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Showing posts from November, 2019

समुदाय और सरकार की चुनौती

मध्यप्रदेश में सरकार और आदिवासियों के लिए प्रमुख चुनौती होगी। (१) गोंडी भाषा तथा अन्य आदिवासी भाषाओं के प्राथमिक शिक्षा के लिए बनी समिति के उचित क्रियान्वयन पर समाज की मॉनिटरिंग। तथा ८ वीं अनुसूची में शामिल किए जाने हेतु विधानसभा से प्रस्ताव पारित कर केंद्र सरकार को भेजने के लिए  दबाव। (२) पांचवीं अनुसूची के उपबंध पेसा कानून के उचित क्रियान्वयन के लिए उसके नियम बनाए जाने हेतु समिति का गठन एवम् समाज द्वारा उसकी मॉनिटरिंग। (३)जनजातीय घोषित जिले एवम् विकासखंडों में हर विभाग में जनजातीय समुदाय के अधिकारी कर्मचरियों की नियुक्ति कराने हेतु सरकार पर दबाव। (४) वनाधिकार के व्यक्तिगत,और सामुदायिक दावों का ईमानदारी और निष्ठा से अनुपालन। तथा राज्य सरकार की ओर से सुप्रीकोर्ट में जोरदार पैरवी हेतु सामाजिक दबाव। (५) अनुसूचित घोषित जिले और विकास खंडों में नगर निकाय नगर पालिका की घुसपैठ को प्रतिबंधित करना। (६) ग्राम सभाओं के प्रस्ताव को हर स्तर पर महत्व देना। (७) अनुसूचित घोषित क्षेत्रों में स्वायत्त परिषद या समिति का गठन कराने पर दबाव बनाना। (८) टी एस पी की राशि का दुरुपयोग रोकने पर वक्र दृष्

जे एन यू प्रसंग

"जेएनयू प्रसंग" (निःशुल्क शिक्षा की दरकार है देश को) राष्ट्र को चहुंमुखी समृद्ध करना है,इसकी ख्याति दूर-दूर तक पहुंचाना है, विश्व गुरु बनाना है, तब हमें अच्छे शिक्षित डॉक्टर, इंजीनियर,राजनीतिज्ञ, फिलॉसफर, इतिहासविद, अर्थशास्त्री पैदा करना होगा और ऐसे लोग केवल शिक्षा से ही संभव है जब राष्ट्र का गौरव शिक्षा से ही संभव है,तब शिक्षा को प्राइमरी से लेकर डिग्री स्तर तक निशुल्क क्यों नहीं किया जा सकता ? क्या हम राष्ट्र के गौरव को नहीं बढ़ाना चाहते ? यदि हमारी नियत ठीक है तो हम अन्य  मदों से कटौती करके राष्ट्र के गौरव को बढ़ाने वाली शिक्षा के लिए इतना तो कर ही सकते हैं।(गुलज़ार सिंह मरकाम राष्ट्रीय संयोजक गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन)

भारतीय विकास की अवधारणा

"भारतीय विकास की अवधारणा" हमारे देश में राजनतिक दल या नेता विकास की असली अवधारणा समग्र विकास जिसमें जीवित रहने के लिए रोजी रोटी, रोजगार, स्वास्थ, शिक्षा, पर्यावरण ,भाई चारा सौहार्द्र जैसे मूलभूत आवश्यक कार्यों को प्राथमिकता में रखकर जनता को अपनी ओर आकर्षित कर सत्ता हासिल करना चाहिए लेकिन इन विषयों को प्राथमिकता देने की बजाय जनता की मानसिकता में विकास का पर्याय केवल रोड, बिजली,सड़क या भावनात्मक मुद्दे जिससे समग्र विकास का कोई सरोकार नहीं, को भर दिया गया है, जिसके कारण विकास की असली अवधारणा गौढ़ हो जाती है, जनता इसे ही विकास मानकर किसी दल या नेता के प्रति आकर्षित होकर उसे सत्ता सौंप देती है, भारत देश की जनता की इसी कमजोर मानसिकता ने भारत को पिछड़ा करके रखा है। जबकि जनता को सत्ता या नेता से अपनी मूलभूत आवश्यकता के बारे में सवाल करना चाहिए पर वह रोड बिजली सड़क पर सवाल करके उस पर आश्वासन पाकर खुश हो जाता है। गली चौराहों चौपालों में बस यही बात तैरती रहती है पूरे पांच साल इसी में गुजर जाते है, चुनाव आया फिर से यही कहानी दोहराई जाती है,जनता पुनः इस जाल का शिकार हो जाती है। स

"नाचलो गा लो या अधिकार हासिल कर लो"

"नाचलो गा लो या अधिकार हासिल कर लो" सहनशील साहसी और ताकतवर आदिवासी की आक्रामक क्षमता जिसके बल पर वह भुखमरी से लड़ लेता है,जंगल में शेर भालू से लड़कर उसे परास्त कर देता है ,विश्व के मानवशास्त्री इसकी अक्रामक क्षमता को भारत ही नहीं दुनिया के स्तर पर कमजोर करने के लिये इनके ,निजी सांस्कृतिक जीवन में खुसी के मौके ,या समय समय पर किये जाने वाले नृत्य तथा गायन को ही उसकी सम्पूर्ण पहचान बताकर उसे मात्र मनोरंजन का पात्र बना दिया गया है। जिसके कारण अब वह अपने संवैधानिक हक अधिकारों तक को हाशिल करने के लिये अक्रामक तरीके से प्रस्तुत नहीं होता,मेरा मानना है कि आदिवासियों को चाहिये कि वे अपनी नृत्य गायन को अपने पुरखों की भांति अपने तीज त्यौहार,जन्म विवाह या फसल आने  के अवसर पर ही परंपरागत तरीके से आनंद लें। किसी छोटे आर्थिक लाभ या किसी नेता मंत्री के सम्मान के लिये सार्वजनिक प्रदर्शन न करें। अपनी माता बहनों के पारंपरिक इज्जत को सरेराह ना बेचा जाये। आज के इस कठिन और प्रतियोगिता भरे समय समय में अपने हक अधिकारों को हाशिल करने के लिये,ज्ञान विज्ञान के साथ अक्रामक रूख अख्तियार करना आवश्यक ह

आदिवासी और जनगणना 2021

"जनगणना 2021 और आदिवासी समुदाय" ट्राईबल रिलीजन कोड की मुहिम में लगे सभी आदिवासी धार्मिक संगठनों से अपील है कि वे एक दूसरे से संपर्क करके मुहिम को तेज करें ताकि देश में आने वाला जनगणना कार्य 2 020 से आरंभ हो जायेगा। जनगणना आरंभ होने के पूर्व यदि हमारे आदिवासी,मूलवासी, आदिम समूह के विभिन्न पंजीकृत अपँजीकृत संगठन यदि एकजुट होकर कोड/कालम में एक नाम को रजिस्ट्रर्ड नहीं करा पाये तो आने वाली पीढ़ी,हमें माफ नहीं करेगी । हमसे यह प्रश्न जरूर करेगी कि हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई बौद्ध पारसी भी अपने धर्म समूह में अलग पहचान बनाकर  अपने तरीके से अलग अलग  पूजा पद्धति अपनाकर कार्य करते हैं पर जनगणना के समय एक ही धर्म कोड में अपनी उपस्थिती या गणना कराते हैं। क्या आदिवासी समुदाय अपने विभिन्न अपनी पहचान को सुरक्षित रखते हुए एक कालम/कोड में  सामुदायिक पहचान को राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित नहीं कर सकता ? यदि नहीं तो आने वाले समय में यह इतिहासिक भूल आदिवासी इतिहास में काले पन्नों का अध्याय बनेगा। आज इतनी सामाजिक जनचेतना के बावजूद अनेकों सेमिनार और चर्चा के बाद भी हम ऐसा नहीं कर सके तो,इसके जवाबदे

वन कानून 1927 का प्रस्तावित संशोधन बिल

" सामूहिक समस्या सामूहिक उत्तरदायित्व" वन अधिनियम 1927  कानून का प्रस्तावित संशोधन आदिवासियों ही नहीं वरन् वन क्षेत्र में निवास करने वाले अन्य परंपरागत वन निवासियों की स्वच्छंदता स्वायत्तता और परंपरागत कृषि, स्वास्थ्य उपचार और पर्यावरण संरक्षण की दिशा में आदिवासी ही नहीं देश के भूगोल और पर्यावरण को भी तहस-नहस करने के लिए लाया जा रहा है। प्रस्तावित कानून के ड्राफ्ट में आदिवासी जंगल से स्वास्थ्य के लिए जड़ी बूटी, अपने मकान बनाने तथा हल बखर, बैलगाड़ी के लिए लकड़ी नहीं ला पायेगा । इस नए संशोधित कानून का प्रारूप वन अधिकार अधिनियम 2006 तथा पेसा कानून के प्रावधानों को पूरी तरह खारिज करता है, उदाहरण के लिए यदि कोई व्यक्ति किसी की स्वास्थ्य उपचार हेतु जंगल में जड़ी बूटी लेने जाता है तो उसे वन कर्मी बिना पूछताछ किए जंगल में घूमने का आरोप लगाकर जेल भेज सकता है या उसकी मर्जी के हिसाब से नए कानून के आधार पर प्राप्त बंदूक से उसका एनकाउंटर कर सकता है। जिसकी सुनवाई केवल वन विभाग तंत्र की रिपोर्ट के आधार पर ही संभव है। वन कर्मी अभी कह दे तीन संदिग्ध रूप में वन क्षेत्र में घूम रहा था तो उ