हैं। क्या इनकी टिकिट लेकर इनकी गोदी में,शरण में जाकर आदिवासी नेतृत्व उभर जायेगा।-Gsmarkam

गोंडवाना की प्रकृतिवादी विचारधारा आज भारत के प्रत्येक राज्य में समुदाय के बीच अपनी कुछ ना कुछ जगह बनाने में सफल हुआ है

"गोंडवाना आंदोलन के चिंतक विचारक और संगठकों को समाज में राजनीतिक समझ विकसित करना होगा ।" गोंडवाना की प्रकृतिवादी विचारधारा आज भारत के प्रत्येक राज्य में समुदाय के बीच अपनी कुछ ना कुछ जगह बनाने में सफल हुआ है । जिसमें गोंडवाना आंदोलन से जुडे चिंतक विचारक और संगठको का बहुमूल्य योगदान है । बुद्धिजीवि लगातार गोंडवाना की विचारधारा को बढाने में संलग्न हैं । विचारधारा को बढाने के लिये गोंड गोंडी गोंडवाना के साथ साथ गोंडवाना के आदिवासियों को लेकर अनेक आदिवासी सामाजिक धार्मिक संगठन शैक्षिक संगठनों का निर्माण हुआ है जो अपने अपने स्तर पर गोंडवाना के समस्त आदिवासियों के समग्र उत्थान के लिये कार्यरत हैं । देश के विभिन्न हिस्सों में समुदाय के नाम पर जनचेतना का काम तो जारी है । परन्तु गोंडवाना भूभाग का आदिवासी इस समुदाय में राष्ट्रीय स्तर पर राजनीतिक समझ विकसित करने में अभी सफल नहीं हो पाया है । कुछ राज्यों में जैसे झारखंड राज्य के इन सामाजिक घार्मिक संगठनों ने झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के माध्यम से समाज में राजनीतिक समझ विकसित करने का प्रयास किया जिसके परिणामस्वरूप आंशिक सफलता प्राप्त करने म

पप्पू ने गप्पू से कान में क्या कहा

पप्पू ने गप्पू से कान में क्या कहा.....  उस दिन मैंने आपको गले लगाया था , दिल से लगाया था। क्योंकि मेरे पापा ने evm का राज मुझे बताया था ।। कहा था उन से बैर मत रखना, आंख मार कर जनता को बहला कर रखना। Evm का राज औरों से तुम ना कहना, बारी बारी से मजा लेते हुए तुम रहना।। जब तलक हर राज्य में उसका पताका ना फहरे। हर चुनाव में उसे बाकोबर देते रहना।। भारत के संविधान से मैं भी उकता गया था बेटे, तब कोई इन सा सिकंदर था न उस जमाने में, वरना उस वक्त मैं भी ये काम कर गया होता। तुम्हें किसी दलित और आदिवासी का नाम नहीं लेना पड़ता। पिछड़े वर्गो पर भी आश्रित नहीं होना पड़ता । तब तलक हम देश में ताना शाही राज कायम नहीं कर देते । लोकतंत्र की जब तक धज्जियां बिखेर कर रख देते । तब तक इसी तरह खुद को पप्पू बनाते रखो शुक्र है,उनसे गले लगा करके ,जरा सी आंख को दबा करके ,एक तीर से दो शिकार तुम करके । अपने नाना के अरमानों,को पूरा करते नजर आते हो तुम। ईवीएम का विरोध नहीं करके भी, पप्पू राष्ट्रीय नेता कहलाते हो तुम ।-Gsmarkam "संसद में अविश्वास प्रस्ताव का नाटक" जब बहुमत नहीं है विश्वास ग

असली और नकली की पहचान हो"is

"असली और नकली की पहचान हो" आदिवासी समाज का एक वह हिस्सा है जो आदिवासी संस्कृति को आत्मसात किए हुए है पर उसे जनजाति सूची में शामिल नहीं किया जा रहा है, दूसरी तरफ आदिवासी समाज का वह हिस्सा जो जनजाति की सूची में है या सूची मैं शामिल होने को लालायित है लेकिन आदिवासी  संस्कृति से कोसों दूर है ,अब आप ही बताएं कि सूची में रहकर पर संस्कृति मैं जीने वाला असली आदिवासी है या सूची से बाहर रहकर भी आदिवासी संस्कृति का पालन कर रहे हैं वह असली आदिवासी है ,विचार करें क्या आप नहीं चाहते कि असली आदिवासी को संवैधानिक अधिकार मिले ।-Gsmarkam

"गोंडवाना के आदिवासी मैं यदि अहिंदू की मानसिकता परिपक्व है तो भाजपा के हिंदुत्व रथ को रोका जा सकता है"

"गोंडवाना के आदिवासी मैं यदि अहिंदू की मानसिकता परिपक्व है तो भाजपा के हिंदुत्व रथ को रोका जा सकता है" गोडवाना का आदिवासी यदि अहिंदू के रूप से एकजुट होता है तो उसका लाभ विधानसभा चुनाव मैं कुछ इस तरह मिलेगा। भाजपा के हिंदुत्व की लहर को अहिंदू आदिवासी ही रोक सकता है। जनजातियों के लिए आरक्षित विधानसभा सीटों में हिंदू और अहिंदू आदिवासी का जनगणना 2021 के पूर्व सर्वे कर लिया जाए। यह सर्वे विधानसभा चुनाव २०१८ के पूर्व कर लिया जाए तो और भी उत्तम है, कारण की हिंदू आदिवासी खुलकर भाजपा को वोट देगा। अहिंदू आदिवासी ,गोन्डवाना का सहयोगी होगा। आरक्षित सीटों में अपने आप को अहिंदू मानने वाला आदिवासी यदि एकता दिखाता है, तो अंबेडकरवादी अनुसूचित जाति गोन्डवाना को सहयोग करेगा तथा गैर अंबेडकरवादी अनुसूचित जाति ,कांग्रेस या भाजपा को मदद करेगा । इसी तरह महात्मा फुले, साहूजी महाराज, अंबेडकर की विचारधारा को मानने वाला पिछड़ा वर्ग इन क्षेत्रों में गोन्डवाना को वोट करेगा परंतु महात्मा फुले, साहूजी महाराज अंबेडकर की विचारधारा को नहीं समझने वाला पिछड़ा वर्ग भाजपा, कांग्रेस को वोट करेगा। देश का अल्पसंख्

"लोकतंत्र व्यवस्था वाले देश में हैं तो सवाल उठाना पडेगा ।"

"लोकतंत्र व्यवस्था वाले देश में हैं तो सवाल उठाना पडेगा ।"  भारत देश लोकतांत्रिक व्यवस्था से देश का संचालन होता है । इस व्यवस्था में सबसे बडी भूमिका चैाथे स्तंभ मीडिया की होती है । यही कारण है कि इस लोकतंत्र में जनता और सत्ताधारी पार्टी के बीच माध्यम का काम मीडिया का होता है । जिसके लिये बकायदा केंद्र में सूचना प्रसारण तथा राज्यों में जनसंपर्क विभाग की स्थापना है । इनका दायित्व सरकार की योजनाओं को जनता तक जानकारी के रूप में पहुंचाना तथा जनता के दुख तकलीफ को शासन तक हूबहू अर्थ ात वास्तविक बात को सत्ताधारी तक पहुंचाने की जिम्मेदारी है । इसके बावजूद सरकारी तंत्र ने मीडिया के प्रायवेट एजेंसी के लिये भी निश्चित बजट बनाती है । उसके लिये सरकारी खजाने से आम जनता का धन खर्च करने की व्यवस्था बनाई गई है ताकि सरकारी तंत्र से पूरी जानकारी ना मिले तो । विज्ञापन दृष्य और श्रव्य के माध्यम से जनता तक पहुचाई जा सके । परन्तु वर्तमान समय में शासकीय मीडिया के साथ साथ प्रायवेट मीडिया भी आम जनता की आवाज बनने की बजाय सत्ताधारी पार्टी के विचारधारा का अगुवा बनकर काम कर रहा है । भले ही आम जनता को किसी

"सुख दुख के खातिर मिलकर एक आशियां बनालें "

साथ साथ चलने की आदत को हम बना लें । बिखरे हुए मोतीयों की माला तो हम बनालें ।। खुदगर्ज होके तुम भी कितनी देर चल सको ।  सुख दुख के खातिर मिलकर एक आशियां बनालें ।। मूलवासी आदिवासी और भी हैं साथी । जीतलो सबका मन कोई ना रहे बाकी ।। विश्वास से चलता था राज मेरे गोंडवानो का । आओ इस गोंडवाना को आज फिर से हम सजालें ।। देश भी वही है वही लोग हैं अब तक । मिटटी का रंग बदला ना पानी का आज तक ।। तब हमारे सोचने का ढंग क्यों बदला । एक हैं तब एकता की छाप तो दिख्खे । गोंडवाना के मूलनिवासियों की एक आवाज तो निकले ।। फिर से ये सोने की चिडिया बन सके भारत । बस इसके लिये अपना अपना फर्ज निभा लें ।। आओ मिलके चलने की आदत को बना लें । बिखरे हुए मोती की हम माला बना लें ।।-gsmarkam

"अभी तक भारतीय जनमानस का माईंड सेट नहीं है"

"अभी तक भारतीय जनमानस का माईंड सेट नहीं है" अभी तक भारतीय जनमानस का माईंड सेट नहीं है । वह कहीं भी कभी भी किसी से भी प्रभावित हो जाता है । इसका कारण भी है कि हिन्दुत्व में हर विषय को भले ही वह राजनीति हो अर्थनीति हो शिक्षा ,चिकित्सा आदि को भगवान, ईश्वर ,स्वर्ग नरक से जोड देता है । इसलिये जनमानस उदासीन रहता है, जिसे कभी भी कहीं भी मोडा जा सकता है । उदाहरण के लिये यह कि विज्ञान का मास्टर कक्षा में आकर सूर्य की व्याख्या गर्म गोले के रूप में लरखों डिग्री तापमान बताकर करता है वहीं उसी कक्षा के अगले पीरियड में हिन्दी का मास्टर आता है वह कहता है कि हनुमान ने बचपन में खेलते खेलते सूरज को अपने मुंह से निगल लिया था । दोनों ही शिक्षक है छात्रों को अपने गुरू की बात पर विश्वास करना ही है । परन्तु वह छात्र जब घर आता है अपने मां बाप से पूछता है कि आज मेरी इस तरह की पढाई हुई आप क्या कहते हैं । चूंकि बाप का माईंड भी सेट नहीं है इसलिये खीझकर कह देता है तुझे पास होने से मतलब है हिन्दी का प्रश्न पत्र आये तो हनुमान वाली बात लिख देना । विज्ञान के प्रश्न पत्र में विज्ञान के मास्टर ने जो बताया है

"जनजातीय आरक्षण का आधार उसकी संस्कृति संस्कार और रूढी परंपरायें है ।"

"जनजातीय आरक्षण का आधार उसकी संस्कृति संस्कार और रूढी परंपरायें है ।" आरक्षण के संबंध में सदैव ये बात हवा मैं तैरती रही कि आरक्षण को आर्थिक आधार पर कर देना चाहिये । इस पर आरक्षित वर्ग के कुछ सिरफिरे लोग भी बिना जाने समझे अन्यों के साथ हां में हां मिलाने में अपने आप को प्रगतिशील बताने से नहीं चूकते हैं । धर्मांतरित आदिवासी के आरक्षण पर जिस तरह के सवाल उठाये जा रहे हैं एक तरह से आदिवासियों में विभेद पैदा करने का प्रयास है । आज से लगभग 4 वर्ष पूर्व मैने इसाई संगठनों के कुछ जिम्मेदार व्यक्तियों से इस विषय में बात की थी तो उन्होने बताया कि समय और परिस्थितियों के कारण हम धर्मांतरित हुए हैं वैवाहिक कार्यकृम को छोड दिया जाय तो हमारे लोग धर्मांतरण के बावजूद आदिवासी संस्कृति के बहुत से हिस्से को लेकर लगातार व्यवहार में हैं । और आगे उनका कहना था कि यदि कोई संवैधानिक अडचन आने लगेगी तो हमें आपने मूल धर्म संस्कृति संस्कारों में आने से कोई परहेज नहीं आखिर हमारा खून भी तो आदिवासी का ही है । झारखण्ड में जिस तरह से आदिवासी के बौद्धिक वर्ग इसाई आदिवासी और सरना धर्मावलंबियों के बीच जल जंगल जमी

हमें गोंडवाना आंदोलन पर गर्व होना चाहिये ।"

हमें गोंडवाना आंदोलन पर गर्व होना चाहिये ।" कुछ लोग कहते हैं कि आप गोंडवाना समग्र क्रॉति आंदोलन की बात करते हैं,इस गोंडवाना आंदोलन से समाज का क्या भला हो गया ? और भी अनेक सवाल गोंडवाना आंदोलन से जुडे लोगों से की जाती हैं । उन्हें जवाब देना आवश्यक हो जाता है । १-गोंडवाना आंदोलन ने दुनि़या को प्रकृतिवादी विचारधारा से परिचय कराया । २-गोंडवाना आंदोलन ने आपकी पहचान को स्थापित कराने वाले आवश्यक तत्वों के महत्व को समझाया । ३-गोंडवाना आंदोलन ने आपको प्रकृति शक्ति पडापेन का प्रतीक चि न्ह सल्लॉ गॉगरा और गोंडवाना का राजचिन्ह दिया । ४-गोंडवाना आंदोलन ने सप्तरंगी ध्वजा दिया । ५- गोंडवाना आंदोलन ने आपको अपने साहित्य ओर इतिहास को खोजकर दिया ।आपके महापुरूष, शहीदऔर वीरॉगनाओं के दुर्लभ चित्रों आकृतियों का संकलन कर दुनिया के सामने लाकर दिया । ६-गोंडवाना आंदोलन ने आपको भाषा,धर्म, संस्कृति की आवश्यकता के महत्व को समझाया । ७-गोंडवाना आंदोलन ने आपके अस्तित्व खोते, लोकगीत गायन वादन को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया है । ८-गोंडवाना आंदोलन ने विचारधारा को प्रवाहित होने के लिये आवष्यक प्रत्येक तत्त्व क

"आजादी आपके दरवाजे पर दस्तक दे रही है ।"

"आजादी आपके दरवाजे पर दस्तक दे रही है ।" ये धरती हमारी है, इसके बाद हम सबकी है । इससे केवल जनहित के नाम पर हमें बेदखल करना सत्ताधारियों की नाइंसाफी है । आखिर जनहित क्या है ? बहुसंख्यक हित या चन्द पूंजीपतियों ,कार्पोरेट घरानों का हित । हमें इनके विरूद्ध खडा होना है । जमीन पर रहने बसने,उससे जीविका चलाने का शास्वत और नैसर्गिक अधिकार हम सबका है । भारत का संविधान भी यही कहता है । फिर हमारे ही बीच के सत्ताधारियों के चंद चमचों और गुलामों की बात क्यों मानें, उनको अपना बहुमूल्य मत क् यों दें । बहुसंख्यक वर्ग को कम से कम अब तक इतनी सद्बुद्धि तो आ ही जाना चाहिये । आप सोचते होंगे कि जिनकी सत्ता है उनके साथ सैनिक है, साधन है ! हम उनका मुकाबला कैसे कर पायेंगे ? अरे १९४७ के पहले का इतिहास पलट कर देख लो अंग्रेज सत्ताधारियों के साथ क्या हुआ,वे हमारा देश छोडने को मजबूर कैसे हो गये । याद करो जब सेना में बगावत हो गई,जनता ने असहयोग आंदोलन छेड दिया । स्थानीय राजाओं ने अंग्रेजों के विरूद्ध संग्राम छेड दिया । अल्पसंख्यक अंग्रेजों को देश छोडकर भागना पडा । लगभग सौ साल के संघर्ष के बाद अंग्रेजी सत्ता

"मप्र में गैर भाजपा गैर कांग्रेस की सरकार बनाने की आवश्यकता है ।"

"मप्र में गैर भाजपा गैर कांग्रेस की सरकार बनाने की आवश्यकता है ।"  प्रदेश में मूलनिवासियों में राजनीतिक समझ की कमी के कारण लगातार पक्ष और विपक्ष में सदैव कांगे्रस और भाजपा ही जमे हुए हैं । जो कि प्रदेश में तीसरे विकल्प को तैयार नहीं होने देते । वहीं जो दल मप्र में तीसरा विकल्प बन या बना सकते हैं एैसे दल कहीं ना कहीं सत्ताधारी या विपक्ष के झांसे में आकर छोटे मोटे आश्वासन से संतुष्ट होकर अपने आपको कमतर आंक लेते हैं । इन तीसरे विकल्प बन सकने वाले दलों को आत्म मंथन करना चाहिये कि  क्या मप्र का भविष्य इसी तरह मनुवादी दलों के गिरफत में रहकर मूलविासियों के राजनैतिक आकांक्षाओं का दमन करता रहेगा । 2018 का चुनाव मप्र में तीसरी ताकत को स्थापित कर सकता है । वशर्ते स्थानीय दल आपस में सामंजस्य बनाकर कांग्रेस भाजपा मुक्त मप्र बनाने की ठान लें । गोंगपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष हीरासिंह मरकाम जी ने इस संबंध में खुला ऐलान कर दिया है कि मप्र में भाजपा कांग्रेस मुक्त तीसरे विकल्प बनाने के लिये गोंगपा सहित प्रदेश के सभी दल एकजुट हों । गोंडवाना के दरवाजे इसके लिये सदैव खुले हैं । गोंडवाना आंदोलन से ज

"राजनीति में गुलामों की नई पौध की पहचान जरूरी है ।"

"राजनीति में गुलामों की नई पौध की पहचान जरूरी है ।" कुछ आदिवासी युवा चेहरे गुलामों की गुलामी में दिखाई देते हैं । गुलामी में जी रहे बूढे अपनी ही टिकिट की जुगाड में दिखाई देते हैं । सुनो गोंडवाना के आदिवासी युवा । जिसने अपनी उम्र गुजार दी मनुवादियों के तलुवे चांटते । उनसे उम्मीद कर रहे हो अपने भले की । हां ये हो सकता है कि तुम भी गुलाम हो जाओ अपने समाज का हित छोड खुद के भले का हो जाओ । कभी ना कभी नजरे इनायत मालिको की हो जाये । जिसके पीछे खडे हो उसका काम हो जाये । तब तुम्हारे भाग्य का छींका कहीं से टूटेगा । मालिक को गुलामों का बना गुलाम दीखेगा । गुलामी की तपस्या का परिणाम मिल जाये । कहीं विधायकी का टिकिट तुम्हें मिल जाये । फिर भी सम्मान के भूखे बने रहोगे तुम । समाज का सम्मान पा सकोगे ना तुम । जैसे गुलामों नेताओं की आज जितनी कीमत है । उसी क्रमांक में ही जोड दिये जाओगे तुम ।

"संस्कार"

"संस्कार" गोंडवाना भूमि का आदिवासी, गोंडियन संस्कृति के संस्कारों से पैदा हुआ कोई भी व्यक्ति , समाज सेवक या जनप्रतिनिधि किसी भी परिस्थिति में अपने मूल संस्कारों से हटकर क्रियाकलाप नहीं कर सकता । यदि कुछ पद या ओहदा पाकर मूल संस्कार को किनारे कर अलग से क्रियाकलाप करता है ,तो समझ लें उसके संस्कारों को गृहण कराने में उसके मार्गदर्शक की कहीं भूल रही होगी । या एैसा व्यक्ति लोभ लालच या विषम परिथितियों का शिकार होकर परिथितियों से समझौता कर लिया होता है ।-gsmarkam

२४ जून २०१८ को पता चलेगा कि आदिवासी गोंगपा के साथ हैं या भाजपा ,कॉग्रेस के साथ ।

part-1 "सांस्कृतिक युद्ध का शंखनाद हो चुका है"  आरएसएस के सांस्कृतिक विजय अभियान को केवल आदिवासी संस्कृति रोक सकती है । भाषा का मानकीकरण, धर्म कोड आंदोलन, आदिवासी संस्कृति का प्रतीक पत्थलगढी आंदोलन, लगातार जारी रहे ।-gsmarkam part-2 २४ जून २०१८ को पता चलेगा कि आदिवासी गोंगपा के साथ हैं या भाजपा ,कॉग्रेस के साथ । वैसे तो महारानी दुर्गावति का बलिदान दिवस देश व प्रदेश के हर हिस्से में सामाजिक राजनीतक संगठनों के माध्यम से मनाया जाता है । विभिन्न विचारधारा वाले सामाजिक राजनीतक संगठन भी आयोजन करते हैं ।किन्तु अब यहॉ उन संगठनों के लिये परीक्छा की घडी है जो कि बात गोंडवाना के आदिवासी विचारधारा की करते हैं पर आदिवासी विरोधी विचारधारा के राजनीतिक दल या उनके संगठनों को प्रत्यक्छ या परोक्छ रूप से सहयोग करते है ं । अर्थात समाज की ताकत को विभाजित करने का प्रयास करते हैं । गोडवाना का राजनीतिक दल गोंडवाना की विचारधारा का सीधा सीधा वाहक है । जो कि सत्ता में भागीदार बनकर या संसद, विधान सभा में पहुंच कर गोंडवाना की विचारधारा के मूल तत्व भाषा,धर्म , संस्कृति की पैरवी के

"पत्थल गढी देश के प्रत्येक गांव की अपनी सीमा का प्रतीक है । ग्राम सरकार की सरहद है ।"

"पत्थल गढी देश के प्रत्येक गांव की अपनी सीमा का प्रतीक है । ग्राम सरकार की सरहद है ।"  पांचवीं छठीं अनुसूचि के आंदोलन ने आदिवासियों में संवैधानिक चेतना पैदा की इस चेतना का व्यवहारिक रूप पत्थलगढी के रूप में दिखाई देता है । पत्थल गढी केवल आदिवासी क्षेत्रों में नहीं वरन प्रत्येक ग्राम में होना चाहिये । क्या ग्राम अपनी मिल्कियत की सुरक्षा के लिये स्थानीय नियम नहीं बना सकता । जरूर बना सकता है । उसे अपनी सीमा में होने वाले प्रत्येक हलचल की जानकारी होना चाहिये ताकि वह उसका प्रबंधन  कर सके । ग्राम की सुख शांति सुरक्षा आदि की जिम्मेदारी ग्राम के मुखिया और उसके सहयोगियो की है । तब वह किसी बाहरी प्रवेश को नियंत्रित क्यों नहीं करेगा आखिर वह ग्राम की सरकार है । प्रदेश की सरकार की बिना अनुमति के प्रधानमंत्री का राज्य में प्रवेश करना वर्जित होता (केंद्र शासित प्रदेशों को छोडकर है।) तब किसी भी ग्राम सरकार की अनुमति के बिना ग्राम की सीमा में प्रवेश अवैधानिक है । फिर तो ये अधिसूचित क्षेत्र जहां संविधान ने आदिवासियों को पूर्ण स्वायत्ता का विशेष अधिकार दिया हुआ है । इसका उल्लंघन भारतीय संविधान

" गोंडवाना के आदिवासी को एकपच्छीय सोच विकसित करने की आवश्यकता है ।"

" गोंडवाना के आदिवासी को एकपच्छीय सोच विकसित करने की आवश्यकता है ।" मुस्लिम,इसाई सिख समुदाय काफी हद तक समुदाय हित में एक पक्छ में खडा दिख जाता है , वहीं हिन्दूओं का अगुवा बामन भी कथित हिन्दुओं की अपेक्छा सेट माईन्ड है । जिसके कारण अपने समुदाय के सार्वजनिक हितों की रक्छा करने सफल रहता है । परन्तु आदिवासी समुदाय अभी तक अपने किसी सार्वजनिक हित के लिये एक साथ खडा नजर नहीं आता । यही कारण है कि इसके महत्वपूर्ण अधिकार भी उसकी ऑखों के सामने से छीन लिये जाते हैं ,पर समुदाय की ओर से क भी सामूहिक प्रतिक्रिया नहीं होती । कहीं कहीं छुट पुट प्रतिक्रिया हो भी जाती है , पर वह व्यापक नहीं बन पाती । इसका प्रमुख कारण यह समझ में आता है कि समुदाय को कम से कम , मूल धार्मिक बिन्दु पर एकपक्छीय सोच विकसित कर लेना चाहिये भले ही समुदाय कितनी ही जाति ,उपजाति और समूहों में बंटा हो । जैसे देश में अन्य धार्मिक समूहों ने विकसित कर लिया है । आदिवासी समुदाय को एकपक्छीय सोच विकसित करने के लिये धर्म को आधार बनाना होगा । इस दिशा में किया गया सरना और कोयापुनेम समूह का छेत्रीय प्रयास परिणाम मूलक दिखाई देता है । प

"सॉझा चूल्हा"

part-1 "सॉझा चूल्हा" दर्द गर एक है तो दर्द को साझा कर लें । साथ परेशानियों से लडने का वादा कर लें ।। मैं भी संविधान के हर शब्द का दीवाना हूं । आओ मिलकर इसे बचाने का संकल्प कर लें । अपनी भाषा का धर्म संस्कृति का हिमायती हूं । आओ मिलकर इसे बचाने की हिमायत कर लें ।। हमारी हिस्सेदारी को ये भीख कहते हैं । साथ मिलकर इसे बचाने की तैयारी कर लें ।। अमन और चैन भी उडता नजर आता है हमें । आओ इस चमन की मिलकर रखवाली कर लें ।। दर्द हमको दिया जिसने उसी से तकलीफ है तुमको । वक्त अच्छा है मौका भी है चलो इंतकाम ले लें । वो तो कहता है, मिटा दूंगा एसटी/एससी की हस्ती । जरा इक बार हम आपस में गलबहियां तो ले लें ।- दर्द गर एक है तो दर्द को साझा कर लें । साथ परेशानियों से लडने का वादा कर लें ।।-gsmarkam part-2 "तानाशाही राज " बढे हैं हौसले दुश्मन के हमने ही बढाया है । उन्हीं को ताज देकर अपने ही सिर पर बिठाया है । जर जोरू जमीन की दुश्मनी तो पुरानी है दोस्तों । पर इंसान को इस तरहा किसी ने नहीं जलाया है ।  ये तो दहसत फैलाकर राज करने का संघी एजेंडा है । बना हथियार अपनों