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Showing posts from October, 2017

"1 नवम्बर गोंडवाना के लिये काला दिवस है"

"1 नवम्बर गोंडवाना के लिये काला दिवस है" गोंडवाना के स्वर्णिम इतिहास में 1 नवम्बर सदैव काला दिवस के रूप में जाना जाता है और भविष्य में भी जाना जायेगा । कारण है कि देश में भाषावार राज्य बनाये जा रहे थे तब, हर भाषिक बहुल क्षेत्र को ध्यान में रखकर राज्यों की सीमा निर्धारित की गई ! पंजाबी, गुजराती ,मराठी, उडिया, बंगाली, कन्नड, मलयाली भोजपुरी असमी आदि भाषाओं के नाम पर उस राज्य का नाम दिया गया लेकिन, मध्य गोंडवाना राज्य जो पहले से ही अस्तित्व में था यहां गोंडी भाषा बोली जाती थी ग ोंडी भाषा की बहुलता को नकारते हुए 1 नवम्बर 1956 को मध्यप्रदेश के नाम से राज्य बना दिया । काला दिवस इसलिये भी है कि , मध्यप्रदेश तो बनाया गया लेकिन गोंडी भाषा बहुल जनसंख्या को तोड दिया गया कुछ जिलों के गोंडी भाषिकों को महाराष्ट्र में , कुछ जिलों को आन्ध्र, उडीसा, उप्र, गुजरात आदि में मिलाकर गोंडवाना की भाषाई ,सांस्कृतिक और जनसंख्या शक्ति को छत विछत कर दिया गया । यही कारण है कि विशाल एैतिहासिक गोंडवाना राज्य की जनता आज अपनी भाषा धर्म , संस्कृति और अस्तित्व को बचाने के लिये संघर्ष कर रही है । इसका सीधा जि

भारत देश में प्रचलित प्रमुख विचारधाराऐं और उनसे संबंधित "छात्र संगठन"

part-3 भारत देश में प्रचलित प्रमुख विचारधाराऐं और उनसे संबंधित "छात्र संगठन" 1.मनुवादी विचारधारा हिन्दू धर्म का प्रतिनिधित्व -प्रमुख राजनीतिक दल- भाजपा, शिवसेना -आदर्श पुरूष. दीनदयाल उपाध्याय- गोलवलकर हेगडेवार-प्रमुख छात्र संगठन "एबीवीपी" 2.साम्यवादी विचारधारा- धार्मिक कर्मकांड मुक्त विचारधारा का प्रतिनिधित्व- प्रमुख दल -भाकपा- माकपा- आरएसपी -आदर्श पुरूष. कार्लमार्क , लेनिन, भगतसिंह- प्रमुख छात्र संगठन "एस एफ आई" 3.समाजवादी विचारधारा- हिन्दू धर्म का प्रतिनिधित्व -प्रमुख दल -सपा , जद लोकदल-आदर्श पुरूष- जयप्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया -प्रमुख छात्र संगठन "एसएसयू" 4.गांधीवादी विचारधारा -हिन्दू धर्म का प्रतिनिधित्व -प्रमुख् दल- कांग्रेस राष्ट्रवादी कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस-आदर्श पुरूष.महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू- प्रमुख छात्र संगठन "एनएसयूआई" 5.अम्बेडकरी विचारधारा -बौद्ध धर्म का प्रतिनिधित्व- प्रमुख् दल- बसपा आरपीआई, बीमपी -आदर्श पुरूष-.डा0 भीमराव अम्बेडकर, कांशीराम- प्रमुख छात्र संगठ

भारत देश में प्रचलित प्रमुख विचारधाराऐं और उनसे संबंधित "आदर्श पुरूष"

PART- 3 भारत देश में प्रचलित प्रमुख विचारधाराऐं और उनसे संबंधित "आदर्श पुरूष" 1.(मनुवादी विचारधारा ) हिन्दू धर्म का प्रतिनिधित्व -प्रमुख राजनीतिक भाजपा, शिवसेना -आदर्श पुरूष- दीनदयाल. उपाध्याय ,गोलवलकर, हेगडेवार 2.(साम्यवादी विचारधारा ) धार्मिक कर्मकांड मुक्त विचारधारा का प्रतिनिधित्व- प्रमुख दल भाकपा माकपा आरएसपी -आदर्श पुरूष- कार्लमार्क, लेनिन, भगतसिंह 3.(समाजवादी विचारधारा) हिन्दू धर्म का प्रतिनिधित्व -प्रमुख दल सपा, जद, लोकदल- आदर्श पुरूष- जयप्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया ! 4.(गांधीवादी विचारधारा ) हिन्दू धर्म का प्रतिनिधित्व -प्रमुख् दल कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस- आदर्श पुरूष-महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू 5.(अम्बेडकरी विचारधारा) बौद्ध धर्म का प्रतिनिधित्व- प्रमुख् दल- बसपा, आरपीआई, बीमपी -आदर्श पुरूष-डा. भीमराव अम्बेडकर ,कांशीराम 6.(गोंडियन आदिवासी विचारधारा)प्रकृतिपुनेम का प्रतिनिधित्व- प्रमुख् दल झाारखण्ड मुक्ति मोर्चा, भागोंपा, गोंगपा आदर्श पुरूष-केप्टन जयपाल मुंडा NOTE :-अगली कडी में इन विचारधाराओं के सामाजिक आर्थिक शैक्षिक संगठनो

"भारत देश में प्रचलित प्रमुख विचारधाराऐं और उनसे संबंधित धर्म"

(1) "भारत देश में प्रचलित प्रमुख विचारधाराऐं और उनसे संबंधित "धर्म" -हमारे भारत देश में भारत अर्थात धर्म संस्कृति एसभ्यता के वर्चस्व स्थापित करने का संघर्ष है, एैसे समय में प्रत्येक विचारधारा की अगुवाई करने वाले प्रमुखतया सामाजिक, धार्मिक,आर्थिक, शैक्षिक, संगठनों के साथ साथ विचारधारा को मजबूत करने वाले राजनीतिक संघटन और उनके आदर्श पुरूष एवं साहित्य भी होते हैं जो सत्ता में आने के बाद अपनी विचारधारा की धर्म ,संस्कृति, सभ्यता का संरक्षण करते हैं । -भारतीय परिवेश में मूलतः निम्नलिखि त विचारधाराऐं अपने अपने काम में लगी हैं । 1-मनुवादी /विचारधारा - हिन्दू धर्म का प्रतिनिधित्व 2.साम्यवादी विचारधारा - धार्मिक कर्मकांड मुक्त विचारधारा का प्रतिनिधित्व 3.समाजवादी विचारधारा- हिन्दू धर्म का प्रतिनिधित्व 4.गांधीवादी विचारधारा - हिन्दू धर्म का प्रतिनिधित्व 5.अम्बेडकरी विचारधारा- बौद्ध धर्म का प्रतिनिधित्व 6.गोंडियन/आदिवासी विचारधारा-प्रकृति पुनेम (धर्म) का प्रतिनिधित्व (2)- "भारत देश में प्रचलित प्रमुख विचारधाराऐं और उनसे संबंधित "राजनीतिक दल " 1.मनुवादी ध्विचा

"गोन्डियन सन्स्क्रति मे पेन्क भीना( देव स्थापना स्थल)"

"गोन्डियन सन्स्क्रति मे पेन्क भीना( देव स्थापना स्थल)" भारत में हिन्दू नाम का शब्द आने तथा गोन्डियन सन्स्क्रती की भाषा में हिन्दी के प्रवेश के कारण गोन्डियन व्यवस्था के धारको मे अनेक परिवर्तन हुए । आचार विचार के साथ व्यवहार पर भी परसन्स्क्रति का प्रभाव पडा । कहानियो, लोकोक्तियो ,गीतो आदि अनेक परम्परागत बिन्दुओ असर पडा । यही तक ही नही , पेन के स्थान भी बदले गये इस सन्दर्भ मे देश के विभिन्न हिस्सो से प्राप्त जानकारी और खोजी प्रयास के दौरान देखने को मिला है कि वर्तमान समय में गोन्डियनजनो के पेन्क के बैठक या अराधना स्थलो की स्थिति निम्नलिखित है । (१) -प्रकृतिशक्ति पड़ापेन स्थल जो नार व्यवस्थापन के समय मुख्य ७ व्यक्ति तथा ६ सहायक, जिनके माध्यम से नार को मेढो, सिवाना से लेकर घाट ,पनघट, खेत खलिहान, खीला मुठवा, ठाकुर पेन सहित खेरमाई मातादाई, याया सहित अन्य पेन्क के स्थान नियत किये गये जिनकी पूजा अपने अपने स्थान में होती है पर्व विशेष के अवसरों पर किन्हीं क्षेत्रों में सबका केन्द्रीय पूजा का स्थान अलग अलग न करके ठाकुरपेन स्थल तथा खेरमाई स्थल मे रखा गया हो ऐसा प्रतीत होता है । तभी

"सान्स्क्रतिक और राजनीतिक युद्ध क्षेत्र"

(1) "सान्स्क्रतिक और राजनीतिक युद्ध क्षेत्र" जहाँ सामाजिक,धार्मिक, सान्स्क्रतिक युद्ध अपने उच्चतम सोपान में हो , वहाँ राजनीतिक क्रियाकलापों की बलि चढ़ा देनी चाहिये। तब जब वह कार्यकर्ता किसी राजनीतिक दल का पदाधिकारी ना हो यदि किसी दल विशेष का काम करता है तो उसे अपने सामुदायिक पद से त्यागपत्र देकर खुला प्रचार करना चाहिए। इसमें समुदाय, समाज को कोई आपत्ति नहीं। वरन् समुदायद्रोही या समाजद्रोह का भागीदारी है । समाज समुदाय इस  प र   टिप्पणी जरूर करे , अन्यथा हम अपना सामाजिक,धार्मिक, सान्स्क्रतिक युद्ध कैसे जीतेंगे। दलाल, समाज समुदाय की दलाली करते रहेंगे। समाज अपने उत्थान के सपने देखता रहेगा।-gsmarkam (2) "चित्रकूट विधानसभा चुनाव और गोन्ड समुदाय" क्या ये सच है कि"गोन्ड महासभा जिला सतना" के जिला अध्यक्ष गन्गा सिंह परस्ते चित्रकूट विधानसभा में"भाजपा"के प्रचार में लगे हैं। यदि हा तो गोन्डियन भाषा, धर्म, सन्सक्रति को गोन्ड महासभा मजबूत करने का काम कर रहा है या गोन्डियन भाषा, धर्म, सन्सक्रति के प्रथम दुश्मन और आरएसएस के पुत्र भाजपा का प्रचार क

"शुरू करो असली आजादी की लड़ाई"

(1)"शुरू करो असली आजादी की लड़ाई" देश में यदि मूलनिवासी समुदाय की मानसिकता अपने आप को देश का मालिक समझता है। सिन्धुघाटी का स्रजनकर्ता मानता है तो उसे कान्शीराम (बहुजन आन्दोलन के नायक) की सलाह के आधार पर आजादी की तीसरी लड़ाई का सन्खनाद कर देना चाहिए, ध्यान रहे यह लड़ाई धनबल अर्थ बल से नहीं लडना है। यह लड़ाई मूलनिवासीयो को सान्स्क्रतिक बल के आधार पर लडना होगा। जिसके पास यह पून्जी है उसके मार्गदर्शन में चलना होगा। इसमें इगो या अहन्कार को तिलान्जली देना होगा। याद रहे अन्ग्रेजो के विरुद्ध सबसे पहले किसने बगावत की थी? बाद में इसे अन्य समुदाय ने हवा दी। आज भी यदि आन्दोलन की शुरुआत होगी तो पुनः इतिहास दुहराना पडेगा। आग आदिवासी लगायेगा हवा सभी मूलनिवासीयो को देना होगा। (देशी,विदेशी का आन्दोलन छेड़ दो ) देश का असली पट्टा आदिवासी के पास है।-gsmarkam (2)"जनक्रांति और संविधान" क्रांति की अगुवाई कुछ लोग करते हैं, पर क्रांति आम जनता की ओर से होता है । अगुवा संवैधानिक प्रतिबद्धताओं को जानता है, पर जनता इससे अन्जान रहती है । चूंकि क्रांति पर जब जनता की मुहर लग जाती है तब संवैधानिक

"राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग और आदिवासी हित"

"राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग और आदिवासी हित" राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग की उच्चस्तरीय टीम का आयोग के अध्यक्ष के नेतृत्व में जनजातियों की स्थिति पर विमर्श के लिये मध्यप्रदेश में दौरा हो रहा है । कार्यकृम विवरण :- (1) दिनांक 25 10-2017 छिंदवाडा रेस्ट हाउस 11 बजे से (2) दिनांक 26 10-2017 होशंगाबाद रेस्ट हाउस 11 बजे से (3) दिनांक 27 10-2017 भोपाल सर्किट हाउस 11 बजे से आदिवासी समाज के बन्धुओं से अनुरोध है कि इस टीम के साथ विमर्श में भाग लें और स्थानीय समस्या के साथ निम्न बिन्दुओं का ज्ञापन जरूर प्रस्तुत करें । 1- मध्यप्रदेश राज्य में पांचवीं अनुसूचि के कानून के उचित क्रियान्वयन के लिये नियम बनाया जाये । 2- म0प्र0 राज्य जनजातीय मंत्रणा परिषद का अध्यक्ष पद जनजाति के लिये सुरक्षित किया जाय । 3- मध्यप्रदेश के समस्त 89 घोषित आदिवासी विकासखण्डों तथा घोषित आदिवासी जिलों में खण्ड विकास अधिकारी और सहायक आयुक्त आदिवासी विकास केवल जनजाति वर्ग से हो । 4-पांचवीं अनुसूचि के अंतर्गत आने वाले समस्त विकासखण्डों और जिलों में नगरनिगम,नगरपालिका तथा नगरपंचायतों की व्यवस्था को समाप्

"पूनल वंजी पाबून"और "दिवारी पंडुंम(पाबून)"

"पूनल वंजी पाबून"और "दिवारी पंडुंम(पाबून)" क्या है पूनल वंजी पाबून ये तो पहले ही "नवाखाई" (वंजी, गाडा (गुल्ली) जन्नांग, कायांग आदि)के रूप में मना लिया गया । जिसको गोंडी भाषा नहीं आती हो एैसे लोग इन नकली नाम की स्थापना से भ्रमित हो जाते हैं । गोंडियन त्यौहारों के नाम संज्ञा के साथ एक शब्दीय होते हैं विश्लेषण के साथ नहीं बताया जाता । यहां तो पूनल वंजी तिंदाना पाबुन यानि हिन्दी वाक्य का हूबहू अनुवाद हो गया । जबकि दिवारी कह देने से इससे संबंधित सभी क्रियाकलाप समाहित हो जाते हैं फिर ये नया नाम किसलिये ? "एक और शब्द जिसका उपयोग कुछ लोग कर लेते हैं पडडुम यह शब्द गोंडी भाषा में कोई अर्थ नहीं निकालता इसका असली रूप पन्डुम है । जो पंडीना या पके हुए से संबंधित है । इस पर चर्चा कर मानक शब्द का उपयोग हो सके । ( बंदर के हाथों उस्तरा नहीं थमा देना चाहिये अन्यथा पूरी कटिंग बिगडने का डर रहता है । )" मेरे सुझाव को मित्रगण अन्यथा में ना लें । -gsmarkam

"तुम किताबों में लिखो अपनी बयां"

"गम तो है कि मेरी लाशें गिन गिनकर जश्न मनाते हैं लोग । अब मैं भी उनके मुर्दों का हिसाब रखने लगा हूं ।"  "तुम किताबों में लिखो अपनी बयां ये किताबी ही कहलायेंगे । हम तो इतिहास की नींव के पत्थर हैं दोस्त जहां खोदो वहीं मिल जायेंगे । नीव के हर पत्थर पर लिखा होगा गोंडवाना इनके सामने तुम्हारी रोशनाई कहां टिक पायेंगी ।"-gsmarkam (रोशनाई यानि कागज पर लिखी इबारत)

"दिवारी का दीपक से कोई संबंध नहीं है ।"

"दिवारी का दीपक से कोई संबंध नहीं है ।" दिवारी का दीपक से कोई संबंध नहीं है । दिवारी यदि दीप महोत्सव होता तो गोंडी में दीपक को टवरी कहा जाता है । टवरी महोत्सव होता दीपावली नहीं । दिवारी में बैल गाय पूजन कृषि उपज जिसमें धान और खासकर उढद की दाल का उपयोग जिसके व्यंजन बनाकर गाय बैलों को खिलाकर बाद में धर के सदस्य खाते हैं सुबह उनके नाम पर खेरमाई खिरखा में आयेजन होता है । । तथा हमारे कोपाल अहीर द्वारा अपने गाम के गाय बैल बछडों के लिये छाहुर बांधना और बैगा भुमका दवार के साथ रात्रि में गांव के प्रत्येक द्वार में जाकर गौशाला में गाय बैलों की विशेष्ता बताते हुए आर्शिवाद देना । इस रात्रि के कार्यकृम में बैगा दवार कोपा अहीर और गुरूवा गांगो चंडी के स्थापनाकर्ता के साथ ढोलिया या गांडा के वादय यंत्र के साथ रात भर गृह जागरण का कार्य होता है । यही दिवारी है ,दीपक से इसका कोई संबंध नहीं यदि इसका मतलब दीपक से होता तो हमारे मूलविासी लोगों की भाषा में दीया को टवरी कहा जाता है टवरी महोत्सव होता । इसी दिन से गुरूवा गांगो अर्थात जंगो लिंगो की स्थापना की जाती है जो एकादशी तक मडई के रूप

"कान्ग्रेस के भय से भाजपा को वोट अब भाजपा के भय से कान्ग्रेस को वोट !

"कान्ग्रेस के भय से भाजपा को वोट अब भाजपा के भय से कान्ग्रेस को वोट ! कही लोकतंत्र "भयतन्त्र का शिकार तो नहीं हो रहा है"  --लोकतन्त्र यानि भयमुक्त व्यवस्था जहां अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ साथ बिना भय के अपनी इच्छा का प्रतिनिधि चुनना। परन्तु भारतीय लोकतंत्र ने अनेक दौर देखे है जहा दलो की विचारधारा को जाने बगैर चुनाव चिन्ह को देखकर वोट दिया गया । अगला दौर भी आया जब मतदाता का मत छीनकर बूथ केप्चरिग से व्यक्ति विशेष को जबरदस्ती जनप्रतिनिधि स्वीकार कराया गया । मतदाताओं  की अज्ञानता का लाभ उठाते हु, एक और प्रयोग वोटिंग मशीन ने तो दल विशेष के लिये सोने में सुहागा का काम किया है सत्ता में आने के बाद उसके लगातार उपयोगिता को निर्वाचन आयोग की मुहर लगवाने से भी नहीं चूक रहे हैं यानि आंखों में लगातार धूल झोकना । मतदाता सत्ताधीशों के इन लोकतंत्र विरोधी निर्णयों कृत्यों से अपने आप को लगातार असहाय पा रहा है । एैसे आम चुनाव स्थानीय चुनाव के अनेक दौर में मतदाताओं ने लगातार ऐसे क्रत्यो का सामना किया है । इन कृत्यों के बाद भी एक थैली के चटटे बटटे कांग्रेस भाजपा ने आरंभ से लेकर अब तक ती

प्रकृति पुनेम और पात्र आधरित संम्प्रदाय ।

प्रकृति पुनेम और पात्र आधरित संम्प्रदाय । कोई धर्म ग्रंथ यदि अपने पात्रों के अच्छे कर्मों आचरणों पर चलने चलाने का प्रयास कराता है,तो समझ लो वह धर्म कमजोर है जो पात्रों को सामने लाकर उन्हें महिमा मंडित करता है । वह धर्म नहीं उनके द्वारा अपने तरीके से चलाये गये मार्ग हैं जिन्हें संम्प्रदाय कहना ज्यादा उचित है । धर्म तो नैसर्गिक प्रकृतिगत दर्शन है, जिसे देखकर सुनकर उसका अनुशरण, आचरण करना ही असली धर्म है । जिस धर्म में किसी पात्र को मुखिया या गुरू मान लिया गया वह संम्प्रदाय से ज्यादा कुछ नहीं परन्तु जिस धर्म में निसर्ग या प्रकृति को गुरू माना गया हो वही धर्म है । पुनेम,आदि,प्रकृति धर्मों का आाधार व्यक्ति या पात्र नहीं स्वयं प्रकृति है निसर्ग है । इसलिये कहा जा सकता है कि हमारे देश में व्यक्तिवादी धर्म अर्थात संप्रदायों का ही बोलबाला है । टीप-(धर्म शब्दावली का उपयोग मात्र उस संप्रदाय अथवा मार्ग के बारे में समझने के लिये लिया गया है ।)gsmarkam 

"आदिवासियत (tribalism)ही भारत देश की असली मुख्यधारा है ।"

"आदिवासियत (tribalism)ही भारत देश  की असली मुख्यधारा है ।" जानकारी के अभाव मे या अहन्कार की आत्मतुष्टि के कारण इस तथ्य को भले ही कोई स्वीकार करे या ना करे पर मेरा मानना है कि आदिवासियत (tribalism)ही भारत देश  की असली मुख्यधारा है । इसलिये गोन्डवाना के आदिवासी दलितो, पिछडे वर्ग के बन्धुओ, शूद्रत्व या दोयम दर्जे से मुक्ति पाना है तो इस देश की मुख्य धारा "आदिवासियत (tribalism)" को स्वीकार करना होगा । कारण भी है  कि हजारों साल के विदेशी सान्सक्रतिक राजनीति आक्रमण के बाद भी आदिवासियो ने देश की मुख्यधारा जिसमें भेद रहित मूल सामाजिक व पन्च परमेश्वर की नैसर्गिक न्याय व्यवस्था, देश की मूल भाषा ,सन्सक्रति,धर्म, रीति रिवाज और परम्परागत व्यवस्था को कायम रखा हुआ है। जिसके प्रमाण आपको ग्राम्य जीवन में देखने को मिल जाता है। आज भी ग्राम के देवी देवता जिनमें , खेरमाई, माता माई या याया देश के हर गाँव में विराजमान है, खीला मुठवा, भीमालपेन भीलटबाबा या पटैल बाबा जैसे ग्राम के रक्षक माने गये आराध्य पर आपकी आस्था समाप्त नहीं  हुई है। भले इन आराध्य देवी देवताओं को आप भाषाई भिन्नता के

"फेकचन्द पर व्यन्ग" & "मन की बात"

(1)        "फेकचन्द पर व्यन्ग" फेक मारने का तजुरबा, पैसा देकर सीखा है । सौ सौ झूठ बोलकर हमने, सच को बनते देखा है। बेवकूफ हो तुम , अब भी सच्चाई पर ही टिके रहो । हम सत्ता सुख भोग रहे हैं, तुम ऐसे ही पडे रहो । मीठी चाय बताकर हमने, सबको फीका पिला दिया । वोटों को मशीन में गिनकर , सबको पानी पिला दिया। चार दिन की है जिन्दगी, अच्छाई से तुम जुड़े रहो । चार दिवस तो अपने ही हैं, क्यों ना जमकर मौज करो । बेवकूफ तुम मौज क्या जानो , स्वर्ग नरक को धरे रहो । सच्च झूठ के इस झन्झट में, जब तक चाहे फसे रहो । हम तो भैया फेक चन्द हैं, जब तक चले हम फेकेगे । जब तक तवा गर्म रहता है, तब तक रोटी सेकेंगे । इतने से भी नहीं समझे तो , लानत है खुदगर्जी पर । भूख प्यास से मरो रात दिन, या दडबे में घुसे रहो । हम सत्ता सुख भोग रहे हैं, तुम ऐसे ही पडे रहो ।-gsmarkam (2)  "मन की बात" मन की बात ही मनमानी है, अन्दर हो या बाहर से। तानाशाही झलक रही है, इनके हर लफ्फाजो में।।१।। गर्म तवे पर बैठ भी जाये , ऐसा भी हो जाये कभी । ना करना विश्वास कभी , इन शातिर तानाशाहो से । मन की बात ही मनमानी है, अन्दर हो या ब

"कब तक चलेंगे कथित विकास के प्रयोगवादी कार्यकृम"

"कब तक चलेंगे कथित विकास के प्रयोगवादी कार्यकृम" हमारे देश के मेरिटधारी ,देश में गरीबी उन्मूलन, शिक्षा ,स्वस्थ्य,बेरोजगारी और अन्य मूलभूत समस्याओं से निपटने के लिये लगातार प्रयोग ही कर रहे हैं कथित आजादी के इतने वर्ष बीत जाने के बाद भी किसी एक विषय पर भी लक्ष्य को हासिल नहीं कर सके हैं । प्रत्येक विषय पर प्रयोग पर प्रयोग किया जा रहा है । समस्या समाधान के इस प्रयोग में अब तक अरबों रूपये व्यय किये जा चुके हैं । एैसा नहीं कि एैसे प्रयोग करने के लिये सामान्य नीति अपनाई गई हो ।  इनके लिये प्रत्येक विषय के विशेषज्ञों को मोटी रकम और सुविधाऐं दी जाती हैं फिर भी आज तक ये विशेषज्ञ क्या कर रहे हैं,राष्ट्र का धन और समय व्यर्थ जा रहा है । सत्तायें बदल रहीं हैं पर प्रशासनिक तंत्र तो स्थायी है फिर भी किसी बिन्दु पर ये विशेषज्ञ और इनका तन्त्र खरा क्यो नहीं उतर पा रहा है । क्या इसी तरह प्रयोगवादी कार्यक्रमो मे लगने वाले धन की बन्दर बान्ट होती रहेगी ? प्रयोग सफल तो होना नही है, अगली बार पुन: इसी विषय पर नया प्रयोग नया बजट नये विशेषज्ञ, परिणाम पुन: वही । आखिर कब तक देश का नागरिक इनकी कथित मेरि

आदिवासी स्वशासन और नियंत्रण के लिए परम्परागत रूढी व्यवस्था को सुदृढ़ करते हुए राज्यों में स्थानीय नियम बनाए जाने हेतु राज्यपाल पर दबाव बनाया जाए"

आदिवासी स्वशासन और नियंत्रण के लिए परम्परागत रूढी व्यवस्था को सुदृढ़ करते हुए राज्यों में स्थानीय नियम बनाए जाने हेतु राज्यपाल पर दबाव बनाया जाए" हमारे बहुत से मित्र ५वी अनुसूचि और पेसा कानून पर लगातार अध्ययन कर रहे हैं। पहली बात तो हमें यह ध्यान देना है कि केन्द्रीय कानून में जब ५वी अनुसूची के अन्तर्गत जनजाति बहुल १० राज्यो को अधिसूचित किया गया तब उन राज्यों को छ: महीने के भीतर राज्य में क्रियान्वयन के लिए नियम बना लेना चाहिए था लेकिन किसी राज्य ने स्थानीय नियम जिसके माध्यम से क्रियान्वयन होता नही बनाये । प्राप्त जानकारी के अनुशार अभी अभी दो चार सालो मे चार राज्यो मे कानून नियम बने होने की जानकारी मिल रही है । मध्यप्रदेश तो अभी तक इससे अछूता है । खैर जनजाग्रति से इसके नियम भी बन जाये । परन्तु जिस चालाकी से राज्यो ने ५वी अनुसुचि के नियम बनाने के पूर्व पेसा कानून को लाकर उसमे ५वी अनुसूचि के कुछ प्रावधानो को शामिल कर आदिवासियो को सन्तुष्ट करने का प्रयास करते हुए स्व शासन और नियन्त्रण को त्रिस्तरीय पन्चायती राज के अधीन कर दिया और शेड्यूल्ड एरिया मे एक और शासन तन्त्र नगर निकाय को

(सामुदायिक वनाधिकार के लिये ग्रामसभा ने भौतिक निरीक्षण के साथ अपना दावा प्रस्तुत किया ।)

"प्रकृति और पर्यावरण की सुरक्षा करता है अलीराजपुर जिले के सोण्डवा विकासखण्ड का आदिवासी बहुल ककराना ग्राम ।" (सामुदायिक वनाधिकार के लिये ग्रामसभा ने भौतिक निरीक्षण के साथ अपना दावा प्रस्तुत किया ।) ------------------------------------------------------------------------------------ जल जंगल जमीन पर काम करने वाली हमारी विशेष टीम(मगन भाई एवं शंकर भाई अलीराजपुर समाधान पाटिल गुलजार सिह मरकाम भोपाल जंगलसिह परते बैतूल एवं ध्रुव भाई सतना ) ने लगातार चार दिनों से ककराना ग्राम के जल जंगल जमीन की स्थिति का स्थल निरीक्षण किया । जैसा कि हमें पूर्व में जानकारी दी गई थी कि इस ग्राम के लोगों नें अपनी परंपरागत सीमा में आने वाले वनभूमि और उस पर लगे जंगल की स्वयं रक्षा करते हुए अपने वनक्षेत्र को हरा भरा रखा है ग्रामवासियों नें मिलकर एक चैकीदार रखा है जो दिनरात अपने सीमावर्ती वनों की देखभाल करता है ग्रामवासियों का मानना है कि जंगल रहेंगे तो वर्षा होगी वर्षा होगह तो हमारी फसल होगी जब फसल सही होगा तो हमारी जीविका अच्छी तरह से चलेगी । इसी सोच को लेकर उनहोने काह कि वनविभाग के संरक्ष