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Showing posts from February, 2020

असली हिंदू को पहचानो

"असली हिंदू को पहचानो" जब मूलनिवासी समूह से धर्मांतरित जैन बौद्ध मुस्लिम सिख ईसाई समुदाय के लोग संविधान में अल्पसंख्यक की श्रेणी में सूचीबद्घ हैं,तब सभी को एक दूसरे के साथ खड़ा दिखना चाहिए। इसी तरह आदिवासी हिंदू नहीं तो वह भी अल्पसंख्यक की श्रेणी में ही गिना जाएगा,इसी तरह अन्य पिछड़ा वर्ग और अनुसूचित जातियों के सजग लोग यह जानते हैं कि वे शूद्र हैं और हिंदू धर्म को नहीं मानते,फिर असली हिन्दू कौन बचता है केवल सवर्ण उसमें भी अन्य सवर्णों को हाशिए में डालकर रखने वाला "शातिर बामन" जिसने देश के 99 प्रतिशत ज्यूडिशरी 85 प्रतिशत प्रशासनिक सेवा और राजनितिक पदो पर आसीन है।यही हिंदू है,यही आर एस एस है। सभी को मिलकर इन्हे ठीक करना होगा।तभी देश अमन और शांति से रह सकता है। (गुलजार सिंह मरकाम राष्ट्रीय संयोजक गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन)
आदिवासी समुदाय को कोंग्रेस पर कड़ी नजर रखना पड़ेगा,कुछ समझ में नहीं आ रहा है ,केवल लालीपाप दिखाने का काम हो रहा है। 275(1) टीएसपी की राशि को भी ट्राइबल के लिए आबंटित नहीं कर रही,छात्रों की छात्रवृत्ति भी दी नहीं गई अप्लीकेशन पोर्टल समय से पूर्व बंद कर दिया गया । रिजर्व क्लास डॉक्टर नहीं मिल रहे इन्हे सामान्य वर्ग से भरे जा रहे हैं ये पद। Caa NRC पर पार्टी के माध्यम से पत्र दिया गया है जबकि अन्य राज्य अपनी विधानसभा से प्रस्ताव पारित किए हुए हैं। वनाधिकर के आवेदन हेतु बना एप भी फेल हो चुका है सब काम ठंडा है। ऐसे में आदिवासी धीरे धीरे परेशानी महसूस करने लगा है। कांग्रेस पर प्रश्चिन्ह लगाने लगा है। सुप्रीकोर्ट ने सर्विस में रिजर्वेशन इन प्रमोशन राज्यो के हवाले कर दिया इस पर तुरंत विधानसभा का सत्र बुलाकर समस्या का निराकरण नहीं किया जाना भी कांग्रेस को बैकफुट में लेे जाने के लिए काफी है। इसलिए कांग्रेस सरकार समय रहते इन विषयों को गंभीरता से नहीं लेगी तो प्रदेश के आदिवासी इन विषयों को लेकर आंदोलन की तैयारी में है। यदि कांग्रेस आदिवासी समुदाय के हित में कुछ करना चाहती है तो स्वेत पत्र जारी कर

संदिग्ध और अविश्वसनीय होता हुआ सुप्रीम कोर्ट ।

"संदिग्ध और अविश्वसनीय होता हुआ सुप्रीम कोर्ट" सुप्रीम कोर्ट के सारे फैसले मूलनिवासियों के विरुद्ध दिये जा रहे हैं, देश के असली मालिक आदिवासी को तो हाशिए में ही रख दिया गया है। अंग्रेजों की लिखी बात सच हो रही है कि "बामन जाति के न्यायधीश से नैसर्गिक न्याय की उम्मीद नहीं की जा सकती, क्यूंकि वह पक्षपाती होता है" आज की तारीख में सुप्रीम कोर्ट में 99 प्रतिशत जज बामन हैं। इसलिए राष्ट्रपति को चाहिए कि वह कालेजियम नियुक्ति सिस्टम को खत्म करे या सुप्रीम कोर्ट को भंग कर नये सिरे से जजों की नियुक्ति करे। अन्यथा सुप्रीम कोर्ट से जनता का विश्वास लगातार उठता जा रहा है। भविष्य में यदि देश में अराजकता पैदा होती है,तो दुनिया में देश की साख गिरेगी।समय रहते इस पर विचार नहीं किया गया तो देश को भीषण संकट से बचाया नहीं जा सकता। भविष्य में आने वाली पीढ़ी हमें माफ नहीं करेगी। (गुलजार सिंह मरकाम राष्ट्रीय संयोजक गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन)

देश के संगठन दंगों के पक्ष में है या विपक्ष में है दंगाइयों के साथ में है या शांतिप्रिय प्रदर्शनकारियों के साथ"

"देश के संगठन दंगों के पक्ष में है या विपक्ष में है दंगाइयों के साथ में है या शांतिप्रिय प्रदर्शनकारियों के साथ" दिल्ली के दंगे की हवा को सारे देश में फैलाना चाहती है आर एस एस और बीजेपी ताकि बिहार जैसे बड़े राज्य में हिंदू-मुस्लिम करके सत्ता हासिल कर सकें। प्रश्न यह उठता है की यह दंगा एनआरसी के पक्षधर और एनआरसी सीसीए के विरुद्ध चल रहा है तो हमें समझ लेना चाहिए की इस दंगे में भाजपा विरुद्ध अन्य सभी दल एवं सीसीए एनआरसी विरोधी पार्टियां और संगठन है जब सारे देश में एनआरसी के विरुद्ध शांतिपूर्ण प्रदर्शन चल रहे हैं तब दंगे की शुरुआत कौन कर सकता है यह दिल्ली के भाजपाई दंगाई नेताओं और उनको सह देने वाले संप्रदायिक पुलिस ही दोषी है इसलिए सारे देश को यह समझ लेना चाहिए की आर एस एस और भाजपा एक तरफ है और इस देश की सारी पार्टियां और संगठन एक तरफ हैं यदि यह संगठन और पार्टियां एकजुटता का परिचय दें तो इस देश से आर एस एस और भाजपा जैसे संगठनों को और उनके अगुआ ओं को हमेशा के लिए समाप्त किया जा सकता है निर्णय देश की शांतिप्रिय जनता को लेना है कि वे एनआरसी एनपीआर के पक्ष में है या उसके विरुद्ध में

व्यक्तिवादी आंदोलन नहीं प्रजातांत्रिक मूल्यों के साथ चले आंलोलन

"कोई भी आंदोलन प्रजातांत्रिक मूल्यों के साथ चले" "व्यक्तिवादी" और "वन मैन शो" वाले संगठन ज्यादा दिन तक नहीं चलते व्यक्तिवादी संगठन अपने इर्द-गिर्द चमचों की भीड़ इकट्ठा करके रखते हैं जो नेतृत्व का हमेशा गुणगान करते रहते हैं भले ही वह नेतृत्व अंदर ही अंदर क्या गुल खिला रहा है इसे अंधभक्त, समर्थक नहीं समझ पाते और इसलिए व्यक्तिवादी संगठन कुछ दूर चल कर फेल हो जाते हैं इस देश को प्रजातांत्रिक शक्ति के बंटवारे के आधार पर चलने वाले संगठनों की आवश्यकता है अन्यथा मनुवाद,ब्राह्मणवाद से निपटना इतना आसान नहीं है ! (गुलजार सिंह मरकाम राष्ट्रीय संयोजक गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन) में सरकार को

आरक्षित वर्ग के गुलाम जनप्रतिनिधि

"बोलना नहीं था पर अस्तित्व बचाने के लिए बोलना मजबूरी है" अपने आकाओं का गुलाम बैतूल सांसद तो उस नकली प्रमाण पत्र धारी पूर्व सांसद श्रीमती धुर्वे से भी बदतर निकला जो आदिवासी अस्तित्व को ही अपने आकाओं के इशारे पर मिटाने को आतुर है। यह मूर्ख गोडियन धार्मिक सांस्कृतिक व्यवस्था में जिस परधान,पठारी उपजाति से आता है ,इसकी प्रथम जिम्मेदारी बनती है कि वह अपनी धार्मिक सांस्कृतिक व्यवस्था को जो हिंदू से प्रथक है मजबूत करें परंतु यह शख्स उल्टा ही संदेश दे रहा है । गोंड समुदाय ने इस उपजाति को अपने धर्म संस्कृति परंपराओं को संरक्षण की जिम्मेदारी दी गई थी,यह उपजाति का व्यक्ति आदिवासियों की गोंड जनजाति की सांस्कृतिक धार्मिक पारंपरिक विरासत को बचाने के बजाय मिटाने का कृत्य कर रहा है जबकि संविधान की पांचवी अनुसूची और पेशा कानून में स्पष्ट उल्लेख है की आदिवासियों की धर्म संस्कृति रुढ़ी परंपराओं का संरक्षण किया जाए यदि इसकी जिम्मेदारी समुदाय के जिन पंडा पुजारी प्रधानों की रही है यदि वे ऐसा नहीं कर रहे हैं तो सामुदाय का नुकसान कर रहे हैं। इस अपराध के लिए इन्हें जनजाति सूची से पृथक किया जाना चाहि

आदिवासी धर्म कोड" (नई दिल्ली जंतर मंतर १८फरवरी २०२०) दिल्ली जंतर मंतर १८फरवरी

"आदिवासी धर्म कोड" (नई दिल्ली जंतर मंतर १८फरवरी २०२०) दिल्ली जंतर मंतर १८फरवरी २०२०) दिल्ली जंतर मंतर १८फरवरी २०२०) संयुक्त राष्ट्र संघ जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्था जब आदिवासी की जीवन पद्धति को सारी दुनिया में संरक्षित करने की बात करती है जिसे घोषित विश्व आदिवासी दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसका कारण है कि इस धरती को पर्यावरण को,मानवता को बचाने का एकमात्र फॉर्मूला आदिवासी की धर्म संस्कृति और उनके आचार विचार जीवन पद्धति में है इस बात को सभी देशों ने मानकर अपने अपने संविधान में इनकी भाषा धर्म संस्कृति को नष्ट ना हो जाए इस आशय से संविधान में समाहित किया है भारत में संविधान की पांचवी और छठी अनुसूची में इसका स्पष्ट उल्लेख भी है । आदिवासी की पृथक पहचान बनी रहे इस बात का पूरा प्रयास भी है, साथ ही हमारे देश में संविधान के अनुच्छेद 25 में धार्मिक स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार भी लिखित है ऐसा होने के बावजूद आदिवासी अपनी पहचान को बनाए रखने का प्रयास कर रहा है तो क्या गलत बात है ! ऐसा लगता है कि जिस सामाजिक धार्मिकता को राष्ट्र की कथित मुख्यधारा बताए जाने का प्रयास किया जा रहा है वह गुमराह

जंतर-मंतर धर्मकोड धरना फरवरी २०२०

"धर्म कोड /कालम और जंतर मंतर पर धरना, प्रदर्शन।" साथियों, आदिवासियों को एक धर्म कोड/कालम मिले इस बाबत दिल्ली के जंतर मंतर मैं दो अलग-अलग संगठनों का धरना और ज्ञापन है इसके कारण लगता है अभी तक किए गए आदिवासियों के धर्म संबंधी एकता के प्रयास असफल दिखाई दे रहे हैं , मेरा मानना है की देश के अलग-अलग भागों में धर्म से संबंधित राष्ट्रीय कोया पुनेम महासंघ १६,१७ फरवरी और राष्ट्रीय इंडिजिनियस धर्म समन्वय समिति १८फरवरी को आयोजन कर रही है ऐसे में अलग-अलग ज्ञापन और कार्यक्रम होने से सरकार पर अलग-अलग संदेश जाने वाला है जिससे हम आदिवासियों का भला नहीं हो सकता ना ही कोड और कॉलम मिलेगा और तो और अन्य का कालम भी हटा दिया जाएगा ऐसी परिस्थितियों में हमें एकता का परिचय देते हुए 16 17 18 फरवरी को एक आंदोलन और एक धरना के रूप में सरकार के सामने प्रस्तुति देकर 1 सूत्रीय ज्ञापन देना होगा अन्यथा एक बार आदिवासी समुदाय संविधान निर्माण के समय अपनी इस विभाजन कारी सोच के कारण बहुत नुकसान में जा चुका है जो इतिहास के पन्ने में काले अध्याय के रूप में अब तक जाना जाता है वह यह है कि संविधान निर्माण के समय राष्ट्री

सामूहिक संकट की घड़ी में सामूहिक संघर्ष जरूरी है

"सामूहिक संकट की घड़ी में सामूहिक संघर्ष जरूरी है" गांधी के चेले पूना पेक्ट का उल्लंघन करते हुए आरक्षण पर लगातार हमला जारी रखें हुए हैं। ऐसे मौके पर जब आरक्षित वर्ग के हमारे अपने कहे जाने वाले जनप्रतिनिधियों खासकर आदिवासी समाज के लोग जब अपना आशियाना उजड़ता देख चुप्पी साध लेते हैं,तो आदिवासी समुदाय का भविष्य अंधकारमय दिखने लगता है। मुझे यह कहने में जरा भी संकोच नहीं कि भला हो संविधान की समझ रखने वाले अनुसूचित जाति, पिछड़े वर्ग के चंद जनप्रतिनिधियों और आंदोलनकारियों की जिनके आंदोलन से आदिवासी समुदाय को संवैधानिक अधिकार हासिल हो रहे हैं ।अन्यथा मानसिक गुलाम तो हो चुके हैं, शारीरिक गुलाम बन जायेंगे लुट पिट कर गुलाम हो जायेंगे या फिर झूठे गौरव, स्वाभिमान का ढिंढोरा पीटते हुए पुनः वन और कंदराओं की शरण लेने को मजबूर होंगे। आरक्षण जैसे मुद्दे पर संसद में केवल कुछ अनुसूचित जाति, पिछड़ा वर्ग एवं कुछ संविधान का सम्मान करने वाले सामान्य श्रेणी के जनप्रतिनिधियों ने पक्ष रखा लेकिन देश की संसद में बैठे 47 जनजाति के जनप्रतिनिधि ,बेहोश लाचार आदिवासी समुदाय की तरह सदन में भी बेहोश दिखाई दिये।

आदिवासी आगे आएगा तभी देश का संविधान बचेगा

"आदिवासी आगे आएगा तभी देश का संविधान बचेगा" पहले आरक्षण में प्रमोशन को रोकने की बात होगी इसके बाद समान नागरिक संहिता की बात होगी "समान नागरिक संहिता" की हवा बनाने के बाद आरक्षण को समाप्त करने की बात होगी यह सब संसद नहीं करेगा । इनडायरेक्ट में सुप्रीम कोर्ट के 99 परसेंट मनुवादी न्यायाधीशों के माध्यम से की जाएगी अब एसटी/एससी ओबीसी को रिजर्वेशन के मामले में एनआरसी /सी ए ए की तरह राष्ट्रव्यापी जन आंदोलन खड़ा करना पड़ेगा और सुप्रीम कोर्ट को चैलेंज करना पड़ेगा "सुप्रीम कोर्ट" इस देश के आम नागरिक के साथ साथ आदिवासी से बड़ी कोई "हाई अथॉरिटी" नहीं जो इस देश के मूल वंशजों "ऑनर ऑफ इंडिया" को किनारे करके अपनी मनमानी कर सके। ( गुलजार सिंह मरकाम राष्ट्रीय संयोजक गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन)

दिल्ली विधानसभा का परिणाम २०२०

"दिल्ली का परिणाम और आगामी विधानसभा चुनाव" बिहार और बंगाल जैसे बड़े राज्यों को जीतने के लिये भाजपा ने दिल्ली में केजरीवाल के साथ "ईवीएम घुटाला" नहीं किया ताकि जनता के मन में विश्वास हो जाये कि ईवीएम में गड़बड़ी नहीं की जा सकती, इस बात को प्रचारित किया जायेगा कि यदि ऐसा होता तो केजरीवाल दिल्ली में हार जाता ! परन्तु आपको बता दूं भाजपा के लिए यह राज्य इतना महत्त्वपूर्ण नहीं था कारण कि यह केंद्र शासित प्रदेश है जहां की पुलिस प्रशासन और प्रशासनिक तंत्र केंद्र सरकार के अंडर रहती है। साथ ही इस महानगर निगम में भाजपा का कब्जा है, मनुवादी जय श्रीराम का स्थान जय बजरंगबली ने ले लिया। इसलिए कोई परेशानी नहीं। यदि बिहार और बंगाल के लोग ईवीएम को क्लीन चिट देने की गलतफहमी पालते हैं तो, यहां भाजपा पूर्ण बहुमत में आकर यह साबित करने में सफल हो जायगी कि जनमत हमारे साथ है। जनता हमारे हर फैसले से संतुष्ट है। मूलनिवासी सावधान, ईवीएम आपके लिए सदैव खतरे की घंटी है। (गुलजार सिंह मरकाम राष्ट्रीय संयोजक गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन)