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Showing posts from October, 2019

"सत्ता का चरित्र"

"सत्ता का चरित्र" "सत्य,नैसर्गिक है सबके लिये समान है,पर सत्ताऐं केवल अपने सत्य को ही सर्वोपरी मानती है,तथा अपने सत्य के विरोधी को दंड देती है। इसलिए सत्य के विजय के लिए सत्ता से संघर्ष करना पड़ता है । सत्ता अपने हित को जनहित बताकर जनता को नहर, बांध, अभ्यारण, उद्योग लगाने के नाम पर विस्थापन के लिए मजबूर कर देती है। वहीं। विकास के नाम गलत निर्णय लेकर जनता के धन का दुरुपयोग कर लेती है। जनता के द्वारा ऐसे फैसले का विरोध यानी सत्ता का विरोध होता है,तब सत्ता दंड स्वरूप गिरफ्तारी,कारावास या गोली चालन करती है। सत्ता का यही चरित्र है। " (गुलजार सिंह मरकाम राष्ट्रीय संयोजक गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन)

मध्यप्रदेश में गोंडवाना राज्य का पुनर्गठन

"मध्य प्रदेश स्थापना दिवस और गोंडवाना राज्य" आजाद भारत के बाद राज्यों के पुनर्गठन १ नवंबर १९५६ में यदि सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है तो वह है गोंडवाना राज्य का हुआ, देश में सभी राज्य क्षेत्रीय भाषाई आधार पर सीमांकित किये गये पर गोंडवाना राज्य(सीपी &बरार) जिसकी राजधानी नागपुर थी,  की भाषायी ,सांस्कृतिक,और भूगोल को तहस नहस कर दिया गया था। गोंडी भाषिक जनता को मराठी,तेलुगू,उड़िया और बुंदेलखंडी बोलने के लिये विवश कर दिया। सांस्कृतिक पहचान को भी रंग बिरंगे टुकड़ों के साथ जोड़ दिया। यही कारण है कि देश के सभी राज्य अपनी स्थानीय भाषा संस्कृति को सुरक्षित करने के साथ अपनी पहचान बनाये रखकर स्वाभिमान और गौरव के साथ उत्तरोतर विकास की ओर अग्रसर हैं,ऐसे राज्यों में राजनीति का केंद्र भी स्थानीय समुदाय के हाथों में रहता है, परंतु मप्र को अभी तक ऐसे किसी महत्त्वपूर्ण बिन्दु पर खास सफलता नहीं मिल पा रही है,ना ही सत्ता का केंद्र स्थानीय सरोकारों के लिये वचनबद्ध दिखाई देती है। हजारों किलोमीटर दूर का ढोकला,गरबा ,इटली डोसा ,कत्थक , चाऊमीन इस प्रदेश की पहचान बन रहा है पर यहां का कोदों कुटकी,ला

"दबाव और प्रभाव"

"दबाव और प्रभाव" मध्यप्रदेश में आदिवासी हुंकार यात्रा की जानकारी अब लोगों तक पहुंचने लगी है। जिन लोगों को पांचवी अनुसूची पेसा कानून वनाधिकार  से संबंधित अधिकारों की समझ है , विस्थापन और पलायन के दंश को समझते हैं, ऐसे लोग व संगठन स्वस्फूर्त चेतना के साथ आंदोलन को सफल बनाने में दिन रात लगे हुए है साथ ही जिन लोगों को जानकारी नहीं है उन्हें लगातार मीटिंग के माध्यम से बताने का प्रयास कर रहे है। प्रदेश में यह पहला मौका है जब पूरे प्रदेश के चारों ओर से लोग हैं, सुप्रीकोर्ट में लंबित वनाधिकार के निर्णय का पूर्वानुमान लगाते हुए जनविरोधी परिणाम के विरूद्ध अपनी ताकत का एहसास कराने को तैयार हैं। साथियों,जनता के अधिकारों के विरुद्ध यदि कोई सरकार हो या सुप्रीकोर्ट ही क्यों ना हो विपरीत निर्णय देने की मंशा रखेगी तो उसका भी विरोध करने का अधिकार जनता को है, आखिर सुप्रीकोर्ट के बाद कहां जाया जा सकता है ।जनता के हित को यदि कोई कानून या निर्णय प्रभावित करता है तो जनता उसे अपनी एकता और ताकत से बदलवा सकती है। कारण है कि "जनता की सुविधा के लिए कानून है ना कि कानून के लिए जनता है" निवेद

"लोकतंत्र की पाठशाला है शेड्यूल्ड एरिया"

"लोकतंत्र की पाठशाला है शेड्यूल्ड एरिया" भारतीय संविधान के निर्माताओं ने शेड्यूल्ड एरिया को प्रजातंत्र की पाठशाला के रूप में चिन्हित किया था ताकि भारत संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न लोकतंत्रात्मक गणराज्य बन सके । देश के बहुत सारे हिस्सों में आजादी के बाद भी जमीदारी,पूंजीवादी अधिनायक वादी ताकतें लगातार देश की व्यवस्था को अंग्रेजों की भांति अपने इर्द-गिर्द रखना चाहती थी परंतु संविधान निर्माताओं ने "सुंदर,स्वस्थ्य,समृद्ध समाज और राष्ट्र की कल्पना के लिए  प्रयोगशाला के बतौर "शेड्यूल्ड एरिया" घोषित किया जिससे प्रेरणा लेकर ये फासीवादी, अतिवादी,पूंजीवादी मानसिकता के बिगड़ैल लोगों में कुछ सुधार हो सके। इन ‌चिन्हित क्षेत्रों जिसमें गरीबी और अभाव के बीच भी शांति और भाईचारा कायम था,और अब भी उसके अवशेष जीवित हैं,ये लुट जाते हैं पर किसी को लूटने का साहस नहीं कर पाते, सामूहिक निर्णय लेने की परंपरा जिसे प्रजातंत्र का असली स्वरूप कहा जा सकता है, बतौर प्रयोगशाला में स्पष्ट दिखाई दे रहा था परंतु आधुनिक व्यवस्था के संचालकों ने प्रजातंत्र की इन चिन्हित प्रयोगशालाओं में दखल करते हुए शिक

आदिवासी हुंकार यात्रा १७/११/२०१९

"आदिवासी हुंकार यात्रा" आदिवासियों के अधिकार सहित उनकी अस्मिता और पहचान को बरकरार रखने के लिये प्रदेश के समस्त पंजीकृत/अपंजीकृत  आदिवासी संगठन और आदिवासी हित में अपना बहुमूल्य और सतत् योगदान देने वाले पंजीकृत/अपंजीकृत  जनसंगठनों से अपील है कि "सिविल सोसायटी" यानि "जल जंगल जमीन जीवन बचाओ साझा मंच" के माध्यम से २अक्टूबर २०१९ से आरंभ "आदिवासी हुंकार यात्रा " के माध्यम से दिनांक १७ नवम्बर २०१९ को भोपाल में एकत्र होकर प्रदेश स्तरीय एक विशाल यात्रा का समापन किया जायेगा।यात्रा के दौरान आंदोलन में शामिल व्यक्ति और संगठन प्रमुखत: जल जंगल जमीन और जीवन कैसे सुरक्षित रहे  तथा इसका संरक्षक आदिवासी के अस्तित्व और अस्मिता को बगैर सुरक्षित किये कदापि संभव नहीं। इस विषय पर जन चेतना पैदा करते हुए । उनके संरक्षण के लिये बने कानून और नियमों यथा, वनाधिकार अधिनियम,पांचवीं अनुसूचि,पेसा और मेसा कानून, जलाशय और अभ्यारणों के कारण भूअधिगृहण , विस्थापन और पुनर्वास नियमों की  जानकारी देते हुए वनाधिकार के तहत ग्रामसभा द्वारा पारित व्यक्तिगत,निस्तारी और सामुदायिक दावा प

वनाधिकार कानून और ऐतिहासिक‌ भूल

"वनाधिकार हाशिल कर लो,अन्यथा हमसे भी "ऐतिहासिक भूल" ना हो जाये।" जल जंगल जमीन के अधिकार के लिए हमेशा संघर्ष करने वाले व्यक्ति और संगठनों से अपील है कि मप्र में वनाधिकार अधिनियम के तहत प्रस्तुत किये गये पूर्व के दावे जिन्हें साक्ष्य अभाव या दावा पत्र की विधिवत जानकारी के अभाव में लाखों दावे निरस्त किये गये हैं, ऐसे निरस्त दावों को पुनर्विचार के लिये पुन:  ग्राम सभा के माध्यम से समिति के पास प्रस्तुत किया जाना है,तथा कोई दस्तावेज की कमी है या भरने में त्रुटि है सुधार की व्यवस्था ",वनमित्र एप" के माध्यम से की जायेगी यह एप प्रत्येक गाँव में रोजगार सहायक के पास उपलब्ध होगी , जिसके माध्यम से वनाधिकार दावों का पंजीकरण होगा,इससे पूर्व यह भी ध्यान देना होगा कि जहां पर वनाधिकार समिति अच्छे से क्रियाशील हैं,इन समितियों को एप के माध्यम से आजाकवि प्रशासन में पंजीकृत कराना होगा।यदि जहां पर समितियों का कार्य शून्य है या इस संबंध में कोई जानकारी नहीं,या किसी समिति में सदस्यों की मृत्यु या स्तीफा के कारण क्रियाशील नहीं है, ऐसे ग्रामों में ग्राम सभा आयोजित करके समिति का व