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Showing posts from May, 2022

आदिवासी और डिलिस्टिंग

 भाषा, धर्म, संस्कृति आदिवासी अस्तित्व को बचाने का मामला है।, इसलिए किसी समुदाय का विकास उसकी एकता और ताकत पर निर्भर है,वह ताकत उसके स्व अस्तित्व के पहचान पर बनती है। इसलिए मेरा मानना है "भाषा,धर्म, संस्कृति की (डेहरी) दहलीज पार किए किये बिना किसी तरह के विकास की आशा बेमानी होगी"

नैसर्गिक न्याय और न्यायपालिका

 यदि इस देश में मंदिर मस्जिद गुरुद्वारा चर्च के नाम पर धर्मो के पुरातन जड़ों को खोदकर अपनी बपौती के लिए कोर्ट के फैसले को महत्व देते हैं,तब हमारे देश का मूलवंश आदिवासी तो कोर्ट बनने संविधान बनने के पूर्व का वासिंदा है वर्तमान समय में देश में चल रही अराजकता को देखते हुए आदिवासियों की "परंपरागत न्याय" व्यवस्था सर्वोपरि है ,जो सभी "परदेशी धर्म" एवं कथित थर्मावलंबियों को मानना होगा, क्योंकि इस देश की भूमि पर सभी पुरानी धरोहर मूल वंश आदिवासियों का है, इसलिए कोई भी कानून उनसे ऊपर नहीं हो सकता। (गुलजार सिंह मरकाम)

"हत्या बलात्कार और आगजनी"

चुनाव के लिए राजनीतिक दलों को इशू चाहिए उसके लिए इशू प्रायोजित किये जाते हैं। इसमें जन समस्या , जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, बेरोजगारी जैसे मुद्दों से जनमानस को प्रभावित नहीं करने की समस्या पक्ष या विपक्ष किसी को आती दिखाई देती है तब समाज की भाषा धर्म संस्कृति उसका मूल स्त्रोत है,उस पर राजनीति आक्रमण की कोशिश होती है, जिसमें व्यक्ति जाति धर्म संप्रदाय के नाम पर इशू तैयार किया जाता है, इसमें चाहे कितनी ही हत्या, बलात्कार आगजनी करना पडे , राजनीतिक दलों को कोई फर्क नहीं पड़ता, इसका शिकार तो व्यक्ति समुदाय और समाज होता है। अब आसन्न चुनाव है । मप्र भी इस क्रम से अछूता कैसे रह सकता है। इसका एक ही इलाज है, पीड़ित व्यक्ति,जाति समुदाय और समाज में आपसी सौहार्द और समझ विकसित करे।        -(gska)