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Showing posts from July, 2020

देवस्थल से मिट्टी चोरी समुदाय के लिए अनिष्ट का कारण भी बन सकता है

"देवस्थल से मिट्टी चोरी समुदाय के अनिष्ट का कारण भी बन सकता है " आदिवासी समुदाय में आवश्यकतानुशार अपने देवों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाकर स्थापित करने की परंपरा भी है। जिसे "जगह चालना " कहा गया है। कभी कभी ऐसे स्थांतरण परिवार के बीच तालमेल नहीं होने से बंटवारा के कारण होता है । जिसे "डार नवाना" जैसे शब्दों से परिभाषित किया जाता है। इन दोनों अवसरों पर देवस्थल की मिट्टी को विधिवत प्रक्रिया से अपने "सेरमी " के माध्यम से खोदकर निर्धारित स्थान में ले जाकर विधिवत प्रक्रिया से स्थापित किया जाता है। बुजुर्गों से प्राप्त जानकारीके अनुसार कभी कभी हमारा अहित चाहने वाला हमारे देव स्थल से नजर बचाकर या चोरी से वहां की मिट्टी चुराकर ले जाता है और उस मिट्टी का काले क्रत्य के लिए दुरुपयोग करता है। ये सब लिखने का मेरा आशय यह है कि हमारे आदिवासीयों के देवस्थल से मिट्टी चुराकर या समुदाय के कुछ गद्दारों की मिलीभगत से सरेआम डकैती डाली गई हो,यह हमारी आस्था और जीवन के लिए खतरा है। समुदाय और समुदाय के विधिवेत्ता इसे अवश्य संज्ञान में लेवें। -गुलज़ार सिंह म

सफलता का सूत्र

"सफलता का सूत्र" 3.5 प्रतिशत बामन 100 प्रतिशत जागरूक है, इसलिए सक्रियता के कारण वह चारों ओर ज्यादा संख्या में दिखाई देता है, वहीं आदिवासी उससे संख्या बल में अधिक है पर जागरूकता के अभाव में सक्रिय ना होने के कारण नगण्य दिखाई देता है। यह नगण्यता उसके आत्मविश्वास और मनोबल को कमजोर करता है। इसलिए आदिवासी समुदाय कोई भी जोखिम उठाने से हिचकता है। जो व्यक्ति या समुदाय जोखिम (risk) नहीं उठाता वह किसी भी क्षेत्र (field ) में सफल नहीं हो सकता। "जोखिम उठाओ सफलता पाओ" । -गुलज़ार सिंह मरकाम (राष्ट्रीय संयोजक गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन)

चोरी का मंदिर

"चोरी का मंदिर" पहरेदार बनाकर रखा था जिसे तिजोरी का । सुनो गोंडवाना के आदिवासीयो, वही पहरेदार ही चोरों का असली सरदार निकला ।। सरना और कचारगढ की मिट्टी चुराकर राम मंदिर को ऐतिहासिक बनाने वाले यह जानते हैं कि ऐसा करने से आदिवासियों की आस्था राम से जुडेगी, परन्तु ऐसे चोरों को यह भी याद रख लेना चाहिए कि आदिवासी समुदाय चोरी पसंद नहीं करता, इसलिए अब आदिवासी समुदाय इस राम मंदिर को धन धरती के साथ साथ आस्था और विश्वास की चोरी और डकैती से बने मंदिर के रूप में जानेगा। तथा अपनी आने वाली पीढ़ी को भी यही सीख देगा । -गुलज़ार सिंह मरकाम (राष्ट्रीय संयोजक गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन)

क्या हम बबीता कच्छप को भूल जायें

"क्या हम बबीता कच्छप को भूल जायें" वैसे तो आदिवासियें के विन्नि मसलों पर अनेक लोगों ने काम किया है परन्तु पांचवी अनुसूचि पेसा कानून की व्याख्या और उसके अंदर छुपे आदिवासियों के अधिकारों का सरल और सहज व्याख्या करते हुए खासकर पत्कलगढी जैसे स्वशासन की बातों को देश के विभिन्न राज्यों के सुदूर वनक्षेत्रों में ले जाने का का साहस किया है तो वह नाम है बबीता कच्छप । आंदोलन के आरंभ से ही इन्होंने जोखिम उठाई है । आज उसे गुजरात पुलिस ने देशद्रोह जैसे मामले पर गिरफतार किया है । क्या समुदाय को पांचवी अनुसूचि की समझाईस देना देशद्रोह है । आदिवासियों के हितों को बताना पहले नक्सलवाद होता था अब देशद्रोह होने लगा । निश्चित ही इस विषय पर हमें गंभीर होना है अन्यथा हमारा आदिवासी अब देशद्रोह की श्रेणी में गिना जाने लगा । कायदा तो यही है मूलवासी आदिवासी को कोई विदेशी आक्रांता द्रेशद्रोही कह नहीं सकता । परन्तु अंग्रेजो की तरह सत्ताधारी बनकर आज के भारतीय अंग्रेज अब आदिवासियों को देशद्रोही भी बनाने लगे । राजा श्ंाकरशाह एवं कुंवर रधुनाथशाह पर भी द्रशद्रोह का मुकदमा लगाया गया था । क्या हम इसी का इंतजार कर