Skip to main content

Posts

Showing posts from 2016

"गोंडवाना आन्दोलन की महत्वपूर्ण उपलब्धि अब तक"

गोंडवाना आन्दोलन के लम्बे संघर्श ने राष्टीय स्तर पर महत्वपूर्ण पहचान स्थापित की है । जिसे सारे देश में सभी गोंडियन मूलनिवासी आदिवासी तो नहीं, पर कम से कम गोंड और उसकी समस्त उपजातियां अंगीकार कर चुकी हैं । इस पहचान को व्यक्तिगत राजनीति सरोकारों से उपर उठकर सम्मान मिल रहा है । यह आन्दोलन की आरंभिक सफलता का दयोतक है । यह पहचान अमर रहे ! 1.सल्ला गांगरा पडापेन शक्ति प्रतीक एवं कोया पुनेम 2.गुरू पहांदी पारी कुपार लिंगो, जंगो दायी 3.सप ्त रंगी पुनेम ध्वजा 4.पीला साफा 5.जय सेवा जय जोहार जय पडापेन जय गोंडवाना का अभिवादन 6.गज सोडुम राज चिन्ह 7. गोंडवाना लेण्ड मानचित्र 8.राजा रावेन सहित चुनिंदा महान इतिहास पुरूष 9.चुनिंदा स्वतंत्रता आन्दोलन के अमर शहीद एवं वीरांगनायें 10.प्रकृतिवादी विचारधारा का प्रवाह जिसमें पुनेमी अनुष्ठान, नृत्य, गायन वादन, कला, चित्रकला स्तुति, अराधना आदि 11. गोंडियन विचारधारा का साहित्य काव्य संग्रह आदि ( गुलजार सिंह मरकाम)

"सियासत और सियासती"

"सियासत और सियासती" हुकूमत क्या नहीं करती जरा एक बानगी देखो कथित नक्सलवादी बने स्कूली बच्चों को देखो । जहां जिन्दों को कागजो में मार देते हैं । मरों के नाम से भी कई कारोबार चलते हैं । सियासत ठीक है सियासत भी जरूरी है । पर सियासी लोग ही सब उल्टे सीधे काम करते हैं । जेल से लोग भागे थे या भगाये गये होंगे प्रहरी भी शायद सूली पर चढाये गये होंगे फर्क पडता नहीं की ये मरा या वो मरा होगा । सियासत के लिये ये खेल से बढकर नहीं होता कोई चाहेगा कि देश में हो बेवजह दंगा सियासी हमाम में झांको तो हर कोई दिखे नंगा ।

एक प्रतिक्रिया - "हमें धर्म सन्सक्रति के पचड़े में नहीं पडना चाहिए " हमे सन्वैधानिक जानकारी से रोजी मिलेगी धर्म हमे रोटी नहीं देने वाला"

"एक फेसबुक मित्र ने कहा कि हमें धर्म सन्सक्रति के पचड़े में नहीं पडना चाहिए " हमे सन्वैधानिक जानकारी से रोजी मिलेगी धर्म हमे रोटी नहीं देने वाला आदि आदि ----- मित्र आपकी बात सही है कि हमें सन्वैधानिक जानकारी हो। इतना पढ लिखकर भी इतने दिनों तक इस जानकारी के प्रति आकर्षण क्यों पैदा नहीं हुआ ? अब क्यों हो रहा है, इस बात को गहराई से समझना होगा अन्यथा सन्विधान में तो सबसे अधिक आदिवासीयो के हित की बात लिखी गयी है पर हासिल करने में हम पीछे क्यों ? इसका एक ही कारण समझ में आता है कि किसी चीज को हासिल करने वाले समुदाय में आत्मविश्वास , हिम्मत का होना आवश्यक है । सन्गठित होना आवश्यक है । और ये केवल पढ लिख लेने से नहीं आता, इसके लिए समुदाय को अपनी जड़ों को सीचना पडता है, समाज को उसकी भाषा धर्म, सन्सक्रति से कट्टर बनाना होता है तभी उसे अपने समुदाय के हित अहित का आभास होता है अन्यथा व्यक्ति पढ लिखकर व्यक्तिगत लाभ लेकर एवं स्वार्थ में समुदाय को भूल जाता है। कारण कि उसे अपनी जड का एहसास नहीं हो पाता उसमे सामुदायिक सोच विकसित नहीं हो पाती , हम उन्हें कोसते हैं। कभी आपने सोचा है कि हमसे अधिक

"समाज को कविता और कवि सम्मेलनों के माध्यम से भी जन चेतना पैदा करने की अनिवार्य आवश्यकता है । "

"समाज को कविता और कवि सम्मेलनों के माध्यम से भी जन चेतना पैदा करने की अनिवार्य आवश्यकता है । " गोंडवानं समग्र क्रांति आन्दोलन अनेक विधाओं में किसी तरह शनै: शनै: आगे बढ रहा है । एैसे विचार प्रवाह में एक विधा जो पढे लिखे वर्ग को प्रभावित कर सकती है, समाज का आईना अपनी विधा के माध्यम से ,उन्हें अपनी बौद्धिक क्षमता का विकास करने का अवसर दे सकती है । वह विघा है , काव्य पाठ या कवि सम्मेलन । किसी ने कहा भी है "जहां रवि ना पहुचे वहां कवि पहुचता है ।" उसकी अपनी दृष्टि होती है जिसे वह अ पनी काव्य विधा के माध्यम से जन जन तक रस भरे अंदाज से प्रेम से पहुचा सकता है । होने को तो हमारे बीच अनेक स्थानीय स्तर पर लिखने वाले बहुत से कवि हैं पर आन्दोलन की दृघ्टि से अपनी बात अपने लहजे में पहुचाने वालों की काफी कमी महशूस की जा रही है । इसलिये हमारे समाज के जितने भी कवी हैं उन्हें एक दूसरे से संलग्न हो जाना चाहिए !जो जिम्मदारी उठा सकते हैं एैसे कुछ कवि हृदय हैं, जो गोंडवाना आन्दोलन के लिये कवियों का एक मंच स्थापित कर सकते हैं जिनको समुदाय आमंत्रित कर सके । पहले पहल छोटे स्तर पर ही सही लेकि

"राजनीति या नीति का राज"

"राजनीति या नीति का राज" सत्ताधारी राजनीतिक दलों की नीतियों के आंतरिक राज की जानकारी आम जनता को नहीं होने के कारण आतंकवाद, नक्सलवाद और भृष्टाचार, बलात्कार पनपता है या पनपाया जाता है ।  सभी राजनीतिक दलों की राजनीतिक घोषणा पत्र देशहित और जनहित की होती है । एैसा प्रचारित भी किया जाता है । फिर अव्यवस्था क्यों । कहीं कोई राज तो नहीं छुपाकर रखते हैं राजनीतिक दल ।  इस राजनीति को दूसरे तरीके से समझा जाय तब राजनीतिक दलों की असलियत का पता चलता है ।  1-राजनीति यानि देश पर अपने विचारों  के माध्यम से संविधान और सत्ता चलाना 2-अपनी नीतियों के अंदर छुपे राज को अमल में लाना, जिस राज को केवल दल का "नीति नियंता" ही समझता है । ( दलों की राजनीतिक घोषणा पत्र को नहीं ,दलों की नीतियों के अंदर छुपे राज को समझना जानना राजनीति समझ है । )-gsmarkam

दिवारी के बाद गोन्डवाना की सान्क्रतिक परम्परा में "मडई"

दिवारी के बाद गोन्डवाना की सान्क्रतिक परम्परा में "मडई" दिवारी के बाद गोन्डवाना की सान्क्रतिक परम्परा में "मडई" का आयोजन विशेष महत्व रखता है। दिवारी से लगातार ग्यारह तक चलने वाले विभिन्न एवं विशेष ग्रामो में जहाँ किसी परिवार में "गुरुवा बाबा" पित्र पुरुष शक्ति या लिन्गो की स्थापना की जाती है उस ग्राम मे विशेष पर्व एव अनुष्ठान किया जाता है । मैदान के बीचो बीच दिवारी के दिन से लगातार अपना योगदान देने वाले देवार या भुमका के द्वारा गुरुवा बाबा का अस्थायी ठाना बनाया जाता है जिस में मोरपन्ख से सजा गुरुवा के नाम की बान्स से सजा ढाल या कही गुरुवा चन्डी का प्रतीक गडाकर आसपास घेरे में आड के लिये कपड़े का घेरा बना दिया जाता है। इस मडई में आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में व्यक्ति विशेष के परिवार में दिवारी के दिन से स्थापित गान्गो या जिसे चन्डी दायी भी कहा जाता है , कही जन्गो दायी भी कहा जाता , की स्थापना जो मोर पन्ख से सजे बान्स मे की जाती है । इन्हे मडई स्थल पर कोपा/अहीर नाच मन्डली एव वहा के ग्रामवासियो के साथ जिसे "पहुवा" कहा जाता है , आते है और एक निश्चित

मध्यप्रदेश स्थापना दिवस के अवसर पर विशेष सन्देश:-

मध्यप्रदेश स्थापना दिवस के अवसर पर विशेष सन्देश:- 1 "१ नवम्बर गोन्डवाना के लिये काला दिवस" १ नवंबर १९५६ गोन्डवाना की अस्मिता के साथ खिलवाड के लिये काला दिवस के रूप में सदैव जाना जायेगा। इसी दिन गोन्डवाना के अस्तित्व को मिटाने का शडयन्त्र पूर्वक एलान किया गया था। राज्यों के पुनर्गठन के समय देश के भाषावार प्रान्तों के निर्माण करते समय लगभग सभी राज्यों के भाषा को आधार मानकर मापदंड तय किये गये, लेकिन मध्य प्रांत (सीपी & बरार) राजधानी नागपुर , जिसमें पूर्व गोन्डवाना राज्य का सम्पू र्ण गोन्डी भाषिक क्षेत्र आता था उसके टुकड़े टुकड़े कर गोन्डवाना के गोन्डी भाषिको के लिये गोन्डवाना राज्य नहीं बनाकर उन्हें महाराष्ट्र, आन्ध्रा , उडीसा और मध्यप्रदेश के नाम पर मराठी, तेलुगु , उडिया , हिन्दी आदि बोलने को मजबूर करके भाषा एवं सांस्कृतिक पहचान को मिटाने का घ्रणित कार्य किया गया। इस शडयन्त्र को गोन्डवाना के लोग कभी नहीं भूलेगे । गोन्डवाना समग्र क्रांति आन्दोलन की प्रमुख धारा " भाषा,धर्म,और सन्स्क्रति" है । इसे मजबूत किये बिना हम किसी भी लक्ष्य को हाशिल नही कर पायेगे । गोन्डवाना

"महामहिम राष्ट्रपति महोदय को ईमेल से भेजा गया पत्र ।"

                                                      (अनुनय, विनय, निवेदन, अपील) प्रति  महामहिम राष्ट्रपति महोदय  राष्टपति भवन,भारत सरकार नई दिल्ली विषय :- राष्ट्रीय सकल आय का मेरे हिस्से की राशि मेरी भाषा और धर्म के विकास के लिये लगाई जाय अन्यथा मेरे हिस्से की उस मद की राशि मेरे खाते में जमा कर दिया जाय ।  मैं जानता हूं कि एैसा कहने पर आप मुझे अलगाववादी कह सकते हैं । पागल और दिवालिया घोषित कर सकते हैं । परन्तु ये मेरे अंदर का आदिवासी इंसान बोल रहा है । जब मैं देश के विकास के लिये श्रम करता हूं । उपभोक्ता बनकर वस्तुओं की मूल लागत के साथ टेक्स जोडकर अधिक राशि व्यय करता हूं । तुम्हारे कथित विकास नाम के झांसे में आकर अपना खेत खलिहान जंगल नदी पहाड रिस्तेदार नातेदार छोडकर अनचाही जगह पर रहने के लिये भी राजी हो जाता हूं । तब भी आपको इतना ख्याल नहीं कि इसकी मां रूपी भाशा को सम्मान दिया जाय या इसके पिता रूपी धर्म को राजाश्रय दिया जाय । आपको मालूम है कि आदिवासी को अपनी संस्कृति से अधिक प्यार है तब इसकी संस्कृति को हूबहू बचाये रखकर इनके विकास के लिये कोई योजना क्यों नहीं बनाते । आपकी विकास की

"शोसल मीडिया और आदिवासी"

"शोसल मीडिया और आदिवासी"  जो समुदाय अखबारों से दूर रहा , रेडियो टीवी तक उसकी उसकी पहुच से कोसों दूर बने रहे ! तब वह अपनी पीड़ा कैसे ,कहा व्यक्त करता ? उसे भी तो सुनाना था अपने जन्गल की कहानी, उसे अपने गौरवशाली अतीत, अपने पुरखो की वीरता का बयान भी तो करना था ! नहीं कर पाया, उसकी जुबानी इतिहास अलिखित तथा परम्परागत, अनवरत चल रही जमीनी, व्यवहारिक क्रियाकलापो को कौन लिखता ? औरों तक कौन पहुंचाता ? औरों ने इनके बारे में लिखा भी , अन्य माध्यमों से इसे पहुंचाने का प्रयास भी क िया परन्तु उसके प्रस्तुत करने के ढन्ग ने , परोसने के तरीके ने ! आदिवासी के गौरवपूर्ण इतिहास, परम्परा, आलिखित साहित्य को पिछडापन का पर्याय बना दिया । नैसर्गिक आदिवासी जीवन पद्धति जो देश की मुख्यधारा बनकर राष्ट्र निर्माण के लिये देशभक्तो और श्रमवीरो का उत्पादन करती , इसकी सही प्रस्तुति / सम्प्रेषण के अभाव से देश वन्चित हो गया। आज जिसे राष्ट्र की मुख्यधारा का नाम दिया जाता है यह जबरदस्ती के प्रस्तुति / सम्प्रेषण का परिणाम ही तो है। इसी जबरदस्ती ने दुनिया में हमारे राष्ट्र की साख को हर क्षेत्र में गिराने का काम किया

"सांस्कृतिक युद्ध की पहली विजय"

"सांस्कृतिक युद्ध की पहली विजय" "आज भले ही सत्ता के संरक्षण में, सत्ता के प्रभाव में असली रावेन की विचारधारा के प्रतीक रूप रावण के पुतले जलाये गये पर यह सांस्कृतिक युद्ध की पहली शुरूआत है, जब सारे देश में किसी ने "कागज के राम जलाये" किसी ने "रावेन की पूजा की" तो किसी नें अंतर्मन से "राम के कृत्य" का विरोध किया । पर सारे देश में आदिवासियों और अन्य मूल संस्कृति के धारकों के मन से "राम निकल गये" ये सांस्कृतिक युद्ध के शुरूआत की पहली विजय है । इसी तरह लगातार वैचारिक और व्यवहारिक धरातल पर हमारे जाबांज सैनिक आगे बढते रहे तो "असत्य पर सत्य की विजय" सुनिश्चित है । मनुवाद पर मानवतावाद, बामनवाद पर भुमकावाद (श्रमणवाद) आर्यों पर अनार्यों की विजय सुनश्चित है ।"- gulzar singh markam

"विजित और विजेता भाव का प्रतीक है रामायण ।"

"विजित और विजेता भाव का प्रतीक है रामायण ।" हर विजेता विजित राष्ट्र पर सत्ता स्थापित करने के बाद उस राष्ट्र की प्रमुख पहचान को मिटाकर अपनी पहचान स्थापित करता है । उसका पहला शिकार स्थापत्य या एैतिहासिक धरोहर होता है । नये निर्माण के साथ व्यवस्था बदलने के लिये अपने अनुकूल भूगोल की सीमाऐं बदलता है । शिक्षा और साहित्य को अपनी व्यवस्था का दर्पाण बनाता है । यह सब कर चुकने के बाद सत्ता के प्रभाव जिसमें भय और सहिष्णुता दोनो के बल पर सांस्कृतिक विजय अभियान की ओर अग्रसर होता है । चूं कि संस्कृति में एकदम से परिवर्तन लाना किसी भी विजेता के लिये संभव नहीं । कारण कि यह समाज की आंतरिक आस्था विश्वास और मान्यता रूपी धरोहर हैं । आदि रावेन पेरियोल को उसी नाम और भाव से विस्मृत नहीं किया जा सकता था ।इसलिये उसे प्रतीक रूप काल्पनिक कहानी रामायण की रचना कर मिलते जुलते नाम के पात्र रावण को बुराई का प्रतीक बनाया गया ताकि जनमानस का ध्यान आदिरावेन को भूलकर रावण को बुराई का प्रतीक के रूप में स्थापित हो सके । विजेता सत्ता के प्रभाव का इसी तरह इस्तेमाल करता है । आप भी अवगत हैं कि भरतीय इतिहास की समीक्षा

“टिकिट वितरण समारोह”

“ बहुत विचार कर रहा था कि एक छोटा सा प्रहसन या नाटक लिख दूं पर किन्हीं कारणों से या समयाभाव के कारण ही सही पर लिख नहीं पाया अब उस तरह की चेतना का एहसास सामाजिक पर्यावरण में देखने को मिलने लगा है , तब यह छोटा सा प्रहसन शायद इस बात को हवा देने में अपनी भूमिका अदा कर सकता है । “ प्रस्तुत है ( गुलजार सिंह मरकाम )                                                 “ टिकिट वितरण समारोह ” प्रदेश में आम चुनाव की अधिसूचना जारी होते ही राजनीतिक दलों में अफरा तफरी मची हुई है । टिकिट की जुगाड में लोग नेताओं से मिल रहे हैं कई छोटे बडे नेताओं की इस समय चटक गई है । जत्था का जत्था किसी ना किसी नेता के इर्द गिर्द मडराता नजर आ रहा है ना जाने भैया किसके डपर हाथ रख दें । अनेक सिफाारिशें हो रहीं हैं पेनल बन रहे हैं ना जाने क्या क्या हो रहा है अवर्णनीय है ।                                                  ( टिकिट वितरण समारोह के एक पार्ट आरक्षित वर्ग की सीटो पर प्रहसन का दृष्य ) विकासखण्ड का एक प्रतिष्ठित व्यापारी अपने नौकर से-   क्यों रे बुद्धसिंह चुनाव लडेगा । बुद्धसिंह-    क्या मालिक मालिक