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Showing posts from December, 2017

"आर्य बनाम अनार्य की मानसिकता बनाकर हर बिन्दु पर सन्घर्ष करना होगा।"

"आर्य बनाम अनार्य की मानसिकता बनाकर हर बिन्दु पर सन्घर्ष करना होगा।" मूलनिवासियो को यदि देश मे आरक्षण व्यवस्था की पूरी समझ है , शोषक/शोषित को व्यवहार में देख रहा हो जिसने पन्द्रह /पचासी का इतिहास पूरी तरह खन्गाल लिया है । उसे यह कहने की आवश्यकता नहीं कि उसे किस विचारधारा के सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक संगठन के साथ खड़ा रहना है । किन महापुरुषों को सम्मान देना है । उनकी आस्था के देवी देवता और अराध्य स्थल कौन हो सकते है , इसका पूरी तरह ख्याल रखना होगा । अन्यथा खोखला मूलनिवासी आन् दोलन चलाने के नाम पर मूलनिवासीयो को गुमराह न करें । पासवान और डा0 उदितराज जैसे बहुत से नेता कुछ मूलनिवासीयो को यह कहकर अपनी साख बनाने में सफल हैं कि दुश्मन के साथ रहकर उनकी गतिविधियों को समझकर मूलनिवासीयो के सन्रक्षण की बात की जा सकती है। पर मेरा मानना है कि एैसे लोग केवल स्वहित के लिए समुदाय को गिरवी रखकर भोलेभाले समुदाय को सन्तुष्ट कर सकते हैं ,लेकिन मूलनिवासी समुदाय अब इन सब बातों से भिज्ञ है, उसे अपने पराये का भेद समझ में आने लगा है, विचारधारा के विरोधी और समर्थकों की समझ अब आने लगी है। इसलिये मू

"संविधान बदलने की मंशा कांग्रेस में बैठे मनुवादी मानसिकता के लोगों की भी है ।"

(1) "संविधान बदलने की मंशा कांग्रेस में बैठे मनुवादी मानसिकता के लोगों की भी है ।" यही कारण है कि भाजपा के लिये शनैः शनैः देश में पूरी तरह काबिज होने में सहयोग कर रहा है । धीरे धीरे मूलनिवासियों को उलझाये रखकर भाजपा को बाकोबर देता जा रहा है ताकि भाजपा के पूर्णरूप से सत्ता में आने तक मूलवासी कोई बडी राजनीतिक ताकत खडी ना कर सकें ।कांग्रेस में बैठे हमारे आदिवासी नेताओं ,समर्थकों को इस बात से झटका महसूस हो सकता है लेकिन यह कटु सत्य है ।-gsmarkam (2) "तीन तलाक प्रसंग" असली चिंता का कारण "तीन तलाक" नहीं वोट है ,कथित हिन्दू ,मुस्लिम के बीच आपस में दूरी बनाये रखने का प्रयास है , देखें बानगी । असली चिंता का कारण तलाक नहीं वोट है जिसको हासिल करके और अधिक मनमानी किया जा सके । देश में हर मुददा अब वोट कबाडने का साधन बन रहा है । राष्ट्र हित के चिंतन का मतलब सिर्फ वोट की चिंता है सामाजिक सरोकारों की किसी सरकार या जिम्मेदार लोंगों को चिंता नहीं ? मीडिया भी इस तरह के हर मुददे को अपनी चाटुकारिता की हवा देने में लगता रहता है ! महिला स्वतंत्रता के पक्ष में सभी वर्ग है पर
“अजब गजब, लेकिन सच्चाई है “ भारत को विविधताओं का देश कहा जाता है , और इसी विविधता के अन्दर राष्ट्रीयता की खोज की जाती है , यह खोज का कार्य देश की कथित आजादी के बाद से लगातार जारी है । परन्तु राष्ट्रीयता पनपने की बजाय राष्ट्र की सम्पत्ति की लगातार लूट हो रही है । राष्ट्र को गुलामी की बेडियों में डालने का क्रत्य जारी है । इसका समाधान दूर तक होता दिखाई नहीं देता ? आखिर क्या वजह है ? कहीं ऐसा तो नहीं कि “ सबको राष्ट्रवाद की भावनाओं में बहाते चलो , और चालाकी से अपनी जाति बिरादरी को ताकतवर और मजबूत करते रहो !” इसलिये मेरा मानना है, कि मेरी बात भले ही कुछ कथित राष्ट्रवादियों के गले नहीं उतरेगी पर मेरी दृष्टि में यही सच है , कि राष्ट्रवाद के लक्छ्य को हासिल करने के लिय , जातिवाद को बढाना होगा ,जब जातियाँ एक सूत्र में होंगी तब वर्गीय मानसिकता पैदा होगी ,  वर्गीय मानसिकता राष्ट्रवादी होने की स्थिति पैदा करेगी । कारण है कि आज देश में जातीय भावना भी पनप नहीं पायी है , आज एक जाति भी एक सूत्र में नहीं है और उससे वर्गीय सहयोग की अपेक्छा की जाती है , उसे अपनी जाति से पूर्ण सहयोग प्राप्त होने का

" गोंडवाना आन्दोलन को धोखे में मत रखो" "अनापेक्षित विवाद संभव है ।"

" गोंडवाना आन्दोलन को धोखे में मत रखो" "अनापेक्षित विवाद संभव है ।" निश्चित ही अनापेक्षित विवाद हो रहा है । जो जितने स्तर पर अपनी सोच रखता है वह सब सामने आ गये । मैं जानता हूं बुद्धिमान आदमी "लडैयों में बारूद नहीं खेना चाहता उसे शेर के लिये सुरक्षित रखता है" । अब एक प्रश्न के साथ आगे बढते हैं । पूर्व की बातें नहीं दुहराई जायेंगी यथा धर्माचार्य वरकडे दादा । ना ही डा0 मरकाम देवहारगढ शक्तिपीठ के संचालक । 1. अखिल भारतीय गोंडवाना गोंड महासभ छ0ग0 का अब तक विश्वास अर्जित क्यों नहीं कर पाये । 2. आदिवासी सत्ता मासिक पत्रिका के संपादक की विद्धवता का उपयेग क्यें नहीं कर पाये उल्टा उन्हें कमजोर करने के लिये मंचों में उसका विरोध कर गोंडवाना सत्ता नामक पत्रिका को चलाने का प्रयास किया जा रहा है । किसकी सह पर । 3. कंगला माझाी सरकार और उसकी संरक्षक तिरूमाय फुलवा देवी का विश्वास अर्जित करने में क्यों असफल रहे । 4. गुरू बाबा भगत सिदार और गुरू माता निवासी तिवरता का विश्वास क्यों खो दिये ये सभी बातें किसके लिये हैं अपने आप समझ लेना है । नहीं समझ सके तो गोंडवाना आन्दोलन के

"आदिवासी समुदाय हित में चिन्तन करने वाले आदिवासी मित्रों को अपने दलों और सन्गठनो की प्रतिबद्धता को उजागर करना चाहिए"

"आदिवासी समुदाय हित में चिन्तन करने वाले आदिवासी मित्रों को अपने दलों और सन्गठनो की प्रतिबद्धता को उजागर करना चाहिए"  विभिन्न राजनीतिक दलों में काम करने वाले उससे संबद्ध हमारे आदिवासी मित्र, जो आदिवासी समुदाय की सेवा करने की बात करते हैं उन्हें अपने अपने सम्बद्ध राजनीतिक दल के प्रति वफादार होना चाहिये । इस वफादारी के लिये उन्हे समुदाय को समाज सेवा के नाम पर अन्धेरे मे नही रखना चाहिये । समुदाय अपने आप आपको सहयोग या विरोध मे फैसला कर देगा । इसमे छदम वेष मे अपने आप को प्रस्तुत  करने की आवश्यकता नही । कुछ कथित आदिवासी हित की बात करने वाले मित्र अपने दलो की पहचान को छुपाकर आदिवासी हित की बात करते है उन्हे छुपाने या शर्म करने की अपेक्षा खुलकर अपने सम्बद्ध दल की अब तक आदिवासी हित मे किये जा रहे कार्यो की प्रस्तुति दे । शोसल मीडिया मे जुडे मित्र अपनी पार्टी सम्बद्धता को क्यो छुपाते है । ना छुपाये ,इससे आपकी छवि आपके जुड़े सन्गठन और समुदाय मे सन्दिग्ध होती है । अपनी पार्टी सम्बद्धता को जरूर स्पष्ट करे । सम्बद्ध सन्गठन और समुदाय आपके क्रियाकलापो का मूल्यान्कन खुद कर लेगा । दोहरी मानसि

“भारत का मूलनिवासी,कहलाना है तो शूद्रत्व से मुक्त होना पडेगा ।”

भारत के मूलनिवासी, मूल बीज को आव्हान- “भारत का मूलनिवासी,कहलाना है तो शूद्रत्व से मुक्त होना पडेगा ।” भारत का मूलनिवासी, आदिवासी हिन्दू नहीं तब मूलनिवासी कहा जाने वाला अनु जाति और अन्य पिछडा वर्ग ,हिन्दू कैसे ? यदि हिन्दू है तो चौथे वर्ण शूद्र का प्रतिनिधि है । जो मूलनिवासी दर्शन का हिस्सा नहीं । इस लिहाज से यह समूह भी विदेशी आर्य समूह का हिस्सा है । मूलनिवासी होने का एकमात्र मापदंड है ,शूद्रत्व से मुक्ति ! शूद्रत्व से मुक्त होना ही मूलनिवासी होने का प्रमाण है । मूलनिवासी होने के लिये मूल पहचान संस्क्रति को मजबूत करना होगा । केवल सरकारी सुविधा प्राप्त करने के लिये सूचि मात्र में शामिल होने से शूद्रत्व से मुक्ति या मूलनिवासी पहचान स्थापित नही किया जा सकता-gsmarkam

"आदिवासियों का नॉन ज्यूडिशयल प्रसंग"

साथियों ५ वीं अनुसूचि के अंतर्गत परंपरागत रूढी व्यवस्था,आदिवासियों को अपने स्वयं के तरीके से जीने ,विचरण करने का अधिकार देती है । जिसे संविधान के दायरे में रहकर एकता बनाकर इस अधिकार को हाशिल किया जा सकता है  । जो ज्यूडिशियल दायरे में रहकर  नान ज्यूडिशियल बना जा सकता है , जिसे संविधान की सहमति भी है , परन्तु भारतीय संविधान से ऊपर उठकर नान ज्यूडिशियल बनना है तो आदिवासियों को पुन: स्वतंत्रता संग्राम करना होगा ! संविधान और संविधान के हर कानून का बहिस्कार करना पडेगा । ध्यान रहे आज की तारीख में संविधान से बडा कोई व्यक्ति , समुदाय या संगठन नहीं है , जो भी अधिकार हाशिल करना है संविधान के दायरे में ही रहकर करें । जनचेतना और माहौल बनाना अलग बात हो सकती है पर अधिकार पाना संविधान सम्मत ही संभव है । अन्यथा स्वतंत्रता संग्राम का बिगुल बजाना होगा जो सभी मूलनिवासी ,दलित पिछडे अल्पसंख्यकों को साथ लेकर ही संभव है ।-gsmarkam

अन्य राज्यों की तरह मप्र में “विधान परिषद” क्यों नहीं”

अन्य राज्यों की तरह मप्र में “विधान परिषद” क्यों नहीं” चूंकि विधान परिषद विधान मंडल विधायिका का केंद्र के “राज्य सभा” की तरह उच्च सदन होता हा जिसे त्रिस्तरीय पंचा़यत के जनप्रतिनिधियों द्वारा चुना जाता है । इसके सदस्य ग्रामीण छेत्रों के वोट से निर्वाचित होते हैं , यदि “विधान परिषद” होगा तो विधान सभा में पारित कोई कानून विधान परिषद की सहमति के बिना पारित नहीं होगा इसका सीधा मतलब है ग्राम समुदाय के प्रतिनिधियों की दखल बनी रहती है ताकि ग्रामीण छेत्रों की मंशा के विपरीत कोई कानून राज्य में न थोपा जा सके । मप्र चुनाव २०१८ में जनता की ओर से इस महत्वपूर्ण सदन की स्थापना के संबंध में विचार फैलाने का प्रयास हो ।-gsmarkam

EVM विरोध से ध्यान हटाने के लिये गुजरात चुनाव परिणाम की तस्वीर गढी गई ।

EVM विरोध से ध्यान हटाने के लिये गुजरात चुनाव परिणाम की तस्वीर गढी गई ।  ईवीएम के प्रति बढती अविश्वसनीयता पर पर्दा डालने और ईवीएम का विरोध करने वाले दलों ,संगठनों को शांत करने के लिये कांग्रेस से मिलीभगत का प्रायोजित परिणाम है ताकि कांग्रेस का ईवीएम के विरूद्ध बोलती बंद हो जाये । चूंकि २०१८ मे चार राज्योंं में चुनाव होना है । ईवीएम को बंद नहीं करना है । कारण भी है कि कांग्रेस, भाजपा एक सिक्के के दो पहलू हैं कांग्रेस को यदि एकदम समाप्त किया गया तो तीसरी ताकत का उदय संभव है जो  मनुवादियों को तानाशाही सत्ता स्थापित करने में बाधक होंगे । इसलिये मनुवाद ,कांग्रेस को मरने नहीं देगा ताकि देश का मूलनिवासी कांग्रेस में तब तक फंसा रहे जब तक भाजपा का देश के सभी राज्यों मे कब्जा ना हो जाये , मनुवाद की स्थापना ना हो जाये । कांग्रेस के मोहजाल में फंसकर रहे तो तीसरी ताकतों का उभरना संभव नहीं , कांग्रेस में बैठे मनुवादियों की यही सोच है । इनका कहीं भी नुकसान नहीं । कांग्रेस, भाजपा दोनों ही इनके दल हैं , इनका आना जाना बरसों से बदस्तूर जारी है । इनके किसी दल में आने जाने को लोग संग्यान में नहीं लेते, अन

जनजातियों को स्वशासन के लिये स्वयं से व्यवहारिक प्रदर्शन करना होगा”

“जनजातियों को स्वशासन के लिये स्वयं से व्यवहारिक प्रदर्शन करना हो” ५ वीं अनुसूचि के विधिवत क्रियान्वय हेतु अनुसूूचित घोषित विकास खण्डों ,जिलों में ग्राम स्तर ( परंपरागत रूढी पंचायत समिति), विकासखण्ड स्वायत्त सलाहकार समिति( ग्राम स्तर के प्रमुखों द्वारा मनोनीत)एवं जिला स्वायत्त सलाहकार समितियों (विकासखंड स्तर के प्रमुखों द्वारा मनोनीत)का विधिवत गठन किया जाय जिसकी सूचना जिला कलेक्टर के माध्यम से राज्य जनजाति सलाहकार समिति और राज्यपाल को दी जाये । ध्यान रहे “पेसा कानून “ ने ७३ वां संविधान संशोधन को अंगीकार करके ५वीं अनुसूचि के महत्वपूर्ण अधिकारों पर डाका डाला है । अर्थात  त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था ने आदिवासियों की राज्यपाल से सीधे सम्पर्क,संवाद और सरोकार को प्रतिबंधित  कर पंचायती राज कानून  व्यवस्था का गुलाम बना दिया है । यहीं नहीं अधिसूचित छेत्रों में नगरीय निकायों की प्रशासनिक  व्यवस्था का तिहरा दबाव सहन करने को मजबूर कर दिया । आदिवासी स्वायत्तता को समाप्तप्राय कर दिया । इसलिये पांचवीं अनुसूचि के प्रावधानों का व्यवहारिक प्रदर्शन स्वयं समुदाय की जिम्मेदारी है । जो  ग्राम+विकास

“आदिवासी हिन्दू या आदिवासी ईसाई यदि आदिवासियों की रूढी परंपरा को नजरंदाज कर ५ वी अनुसूची की बात करता है तो असली आदिवासी को धोखा दे रहा है।“

“आदिवासी हिन्दू या आदिवासी ईसाई यदि आदिवासियों की रूढी परंपरा को नजरंदाज कर ५ वी अनुसूची की बात करता है तो असली आदिवासी को धोखा दे रहा है।“ भारत के सविधान में ५वी अनुसूचि शामिल के जाने का सीधा मतलब है कि "आदिवासीयो के समग्र उत्थान के लिए उनकी मूल भाषा,धर्म,सन्सक्रति और सभ्यता को बिना हानि पहुचाये उनका उन्ही की इच्छानुसार विकास के रास्ते तैयार किये जाये ।" कारण था कि जिस नैसर्गक न्याय पद्दति ,सामाजिक सान्सक्रतिक ,धार्मिक व्यवस्था को इन्होने पुरातन काल से विकसित किया हैए सच्चे  मायने में वही असली लोकतंत्र की झलक मिलती है। जिस लोकतंत्र का भविष्य मे भारत देश अनुशरण कर सकेगा । यह मार्गदर्शन हमारे सविधान निर्माताओं ने "सयुक्त राष्ट्र संघ" की आदिवासीयो के हित में दिये गये निर्देशों के अन्तर्गत लिया है । चूंकि देश में अब तक गैर आदिवासीयो के हाथ में सविधान सन्चालन की बागडोर है इसलिए अभी तक सविधान में उल्लिखित आदिवासी हित या देश में असली लोकतन्त्र स्थापित करने में असफल हुए हैं । जबकि सविधान निर्माताओं ने असली “लोकतंत्र की पाठशाला” जिसका अनुसरण किया जाना है इसलिए ऐसे विशेष क