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Showing posts from June, 2015

" गोडवाना का सन्कल्प"

" गोडवाना का सन्कल्प" " सन्कल्प मेरा गोडवाना का स्वाभिमान बढे,सम्मान बढ़े  इसकी रक्षा के लिये चाहे,रक्त बहे चाहे शीश कटे ।  माता बहनों की इज्जत पर,सन्कट के बादल घिरे हुए,  गोडवाना की धन धरती पर,हैं कुटिल निगाहें लगे हुए।  इनकी रक्षा कर पाउ में,गोडवाना का धन धान्य बढ़े,।१। जिस जाति धर्म में पैदा हूँ,उसका मुझ पर है कर्ज बड़ा,  जिसकी मर्यादा रक्षा का,मुझपर सारा दायित्व बढ़ा।  हे बडादेव तुम शक्ति दो,मेरा साहस दिन रात बढे ।२।  अत्याचारी अन्यायी ने विश व मन किया है ने ने पर,  अमरत फैलाने वालों का,रक्षक बन जाउ पल पल का ।  हो अटल राज गोडवाना का,सबके मन में विश्वास बढ़े ३।  साहित्य साधना में रत हैं,कुछ राजनीति के पथ में हैं,  कुछ धर्म नीति विस्तारण में,गायन वादन के लय में है।  ऐसे समाज के रत्नों का,निश्चय मुझपर विश्वास बढ़े ।४।  गोडवाना की रक्षा में,कितना ही मेरा वक्त लगे ,  कर्तव्य मार्ग पर डटा रहूँ,फिर क्यों ना मेरा शीश कटे ।  केवल है मेरा लक्ष्य यही,गोडवाना का स्वाभिमान बढ़े ।५।  सन्कल्प मेरा गोडवाना का स्वाभिमान बढ़े सम्मान बढ़े ।

------: "गोंडी व्यंग गीत" :-------

------: "गोंडी व्यंग गीत" :------- तीर जेकी का गुलेल रो, बैरी पिटटे तुन यार । महल ते गोद बने कीता, सत्ता ते असवार ।। मावा वीतल माक पुटटो रो, वीते आतुर हैरान । तिन्जी उन्जी बगरे कीसाता, बैरी पिटटे सियान ।।1।।  तीर जेकी का गुलेल रो, बैरी अल्ली तुन यार । राजते पांजी बने कीता, निहता मावा रो माल ।। कर्रू साया चाहे वत्ता रो, नीया हिल्लन ख्याल । पीढीं ता नाने जमा कीता, हूरा अल्ली सियान ।।2।। तीर जेकी का गुलेल रो, बैरी नागिन तुन यार । आस्तिन ते गोदा बने कीता, कीता नीया संघार ।। मावा ढिंगा माक दिस्सो रो, बाहुन लुकता जवान । जहर ते माकुम मुरहताता, बैरी नागिन सियान ।।3।। तीर जेकी का गुलेल रो, बैरी गोंछे तुन यार । उच्छी बाहुन नत्तुर विस्कीता, नीकुन हिल्लन ख्याल। टंडीतिनी तल्ला वाये रो, सायो ताना परान ।। सायो बिना जोक्सी नीकुन रो, केंजा गोंडी जवान।।4।। ( गुलजार सिंह मरकाम ) भावार्थ :--- 1.सत्तासीन दुष्मन रूपी चिडिया को तीर मारोगे या गुलेल, तुम्हारी धन धरती रूपी महल में सत्तासीन है । हमारे श्रम और पसीने से बोया हुआ "राष्टीय सकल आय" रूपी फसल बोने वाले को नही मिल रहा बल्कि इस फसल क

"जो छूट रहे उन्हें साथ लो "

"जो छूट रहे उन्हें साथ लो " आज के दौर में मूलनिवासी समुदाय के बहुत से पढ़े लिखे नवजवान किसी न किसी माध्यम से अपने विभिन्न सगा समूह विचार विमर्श में लगे हुए हैं ! आपस में आदिवासी एकता ,पर चिंतन कर रहे हैं ,देश की जनजातियों में अधिक बड़ी संख्या वाला समूह जिसमें गोंड ,भील ,मीणा ,उराव् हल्बा मुंडा आदि समूह आगे आ रहा है ,लेकिन हमारे बीच का ऐसा समूह जो जनजातीय है "कोल " जो देश के ४,से ५ राज्यों में काफी बहुलता से पाया जाता है ,इस समूह की भागीदारी या जुड़ाव अन्य समूहों के साथ दिखाई नहीं देता ! अतः नवजवानों बुद्धिजीवियों से अनुरोध है कि ऐसे साथियों से जो आपके आसपास ,मित्र ,सहपाठी , सहकर्मी हैं , मेलजोल बढाकर उन्हें भी आंदोलन से जोड़ा जाय ! आंदोलन की ताकत बढ़ेगी ! जनजातीय समूह का शासन प्रशासन में दबाव बढ़ेगा !

"महारानी दुर्गावति बलिदान दिवस"

"महारानी दुर्गावति बलिदान दिवस"  24 जून को प्रति वर्ष गोंडवाना की,वीरांगना महारानी दुर्गावति का बलिदान दिवस सम्पूर्ण गोंडवाना में बडे धूम धाम से मनाया जाता है । आस्था में सराबोर सारे देश के विचारक नेता समाजसेवी अनेक आयोजित शासकीय अशासकीय मंचों में रानी दुर्गावति की शौर्य और बहादुरी तथा गोंडवाना की अस्मिता की रक्षा करने वाली महानायिका के रूप में अपने विचारों से समाज को आन्दोलित करेंगे । वहीं एक एैसा वर्ग एैसे संगठन जो गोंडवाना की वीरांगना के इस महान कृत्य समाज की अस्मिता रक्ष ा हेतु बलिदान की दिशा ही बदल देने का प्रयास पहले भी करते रहे हैं अब भी करने का प्रयास करेंगें । इनका यह उदबोधन प्रयास महारानी का मुगलों के साथ किये संघर्ष को याद दिलाने को होता है । आदिवासियों को हिन्दुओं के साथ खडा कर मुस्लिम विरोधी बनाने का प्रयास किया जाता है । वहीं रानी दुर्गावति को राजपूत कन्या के रूप में स्थापित कर राजपूतों में ही इतनी क्षमता हो सकती है इस बात को हाईलाईट करने का प्रयास होता है । ताकि गोंडवाना का यह विशाल समाज दिग्भ्रमित हो अपने आप में हीनता का शिकार हो कि बहादुरी तो केवल राजपूतों म

"प्रकृति शक्ति फडापेन सजोर पेन का प्रतीक चिन्ह"

"प्रकृति शक्ति फडापेन सजोर पेन का प्रतीक चिन्ह" प्रकृति शक्ति फडापेन सजोर पेन का प्रतीक चिन्ह आज सम्पूर्ण गोंडियन गणों में आस्था और विष्वास के रूप में स्थापित हो चुका है । षनैः षनैः इसे जानने की जिज्ञासा जाति व्यवस्था के जाल में फंसकर हमसे दूर हो चुके अन्य गोंडियन गणों में दिखाई दे रही है । वहीं दुष्मन की नजर भी इस पर लगातार है । एैसे मौके पर इस प्रतीक की गरिमा और व्यापकता का विषेष घ्यान रखने की आवष्यकता है । अन्यथा आस्था और विष्वास अंधश्रद्धा में बदलकर फडापेन की गरिमा और व्यापकता को सीमित कर सकती है । मूलनिवासी गणों की हजारों वर्ष पुरानी मान्यतायें जो पूर्ण वैज्ञानिकता लिये हैं । आज उनकी अच्छी प्रस्तुति या व्याख्या के अभाव में पिछडेपन का प्रतीक बनकर कथित विकसित समाज के सामने कमजोर दिखाई देती हैं । चूंकि गोंडियन गणों का मूल दर्षन पूर्णतः जीव जगत कल्याण और प्रकृति संतुलन पर आधारित है इसलिये हमें सावधानी बरतने की आवष्यकता है । (मुझे एक पुस्तक पढने का अवसर मिला जिसके लेखक कोई वरकड हैं जो नागपुर से ही प्रकाषित हुई है इस किताब में तिरूमाल वरकड ने इस प्रतीक चिन्ह सहित