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Showing posts from September, 2022

संगठन और कार्यकर्ताओं का स्वभाव

  "संगठन और कार्यकर्ताओं का स्वभाव" अंधभक्ति से भरे संगठन या कार्यकर्ताओं का स्वभाव होता है की जब तक कोई व्यक्ति या पदाधिकारी उस संगठन में कार्यरत है तब तक वह उनकी आंखों का तारा होता है या पूजनीय सम्मानित होता है उसकी अंधभक्ति ही उसकी योग्यता और विशेषता होती है भले ही वह कितना अच्छा या बुरा हो उस संगठन के लिए और उनके कार्यकर्ताओं के लिए काम का व्यक्ति होता है ।             यदि किसी कारणवश वह उस संगठन से अलग होता है तब वह दुनिया का सबसे खराब व्यक्ति हो जाता है, इसी तरह यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य संगठन से चलकर किसी मकसद से अंध भक्तों की टोली या संगठन में आता है,तब उसका जोरदार स्वागत किया जाता है उस वक्त के लिए वह अंध भक्तों की टोली का आंखों का तारा बन जाता है उसकी लाख बुराइयों को अंधभक्त माफ कर देते हैं।          ऐसी सोच और समझ दक्षिणपंथी विचारधारा वाले संगठन या कार्यकर्ता मैं पाई जाती है, ऐसे संगठन केवल भावनाओं के बल पर टिके होते हैं, ऐसे संगठन कार्यकर्ताओं की बौद्धिकता को माइनस स्टेज पर खड़ा कर देते हैं, नेतृत्व ने हांक लगाई तो सब आंख बंद करके उसका अनुसरण करने में लग जाते हैं

समझ में ही समझदारी है

 "समझ में ही समझदारी है।" काली गोरों को काट रही है। गोरी कालों को नाश रही है ।। फिर श्यामल सूरत वाला ही। जो नाग कालिया नाथ रहा है।।१।। विद्वान हैं कुछ इस भारत में । कहते गोरा  है कपट भरा ।। फिर अपने घर क्यों पाल रहे। मनु की बेटी घट जहर भरा।।२।। शिव शंभू इनसे  छले गये । अम्बेडकर के भी प्राण गये।। अब और भरोशा कैसे हो। विष का घट जब घर पर  हो।।३।। और नहीं अब और नहीं। ऐसी करतूतें  क्षमा नहीं।  जो बीत गया इनसे सीखो। वरना ऐसे विद्वानों खैर नहीं।।४।। -गुलजार सिंह मरकाम (gska)

धर्म का मर्म

 किसी धर्म की आधारशिला जितना व्यापक और सार्वभौम होगा वह उतना ही विस्तार करेगा।"-गुलजार सिंह मरकाम 1.दुनिया का हर तीसरा व्यक्ति ईसाई है। 2.दुनिया का हर  पांचवा इंसान मुस्लिम है। 3.वहीं बौद्ध का विस्तार गिनती के देशों में है। 4.हिन्दू ,सिख,जैन केवल भारत में  सिमट गये। 5.वहीं सरना, गोंडी , कुछ राज्य तक। 6.सरना भी संथाल, उरांव मुडा माझी के इर्द-गिर्द घूम रहा है। 7.वहीं गोंडी धर्म गोंड जाति की पहचान बन कर रह गई है। "आखिर क्यों"........….? धर्म और धर्म के ठेकेदारों को इस पर चिंतन करना होगा, कहां चूक हो रही है। क्रियाकलाप में या व्यापक सोच की आधारशिला में। -क्या आदिवासी समुदाय "ट्राईबल रिलीजन" मानकर कम से कम भारत देश तक विस्तार क्यों नहीं कर सकता ?  ****"***"****************

छोटे बड़े का पैमाना

(भारतीय संविधान में भारत निर्वाचन आयोग में पंजीकृत कोई भी राजनीतिक दल बड़ा या छोटा नहीं होता।) (संविधान की दृष्टि में कोई व्यक्ति बड़ा या छोटा व्यक्ति नहीं होता।)  "यह तो हमारी फितरत है कि हम उसे बडा या छोटा मान लेते हैं। किसी व्यक्ति की संपत्ति अथवा प्रचार के कथित शोहरत का मूल्यांकन करके या किसी राजनीतिक दल की कथित सदस्य संख्या देखकर।   हमारा यह मूल्यांकन का नजरिया संवैधानिक नहीं प्रचारिक है। यह बडा और छोटा मानने की मानसिक रूग्णता ने संविधान और उसकी मूल भावना को नुक्सान पहुंचाया है। मेरी व्यक्तिगत समझ है कि व्यक्ति संपत्ति के मामले में इमानदारी से अर्जित धन और चरित्र से बड़ा माना जाय।  इसी तरह राजनीतिक दल भी फर्जी सदस्यता करके नहीं, संविधान की मूल भावनाओं की अपेक्षा का चारित्रिक व्यवहार करके बड़ा होने की दावा करें तो कुछ हद में ठीक है। "सत्तायें यदि संविधान की नीति सम्मत चले तो जनता सुखी रहेगी। सत्तायें यदि संविधान को अपने दलीय चरित्र के अनुसार चलायेंगे तो जनता दुखी रहेगी।" गुलजार सिंह मरकाम        (GSKA)

समस्या समाधान की एक अवधारणा

  "समस्या समाधान की एक अनूठी अवधारणा" प्रत्येक राज्य में स्थापित सार्वजनिक,केंद्रीय उपक्रम या कार्यालयों में उस राज्य के आरक्षित जाति/वर्गों की जनसंख्या के अनुपात में सेवाओं में आरक्षण की व्यवस्था लागू होना चाहिए। कारण यह है कि जिस राज्य की हवा, पानी, भूमि, पर्यावरण और अन्य संसाधन का उपयोग केंद्रीय सेवाकर्मी करते हैं, उन राज्यों में स्थानीय शिक्षित बेरोजगारों को बहुत कम अवसर प्राप्त होता है। सेवा अवसर के अतिरिक्त अन्य राज्यों की संस्कृति संस्कारों से स्थानीय राज्य की भाषा, संस्कृति और सामाजिक पर्यावरण पर विपरीत प्रभाव भी पड़ता है। भाषिक समझ का अंतर भी स्थानीय अंतर्मन को प्रभावित करता है । अधिकारी कर्मचारी का अपने पैतृक राज्य का राज्यमोह भी उस राज्य के विकास के लिए लापरवाही या उदासीनता का कारण बनता है। हर कर्मचारी अधिकारी अपना सेवा निवृत्ति काल और अंतिम सांसें पैतृक राज्य जिला तहसील या ग्राम में बिताना चाहता है।             उपरोक्त कारण और निवारण अनेक मायनों में केंद्रीय सेवाओं के आफिस या सार्वजनिक उपक्रम जैसे संस्थानों की समस्याओं का समाधान के लिए कारगर उपाय साबित हो सकता है।

"विश्वास और भक्ति"

अंध भक्ति या अन्धविश्वास जीवित व्यक्ति पर कभी नहीं करें, जीवित इंसान कभी भी धोखा दे सकता है, कभी भी बिक सकता है,भय या दबाव में आपको क्षति पहुंचा सकता है।   यदि अंधभक्त या अन्धविश्वासी बनना ही है तो, शहीद हो चुके महापुरुषों, अपने पेन,पुरखों के बनो, यदि उनकी अंधभक्ति से आपको लाभ नहीं भी मिला तो उनसे नुकसान की संभावना शून्य होगी, क्योंकि वे धोखा नहीं देंगे,,ना ही बिकेंगे, उन पर कोई भय या दबाव बनाकर आपको क्षति नहीं पहुंचा सकते । -गुलजार सिंह मरकाम (GSKA) ऐसे और पोस्ट देखने के लिए और क्रांति जनशक्ति पार्टी से जुड़ने के लिए क्लिक करें 👇👇 https://kutumbapp.page.link/2VkSphVrLyzvD8XT6?ref=10VNF

युवा या वायु (एक राजनीतिक विश्लेषक)

 (राजनीतिक विश्लेषण) "वायु (युवा) की ताकत किस करवट बैठेगी" आज आदिवासी युवाओं का एक बहुत बड़ा हिस्सा सारे देश में "जीएसयू" और जयस नाम से संचालित है। जीएसयू अपने नाम के अनुरूप गोंडवाना नाम के राजनीतिक दलों को सहयोग करती दिखाई देती है, इसमें देखने लायक यह होगा कि‌ गोंडवाना नाम की कि पार्टी ‌के साथ होंगे, भविष्य बतायेगा।  इसी तरह आदिवासी युवाओं का एक "जयस" नाम से देश और प्रदेश में संचालित है, इनका दावा है कि हम आदिवासियों के सबसे बड़ा संगठन चलाते हैं। परन्तु जयस की राजनीतिक अवधारणा भी जयस और नेशनल जयस के रूप में विभाजित है। प्रदेश के आदिवासी समुदाय का युवा वर्ग विभाजित दिखाई देता है।जयस  संगठनों की ओर देखते हैं तो वे कहीं ना कहीं मात्र विधानसभा टिकट के इर्द गिर्द घूमती दिखाई देती है । जो कथित बड़ी पार्टी टिकट देगा उसके साथ। अब यदि मान लें कि जयस और जीएसयू का संचालन मात्र टिकट के इर्द-गिर्द है, कितने टिकट ये कथित बड़ी पार्टियां देंगी,क्या इतनी बड़ी आदिवासी युवाओं की शक्ति चंद टिकट के लिए चंद अगुवाओं के स्वार्थ में गिरवी हो जायेगी ? मप्र में २३ प्रतिशत आदिवासी स