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Showing posts from January, 2020

फासीवादी दौर और भारत

"फांसीवादी दौर और भारत" देश अब ऐसे मोड़ पर है,जहां अब सत्ता का फासीवादी चेहरा खुलकर आम नागरिक के मौलिक अधिकारों का दमन करने में लग चुका है। आम नागरिक अभी अपनी पहचान बचाने के लिये संघर्ष कर रहा है, तब सत्ता उसे विदेशी पहचान देने में जुटी है ताकि संविधान नहीं सत्ता की विचारधारा के मापदंड में ना आने पर उन्हें डिटेंशन सेंटर में भेजकर एक साथ बम या जहरीली गैस छोड़कर मार दिया जायेगा। इस सत्ता का चरित्र जर्मनी के तानाशाह हिटलर के नक्शे-कदम है। जिस तरह से हिटलर अपने अंधभक्त प्रशिक्षित लोगों(नेताओं) को जनता के बीच दहशत पैदा करके हिटलर के विरोधियों को दबाने का प्रयास करता था ठीक उसी तरह का वातावरण आज की तारीख में भारत देश में दिखाई देता है। सत्ताधारी दल के नेता NRC की सफाई देने जगह जगह जाकर यही कह रहे हैं।कि मोदी और अमित शाह ने जो कहा दिया वहीं सच है।यदि इसका विरोध करोगे तो,जिंदा गडा दिया जायेगा। चाकू,गोली या बम से उडा दिया जायेगा आदि आदि। फिर भी देश के नागरिकों को इससे भयभीत नहीं होना चाहिये ऐसे अतिवाद को मानवतावादी अमनपसंद और संविधान का सम्मान करने वाली पुलिस,मिलिट्री और सुरक्षाबल भी

एन सी आर और एन पी आर

" NPR- एक उलझाव और" 2021 के जनगणना की प्रक्रिया आरंभ हो चुकी है।आम नागरिक इस बात को समझें कि भारत में प्रति 10 वर्ष में देश के नागरिकों की जनगणना होती है। जिसमें परिवार से लेकर धर्म, लिंग ,उम्र,गांव, व्यवसाय विकलांगता सहित शिक्षा से लेकर बहुत से बिन्दुओं का मानक तैयार किया जाता है।फिर भी आज केंन्द्र सरकार को प्रथक से राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर(एनपीआर) को बनाने,और जनता के  पैसे का अपव्यय करने की क्या जरूरत है। जब जनगणना में सभी का रिकार्ड तैयार किया जाता है,तब सरकार को चाहिये कि उसी रिकार्ड से एनपीआर बना लें। परन्तु गरीबी,भुखमरी मंहगाई,बेरोजगारी की तरफ जनता का ध्यान ना जाकर बस इसी में लोग उलझे रहें। और इसी उलझन में फंसकर हिन्दू मुस्लिम के बीच लगातार विरोधाभाषी वातावरण बनाकर आनेवाली लोकसभा में हिंदू राष्ट्र की कल्पना को साकार करने की साज़िश है। ध्यान रहे इस देश में केवल आर एस एस / भाजपा के अंधभक्त ही कट्टर हिंदू हैं । बाकि सब संविधान का सम्मान करने‌ वाले असली भारतीय हैं। जिन्हें ना कट्टर हिन्दुत्व चाहिते ना कट्टर इस्लामियत या इस तरह के अन्य  धर्मांध व्यक्ति या नागरिक। -गुलजा

आर एस एस का गणित और वोट

"आर एस एस का गणित और फीलगुड" यदि आर एस एस हिंदू वोट का ध्रुवीकरण करके अन्य अल्पसंख्यक समुदाय और तीन करोड़ शरणार्थियों को आमंत्रित कर इनके वोट को भाजपा की झोली में डालने को योजना बना रही है तो समझ लो,ईवीएम की कलई जल्द ही खुलने वाली है। सुप्रीकोर्ट ने भी निर्वाचन आयोग को 2014 में हुए आम चुनाव में ई वी एम की गणना में गड़बड़ी के बारे में जवाब मांगा है। चुकीं भाजपा का देश की बिगड़ रही अर्थ व्यवस्था, गरीबी, मंहगाई, बेरोजगारी आदि से कोई सरोकार नहीं है। आपको याद दिला दें। इनकी विचारधारा "फील गुड" की है जमीनी नहीं । जब देश में धीरे धीरे जनता को "ईवीएम की सरकार" के बारे में जानकारी होने लगी,कुछ राजनीतिक दल और नेता इस गड़बड़ी के विरूद्ध लामबंद होते दिखे, जैसे आज  एन आर सी और सीएए के खिलाफ खड़े दिखने लगे हैं। तब ईवीएम के विरूद्ध भी ऐसा ही जनमत तैयार हो गया और २०२४ में फिर से चुनाव में जाना है तब क्या होगा। इसी हड़बड़ाहट ने बहुसंख्यक जनता को फीलगुड कराते हुए 370 से लेकर एनआरसी,सीएए अब एनपीआर जैसी गैरजरूरी  कानून के नाम पर जनता को उलझाकर अपना लक्ष्य साधना चाहते हैं

अंग्रेजी नए साल में एक सोच के साथ आगे बढ़ो

हमारी कोशिश हो की मध्प्रदेश का पूर्व पश्चिम उत्तर दक्छिन का समस्त आदिवासी समुदाय छेत्रियता के दायरे से ऊपर उठकर एक दूसरे से सामाजिक,धार्मिक सांस्कृतिक राजनीतिक भाषिक मेलजोल बढ़ाए ,एक दूसरे पर विश्वास स्थापित करे । यह विश्वास आपको एक दूसरे के दुख तकलीफ को साझा करने में सहायक होगा । साथ ही सामुदायिक उत्तरदायित्व का एहसास कराएगा । जब जब भी समुदाय पर अन्याय होता है ,आपके हक अधिकारों का हनन होता है तब यह सामुदायिक विश्वासआपकी सुरक्छा का संबल होगा।गर्व से कहो हम गोंड हैं गर्व से कहो हम भील है, शहरिया,या कोल हैं,से बात नहीं बनने वाली है।"गर्व से कहो हम आदिवासी हैं" यही आव्हान समुदाय को एक दुसरे के नजदीक ला सकता है। यह विश्वास यदि राज्य का समुदाय कायम करता है तो इसी विश्वास के बल पर देश का पूरब पश्चिम उत्तर दक्छिन "एक सोच एक विचार और एक व्यवहार" से राष्ट्रीय छितिज पर अपना परचम लहरा सकेगा। जहां गोंड,भील,कोल मीणा शहरिया मुंडा,उरांव नहीं " गर्व से कहो हम आदिवासी है" ही गौरव का प्रतीक लगेगा। (गुलजार सिंह मरकाम रासं गों स क्रा आ)