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Showing posts from September, 2019

"आदिवासी और भारत में विदेशी निवेश"

"आदिवासी और भारत में विदेशी निवेश" भारत में तीन खरब (3000000000000 ) डालर  का निवेश विदेशी कंपनियां किस लालच से करेंगी । क्या भारत के लोगों की क्रय छमता बढ़ गई  है। या  कोई और मतलब है। चुकी कोई इन्वेस्टर लागत वहां लगाता है जहां उसे ज्यादा फायदा दिखे,और वहां लगाएगा जहां उसे लाभ का पक्का भरोसा  दिलाने की गारंटी देने वाला मिले। आओ पता लगाएं की आखिर विदेशी इन्वेस्टर भारत में इतनी बड़ी पूंजी लगाने के लिए क्यों तैयार हो रहे हैं, कौन सी ऐसी महत्वपूर्ण पूंजी है जिससे इन्वेस्टर्स को फायदा होने वाला है, आपको जानकर आश्चर्य होगा की भारत में सारी पूंजी धरती के अंदर जमा है और यह जमा पूंजी खनिज पदार्थ के रूप में लोहा कोयला सोना यूरेनियम तांबा आदि के रूप में प्रचुर मात्रा में विद्यमान है इन्वेस्टर को इसी बात से लुभाया गया है और गारंटी भी दी गई है कि, आप जहां कहेंगे वहां से आपको खनिज निकालने का लाइसेंस दे दिया जाएगा परंतु इन्वेस्टर्स ने कहा की यह भूमि यह खनिज तो जंगल क्षेत्रों में आदिवासियों के पास  है और जंगल क्षेत्रों में आदिवासियों का निवास है इन क्षेत्रों में पांचवी और छपी अनुसूची लाग

tribal relegion code २२/०९/२०१९ Raipur

२२/०९/२०१९ को बिलासपुर छग में आयोजित  धर्मकोड/कालम में शामिल बुद्धिजीवियों  विनम्र अपील- भारत की जनगणना 2021 के परिपेक्ष में लगातार देशभर में विभिन्न धार्मिक सामाजिक संगठनों के माध्यम से जनजाति को एक कोड कॉलम मिले इस पर प्रयास चल रहा है विभिन्न धार्मिक समूहों के माध्यम से एक कोर्ट पर सहमति के लिए राष्ट्रीय स्तर पर समन्वय समिति का भी गठन किया गया है । जो लगातार विभिन्न धार्मिक समूहों से रायशुमारी करते हुए समन्वय बनाने का प्रयास किया जा रहा है इसमें काफी सफलता भी मिली है यही कारण है कि देश में प्रमुख बड़े जातीय समूह संथाल मुंडा हो आदि सरना धर्म को लेकर कार्यरत हैं वही भील भिलाला और उनसे सहोदर जातियां भी आदि धर्म के नाम पर अपने आप को संगठित किए हुए हैं वही कोया/गोंडी पुनेम के नाम पर गोंड प्रधान तथा उनके उप शाखाएं लगातार कार्यरत हैं इस तरह देश में प्रमुख 3 क्षेत्रों से सरना आदि/ आदिवासी धर्म या कोया /गोंडी पुनेम के नाम पर अपनी पहचान और पूजा पद्धति संस्कारों को सहेजने का काम कर रहे हैं मेरा मानना है की यह तीनों बड़े ग्रुप अपने क्षेत्रीय पहचान को अपने संस्कार पूजा पद्धति को बरकरार रखें

क्रांतिकारी रक्त जरूर उबलता है

"क्रांतिकारी रक्त जरूर उबलता है।" बैतूल जिला आजादी के पूर्व से क्रांतिकारियों की जन्म स्थली रही है। यहां पर अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष करने वाले सरदार विष्णु सिंह गौड़ एवं मंसू ओझा जैसे क्रांतिकारियों ने अंग्रेजी सरकार के छक्के छुड़ा दिए थे, यह रक्त अपने अधिकारों को भली-भांति समझता है । वे यह जान रहे हैं की आज की सरकार भी अंग्रेजों की भांति हमें जहां चाहे वहां से बेदखल कर देती है, हम शांत रहते हैं इसका मतलब यह नहीं कि हमेशा हम दबे रहें अब ऐसा नहीं होगा जैसे हमने अंग्रेजों से अपने अधिकार के लिए मुकाबला किए हैं तो देसी सरकार से भी हम मुकाबला करने को लिए तैयार हैं,वैसे भी वनाधिकार के नाम पर हमारे साथ उचित न्याय नहीं किया जा रहा है। सामुदायिक वन अधिकार के तहत हमें वन भूमि का सामुदायिक मालिकाना हक दे दिया जाना चाहिए लेकिन यह नहीं मिल रहा है इसलिए हम अपने आप  सामुदायिक वनाधिकार हासिल करके सरकार को जवाब देंगे (सामुदायिक वन अधिकार से वंचित समुदाय की आवाज) द्वारा-गुलजार सिंह मरकाम राष्ट्रीय संयोजक गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन

हम अपने आप को कहां पाते हैं,वहीं से बेहतर काम कर सकते हैं।

हम अपने आप को कहां पाते हैं,वहीं से बेहतर काम कर सकते हैं। :-यही जाति सेवा,समुदाय सेवा,समाज सेवा है। संविधान के दायरे में रहकर कर रहे हैं ,इसलिए देश सेवा भी है।:- "देश प्रदेश स्तर में गठित पंजीकृत/अपंजीकृत महत्वपूर्ण स्वयं सेवी संगठन" (१)जाति संगठन (२)समुदायिक संगठन (३)सामाजिक संगठन    ........................ (१)जाति संगठन :- उद्देश्य  संविधान के दायरे में रहकर केवल जातीय इकाई का समग्र उत्थान  (२) समुदायिक संगठन :- उद्देश्य, संविधान के दायरे में रहकर केवल अन्य सहोदर जातीय समूहों (वर्ग)का समग्र उत्थान (३) सामाजिक संगठन :- उद्देश्य , संविधान के दायरे में रहकर विभिन्न जातीय,सामुदायिक, वर्गीय समूह में  बंटे सम्पूर्ण भाग का समग्र उत्थान । (गुलजार सिंह मरकाम राष्ट्रीय संयोजक गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन) 

"वनाधिकार के मामले में,शासन प्रसाशन ने भृम फैलाने का प्रयास किया है।"

"वनाधिकार के मामले में,शासन प्रसाशन ने भृम फैलाने का प्रयास किया है।" शासन प्रशासन ने वनाधिकार अधिनियम में व्यक्तिगत दावे को प्राथमिकता देते हुए आदिवासी को अन्य लोगों से अलग-थलग कर दिया यही कारण है की वनाधिकार के मामले में केवल आदिवासी ही आगे आकर संघर्ष करने का प्रयास कर रहे हैं जबकि शासन प्रशासन यदि व्यक्तिगत दावों की अपेक्षा सामुदायिक दावा, निस्तार दावों को प्राथमिकता देती तो शायद आदिवासियों के लिए यह स्थिति पैदा नहीं हो पाती सामुदायिक दावे,ग्राम के समस्त नागरिकों के लिए लागू है यदि पहले से सामुदायिक और निस्तार दावा के प्रति जनता को जागरूक किया जाता तो गांव में आदिवासियों और गैर आदिवासियों के बीच वैमनस्यता नहीं होती, शासन प्रसासन के नियोजित षडयंत्र जो नागरिकों को जानबूझकर जानकारी नहीं पहुंचाना, के अभाव में वन भूमि अधिकार को केवल आदिवासी के इर्दगिर्द केंद्रित कर दिया गया ,जिसके कारण वह सबकी नजरों में चढ़ गया । यह तो ठीक ऐसा ही हुआ है जैसे अन्य पिछड़ा वर्ग को आरक्षण देते वक्त हुआ था। वह अपने ही अधिकार का विरोध करने के लिये सड़क पर उतर गया था। वनाधिकार का मामला भी ठीक उसी

संकीर्ण सोच से समुदाय और समाज का नुकसान होता है।"

"संकीर्ण सोच से समुदाय और समाज का नुकसान होता है।" ट्राइबल रिलिजन कालम पर देश का सभी जन जाति वर्ग सहमत है, यथा संथाल, मुंडा, हो और उरांव सभी सहमत हैं परंतु अपनी सरना पहचान को बनाए रखेंगे। इसी तरह भील भिलाला बरेला मीना यह सब ग्रुप जब "ट्राइबल" कालम नाम पर सहमत हैं तब कुछ तत्व इस बात से क्यों सहमत नहीं है। यह शब्द केवल यूनिटी का परिचायक ,यह शब्द आपकी छेत्रीय मूल पहचान को यथास्थिति बनाए रखने की छूट देता है। शब्द के पीछे मत भागो,यूनिटी होने के आशय को समझो,यदि अच्छे से समझना है तो "हिन्दू" शब्द के अंदर जाओ कितना डरावना और वीभत्स है,सबको मालूम है,फिर भी मनुवादी सोच ने इस शब्द को भी गौरवपूर्ण बनाकर, गौरवान्वित महसूस कर रहा है ,भले ही हम उसका कोई भी मायना निकाल ले,पर एकता का लक्छ्य तो पूरा हो रहा है। हमें भी शब्दों के जाल में ना फंसकर समुदाय हित म ें व्यापक सोच विकसित करना है। "संकीर्ण सोच से समुदाय और समाज का नुकसान होता है।" (गुलजार सिंह मरकाम राष्ट्रीय संयोजक गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन)

कैसे होगा बेड़ापार,कैसे मिलेंगे वन के अधिकार

"कैसे होगा बेड़ापार,कैसे मिलेंगे वन के अधिकार" आदिमजाति कल्याण विभाग मप्र " वन मित्र एप" क्या वनाधिकार कानून के तहत प्रारूप  (क)व्यक्तिगत (ख) निस्तार  और (ग)सामुदायिक हक के तहत वनाधिकार दिला पाएगा ? जब अन्य राज्यों में यह कारगर सिद्ध नहीं हुआ तो ,मप्र जैसे कम शिछित राज्य में कैसे सफल होगा। चिंतनीय है। जिन ग्राम सचिवों को ट्रेनिंग दी गई है उन्हें अभी भी वनाधिकार के तीनों फॉरमेट का ज्ञान ही नहीं तब "कैसे होगा बेड़ापार,कैसे मिलेंगे वन के अधिकार" (गुलजार सिंह मरकाम राष्ट्रीय संयोजक गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन)

26 नवंबर 2019 को संसद नहीं सुप्रीकोर्ट तय करेगा आदिवासियों की किस्मत क्या आप जानते

"26 नवंबर 2019 को संसद नहीं सुप्रीकोर्ट तय करेगा आदिवासियों की किस्मत क्या है।" 2020 से आदिवासियों के लिए खतरे की घंटी बज चुकी है समान नागरिक संहिता में विशेष दर्जा प्राप्त आदिवासी अपनी पहचान खो देगा ।26 नवंबर 2019 से यह प्रक्रिया आरंभ हो रही है 1927 का वन कानून संशोधन 2019 का प्रारूप तैयार है ,जो आदिवासी के बहुत से संवैधानिक अधिकार को छीन लेगी, यह गेंद सरकार ने सुप्रीमकोर्ट के पाले में  डाल दी है,जिसका निर्णय 26 नवंबर तक हो जाना है जिसमें आपके जल जंगल और जमीन पर से सारे अधिकार सरकार के हाथों वन और राजस्व मंत्रालय के हाथों आ जाना है 26 नवंबर 2019 के पूर्व यदि आदिवासी आंदोलित नहीं हुआ तो 2020 आपके लिए खतरे की घंटी है आखिर 26 नवंबर महत्वपूर्ण क्यों क्योंकि 26 नवंबर को वनाधिकार पर अंतिम सुनवाई है यह सुनवाई 12 सितंबर को क्यों नहीं हो सकी सरकार का वकील सुप्रीम कोर्ट के सामने क्यों खड़ा नहीं हुआ । कारण कि सुप्रीम कोर्ट में आदिवासियों के विरुद्ध निर्णय होने वाला है,यदि सरकार का वकील वहां खड़ा होता  और हारता तो केंद्र की बदनामी होती, इससे आदिवासी नाराज होता, जिससे झारखंड और महाराष्

नागरिक ज्वलंत समस्याओं (मुद्दों) को प्राथमिकता दे।

"नागरिक ज्वलंत समस्याओं (मुद्दों)  को प्राथमिकता दे।" केंद्र सरकार के जनमानस का ज्वलंत मुद्दों से माइंड डाइवर्ट करने वाले राष्ट्रीय मुद्दों को छोड़कर देश के नागरिकों को चाहिए कि वह स्थानीय ज्वलंत  मुद्दों पर अपना ध्यान केंद्रित करें । इसके लिए धरना,प्रदर्शन,और आंदोलन करें।  (गुलज़ार सिंह मरकाम राष्ट्रीय संयोजक गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन)

"सुप्रीम कोर्ट की आड़ में संसद के परोक्ष तीर"

"सुप्रीम कोर्ट की आड़ में संसद के परोक्ष तीर" संसद में विपक्ष पक्ष विपक्ष के बीच किसी विषय पर खींचतान होती है, सरकारों को बहस मैं जनता के कटघरे में खड़ा होना पड़ता है इसलिए अब सुप्रीम कोर्ट की आड़ में सरकार बहुत से जनविरोधी, समुदाय विरोधी फैसले लेकर कानून का वास्ता देगी, जिसे राष्ट्र हित, समाज हित, न्याय हित में मानने को बाध्य होना पड़ेगा अन्यथा सुप्रीम कोर्ट आपको राष्ट्र द्रोही भी करार दे सकती है। हाल ही में वनाधिकार अधिनियम के तहत वनभूमि के पट्टे निरस्तीकरण का काला आदेश, अब विविधता के अधिकार प्राप्त लोगों के लिए समान नागरिक संहिता पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी, अयोध्या विवाद पर तटस्थता, आरक्षण पर साफगोई, निजी करण पर चुप्पी, आखिर ऐसा क्यों जब सरकार को लगती है की संसद से काम नहीं बनने वाला तो अपनी गेंद सुप्रीम कोर्ट के पाले में डाल देती है। (गुलजार सिंह मरकाम राष्ट्रीय संयोजक गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन)

"बड़े मुद्दों के लिए बड़ी ताकत चाहिये ।

"बड़े मुद्दों के लिए बड़ी ताकत चाहिए" अपने-अपने रीजनल क्षेत्रों में संघर्ष जारी रहे संघर्ष जारी रहे परंतु सभी क्षेत्रीय संघर्ष पूरब से लेकर पश्चिम तक जल जंगल जमीन के मुद्दे पर एक दूसरे से कनेक्ट होकर एक बड़ा आंदोलन खड़ा करें ! तभी शासन और प्रशासन का ध्यान हमारी तरफ जाएगा अन्यथा क्षेत्रीय मुद्दों के संघर्ष में आदिवासी समुदाय का कॉमन और बड़ा मुद्दा "जल जंगल जमीन" पेशा कानून ;पांचवी अनुसूची और स्वायत्तता के संघर्ष में कमजोरी दिखाई देगी इससे शासन प्रशासन पर दबाव नहीं पड़ेगा और आपके मुद्दों को दरकिनार कर दिया जाएगा, इसी को ध्यान में रखते हुए आगामी समय में प्रदेश स्तर का एक सम्मेलन भोपाल में आयोजित किए जाने का प्रस्ताव है जिसमें हमारे राष्ट्रीय और प्रांतीय स्तर के मुद्दों को लेकर सबसे पहले क्षेत्रों में जन जागरण और रैली सभाओं का आयोजन किया जाएगा जिसमें जिला और संभागीय स्तर पर क्षेत्रीय मुद्दों के साथ राष्ट्रीय मुद्दों को भी शामिल कर विधिवत राज्यपाल के नाम से ज्ञापन दिया जाएगा क्षेत्रीय स्तर पर ज्ञापन के पश्चात भोपाल में बड़ी रैली करके शासन प्रशासन को चेतावनी देने का काम

आदिवासी उपयोजना (TSP) की राशि का उचित उपयोग के संबंध।

प्रति, माननीय मुख्यमंत्री महोदय मप्र शासन भोपाल। विषय:- आदिवासी उपयोजना (TSP) की राशि का उचित उपयोग के संबंध। महोदय, मप्र में आदिवासी उप योजना (टीएसपी)के लिए आवंटित राशि का राज्य TAC तथा जिला TAC की सलाह और अनुमोदन के पश्चात ही व्यय किया जाय,ताकि जनजातीय क्षेत्र तथा उन क्षेत्रो में निवास करने वाले नागरिकों के विकास की प्रत्याशा में आबंटित राशि का सदुपयोग हो सके। ज्ञात हो कि अब तक की तत्कालीन  सरकारों ने इस मद की आबंटित राशि का भरपूर दुरूपयोग किया है। आपसे आशा है कि यह राशि जिन क्षेत्र और नागरिकों के उत्थान के लिये आबंटित है उन्हें उन्हीं के हाथों निर्णय लेकर सीधा लाभ पहुंचाने की कोशिष की जाये। अत: आपसे अनुरोध है कि ऐसे निर्देश जारी करते हुए की गई कार्यवाही से जनहित में संगठन को भी अवगत कराने का कष्ट करें। भवदीय गुलजार सिंह मरकाम रासंगोंसक्रांआं मो. 8989717254

जिला एवं विकासखंड स्तर की जनजाति सलाहकार समिति जी

प्रति, माननीय कमलनाथ जी मुख्यमंत्री एवम् अध्यक्ष जनजाति मंत्रणा परिषद मध्य प्रदेश विषय:-जिला एवं विकासखंड स्तर की जनजाति सलाहकार समिति शीघ्र गठित कराये जाने के संबंध में। महोदय, उपरोक्त विषय में यह कि मप्र राज्य,भारतीय संविधान की पांचवीं अनुसूचि के अंतर्गत घोषित राज्य की सूचि का हिस्सा है। जिसमें प्रदेश के चार जिले पूर्णत: तथा विभिन्न जिलों के 89 विकासखंड एवं माडा क्षेत्र पांचवीं अनुसूचि के अंतर्गत घोषित हैं ,जिन्हें जनजातिय विकास के लिये विशेष दर्जा प्राप्त है। राज्य के सभी नागरिकों के समग्र उत्थान के लिये राज्य सरकार द्वारा आर्थिक बजट तैयार किया जाता है। जनजातियों और  अनुसूचित घोषित क्षेत्रों को इस बजट के अतिरिक्त "आदिवासी उपयोजना" के तहत केंद्र सरकार की ओर से विशेष सहायता राशि का आबंटन होता है। अतिरिक्त आबंटन के बाद भी आदिवासी का जीवन स्तर, शिक्षा,स्वास्थ तथा आर्थिक मामले में  अन्यों की तुलना में आज भी काफी पीछे है। इसका सीधा मायना है कि इस राशि का कोई विशेष लाभ इस वर्ग को नहीं मिला है। इससे यह प्रतीत होता है कि यह विशेष राशि बंदरबांट का हिस्सा होती रही है। इसके

गोंडवाना आंदोलन की सफलता का सूत्र"

" गोंडवाना आंदोलन की सफलता का सूत्र" गोंडवाना की भाषा, धर्म,संस्कृति और साहित्य का आंदोलन समाज के आधार को मजबूत करने के लिए चलाया गया है जब तक समाज का आधार मजबूत नहीं हो जाता तब तक उस के बल पर सामाजिक,धार्मिक आंदोलन को सफलता मिलना कठिन है । गोंडवाना के नाम पर अब तक कुछ हद तक(वह भी आंशिक) केवल मूल समूह गोंड आंदोलित हो पाया है।उसका सहोदर समूह जिसे उप जाती भी कहा जा सकता है अभी तक गोंडवाना आंदोलन पर विश्वास नहीं जमा पाया है, कारण जो भी हो परंतु इसे सूझ-बूझ से दुरुस्त करना पड़ेगा अपने उप समूह को भाषा धर्म संस्कृति के प्रति जागरुक करना पड़ेगा तभी हम गोंडवाना आंदोलन के सामाजिक लक्ष को पूरा कर सकते हैं अन्यथा सामाजिक आधार पर छोटी छोटी ताकत बनाकर उसे बेचा और खरीदा जा सकता है,समाज के पूर्ण लक्ष को कभी हासिल नहीं किया जा सकता। इसलिए गोंडवाना आंदोलन की सफलता उनके उप समूह को साथ लेने पर ही संभव है। (गुलजार सिंह मरकाम राष्ट्रीय संयोजक गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन)

जनगणना २१ और प्रथक धर्म कालम"

"जनगणना २१ और प्रथक धर्म कालम" आदिवासी का प्रथक धर्म कालम इसलिये नहीं कि केवल आरक्षण से जोड़कर देखा जाय ,यह इसलिये आवश्यक है कि प्रकृति के प्रर्यावरण और मानवता को जीवित बनाये रखने में इसकी महत्त्वपूर्ण  भूमिका है,दुनिया में यदि इस मार्ग का अनुसरण होने लगे तो यह दुनिया शायद लम्बे समय तक चले वर्ना ग्लोबल वार्मिंग , लगातार बढ़ती हिंसा और नैतिक पतन के कारण दुनिया के लोग परेशानी महसूस करने लगे हैं। इसलिये आवश्यक है प्रकृतिवाद के तत्त्वों से भरपूर आदिवासी का मार्ग पंथ या साधारण भाषा में धर्म कहा जा सकता है। (गुलजार सिंह मरकाम रा.सं.गों.स.क्रां.आं.)

मुख्यमंत्री मप्र को ज्ञापन

प्रति,      माननीय मुख्यमंत्री महोदय जी। (१) प्रमुख सचिव आदिम जाति कल्याण मप्र (२) मुख्य सचिव मप्र शासन (३) मंत्री आदिम जाति कल्याण मप्र विषय:- मप्र के बेरोजगार युवक/युवतियों को रोजगार में प्राथमिकता के संबंध में। महोदय , उपरोक्त विषय में यह कि प्रदेश का बेरोजगार युवा सरकार के वचन पत्र और प्र्रदेश के युवाओं का हित हो ऐसी आपकी भावनाओं को लेकर आशान्वित हैं। और तत्संबंध में निवेदन के साथ सुझाव प्रस्तुत कर रहा है जो आपकी सोच का संबल हो सकता है ।अत:आपसे अनुरोध है कि इस विषय को संज्ञान में लेकर आवश्यक कदम उठायेंगे। मध्यप्रदेश राज्य की सेवाओं में भर्ती के लिए मध्य प्रदेश से जारी जाति प्रमाण पत्र को आधार माना जाए ना की मूल निवासी प्रमाण पत्र को कारण की मध्यप्रदेश में लगातार 10 वर्षों से रहने वाले अन्य राज्यों के व्यक्तियों का भी मूलनिवासी प्रमाण पत्र बन जाता है यह मध्य प्रदेश का मूल होने का साक्ष्य नहीं है यदि मूल साक्ष्य के रूप में सही पहचान करना है तो केवल जाति प्रमाण पत्र ही असली साक्ष्य के रूप में हो सकता है चाहे वह अनुसूचित जाति, जनजाति या अन्य पिछड़े वर्ग  या अनारक्षित वर्ग के ल

सामुदायिक चिंतन

1.""सामुदायिक चिंतन"" "जरुरी नहीं कि समुदाय का लड़का लड़की दोनों शासकीय सेवा में हों" लड़की उम्र दराज हो रही है  शिक्षा प्राप्त है सर्विस में है, शादी नहीं हुई है,यदि बेरोजगार लड़का मिलता है तो समाज से ही शादी करके लड़के को मदद करके व्यापारी या उद्योगपति बना दो यदि लड़का सर्विस में है लड़की शिक्षित है तो  संबंध बना कर समाज की साख को बचाया जा सकता है अन्यथा हमारी मेहनत हमारी दी गई शिक्षा और उस पर किए गए खर्च का लाभ यदि गैर समाज में  शादी करके उसके पास जाता है तो यह समाज के लिए नुकसानदायक है। यदि विषम परिस्थितियों में बच्चों के लिए मज़बूरी है तो आदिवासी समाज की किसी भी शाखा में संबंध जोड़ें। ( गुलजार सिंह मरकाम राष्ट्रीय संयोजक गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन) 2."जरूरी नहीं कि किसी के साथ चलो पर यह जरूरी है की किसी विचार के साथ सहयोगी बनो" गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन वर्तमान परिपेक्ष में भाषा और धर्म के साथ जल जंगल जमीन पांचवी अनुसूची रूढ़ी  परंपराओं पर  अपना ध्यान केंद्रित कर रही है आशा है इस मुहिम में समुदाय बढ़ चढ़कर हिस्सा लेगा (गुलजा

"परंपरागत वनाधिकार मामले पर सुप्रीकोर्ट की बेदखली आदेश के विरुद्ध जनसंवाद"

"परंपरागत वनाधिकार मामले पर सुप्रीकोर्ट की बेदखली आदेश के  विरुद्ध जनसंवाद" अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत वन निवासी वन अधिकारों की मान्यता अधिनियम 2006 में '"जंगल में निवास करने तथा वन भूमि पर वर्षों से काबिज होकर अपनी आजीविका चलाने वाले उन जनजातियों जो जंगलों में पीढ़ियों से रहते हैं" परंतु जिनके अधिकारों को दर्ज नहीं किया जा सका था, के अधिकारों और उनके कब्जे को पहचानना और उनके अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए पारित किया गया था यह अधिनियम जंगल में रह रहे अनुसूचित जनजातियां तथा अन्य पारंपरिक वन निवासी जो वन पारिस्थितिकी तंत्र के अस्तित्व और स्थिरता के अभिन्न अंग हैं, के साथ हुए ऐतिहासिक अन्याय को पूर्ववत करने को किया गया था यह अधिनियम जनजाति तथा अन्य पारंपरिक व निवासी को निवास और आजीविका के लिए वन भूमि में रहने, परंपरागत काबिज भूमि पर कृषि करने का अधिकार तथा अन्य महत्वपूर्ण अधिकार जैसे लघु वन उपज के संग्रहण उपयोग और निपटान का अधिकार दिया गया है।  इसमें सबसे महत्वपूर्ण अधिकार सामुदायिक हक  का है दावेदार सरकारी रिकार्ड ,भौतिक गुण पारंपरिक संरचनाएं वंशावली अ