Skip to main content

Posts

Showing posts from January, 2019

"बस एक बार ,आखरी बार। एकजुटता की दरकार।"

"बस एक बार ,आखरी बार। एकजुटता की दरकार।" गोंडवाना आंदोलन की राजनीतिक इकाई में कार्यरत चिंतक समर्थक और समर्पित कार्यकर्ताओं से अनुरोध है,कि विभिन्न कारणों से चुनाव 2018 के विधानसभा चुनाव में, कार्यकर्त्ताओं के बीच आपसी मतभेद बढ़े हैं। इसमें कहीं ना कहीं सामंजस्य और पारदर्शिता की कमी भी एक महत्वपूर्ण कारण रहा है । फिर भी आपके कार्यकर्ता और मतदाताओं ने आपका मन धन से सहयोग कर वोट प्रतिशत को दुगना कर आपके मनोबल को बढ़ाने का काम किया है। अब आपकी बारी है/जिम्मेदारी है कि लोकसभा चुना व 2019 तक समाज और मतदाताओं के मनोबल को कैसे बनाये रखा जाय, ताकि और भी बेहतर परिणाम मिल सके। आपके सामने चुनौती है, कांग्रेस और भाजपा ! कांग्रेस का प्रयास रहेगा कि या तो गोंडवाना के राजनीतिक आंदोलन को पूरी तरह समाप्त कर दिया जाय परंतु इसमें उसे अधिक मेहनत संगठन में तोड़फोड़ करना पड़ सकता है, इसलिए केंद्र सरकार बनाने के लिए यह आपसे समझौता कर सकती है जिसमें उसे कम ताकत लगाना पड़ेगा। चूंकि चुनाव नजदीक है इसलिए वह कम ताकत लगाकर ज्यादा परिणाम लाने का प्रयास कर सकती है। वहीं भाजपा का प्रश्न है वह ऐसा प्रयास करे

"Policy of great leader kansiram"

"Policy of great leader kansiram" कांशीराम ने अपने जीते जी किसी सवर्ण को राष्ट्रीय पदाधिकारी नहीं बनाया उनका कहना था कि हमारे गुप्त एजेंडा की जानकारी इन्हें ना हो,जब तक बहुजन समाज अपने पैरों पर खड़ा होकर उनकी अगुवाई के लायक ना बन जाए , परिणाम सामने था एक दलित महिला मायावती को मुख्यमंत्री पद मिला।जब तक बहुजन समाज पार्टी तथा मायावती कांशीराम के निर्देश पर चली तीन बार मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला।परंतु जब से मायावती ने सवर्णों को उच्च पदों पर बैठाना शुरू कर दिया। सरकार बनाना,दूभर हो गया। क्या गोंडवाना को इससे सबक लेकर केवल गोंडवाना का मूलनिवासी,अजा/जजा/पिछड़ा वर्ग/अल्पसंख्यक को महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी देकर गोंडवाना के राजनीतिक आंदोलन को आगे बढ़ाया नहीं जा सकता ? हमें गोंडवाना के मूलनिवासियों को प्राथमिकता देना चाहिए इन्हें महत्त्व देना चाहिए,ना कि सवर्णों को।  -गुलजार सिंह मरकाम (राष्ट्रीय संयोजक अगोंसक्रांआं )

"राजनीतिक दल और उनके प्रकोष्ठ"

"राजनीतिक दल और उनके प्रकोष्ठ" कभी किसी ने विचार किया कि देश में जितनी भी राजनीतिक पार्टी है उनमें अनुसूचित जाति जनजाति अन्न पिछड़ा और अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ सहित अनेक प्रकोष्ठ बनाए जाते हैं परंतु कोई भी दल "सामान्य वर्ग प्रकोष्ठ" नहीं बनाती आखिर क्यों? क्या इन दलों के मुखिया बिना सामान्य वर्ग को साथ लिये अपने आपको असहाय या कमजोर महसूस करते हैं।या फिर भयभीत रहते हैं। यही कारण है कि देश में जितने भी मूलनिवासी नेतृत्व वाले दल हैं। राष्ट्रीय क्षितिज पर उभर नहीं सके हैं। केवल वही दल  उभरे हैं जिन दलों का नेतृत्व सवर्ण करते हैं। यदि मूलनिवासी नेतृत्व वाले दल इन्हें अपने साथ लेना आवश्यक समझते हैं,तो उनके लिए "सामान्य वर्ग प्रकोष्ठ" बनाकर उनकी क्षमता का मूल्यांकन करें। यह नहीं कि मूलनिवासी समुदाय की जनसंख्या पर अपनी छवि बनाकर अपना कद बढ़ाकर अपने आप को श्रेष्ठ होने का परिचय दें। मेरा व्यक्तिगत विचार है कि देश के सभी मूलनिवासियों के नेतृत्व में चलने वाले दल अपनी पार्टी में ऐसे प्रकोष्ठ तैयार कर उनकी राजनीतिक क्षमता का मूल्यांकन करें।तब समझ में आयेगा कि अन्य योग्यताओं