Skip to main content

Posts

Showing posts from April, 2020

जनता का जमा धन सरकार जनता में लगाये

"जनता का जमा धन सरकारें जनता में लगाया जाये" अब तो देश के आम नागरिक को यह पता चल जाना चाहिए कि प्रत्येक नागरिक के लिए जनता द्वारा चुनी हुई सरकार का आम नागरिक के लिए कितना उत्तरदायी होना चाहिए। उसके स्वास्थ, भरण पोषण और अन्य जरूरतों के लिए शासकीय संसाधनों मिशनरी का भरपूर उपयोग क्यों किया जाता है या किये जाने का नाटक किया जाता है। यह इसलिए की राजकोष में जो धन है वह आम जनता का ही धन जमा है जिसे आम जनता के दुख तकलीफ के लिए लगाना अनिवार्य है यही सब कुछ इस वक्त सहायता के नाम पर हो रहा है जो केंद्र और राज्य सरकारों की इच्छाशक्ति पर निर्भर है , यदि भरपूर सहायता प्राप्त नहीं होती है तो सरकारें दोषी होंगी। इस विषय पर बुद्धिजीवी की नजर रहती है । दुनिया को भी यह दिखाना जरूरी। होता है कि हमारी सरकार जनता के पैसे का जनता के हित में कैसे खर्च कर रही है, अन्यथा शासक सरकारों को नीचा देखना ना पड़े । इसलिए आम नागरिकों से अपील है कि वे अपनी सहायता प्राप्त करने के लिए अधिकार के साथ दबाव बनाये साथ ही स्थानीय स्तर पर ही रोजगार उपलब्ध कराने की मांग भी करे । इसके लिए भले ही आंदोलन करना पड़े हम आंदोलन

प्रधानमंत्री राहत कोष" बनाम "प्रधानमंत्री केयर फंड

**प्रधानमंत्री राहत कोष** बनाम "प्रधानमंत्री केयर फंड" कोरोना संकट के नाम पर नरेंद्र मोदी और उनके मंत्री मंडल के दो सदस्यों को लेकर एक ट्रस्ट बनाया गया है इस ट्रस्ट में "प्रधानमंत्री केयर फंड" के नाम पर करोड़ों रूपयों का दान लिया गया है । आपको पता है कि ट्रस्ट की राशि को खर्च करने का केवल ट्रस्टी को ही अधिकार होता है। और तो और इसमें नया प्रावधान जोड़ दिया गया है कि इसके आय व्यय को किसी आर्थिक अन्वेषण संस्था द्वारा भी जांच नहीं किया जा सकता। इसका मतलब यह है कि यह ट्रस्ट भाजपा के हित में राशि एकत्र करने के लिए बनाया गया है। जिसका उपयोग केवल भाजपा के मंत्री जो भाजपा के सदस्य भी हैं,कर पायेंगे। यदि यह शासकीय फंड होता तो ,जिस तरह पूर्व से ही पक्ष विपक्ष के सदस्य और केंद्रीय सेवाओं के उच्च अधिकारियों से मिलकर "प्रधानमन्त्री राहत कोष" का गठन है। जिसमें सभी शासकीय अशासकीय कर्मचारी संस्थायें विशेष परिस्थितियों में अपना योगदान देते रहे हैं। जिसके आय व्यय को सीएजी जैसी उच्च स्तरीय आर्थिक अन्वेषण संस्था को आडिट करने नजर रखने का प्रावधान है। तब प्रधानमंत्री शब्द का विश

ऐसे मामले जनता की अदालत में निपटाए जाएं

"ऐसे मामले जनता की अदालत में निपटाए जायें" अर्णव गोस्वामी जैसे पक्षपाती पत्रकारों पर देशद्रोह का मामला दर्ज होना चाहिए या देश हित में बीच चौराहे पर गोली मारी देना चाहिए। और उन मूर्ख संतों की पालघर कांड पर उस गांव को जलाकर राख कर देने की धमकी के लिए भी सुप्रीम कोर्ट संज्ञान नहीं लेता है तो जनता की अदालत उन्हें सरेआम सजा दे। ऐसी विषम परिस्थितियों में जहां संयम की जरूरत है। गोदी मीडिया और मनुवादी साधुओं के बयान देश को शर्मशार करने वाले हैं।इस पर भी सुप्रीम कोर्ट जैसी संवैधानिक संस्था का व्यवहार भी पूरी तरह "गोदी न्याय और गोद लिये दत्तक न्यायधीश" की तरह अविश्वसनीय और संदिग्ध दिखाई दे रहे हैं। जनता इन्हें भी जन अदालत में सरेआम सजा दे। (गुलजार सिंह मरकाम राष्ट्रीय संयोजक गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन शशि)

सूतक बनाम लाकडाउन

"सूतक बनाम लाक डाउन" काश ! यदि कथित बुद्धिजीवी आदिवासी ज्ञान के जन्म और मृत्यु के सूतक परंपरा (बाडी डिस्टेंस, खान-पान) को समझ कर उसकी सीख को गंभीरता से लेते तो शायद इस तरह बार बार अपील दर अपील करने की आवश्यकता नहीं होती।लोग परंपरागत तरीके से अपने आप को स्वयं सुरक्षित कर लेते। उदाहरण स्वरुप किसी बच्चे के जन्म के लिए सोनियारी(नर्स दायी) के अतिरिक्त कम से कम तीन दिन तक प्रसूता से कोई संपर्क नहीं करता, उसके खान-पान की अतिरिक्त व्यवस्था की जाती है। तीन दिन बाद प्रसूता का कोरेंटाईन टाईम समाप्त होता है। फिर इसके बाद उस घर को छ: दिन तक के लिए ग्राम वासी खान पान से डिस्टेंस बनाकर रखते हैं। तत्पश्चात नौ (पुत्री) और दस दिन (पुत्र) की स्थिति में ग्राम समुदाय का डिस्टेंशन समाप्त होकर अन्य गांव में मौजूद रिस्तेदारो को आमंत्रित कर सोसल डिस्टेंशन को समाप्त किया जाता है। यह लाकडाउन परंपरा शायद प्रसूता के संक्रमण या सुरक्षा से या जिस भी कारण से जुड़ा हो पर वर्तमान संक्रमण के लिए आईना दिखा सकती है। कुछ इसी तरह मृत्यु संस्कार के समय भी कम से कम उस घर को कोरेंटाईन कर दिया जाता है। घर में खाना पीन

कोरोना आपके आत्मविश्वास से हारेगा।

कौरोना आपके आत्मविश्वास से हारेगा। मेडिकल साइंस मानता है कि किसी रोग को दवा नहीं मारती बल्कि वह उस रोग के कारण आपके शरीर में मौजूद आपकी शरीर को स्वस्थ बनाए रखने वाले विशेष रक्त कण कमजोर हो जाना है। अर्थात उनमें रोग से लडने की क्षमता कमजोर हो जाती है। तब रोग बढ़ने लगता है। जिसे दवा के रूप में उन रक्त कणों को रोग से लडने लायक खुराक देकर मैदान में उतारा जाता है। कुल मिलाकर उनमें प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने का प्रयास किया जाता है। जिसमें क्षमतानुसार जीत और हार तय होता है। भारत देश में आजादी के बाद से लगातार स्वास्थ विषय पर काम होता रहा है पर अभी तक जन स्वास्थ की देखभाल के लिए सुदूर ग्रामीण अंचलों तक इसकी पूरी पहुंच नहीं बन पाई है, परिणाम स्वरुप ग्राम समुदाय आज भी अपने आप को अपने पूर्वजों के दिये घरेलू नुस्खे से इलाज करके बचाने का प्रयास करते हैं। अन्यथा सरकारी व्यवस्था की आस में स्थिति और भी भयावह हो जाती। संकट के अनेक मौकों पर अंधविश्वासी पिछड़ा और ना जाने किस किस ग़लत नाम से संबोधित समूह ने अपने आप का आत्मविश्वास बरकरार रखा। अपूर्णीय नुकसान के बावजूद आज तक जिंदा है। इस समूह में कभी बैचेनी नह

जीते थे अब भी जीतेंगे

"जीते थे अब भी जीतेंगे" देश के आम नागरिकों से विनम्र अपील है कि, कोरोना जैसे कमजोर वायरस से घबराकर,अपना मानसिक संतुलन ना खोयें , सामाजिक सहयोग और समरसता बनाये रखें। आपने हैजा प्लेग जैसी महामारी से लोहा लेकर जीत हासिल किया है। तब तो आज जैसी शिक्षा, जागरूकता और ना ही बचाव के संसाधन थे,नाम मात्र के सरकारी सहयोग से आपने अपने स्तर के संसाधन और उपायों से उसका डटकर मुकाबला किया था। लिंगभेद जातिभेद, संप्रदायभेद से ऊपर उठकर सिर्फ , "हैजा,प्लेग" को हराना लक्ष्य रहा है। आज भी हमारा लक्ष्य "कोरोना" उन्मूलन हो। ऐसी महामारी से "जीते थे अब भी जीतेंगे। जय सेवा जय जोहार। (गुलजार सिंह मरकाम राष्ट्रीय संयोजक गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन)

Corona & imunity

"corona and immunity" कोरोना आने के बाद अन्य सामान्य रोगों से मरने वालो की प्रतिदिन का आंकड़ा प्रस्तुत करती रहें सरकारें। जनता में भय समाप्त होगा, आत्मविश्वास बढ़ेगा। जिससे इंसान के शरीर में अप्रत्यकछ रूप से प्रतिरोधक क्षमता बढ़ेगी। (गुलजार सिंह मरकाम राष्ट्रीय संयोजक गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन)g

एकता का संदेश बनाम अंधविश्वास

"एकता का संदेश बनाम अंधविश्वास" कोरोना जैसी महामारी में भी आर एस एस, मोदी के माध्यम से विज्ञान के बीच अंधविश्वास को बचाने का प्रयत्न कर रही है। जब लगने लगा कि कोरोना पूजा और पाखंड से नहीं विज्ञान के अविष्कार से रूकेगी,तब अंधविश्वास को सुरक्षा की चादर ओढ़ाकर घंटा घंटी थाली दीपक बजाकर अंधविश्वास का पैमाना बनाया बनाया। थोड़ी सी सफलता ने पुनः मोदी के माध्यम से टार्च मोबाइल या दीपक जलाकर कथित एकजुटता बनाम कोरोना से संघर्ष का बेतुका संदेश दिया जा रहा है। जब वैज्ञानिकों ने डिस्टेंस लाकडाऊन और सुरक्षा उपकरण को सबसे कारगर उपाय बता दिया तब अलग से ऐसा नाटक क्यों ? इससे दुनिया में देश की बेइज्जती हो रही है। इसी बीच एक और बेइज्जती की बात कि धर्म विशेष के लोगों के द्वारा कोरोना फैलाये जाने की खबर फैलाना भी कुछ लोगों के कारण भारत देश की मानसिक रूग्णता को ही दर्शाता है। (गुलजार सिंह मरकाम राष्ट्रीय संयोजक गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन)