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Showing posts from 2022

केंद्र सरकार और ग्राम सरकार

 "देश में हिंदू धर्म पद्धति से अनुष्ठानों के लिए बनाये जायेंगे कथावाचक और पुजारी" (सरकारी प्रस्ताव) "मैंने एक समाचार पत्र मैं पढ़ा है कि सरकार के द्वारा हिन्दुओं के विभिन्न कार्यक्रमों अनुष्ठानों जैसे दुर्गा पूजा, गणेश पूजा, मकान उद्घाटन, आदि कार्य संपन्न कराने के लिए, व्यस्तता के कारण अनुष्ठान कराने वाला उपलब्ध नहीं हो पाता इसलिए सरकार ऐसे अनुष्ठानों के लिए पुजारी तैयार करायेगी। जो किसी भी जाति समुदाय के हो सकते हैं।      जब एक सरकार इस तरह के निर्णय ले सकती है तब "ग्राम सरकार" की ओर से भी यह निर्णय लिया जाना चाहिए की ग्राम सरकार की व्यवस्था में गांव की जनता का धार्मिक अनुष्ठान कराने वाला बैगा, भूमका पडिहार, गायता, पुजारी,लोहरा, अहीर, गारपगारी,आदि वर्तमान समय में भी ग्राम व्यवस्था के सभी धार्मिक क्रियाकलाप शादी विवाह, जन्म विवाह एवं मृत्यु संस्कार और अनुष्ठान संपन्न कराते हैं, जिन्हें और भी शसक्त बनाने के लिए ऐसे अनुष्ठानकर्ताओं के प्रोत्साहन के लिए ग्राम सभा के माध्यम से ग्राम सरकार मानदेय निर्धारित कर दे ।  केंद्र सरकार, राज्य सरकार की तरह ग्राम सरकार भी अपन

संगठन और कार्यकर्ताओं का स्वभाव

  "संगठन और कार्यकर्ताओं का स्वभाव" अंधभक्ति से भरे संगठन या कार्यकर्ताओं का स्वभाव होता है की जब तक कोई व्यक्ति या पदाधिकारी उस संगठन में कार्यरत है तब तक वह उनकी आंखों का तारा होता है या पूजनीय सम्मानित होता है उसकी अंधभक्ति ही उसकी योग्यता और विशेषता होती है भले ही वह कितना अच्छा या बुरा हो उस संगठन के लिए और उनके कार्यकर्ताओं के लिए काम का व्यक्ति होता है ।             यदि किसी कारणवश वह उस संगठन से अलग होता है तब वह दुनिया का सबसे खराब व्यक्ति हो जाता है, इसी तरह यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य संगठन से चलकर किसी मकसद से अंध भक्तों की टोली या संगठन में आता है,तब उसका जोरदार स्वागत किया जाता है उस वक्त के लिए वह अंध भक्तों की टोली का आंखों का तारा बन जाता है उसकी लाख बुराइयों को अंधभक्त माफ कर देते हैं।          ऐसी सोच और समझ दक्षिणपंथी विचारधारा वाले संगठन या कार्यकर्ता मैं पाई जाती है, ऐसे संगठन केवल भावनाओं के बल पर टिके होते हैं, ऐसे संगठन कार्यकर्ताओं की बौद्धिकता को माइनस स्टेज पर खड़ा कर देते हैं, नेतृत्व ने हांक लगाई तो सब आंख बंद करके उसका अनुसरण करने में लग जाते हैं

समझ में ही समझदारी है

 "समझ में ही समझदारी है।" काली गोरों को काट रही है। गोरी कालों को नाश रही है ।। फिर श्यामल सूरत वाला ही। जो नाग कालिया नाथ रहा है।।१।। विद्वान हैं कुछ इस भारत में । कहते गोरा  है कपट भरा ।। फिर अपने घर क्यों पाल रहे। मनु की बेटी घट जहर भरा।।२।। शिव शंभू इनसे  छले गये । अम्बेडकर के भी प्राण गये।। अब और भरोशा कैसे हो। विष का घट जब घर पर  हो।।३।। और नहीं अब और नहीं। ऐसी करतूतें  क्षमा नहीं।  जो बीत गया इनसे सीखो। वरना ऐसे विद्वानों खैर नहीं।।४।। -गुलजार सिंह मरकाम (gska)

धर्म का मर्म

 किसी धर्म की आधारशिला जितना व्यापक और सार्वभौम होगा वह उतना ही विस्तार करेगा।"-गुलजार सिंह मरकाम 1.दुनिया का हर तीसरा व्यक्ति ईसाई है। 2.दुनिया का हर  पांचवा इंसान मुस्लिम है। 3.वहीं बौद्ध का विस्तार गिनती के देशों में है। 4.हिन्दू ,सिख,जैन केवल भारत में  सिमट गये। 5.वहीं सरना, गोंडी , कुछ राज्य तक। 6.सरना भी संथाल, उरांव मुडा माझी के इर्द-गिर्द घूम रहा है। 7.वहीं गोंडी धर्म गोंड जाति की पहचान बन कर रह गई है। "आखिर क्यों"........….? धर्म और धर्म के ठेकेदारों को इस पर चिंतन करना होगा, कहां चूक हो रही है। क्रियाकलाप में या व्यापक सोच की आधारशिला में। -क्या आदिवासी समुदाय "ट्राईबल रिलीजन" मानकर कम से कम भारत देश तक विस्तार क्यों नहीं कर सकता ?  ****"***"****************

छोटे बड़े का पैमाना

(भारतीय संविधान में भारत निर्वाचन आयोग में पंजीकृत कोई भी राजनीतिक दल बड़ा या छोटा नहीं होता।) (संविधान की दृष्टि में कोई व्यक्ति बड़ा या छोटा व्यक्ति नहीं होता।)  "यह तो हमारी फितरत है कि हम उसे बडा या छोटा मान लेते हैं। किसी व्यक्ति की संपत्ति अथवा प्रचार के कथित शोहरत का मूल्यांकन करके या किसी राजनीतिक दल की कथित सदस्य संख्या देखकर।   हमारा यह मूल्यांकन का नजरिया संवैधानिक नहीं प्रचारिक है। यह बडा और छोटा मानने की मानसिक रूग्णता ने संविधान और उसकी मूल भावना को नुक्सान पहुंचाया है। मेरी व्यक्तिगत समझ है कि व्यक्ति संपत्ति के मामले में इमानदारी से अर्जित धन और चरित्र से बड़ा माना जाय।  इसी तरह राजनीतिक दल भी फर्जी सदस्यता करके नहीं, संविधान की मूल भावनाओं की अपेक्षा का चारित्रिक व्यवहार करके बड़ा होने की दावा करें तो कुछ हद में ठीक है। "सत्तायें यदि संविधान की नीति सम्मत चले तो जनता सुखी रहेगी। सत्तायें यदि संविधान को अपने दलीय चरित्र के अनुसार चलायेंगे तो जनता दुखी रहेगी।" गुलजार सिंह मरकाम        (GSKA)

समस्या समाधान की एक अवधारणा

  "समस्या समाधान की एक अनूठी अवधारणा" प्रत्येक राज्य में स्थापित सार्वजनिक,केंद्रीय उपक्रम या कार्यालयों में उस राज्य के आरक्षित जाति/वर्गों की जनसंख्या के अनुपात में सेवाओं में आरक्षण की व्यवस्था लागू होना चाहिए। कारण यह है कि जिस राज्य की हवा, पानी, भूमि, पर्यावरण और अन्य संसाधन का उपयोग केंद्रीय सेवाकर्मी करते हैं, उन राज्यों में स्थानीय शिक्षित बेरोजगारों को बहुत कम अवसर प्राप्त होता है। सेवा अवसर के अतिरिक्त अन्य राज्यों की संस्कृति संस्कारों से स्थानीय राज्य की भाषा, संस्कृति और सामाजिक पर्यावरण पर विपरीत प्रभाव भी पड़ता है। भाषिक समझ का अंतर भी स्थानीय अंतर्मन को प्रभावित करता है । अधिकारी कर्मचारी का अपने पैतृक राज्य का राज्यमोह भी उस राज्य के विकास के लिए लापरवाही या उदासीनता का कारण बनता है। हर कर्मचारी अधिकारी अपना सेवा निवृत्ति काल और अंतिम सांसें पैतृक राज्य जिला तहसील या ग्राम में बिताना चाहता है।             उपरोक्त कारण और निवारण अनेक मायनों में केंद्रीय सेवाओं के आफिस या सार्वजनिक उपक्रम जैसे संस्थानों की समस्याओं का समाधान के लिए कारगर उपाय साबित हो सकता है।

"विश्वास और भक्ति"

अंध भक्ति या अन्धविश्वास जीवित व्यक्ति पर कभी नहीं करें, जीवित इंसान कभी भी धोखा दे सकता है, कभी भी बिक सकता है,भय या दबाव में आपको क्षति पहुंचा सकता है।   यदि अंधभक्त या अन्धविश्वासी बनना ही है तो, शहीद हो चुके महापुरुषों, अपने पेन,पुरखों के बनो, यदि उनकी अंधभक्ति से आपको लाभ नहीं भी मिला तो उनसे नुकसान की संभावना शून्य होगी, क्योंकि वे धोखा नहीं देंगे,,ना ही बिकेंगे, उन पर कोई भय या दबाव बनाकर आपको क्षति नहीं पहुंचा सकते । -गुलजार सिंह मरकाम (GSKA) ऐसे और पोस्ट देखने के लिए और क्रांति जनशक्ति पार्टी से जुड़ने के लिए क्लिक करें 👇👇 https://kutumbapp.page.link/2VkSphVrLyzvD8XT6?ref=10VNF

युवा या वायु (एक राजनीतिक विश्लेषक)

 (राजनीतिक विश्लेषण) "वायु (युवा) की ताकत किस करवट बैठेगी" आज आदिवासी युवाओं का एक बहुत बड़ा हिस्सा सारे देश में "जीएसयू" और जयस नाम से संचालित है। जीएसयू अपने नाम के अनुरूप गोंडवाना नाम के राजनीतिक दलों को सहयोग करती दिखाई देती है, इसमें देखने लायक यह होगा कि‌ गोंडवाना नाम की कि पार्टी ‌के साथ होंगे, भविष्य बतायेगा।  इसी तरह आदिवासी युवाओं का एक "जयस" नाम से देश और प्रदेश में संचालित है, इनका दावा है कि हम आदिवासियों के सबसे बड़ा संगठन चलाते हैं। परन्तु जयस की राजनीतिक अवधारणा भी जयस और नेशनल जयस के रूप में विभाजित है। प्रदेश के आदिवासी समुदाय का युवा वर्ग विभाजित दिखाई देता है।जयस  संगठनों की ओर देखते हैं तो वे कहीं ना कहीं मात्र विधानसभा टिकट के इर्द गिर्द घूमती दिखाई देती है । जो कथित बड़ी पार्टी टिकट देगा उसके साथ। अब यदि मान लें कि जयस और जीएसयू का संचालन मात्र टिकट के इर्द-गिर्द है, कितने टिकट ये कथित बड़ी पार्टियां देंगी,क्या इतनी बड़ी आदिवासी युवाओं की शक्ति चंद टिकट के लिए चंद अगुवाओं के स्वार्थ में गिरवी हो जायेगी ? मप्र में २३ प्रतिशत आदिवासी स

अन्य राजनीति दलों से अलग क्यूं है । "क्रांति जनशक्ति पार्टी"

  अन्य राजनीति दलों से अलग क्यूं है ।  "क्रांति जनशक्ति पार्टी" भारत देश में सैकड़ों की संख्या में राजनीतिक दल हैं । अंगुली में गिनने लायक "पंजीकृत राष्ट्रीय मानता प्राप्त" एवं राज्य स्तरीय पंजीकृत मान्यता प्राप्त दल हैं वहीं सैकड़ों की संख्या में पंजीकृत अमान्यता प्राप्त दल भी हैं । हर पंजीकृत अमान्यता प्राप्त दल, राज्यों में मान्यता प्राप्त दल के रूप में स्थापित होना चाहती है पर हर चुनाव में कहीं ना कहीं वह अपने चुनाव मेनेजमेंट की कमज़ोरी का शिकार हो जाती है,या मान्यता प्राप्त कथित बड़े दलों की रणनीति का शिकार होकर मान्यता करने में असफल हो जाते हैं। मान्यता प्राप्त कथित बड़े दलों की नकल करते हुए वैसी ही पार्टी संचालित करते हैं और असफल हो जाते हैं। उदाहरण के लिए यह है कि सभी कथित बड़े दल अपनी पार्टी के संविधान में समाज को सदैव वर्गवादी,जातिवादी मानसिकता बनी रहे,इस ध्येय से अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/अन्य पिछड़ा वर्ग/अल्पसंख्यक/सवर्ण आदि के अलावा समुदायों के नाम पर भी प्रकोष्ठ या मोर्चा बनाते हैं । कार्यकर्ताओं पदाधिकारियों को भी इसमें जातीय और वर्गीय आकर्षण दिखा

विचारधारा और शब्द विष

विचारधारा जिसे वृहत समुदाय में स्थापित करना है ,तो हमारी वैचारिक समझ में समानता हो ,  हमारी नासमझी कहीं-न-कहीं अन्य विचारधारा को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से मजबूत करती है। मेरी ओर से हमेशा , समुदाय की बोलचाल भाषा या व्यवहार में जो परसंस्कृति के "शब्द विष" और दूषित क्रियाकलाप प्रयोग में लाये जाते हैं। कहीं ना कहीं हमें विचारधारा से भटकाती है।हम इन छोटे छोटे शब्दों को महत्व नहीं देते और अनजाने ही परसंस्कृति के वाहक बन जाते हैं। मुझे लगता है कि कुछ लोग केवल व्यक्तिगत आपसी विरोध के चलते सही और गलत शब्दों का जानबूझकर प्रयोग करते हैं ताकि सामने खडे विरोधी व्यक्ति को नीचा दिखाया जा सके।       उदाहरण के लिए मनुवादी अवतार वाद के सिद्धांत को मजबूत करने वाले "अवतरण" (जन्म) शब्द का आंख बंद करके धड़ल्ले से उपयोग होता है। किसी ने भी इस "शब्द विष" के प्रभाव के बारे में समझाने का प्रयास नहीं किया।  भारत देश को भारत कहने में क्या परेशानी है ,हमारे अपने लोग मौका देखकर या सरेआम मंचों में "हिंदुस्तान" के नाम का संबोधन करके परोक्ष रूप से उनकी विचारधारा को ही मजबूत कर

आदिवासी समुदाय को अपनी राजनीतिक स्थिती की समीक्षा करनी होगी

कल तक और आज भी सत्ताधारी पार्टियां, चाहे वह  कांग्रेस, भाजपा या कोई हो, आदिवासी समुदाय को केंद्र सरकार में मंत्री, राज्यसभा सदस्य,आयोग का अध्यक्ष (केवल जनजाति आयोग) बना दिया जाता है, कभी कभी किसी राज्य जैसे झारखंड में आदिवासी को लुभाने के लिए अर्जुन मुंडा जैसे रबर स्टैंप मुख्यमंत्री तथा राज्यपाल भी बना दिया जाता है।अब तो राष्ट्रपति भी, पर इससे आदिवासी का क्या भला हो गया। आदिवासी जहां था वहीं पर आज भी खड़ा हुआ है ऐसे रबर स्टैंप्स के रहते आदिवासियों की सारी जल जंगल जमीन सब लुटती जा रही है इस लूट पर मुहर लगाने वाले यही रबर स्टैंप हैं । एकाध अपवाद छोड दिया दिया जाय, तो क्या जनसंख्या के अनुपात में किसी प्रदेश में कांग्रेस या भाजपा ने प्रदेश का अध्यक्ष और प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाने का कोई प्रयत्न या प्रयास किया ? नहीं, क्यूंकि यही मुख्य पद जिसे "कीपोस्ट" या मास्टर चाबी कहा जाता है जिस पर सत्ताधारी दल अन्य किसी दलित पिछड़े आदिवासी को आने नहीं देता, आदिवासी को तो आने ही नहीं देना चाहता । ऐसी परिस्थितियों में समुदाय के बुद्धिजीवीयों को  गहन चिंतन करना आवश्यक हो गया है । मप्र के आगामी

एक तीर एक कमान सब आदिवासी एक समान"

गोंडवाना के नाम पर आंदोलन चलाने वाले लोग या संस्थाएं यदि आदिवासी शब्द के अस्तित्व और अस्मिता को नकारते हुए एकला चलो की नीति अपनाते हैं। तो "संयुक्त राष्ट्र संघ" द्वारा पहचान के लिए निर्धारित मापदंड के परिपेक्ष में भारतीय संविधान में वर्णित "अनुसूचित जनजाति" संख्या बल में वर्गीय मानसिकता विकसित नहीं हो सकती ! हमारे संविधान निर्माताओं ने देश के सुदूर क्षेत्रों में फैली विभिन्न जातियों में बटे इस बिखरे हुए समूह को एकता के सूत्र में बांधने के लिए प्रयास किया है। ताकि यह बिखरा हुआ समूह जिसकी अपनी परंपरागत सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक मान्यताएं और परंपराएं हैं। इनमें से किसी भी बिंदु पर आपसी समन्वय और तालमेल से अपने आपको एक सूत्र मैं बांधने का काम करें। अपने हक और अधिकारों को प्राप्त करने, अपने ऊपर हो रहे अन्याय अत्याचार शोषण के विरुद्ध एकजुट होकर संघर्ष करने के लिए उपरोक्त वर्णित बिंदु ही कारगर उपाय हैं। पिछले कई दशकों से इस समुदाय में अनेक समाज सुधारक संघटक राजनीतिज्ञ आते रहे हैं आ रहे हैं, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर इन महत्वपूर्ण बिंदुओं को बुद्धि बलपूर्वक व्यापक रूप नहीं

छ: मासी और बारहमासी गली

 "छ: मासी और बारह मासी गली"                  (कहानी) बचपन में हमने कहानी सुनी थी आज के परिवेश में गोंडवाना मिशन की समय दिशा तय करने में इस कहानी का काफी योगदान हो सकता है ! कहानी कुछ इस तरह है:-                  चिरान जुग (पुराने जमाने) की बात है कुछ लोगों का समूह किसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए एक निर्धारित स्थान पर जा रहा था । चलते चलते बियाबान जंगल मैं दो रास्ते दिखाई दिए यात्री असमंजस में पड़ गए कि किस गली से जाया जाए। आसपास देखने पर पता चला की पास ही में एक  झोपड़ी थी जाकर देखा तो वहां पर एक बूढ़ी मां थी, उन्होंने उनसे बातचीत करते हुए पूछा कि कब से हो रही हो तब बूढ़ी मां ने बताया कि मैं यहां बरसों से रह रही हूं ताकि लोगों को उस लक्ष्य तक पहुंचने के लिए उचित मार्गदर्शन कर रास्ता बता सकूं , क्योंकि अभी तक जो भी वहां गए हैं वे अभी तक लौट कर नहीं आये, जो भी गया है अभी तक लौट कर नहीं आया, मुझे मालूम है कि आप लोग भी जल्दबाजी में है,आप लोग भी यही गल्ति करेंगे। बूढ़ी मां के इस रहस्यमई बात को सुनकर यात्रियों की जिज्ञासा और आशंका बढ़ गई उन्होंने कहा कि आप हमें बताएं की जो लोग गए थे

भारत का गौरव किस्में ?

 "भारत का गौरव किसमें ?" आज हमारे देश में हिंदू गौरव दिखाने की भरपूर कोशिश की जा रही है जिसके लिए मीडिया साहित्य के साथ साथ नेता ,धर्मगुरु और बहुत से अज्ञानी गुलाम भी लगे हुए हैं जिन्हें ना इतिहास का ज्ञान है ना धर्म का ज्ञान है उन्हें बस हिंदू गौरव जो प्रायोजित, नकली इतिहास के माध्यम से पढ़ाया गया है,पढ़ाया जा रहा है उनके लिए वही अंतिम सत्य है। असली हिंदू कौन इस पर कभी ध्यान ही नहीं दिया सब राष्ट्र के नाम पर हिंदू बनकर, देश में जातिवाद और हिंसा को बढ़ावा दे रहे हैं। बारी बारी से हिंदू वर्सेस मुस्लिम, हिंदू वर्सेस ईसाई, हिंदू वर्सेस बौद्ध, हिंदू वर्सेस आदिवासी(धर्मपूर्वी) के बीच संघर्ष को हवा दे रहे हैं। इस देश के असली मूलनिवासी को अपने गौरव की चिंता नहीं इसलिए सत्ही इतिहास जो अंग्रेजों की चाटुकारिता करते हुए अपनी जमीदारी बचाए, मुगलों की चाटुकारिता करते हुए राज दरबारों में अपनी बहन बेटियां देकर दरबारों की शान बने,अपने सिंहासन बचाये। यदि देश के मूल निवासी को अपने असली गौरव का एहसास करना है,तो उसे आर्य दृविण का देवासुर संग्राम पढ़ना चाहिए, आचार्य चतुर्सेन का वयं रक्षाम: ,वोल्गा

पुरखों का गुरुकुल,गोटुल

 "पुरखों का गुरुकुल,गोटुल (५,६अनु.जनजा.क्षेत्र)" जनजातियों के लिए पांचवी और छठी अनुसूचित क्षेत्र घोषित करने की मंशा के पीछे उनकी धार्मिक सामाजिक रूढि परंपराओं, सांस्कृतिक एवं भाषा को सुरक्षित करना था, ताकि दुनिया अपने मूल मानव विकास के पुरखों का एहसान पीढ़ी दर पीढ़ी मानें, उनसे नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत का अनुसरण कर सकें। उनसे मानवता, परोपकार, सरलता, सहजता करूणा दया जैसे मानवीय गुणों को सीख पाये। साथ ही ऐसे जनजाति घोषित क्षेत्रों का अध्ययन करके लोकतंत्र के मूल्यों की समझ विकसित कर सके। यानि ऐसे क्षेत्र देश के मूल का आईना है, दर्पण है, लोक कल्याणकारी व्यवस्था में लोकतंत्र की पाठशाला की भांति है। अर्थात देश का गुरूकुल है। ऐसे गुरुकुल क्षेत्रों को उसकी आत्मा को बिना हानि पहुंचाये। सुरक्षित और संरक्षित करने की आवश्यकता सत्ताधारी शासक की थी, परन्तु भारत देश में इन क्षेत्रों को सुरक्षित संरक्षित करने की बजाय कथित विकास के नाम इन क्षेत्रों के  लोगों की सम्पूर्ण पहचान मिटाने की लगातार कोशिश की जा रही है, ऐसे क्षेत्रों के भूगोल को भी लगातार  तहस नहस किया जा रहा है। जैसे जैसे ऐसे गुरु

आदिवासी और डिलिस्टिंग

 भाषा, धर्म, संस्कृति आदिवासी अस्तित्व को बचाने का मामला है।, इसलिए किसी समुदाय का विकास उसकी एकता और ताकत पर निर्भर है,वह ताकत उसके स्व अस्तित्व के पहचान पर बनती है। इसलिए मेरा मानना है "भाषा,धर्म, संस्कृति की (डेहरी) दहलीज पार किए किये बिना किसी तरह के विकास की आशा बेमानी होगी"

नैसर्गिक न्याय और न्यायपालिका

 यदि इस देश में मंदिर मस्जिद गुरुद्वारा चर्च के नाम पर धर्मो के पुरातन जड़ों को खोदकर अपनी बपौती के लिए कोर्ट के फैसले को महत्व देते हैं,तब हमारे देश का मूलवंश आदिवासी तो कोर्ट बनने संविधान बनने के पूर्व का वासिंदा है वर्तमान समय में देश में चल रही अराजकता को देखते हुए आदिवासियों की "परंपरागत न्याय" व्यवस्था सर्वोपरि है ,जो सभी "परदेशी धर्म" एवं कथित थर्मावलंबियों को मानना होगा, क्योंकि इस देश की भूमि पर सभी पुरानी धरोहर मूल वंश आदिवासियों का है, इसलिए कोई भी कानून उनसे ऊपर नहीं हो सकता। (गुलजार सिंह मरकाम)

"हत्या बलात्कार और आगजनी"

चुनाव के लिए राजनीतिक दलों को इशू चाहिए उसके लिए इशू प्रायोजित किये जाते हैं। इसमें जन समस्या , जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, बेरोजगारी जैसे मुद्दों से जनमानस को प्रभावित नहीं करने की समस्या पक्ष या विपक्ष किसी को आती दिखाई देती है तब समाज की भाषा धर्म संस्कृति उसका मूल स्त्रोत है,उस पर राजनीति आक्रमण की कोशिश होती है, जिसमें व्यक्ति जाति धर्म संप्रदाय के नाम पर इशू तैयार किया जाता है, इसमें चाहे कितनी ही हत्या, बलात्कार आगजनी करना पडे , राजनीतिक दलों को कोई फर्क नहीं पड़ता, इसका शिकार तो व्यक्ति समुदाय और समाज होता है। अब आसन्न चुनाव है । मप्र भी इस क्रम से अछूता कैसे रह सकता है। इसका एक ही इलाज है, पीड़ित व्यक्ति,जाति समुदाय और समाज में आपसी सौहार्द और समझ विकसित करे।        -(gska)

समय का सदुपयोग करें

 "समय का सदूपयोग करें" हमारे मूलनिवासी समुदाय के सेवा निवृत अधिकारी/कर्मचारी तथा वर्तमान में शासकीय उच्च पदों पर आसीन साथियों से अनुरोध है कि आप सेवा निवृत हो चुके कुछ बाद में होंगे अब आप रोटी कपड़ा मकान और पारिवारिक जिम्मेदारियों से भी निश्चिंत हो चुके प्रतिदिन फुरसत है ,आप चाहें तो सुप्रभात के बाद प्रतिदिन अपने विभाग से संबंधित कुछ जानकारियों की प्रतिदिन सोशल मीडिया पर मेसेज की सीरीज चलाएं। लोगों को जानकारी और उनका ज्ञान बढ़ेगा जिससे समुदाय लाभ ले सकता है,मैंने सहकारिता विभाग में रहे डायरेक्टर रिटायर्ड माननीय आरबी वट्टी जी भोपाल से निवेदन किया था वे अब रोज सुप्रभात के बाद जानकारी देना आरंभ कर  दिए हैं।  (नोट: आपका यह योगदान समुदाय के ऋण की वापसी की तरह होगा ) _गुलजार सिंह मरकाम

लालच देकर नहीं स्वावलंबी समालंबी समाज का निर्माण करोबी

 "लालच देकर गुलाम नहीं स्वावलंबी समाज का निर्माण करो !" अपनी साख बढ़ाने के लिए सरकारी खजाने से लुटा दो जनता की गाढ़ी कमाई । दिखावा के लिए राशन, मकान फ्री बिजली,सायकिल,लेपटाप, गहने अब स्कूटी,भविष्य में जनता को जनता के टेक्स और जनता के जल,जंगल,जमीन से दोहन की गई खनिज और संसाधन से जमा सरकारी खजाने को अप्रत्यक्ष रूप से बड़े बड़े पूंजीपति, उद्योगपति और बिचोलियों की उत्पाद राशन(जमाखोर), मकान(सीमेंट, लोहा गिट्टी रेत माफिया) फ्री बिजली,(अडानी, अंबानी रिलायंस)सायकिल, (सायकिल,स्कूटी उद्योगपति) मोबाइल,लेपटाप,(इलेक्ट्रॉनिक उद्योगपति) गहने (बड़े ज्वेलर)अब स्कूटी, इन उद्योगपतियों से कितना पर्सेंट हिस्सा लेकर टेंडर पास करके लाभ दिलाने का वचन दिया है,जवाब तो देना पडेगा! जनता अब धीरे धीरे समझने लगी है कि ये लालच देकर किसकी जेब काट रहे हो । अपने बाप की कमाई का धन इसी तरह लुटाते हो क्या ? यदि इतने दरियादिल होते तो, तुम हजारों एकड के जमींदार नहीं होते, अरबों की संपत्ति स्विस बैंक में जमा नहीं रहते, करोड़ों रूपये तुम्हारे बिस्तर और लेट्रिंग में छिपे नहीं होते। अब भी वक्त है ,देश को पूंजीपतियों से

"पेसा कानून के बनते नियमों पर पैनी नजर रखें"

छग और मप्र सहित कुल १० राज्य में पांचवीं अनुसूची के प्रावधान है,इन राज्यों में पंचायती राज को कैसे समायोजित किया जाये,इसके लिए दिलीप सिंह भूरिया की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई गई जो इन १० राज्यों में वहां की सामाजिक धार्मिक सांस्कृतिक आर्थिक राजनीतिक स्वस्थ शिक्षा जैसे विषयों पर पांचवीं अनुसूची में प्रदत्त स्वशासन,स्वराज जैसी असीम शक्तियों के अंदर त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था को कैसे कैसे संचालित किया जा सकता है, इसका अध्ययन करे। अध्ययन उपरांत वर्ष १९९६ में भूरिया कमेटी ने एक रिपोर्ट प्रस्तुत की इस रिपोर्ट के आधार पर संसद में एक कानून बनाया गया जिसे जिसे "पेसा कानून" अर्थात अनुसूचित क्षेत्रों में पंचायती राज विस्तार संशोधन अधिनियम रखा गया और इन राज्यों में लागू कर दिया गया, दुर्भाग्य से संशोधित अधिनियम के त्रिस्तरीय पंचायती राज के नियम बनाकर राज्यों में चुनाव संपन्न कराये जाने लगे परन्तु" पेसा" के नियम जिससे भूरिया कमेटी की सिफारिशें क्रियान्वित होकर पांचवीं अनुसूची की मंशा की पूर्ति होती नहीं बनाई गई । बुद्धिजीवी और जनवादी संगठनों के लगातार प्रयास ने सरकारों का

तीसरी आजादी की जंग

 " तीसरी आजादी की जंग" देश में आजादी का एक बिगुल बजाना चाहिए। पूंजीवाद और तानाशाही के विरुद्ध अब जंग होना चाहिए। बुद्धि, विवेक ,विज्ञान का दुश्मन धर्मांधता अतिवाद है, मानवता के खातिर इसका परदा उठाना चाहिए।। जल जंगल जमीन का मालिक , आखिर क्यों लाचार है, मालिकक को मालिक होने का , एहसास कराना चाहिए।। देश की धन दौलत को लूटें, चोर लुटेरे गद्दार हैं, इनको फांसी पर लटकायें, यही उचित और न्याय है।। बहुत मांग ली अब ना मांगो, ये सारे गद्दार है। ऐसे तानाशाहों के लिए अब, हाथ में तलवार होना चाहिए।। बहुत हो चुका रोना धोना अब रोने का वक्त नहीं, सत्ता शासन के लिए अब तो,  "स्वशासन" का हुंकार होना चाहिए।।     ( गुलजार सिंह मरकाम)

कोया पुंगार मासिक पत्रिका

कोरोना काल मैं आर्थिक मंदी और स्वास्थ्य विषयों के कारण मासिक पत्रिका कोयापुंगार मैं अवरोध हुआ जिसके कारण पत्रिका का निममित संचालन नहीं हो सका परंतु पुन अपना कार्य प्रारंभ करते हुए पत्रिका के संपादक संग्राम सिंह मरकाम । साभार-अखंड गोंडवाना न्यूज़

" मुफ्त राशन और शिक्षा, स्वास्थ्य एवं रोजगार"

सरकारों के द्वारा प्रति यूनिट 5 किलो राशन देना मतलब गरीबों को निर्भर और लाचार भिखारी बनाये रखना है । सरकार क्या जीवन पर्यन्त ऐसा करेगी । यदि करेगी भी तो इस राशन से लोग अपने बाल बच्चों की शिक्षा स्वास्थ्य समृद्धि जैसे विषयों से निजात पा लेंगे ? क्या सरकार या बुद्धजीवी यह नहीं जानता कि राशन आपातकाल के लिए दिया जाता है , अभी कोई आपातकाल नहीं है। ऐसे अतिशेष अनाज का निर्यात कर भारत के राजकोषीय घाटे को कम किया जाय । तथा जनता को स्वाभिमानी आत्मनिर्भर बनाने के लिए उनकी आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए रोजगार और नौकरियों का सृजन करने का प्रयास किया जाना चाहिए ताकि हमारे देश का नागरिक आत्मनिर्भर बन सके उसकी क्रय क्षमता बढ़े, निर्भर भिखारी नहीं ! तभी हमारा देश आत्मनिर्भर और सशक्त अर्थव्यवस्था का अग्रणी बन पायेगा। "निर्भरता से निर्बलता , निर्बलता से "लाचारी" पनपती है , लाचारी से "पिछलग्गूपन" इससे "गुलामी" और गुलामी में "स्वाभिमान" मर जाता है। और मरे स्वाभिमान का व्यक्ति या कौम क्रांति नहीं कर सकती। -गुलजार सिंह मरकाम राष्ट्रीय संयोजक गोंडवाना समग्र क्रांत