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Showing posts from August, 2013

aadivasi poem

''क्रन्तिकारी मंशु ओझा के श्रदांजलि दिवस के अवसर पर विशेष श्रदांजलिसहित ''

''क्रन्तिकारी मंशु ओझा के श्रदांजलि दिवस के अवसर पर विशेष श्रदांजलिसहित '' आज का दिन २ ८ अगस्त आदिवासी युवाओं के लिए विशेष महत्त्व का है ! घोडाडोंगरी जिला बैतूल मध्यप्रदेश का एक नवजवान मंशु ओझा जो १ ९ ४ २ में मात्र १ ८ वर्ष की उम्र में जेल पंहुचा दिया गया ! इसका दोष इतना था की वह अंग्रेजों के विरुद्ध अपने साथियों के साथ मिलकर आये दिन संघर्ष करता रहता था ! उसे अंग्रेजो की गुलामी बर्दास्त नहीं  थी , जंगलों में अपने गाँव के नवजवानों को लेकर रातों रात रेल की पटरियां उखाड देना आये दिन की बात हो गयी थी ! जब मुखबिरों के माध्यम से उनके करतूतों की जानकारी शासन तक पहुची तब सभी नवजवान साथी जंगलों में छिप गए ! शासन के आय का साधन इमारती लकड़ी के कई डिपो रातो रात जला डाले ! ''बकरे की अम्मा कब तक खैर मनाती '' अंततः सारे साथी पकड़ लिए गए बैतूल जेल भर गया , ऐसी स्तिथि में मंशु ओझा को सश्रम कारावास के लिए नरर्सिंहपुर जेल भेज दिया गया ! आजादी के बाद उन्हें तत्कालीन सरकार ने उन्हें ताम्र पत्र देकर अपनी खानापूर्ति कर दिया ! उनका परिवार आज भी घोडाडोंगरी जिला बैतूल में अत्यंत

गोंडवाना एक जन आन्दोलन है ।

           गोंडवाना एक जन आन्दोलन है । गोंडवाना समग्र क्रांति के तहत चलाया जाने वाला कार्यकृम पूर्णतः जन आन्दोलन है  जहां देश की वर्तमान जनविरोधी भय भूख और भृष्टाचार जैसी समस्यायें जन मानस को प्रभावित कर प्रदूषित कर रही हैं । वहीं गोंडवाना समग्र क्रांति के माध्यम से गोंडवाना की सामाजिक सांस्कृतिक आर्थिक धार्मिक राजनैतिक प्रदूषण के विरूद्ध जन आन्दोलन चलाकर हवा का रूख बदलने का प्रयास किया जा रहा है । समाज की आखरी इकाई आदिवासी दलित अल्पसंख्यक तथा गरीब तबके का यह आन्दोलन आशा की किरण के रूप में दिखाई दे रही है । समाज का प्रबुद्ध वर्ग भी इस आन्दोलन के साथ अपने आप को जोडकर गरीब असहाय लोगों के लिये अपनी वर्तमान सोच में बदलाव लाना  चाहता है। साथ ही गोंडवाना आन्दोलन द्वारा चलाये जा रहे गतिविधियों का उचित मानता है । कारण भी है कि आज समाज का प्रत्येक हिस्सा चाहे वह किसी जाति वर्ग या समुदाय का हो अन्याय अत्याचार भृश्टाचार बलात्कार हत्या लूटपाट से तंग आ चुका है । वर्तमान चल रही व्यवस्था से पीडित है । समाज एक एैसा सामाजिक वातावरण चाहता है जिसमें प्रदूशण न हो । राजनेताओं के कृत्यों ने तो राजनीति को

युवाओं के आन्दोलन की नई खेती में मुख्य फसल के साथ साथ नवगुलामों की खरपतवार भी दिखने लगी है । इसे पैदा ना होने दें ।

युवाओं के आन्दोलन की नई खेती में मुख्य फसल के साथ साथ नवगुलामों की खरपतवार भी दिखने लगी है । इसे पैदा ना होने दें । साथियों युवा आदिवासियों द्वारा वर्तमान मनुवादी सामाजिक आर्थिक सांस्कृतिक एवं राजनीतिक व्यवस्था पर लगातार हमले से व्यवस्था के संचालकों की नींद खराब तो हो ही रही है । साथ साथ आदिवासी समाज के उन लोगों पर जो मनुवादियों का हथियार बनकर चल रहे हैं लगातार बैचेनी दिखाई देने लगी है । वे सोचने लगे हैं कि इधर जायें या उधर जायें । कुछ चर्चित चेहरे समय का इन्तजार कर रहे हैं । कुछ समाज की सामाजिक आर्थिक सांस्कृतिक एवं राजनीतिक धारा में बहकर देख रहे हैं। युवा वर्ग के कुछ फ्रेंडस में भी कुछ अवसरवाद के लक्षण दिखाई देने लगे हैं । जो युवा आन्दोनल को नुकसान पहुंचा सकते हैं । इस आन्दोलन का एक पैमाना निर्धारित कर देना चाहिए कि यह आन्दोलन मनुवाद के विरूद्ध है । कहीं भी किसी फ्रेंड की मानसिकता या उनके द्वारा प्रेषित पोस्ट में मनुवादी झलक पाई जाती है तो उसे तत्काल आगाह किया जाये । एक गल्ती को यदि बार बार दुहराता है तो उससे संबंध समाप्त कर लिये जायें । फसल के बीच खरपतवार नुकसानदायक है इसलिये हमार

''गोंडवाना संस्कृति की एक झलक''

a                          '' गोंडवाना संस्कृति की एक झलक '' गोंडीयन संस्कृति की विशालता को समझने के लिए हमें वर्तमान की विभाजित जाति समूह या जातियों के रहन सहन , रीति रिवाज , परम्पराओं का सुक्ष्म अध्यन करना होगा ! आज हम भले ही सविधान की सूचि में अलग अलग वर्ग के रूप में विभाजित हैं , परन्तु आज भी हम सांस्कृतिक रूप में एक हैं ! एक उदहारण के साथ समझा जा सकता है ! जैसे कुम्हार जाति जो मध्यप्रदेश में कुछ जिलों में अनुसूचित जाति की श्रेणी में हें , लेकिन बाकी जिलों में पिछड़ा वर्ग की सूचि से जुड़े हैं , सविधान इन्हें भले ही जातियों के भावात्मक जाल में फसाया हो लेकिन इस जाति ने अपनी पुरानी गोंडीयन संस्कृति को अब तक आत्मसात करके रखा है !  गोंडीयन समाज में ऋतु धर्म / मासिक धर्म का कड़ाई से पालन किया जाता है कुम्हार के घर में यह स्थिति रहने पर मिटटी को नहीं रोंदा जाता ना ही चाक पर कार्य किया जाता । आज भी यह परंपरा विद्धमा
देश को अब आदिवासी समाज के   प्रकृतिवादी दर्श ता   है  ! न   की आवश्यक हमारा देश उद्योग धंधे शिक्षा चिकित्सा के क्षेत्र विज्ञानं एवम प्रोद्योगिकी के क्षेत्र में लगातार आगे बढ़ रहा है ! इस तरह आगे बढ़ना देश की उन्नति का बाह्य स्वरुप है जो लुभावना लगता है ! इस पर सभी को गर्व होता है ! वहीँ देश के आंतरिक स्वरुप पर नजर डालते हैं   तो लगता है हम लगातार गिरते जा रहे हैं ! बाहरी द्रश्य जितना सुन्दर है   आंतरिक व्यवस्था उतना ही कुरूप है ! यह कुरूपता लगातार बढती जा रही है ! एक दिन देश को खोखला करके छोड़ेगी ! इसके जिम्मेदार कौन है ? हम और कितना गिरेंगे ! भ्रस्टाचार बलात्कार व्यभिचार चरम पर है शासकीय धन की लूट मची है हजार लाख नहीं करोड़ों अरबों के घुटाले   हमारी नैतिकता इतनी गिर चुकी है की देश की खुपिया जानकारी भी दुश्मन देशों को बेचने में परहेज नहीं कर रहे हैं ! बलात्कार शब्द भी शर्मशार हो रहा है तीन साल चार साल की अबोध बच्चियों को भी हवस