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Showing posts from 2020

मूलवासी मूल निवासियों का धर्मनिरपेक्ष चश्मा

पहले कॉन्ग्रेस मनुवाद की ए टीम मानी जाती थी जिसने मूलवासी, मूल निवासियों को धर्मनिरपेक्षता का पाठ पढ़ा कर भाजपा रूपी बी टीम को स्थापित करने के लिए मंदिर मस्जिद जैसे ईवीएम जैसे मुद्दों को लाकर भाजपा को ए टीम बनने का अवसर दिया है। देश का मूलवासी मूलनिवासी कांग्रेस को धर्मनिरपेक्षता के चश्मे से देखता रहा जबकि इस देश में जितने भी धर्म है वे अपने अपने धर्मों को मजबूत करते रहे भाषाओं को मजबूत करते रहे अपने सांस्कृतिक पक्ष को मजबूत करते रहे वही देश के आदिवासी की बनी बनाई सांस्कृतिक, धार्मिक विरासत मिट्टी में मिलती गई इसका कौन जिम्मेदार है । इसका मतलब हम धर्मनिरपेक्षता का चश्मा पहने रहें और अन्य लोग अपनी पहचान को मजबूत करते रहें ? आज की तारीख में देश में गांधीवादी अंबेडकरवादी समाजवादी विचारधाराएं चल रही है जिनकी आंतरिक धार्मिक संरचना का लक्ष्य कोई ना कोई धर्म होता है उनके संस्कृति और संस्कार होते हैं, अब हम यह चलने नहीं देंगे । वर्तमान समय में सांस्कृतिक जय पराजय का दौर चल रहा है ऐसे में सामाजिक सांस्कृतिक धार्मिक लामबंदी आवश्यक है। जो सत्ता को प्रभावित करने के लिए आवश्यक है। (Gska)

("GSKA" मध्यस्थता के लिए तैयार है

गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन लंबे समय से अनवरत जारी है आशा है इसी तरह सतत जारी रहे। गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन में जिन सामाजिक धार्मिक आर्थिक सांस्कृतिक भाषाई साहित्यिक जैसी शाखाओं को एक दूसरे से समन्वय कराते हुए आगे बढ़ाया गया परिणाम स्वरूप आज राष्ट्रीय क्षितिज पर यह आंदोलन कहीं ना कहीं अपेक्षित परिणाम दे रहा है परंतु गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन की इन शाखाओं को सुरक्षा और संरक्षण देने के लिए राजनीतिक इकाई को अवसर दिया गया यह इकाई लंबे समय तक कोई अपेक्षित परिणाम नहीं दे पा रही है कारण बहुत से हैं परंतु कहा जाता है ना की राजनीति में धन है ग्लैमर है वाहवाही है इसलिए आंदोलन की आधार शाखाएं भी उससे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकी परिणाम स्वरूप राजनीतिक इकाई अन्य शाखाओं को प्रभावित करने लगी । कायदा तो यही था की अन्य इकाइयां अपनी शाखाओं से व्यक्तियों को तैयार करके राजनीतिक शाखा में स्थापित करने का काम करती परंतु राजनीति के चलते इन शाखाओं के प्रस्तावित प्रतिनिधियों को कभी भी अवसर नहीं दिया गया अतः सामाजिक संगठन भी धीरे धीरे राजनीतिक आंदोलन से किनारा करके अपने तरीके से आंदोलन को चलाने लग

"2 वोट के अधिकार से वंचित समुदाय उसका जनप्रतिनिधि"

अनुसूचित जनजाति घोषित लोकसभा विधानसभा या निकाय क्षेत्रों में गैर आदिवासी वोट बैंक को हासिल करने के लिए आरक्षित वर्ग का जनप्रतिनिधि अपनी धर्म संस्कृति प्रीति और परंपराओं को भी ताक में रख सकता है। क्योंकि गैर जनजाति मतदाता इन आरक्षित क्षेत्रों के मतदान में वेलेंसिंग की भूमिका में रहता है। ऐसा मतदाता सतर्क और जागरूक भी रहता है इसलिए आरक्षित वर्ग के प्रत्याशी जीतने के बाद इनका ज्यादा ख्याल रखते हैं और इनकी भाषा धर्म संस्कृति को सिर आंखों पर बैठा कर रखते हैं। यदि यह लोग अपने समुदाय की भाषा धर्म संस्कृति परंपराओं पर कट्टर होते तो यह कट्टरता गैर आदिवासी मतदाता को अपने साथ चलने के लिए मजबूर कर देते। भविष्य की इसी आशंका को देखते हुए डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जी ने गोलमेज कांफ्रेंस में पृथक निर्वाचन अथवा दो वोट के अधिकार को दिलाने का प्रयास किया था। यदि वह अधिकार मिल गया होता तो आरक्षित क्षेत्र के जनप्रतिनिधि गैर आदिवासी वोट बैंक से भयभीत नहीं होते। (Gska)

समुदाय और समाज

इंसानों का समूह समाज है ,क्योंकि सबकी आवाज समान है। निर्धारित समान उद्देश्यों को लेकर चलने वाला समूह समुदाय है।(gska) ये इसलिए लिखना पडता है कि अनेकों बार समाज और समुदाय को परिभाषित करने का प्रयास किया लेकिन कोल्हू के बैल को सिर्फ चक्कर लगाना आता है किसलिए लगा रहे हैं उससे उसे कोई मतलब नहीं। हिंदी पढ़ते हैं तो कम-से-कम किसी शब्द के मायने की भी छानबीन होना चाहिए। दोनो शब्द अलग-अलग हैं, इसलिए इसके मायने भी अलग हैं। पर क्या करें रट्टू तोता हैं, भेड़ है आदत से मजबूर हैं।

"किसान विरोधी तीन बिल संसद में पारित इसके पीछे का काला सच क्या है जाने।"

किसान का उत्पादन मंडियों में घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य के आधार पर खरीदा जाता था जिसे मंडी के बाहर भी व्यापारी को उस मूल्य से कम करके नहीं लेना होता था परंतु इस नए कानून में किसानों के लिए ऐसी स्थिति पैदा कर दी की वह कहीं भी भेजें अब तक यही होता आया है की व्यापारी मनमाने भाव से किसानों की उपज को पहले भी खरीदता था अभी भी यही करेगा क्योंकि पहले शासन का दबाव होता था की न्यूनतम समर्थन मूल्य पर ही व्यापारी अनाज को खरीदेंअन्यथा उनके विरुद्ध कानूनी कार्यवाही हो जाती थी अब इससे छूट मिल गई है। इसका जो सबसे महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ने वाला है वह यह कि अब मंडी में अनाज नहीं जाएगा छोटा व्यापारी भी कृषि उपज को इतना खरीद नहीं पाएगा क्योंकि उसे बड़े बाजार में बेचने के लिए केवल कारपोरेट घरानों पर निर्भर होना पड़ेगा वही यह कारपोरेट घराने उस उपज को लेना चाहे तब लेंगे नहीं लेना चाहेंगे तो नहीं लेंगे छोटा व्यापारी भी इसमें नुकसान में रहेगा कारपोरेट कंपनियां उनकी भी मजबूरी का फायदा उठा कर मनमाने भाव से कृषि उपज को सस्ते दामों में खरीदकर भंडारण कर लेंगी और वहीं पर शासकीय मंडियों में अनाज नहीं रहेगा तब यही कंपन

"प्रजातंत्र प्रणाली में राजनीति ताकत के महत्व को समझे आदिवासी समुदाय।"

"प्रजातंत्र प्रणाली में राजनीति ताकत के महत्व को समझे आदिवासी समुदाय।" संविधान में राष्ट्रपति और राज्यपाल शक्तिहीन राज्य और राष्ट्र के प्रमुख हैं तब आदिवासी समुदाय इनके संरक्षण में कैसे अधिकार सम्पन्न हो सकता है। इसलिये हमें इनके भरोशे किसी भी जनविरोधी आदिवासी विरोधी कानून में दखल देकर उन्के हितों के संरक्षण की आशा कैसे की जा सकती है। इसलिये आदिवासी समुदाय को चाहिये कि वह लोकतंत्र प्रणाली में वोट की राजनीतिक ताकत पैदा करके अपने हितों का संरक्षण कर सकती है। आदिवासी समुदाय अपने राज्य और राष्ट्र के कथित हित संरक्षक से पांचवीं अनुसूचि पेसा कानून या वनाधिकार कानून जैसे मुददों पर उम्मीद करना बेमानी होगी। इसलिये कहा जाता है कि राजनीतिक एक एैसी मास्टर चाबी है जिससे हर समस्या रूपी बंद ताले को खोला जा सकता है। (गुलजार सिंह मरकाम रा0सं0गों0स0क्रां0आं0)

देवस्थल से मिट्टी चोरी समुदाय के लिए अनिष्ट का कारण भी बन सकता है

"देवस्थल से मिट्टी चोरी समुदाय के अनिष्ट का कारण भी बन सकता है " आदिवासी समुदाय में आवश्यकतानुशार अपने देवों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाकर स्थापित करने की परंपरा भी है। जिसे "जगह चालना " कहा गया है। कभी कभी ऐसे स्थांतरण परिवार के बीच तालमेल नहीं होने से बंटवारा के कारण होता है । जिसे "डार नवाना" जैसे शब्दों से परिभाषित किया जाता है। इन दोनों अवसरों पर देवस्थल की मिट्टी को विधिवत प्रक्रिया से अपने "सेरमी " के माध्यम से खोदकर निर्धारित स्थान में ले जाकर विधिवत प्रक्रिया से स्थापित किया जाता है। बुजुर्गों से प्राप्त जानकारीके अनुसार कभी कभी हमारा अहित चाहने वाला हमारे देव स्थल से नजर बचाकर या चोरी से वहां की मिट्टी चुराकर ले जाता है और उस मिट्टी का काले क्रत्य के लिए दुरुपयोग करता है। ये सब लिखने का मेरा आशय यह है कि हमारे आदिवासीयों के देवस्थल से मिट्टी चुराकर या समुदाय के कुछ गद्दारों की मिलीभगत से सरेआम डकैती डाली गई हो,यह हमारी आस्था और जीवन के लिए खतरा है। समुदाय और समुदाय के विधिवेत्ता इसे अवश्य संज्ञान में लेवें। -गुलज़ार सिंह म

सफलता का सूत्र

"सफलता का सूत्र" 3.5 प्रतिशत बामन 100 प्रतिशत जागरूक है, इसलिए सक्रियता के कारण वह चारों ओर ज्यादा संख्या में दिखाई देता है, वहीं आदिवासी उससे संख्या बल में अधिक है पर जागरूकता के अभाव में सक्रिय ना होने के कारण नगण्य दिखाई देता है। यह नगण्यता उसके आत्मविश्वास और मनोबल को कमजोर करता है। इसलिए आदिवासी समुदाय कोई भी जोखिम उठाने से हिचकता है। जो व्यक्ति या समुदाय जोखिम (risk) नहीं उठाता वह किसी भी क्षेत्र (field ) में सफल नहीं हो सकता। "जोखिम उठाओ सफलता पाओ" । -गुलज़ार सिंह मरकाम (राष्ट्रीय संयोजक गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन)

चोरी का मंदिर

"चोरी का मंदिर" पहरेदार बनाकर रखा था जिसे तिजोरी का । सुनो गोंडवाना के आदिवासीयो, वही पहरेदार ही चोरों का असली सरदार निकला ।। सरना और कचारगढ की मिट्टी चुराकर राम मंदिर को ऐतिहासिक बनाने वाले यह जानते हैं कि ऐसा करने से आदिवासियों की आस्था राम से जुडेगी, परन्तु ऐसे चोरों को यह भी याद रख लेना चाहिए कि आदिवासी समुदाय चोरी पसंद नहीं करता, इसलिए अब आदिवासी समुदाय इस राम मंदिर को धन धरती के साथ साथ आस्था और विश्वास की चोरी और डकैती से बने मंदिर के रूप में जानेगा। तथा अपनी आने वाली पीढ़ी को भी यही सीख देगा । -गुलज़ार सिंह मरकाम (राष्ट्रीय संयोजक गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन)

क्या हम बबीता कच्छप को भूल जायें

"क्या हम बबीता कच्छप को भूल जायें" वैसे तो आदिवासियें के विन्नि मसलों पर अनेक लोगों ने काम किया है परन्तु पांचवी अनुसूचि पेसा कानून की व्याख्या और उसके अंदर छुपे आदिवासियों के अधिकारों का सरल और सहज व्याख्या करते हुए खासकर पत्कलगढी जैसे स्वशासन की बातों को देश के विभिन्न राज्यों के सुदूर वनक्षेत्रों में ले जाने का का साहस किया है तो वह नाम है बबीता कच्छप । आंदोलन के आरंभ से ही इन्होंने जोखिम उठाई है । आज उसे गुजरात पुलिस ने देशद्रोह जैसे मामले पर गिरफतार किया है । क्या समुदाय को पांचवी अनुसूचि की समझाईस देना देशद्रोह है । आदिवासियों के हितों को बताना पहले नक्सलवाद होता था अब देशद्रोह होने लगा । निश्चित ही इस विषय पर हमें गंभीर होना है अन्यथा हमारा आदिवासी अब देशद्रोह की श्रेणी में गिना जाने लगा । कायदा तो यही है मूलवासी आदिवासी को कोई विदेशी आक्रांता द्रेशद्रोही कह नहीं सकता । परन्तु अंग्रेजो की तरह सत्ताधारी बनकर आज के भारतीय अंग्रेज अब आदिवासियों को देशद्रोही भी बनाने लगे । राजा श्ंाकरशाह एवं कुंवर रधुनाथशाह पर भी द्रशद्रोह का मुकदमा लगाया गया था । क्या हम इसी का इंतजार कर

गोंडी भाषा के अल्प ज्ञान से उसकी टांग मत तोड़ो

"गोंडी भाषा के अल्प ज्ञान से उसकी टांग मत तोड़ो" गोंडवाना आंदोलन अनवरत जारी है,इस दौरान गोंडवाना भूमि के आदिवासी समुदाय के कुछ खोजी,कुछ विरासत में मिली परंपराओं को आगे बढ़ाने वाले चिंतक,विचारक साहित्यकार,बैगा भुमका नर्तक गायक, भाषा शास्त्री परंपरागत जड़ी बूटी ज्ञान (जंतर) से लेकर यंत्र और मंत्रों की ओर भी अपना ध्यान देने में लगे हुए हैं । जोकि आंदोलन की सफलता के लिए अति आवश्यक है। परन्तु इस तरह के प्रयास में लगे कुछ अति उत्साही लोग या आत्ममुग्धता से ग्रस्त लोग आंदोलन के मूल आधारिक तत्वों (भाषा,धर्म, संस्कृति और साहित्य )की मूल भावना का ख्याल ना रखते हुए आत्म गौरव को बढ़ाने के लिए, इन महत्वपूर्ण तत्वों की टांग तोड़ते नजर आते हैं।इन सब बातों से अनभिज्ञ समुदाय (जन-गण) टूटी टांग को ही असली टांग समझ लेती है । जो भविष्य में आंदोलन के लिए कष्टकारक है। उदाहरण स्वरुप भाषा का क्षेत्र ले लें जो आंदोलन का आधारिक बिंदु है। जिसके सहारे हमारी समृद्धि के दर्शन होते हैं, उसके शब्दों के अर्थों में हमारा पुरातन ज्ञान (प्रकृति, के साथ जल थल और नभ) छुपा हुआ है। यदि हम भाषा के मूल की ही टांग तोड़

क्या जरूरी है शराब की दुकान खोलना

"क्या जरूरी है शराब की दूकान खोलना" मप्र सरकार ने प्रदेश में शराब की दुकानों को खोलने के निर्देश जारी कर दिए हैं ऐसी स्थिति में क्या होगा शराब पीने वाले को स्वयं होश में नहीं होने से वह एक दूसरे से जरूर देह संपर्क में रहेगा। क्या ऐसी स्थिति में कोरोना संक्रमण से बचा जा सकता है, नहीं बचेगा । सरकार को इस क्षेत्र में इतनी सतर्कता आवश्यक है । शराब बेचना जरूरी है तो शराब की होम डिलीवरी की भी व्यवस्था की जा सकती है जिसे आवश्यकता है वह उस तक पहुंचा सकता है इसलिए शराब की दुकानें पूर्ण तरह बंद रहे पीने वालों के लिए होम डिलीवरी की व्यवस्था ही सही उपाय हो सकता है । कहीं ऐसा तो नहीं की सरकार को कोरोना से जनता को बचाने से ज्यादा शराब के टेक्स से प्राप्त होने वाले रुपयों की जरूरत ज्यादा है या अज्ञात लालच है । यदि रुपया ही चाहिए तो सरकार केंद्र से मांग करके उस रुपए की पूर्ती कर ले पर लोगों के जान को जोखिम में ना डालें जब प्रदेश में लगातार संक्रमित होने वालों की संख्या बढ़ रही है ऐसे में रुपयों की लालच सरकार को कटघरे में खड़ा कर सकती है । (गुलजार सिंह मरकाम राष्ट्रीय संयोजक गोंडवाना समग्र क

जनता का जमा धन सरकार जनता में लगाये

"जनता का जमा धन सरकारें जनता में लगाया जाये" अब तो देश के आम नागरिक को यह पता चल जाना चाहिए कि प्रत्येक नागरिक के लिए जनता द्वारा चुनी हुई सरकार का आम नागरिक के लिए कितना उत्तरदायी होना चाहिए। उसके स्वास्थ, भरण पोषण और अन्य जरूरतों के लिए शासकीय संसाधनों मिशनरी का भरपूर उपयोग क्यों किया जाता है या किये जाने का नाटक किया जाता है। यह इसलिए की राजकोष में जो धन है वह आम जनता का ही धन जमा है जिसे आम जनता के दुख तकलीफ के लिए लगाना अनिवार्य है यही सब कुछ इस वक्त सहायता के नाम पर हो रहा है जो केंद्र और राज्य सरकारों की इच्छाशक्ति पर निर्भर है , यदि भरपूर सहायता प्राप्त नहीं होती है तो सरकारें दोषी होंगी। इस विषय पर बुद्धिजीवी की नजर रहती है । दुनिया को भी यह दिखाना जरूरी। होता है कि हमारी सरकार जनता के पैसे का जनता के हित में कैसे खर्च कर रही है, अन्यथा शासक सरकारों को नीचा देखना ना पड़े । इसलिए आम नागरिकों से अपील है कि वे अपनी सहायता प्राप्त करने के लिए अधिकार के साथ दबाव बनाये साथ ही स्थानीय स्तर पर ही रोजगार उपलब्ध कराने की मांग भी करे । इसके लिए भले ही आंदोलन करना पड़े हम आंदोलन

प्रधानमंत्री राहत कोष" बनाम "प्रधानमंत्री केयर फंड

**प्रधानमंत्री राहत कोष** बनाम "प्रधानमंत्री केयर फंड" कोरोना संकट के नाम पर नरेंद्र मोदी और उनके मंत्री मंडल के दो सदस्यों को लेकर एक ट्रस्ट बनाया गया है इस ट्रस्ट में "प्रधानमंत्री केयर फंड" के नाम पर करोड़ों रूपयों का दान लिया गया है । आपको पता है कि ट्रस्ट की राशि को खर्च करने का केवल ट्रस्टी को ही अधिकार होता है। और तो और इसमें नया प्रावधान जोड़ दिया गया है कि इसके आय व्यय को किसी आर्थिक अन्वेषण संस्था द्वारा भी जांच नहीं किया जा सकता। इसका मतलब यह है कि यह ट्रस्ट भाजपा के हित में राशि एकत्र करने के लिए बनाया गया है। जिसका उपयोग केवल भाजपा के मंत्री जो भाजपा के सदस्य भी हैं,कर पायेंगे। यदि यह शासकीय फंड होता तो ,जिस तरह पूर्व से ही पक्ष विपक्ष के सदस्य और केंद्रीय सेवाओं के उच्च अधिकारियों से मिलकर "प्रधानमन्त्री राहत कोष" का गठन है। जिसमें सभी शासकीय अशासकीय कर्मचारी संस्थायें विशेष परिस्थितियों में अपना योगदान देते रहे हैं। जिसके आय व्यय को सीएजी जैसी उच्च स्तरीय आर्थिक अन्वेषण संस्था को आडिट करने नजर रखने का प्रावधान है। तब प्रधानमंत्री शब्द का विश

ऐसे मामले जनता की अदालत में निपटाए जाएं

"ऐसे मामले जनता की अदालत में निपटाए जायें" अर्णव गोस्वामी जैसे पक्षपाती पत्रकारों पर देशद्रोह का मामला दर्ज होना चाहिए या देश हित में बीच चौराहे पर गोली मारी देना चाहिए। और उन मूर्ख संतों की पालघर कांड पर उस गांव को जलाकर राख कर देने की धमकी के लिए भी सुप्रीम कोर्ट संज्ञान नहीं लेता है तो जनता की अदालत उन्हें सरेआम सजा दे। ऐसी विषम परिस्थितियों में जहां संयम की जरूरत है। गोदी मीडिया और मनुवादी साधुओं के बयान देश को शर्मशार करने वाले हैं।इस पर भी सुप्रीम कोर्ट जैसी संवैधानिक संस्था का व्यवहार भी पूरी तरह "गोदी न्याय और गोद लिये दत्तक न्यायधीश" की तरह अविश्वसनीय और संदिग्ध दिखाई दे रहे हैं। जनता इन्हें भी जन अदालत में सरेआम सजा दे। (गुलजार सिंह मरकाम राष्ट्रीय संयोजक गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन शशि)

सूतक बनाम लाकडाउन

"सूतक बनाम लाक डाउन" काश ! यदि कथित बुद्धिजीवी आदिवासी ज्ञान के जन्म और मृत्यु के सूतक परंपरा (बाडी डिस्टेंस, खान-पान) को समझ कर उसकी सीख को गंभीरता से लेते तो शायद इस तरह बार बार अपील दर अपील करने की आवश्यकता नहीं होती।लोग परंपरागत तरीके से अपने आप को स्वयं सुरक्षित कर लेते। उदाहरण स्वरुप किसी बच्चे के जन्म के लिए सोनियारी(नर्स दायी) के अतिरिक्त कम से कम तीन दिन तक प्रसूता से कोई संपर्क नहीं करता, उसके खान-पान की अतिरिक्त व्यवस्था की जाती है। तीन दिन बाद प्रसूता का कोरेंटाईन टाईम समाप्त होता है। फिर इसके बाद उस घर को छ: दिन तक के लिए ग्राम वासी खान पान से डिस्टेंस बनाकर रखते हैं। तत्पश्चात नौ (पुत्री) और दस दिन (पुत्र) की स्थिति में ग्राम समुदाय का डिस्टेंशन समाप्त होकर अन्य गांव में मौजूद रिस्तेदारो को आमंत्रित कर सोसल डिस्टेंशन को समाप्त किया जाता है। यह लाकडाउन परंपरा शायद प्रसूता के संक्रमण या सुरक्षा से या जिस भी कारण से जुड़ा हो पर वर्तमान संक्रमण के लिए आईना दिखा सकती है। कुछ इसी तरह मृत्यु संस्कार के समय भी कम से कम उस घर को कोरेंटाईन कर दिया जाता है। घर में खाना पीन

कोरोना आपके आत्मविश्वास से हारेगा।

कौरोना आपके आत्मविश्वास से हारेगा। मेडिकल साइंस मानता है कि किसी रोग को दवा नहीं मारती बल्कि वह उस रोग के कारण आपके शरीर में मौजूद आपकी शरीर को स्वस्थ बनाए रखने वाले विशेष रक्त कण कमजोर हो जाना है। अर्थात उनमें रोग से लडने की क्षमता कमजोर हो जाती है। तब रोग बढ़ने लगता है। जिसे दवा के रूप में उन रक्त कणों को रोग से लडने लायक खुराक देकर मैदान में उतारा जाता है। कुल मिलाकर उनमें प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने का प्रयास किया जाता है। जिसमें क्षमतानुसार जीत और हार तय होता है। भारत देश में आजादी के बाद से लगातार स्वास्थ विषय पर काम होता रहा है पर अभी तक जन स्वास्थ की देखभाल के लिए सुदूर ग्रामीण अंचलों तक इसकी पूरी पहुंच नहीं बन पाई है, परिणाम स्वरुप ग्राम समुदाय आज भी अपने आप को अपने पूर्वजों के दिये घरेलू नुस्खे से इलाज करके बचाने का प्रयास करते हैं। अन्यथा सरकारी व्यवस्था की आस में स्थिति और भी भयावह हो जाती। संकट के अनेक मौकों पर अंधविश्वासी पिछड़ा और ना जाने किस किस ग़लत नाम से संबोधित समूह ने अपने आप का आत्मविश्वास बरकरार रखा। अपूर्णीय नुकसान के बावजूद आज तक जिंदा है। इस समूह में कभी बैचेनी नह

जीते थे अब भी जीतेंगे

"जीते थे अब भी जीतेंगे" देश के आम नागरिकों से विनम्र अपील है कि, कोरोना जैसे कमजोर वायरस से घबराकर,अपना मानसिक संतुलन ना खोयें , सामाजिक सहयोग और समरसता बनाये रखें। आपने हैजा प्लेग जैसी महामारी से लोहा लेकर जीत हासिल किया है। तब तो आज जैसी शिक्षा, जागरूकता और ना ही बचाव के संसाधन थे,नाम मात्र के सरकारी सहयोग से आपने अपने स्तर के संसाधन और उपायों से उसका डटकर मुकाबला किया था। लिंगभेद जातिभेद, संप्रदायभेद से ऊपर उठकर सिर्फ , "हैजा,प्लेग" को हराना लक्ष्य रहा है। आज भी हमारा लक्ष्य "कोरोना" उन्मूलन हो। ऐसी महामारी से "जीते थे अब भी जीतेंगे। जय सेवा जय जोहार। (गुलजार सिंह मरकाम राष्ट्रीय संयोजक गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन)

Corona & imunity

"corona and immunity" कोरोना आने के बाद अन्य सामान्य रोगों से मरने वालो की प्रतिदिन का आंकड़ा प्रस्तुत करती रहें सरकारें। जनता में भय समाप्त होगा, आत्मविश्वास बढ़ेगा। जिससे इंसान के शरीर में अप्रत्यकछ रूप से प्रतिरोधक क्षमता बढ़ेगी। (गुलजार सिंह मरकाम राष्ट्रीय संयोजक गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन)g

एकता का संदेश बनाम अंधविश्वास

"एकता का संदेश बनाम अंधविश्वास" कोरोना जैसी महामारी में भी आर एस एस, मोदी के माध्यम से विज्ञान के बीच अंधविश्वास को बचाने का प्रयत्न कर रही है। जब लगने लगा कि कोरोना पूजा और पाखंड से नहीं विज्ञान के अविष्कार से रूकेगी,तब अंधविश्वास को सुरक्षा की चादर ओढ़ाकर घंटा घंटी थाली दीपक बजाकर अंधविश्वास का पैमाना बनाया बनाया। थोड़ी सी सफलता ने पुनः मोदी के माध्यम से टार्च मोबाइल या दीपक जलाकर कथित एकजुटता बनाम कोरोना से संघर्ष का बेतुका संदेश दिया जा रहा है। जब वैज्ञानिकों ने डिस्टेंस लाकडाऊन और सुरक्षा उपकरण को सबसे कारगर उपाय बता दिया तब अलग से ऐसा नाटक क्यों ? इससे दुनिया में देश की बेइज्जती हो रही है। इसी बीच एक और बेइज्जती की बात कि धर्म विशेष के लोगों के द्वारा कोरोना फैलाये जाने की खबर फैलाना भी कुछ लोगों के कारण भारत देश की मानसिक रूग्णता को ही दर्शाता है। (गुलजार सिंह मरकाम राष्ट्रीय संयोजक गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन)

कोरोना nrc,सीसीए और भारतीय नागरिक

NRC, सीसीए,में जिस तरह विदेशी नागरिकों के प्रति सरकार दरियादिली दिखा रही है । उसी तरह विदेशों में गए व्यवसाई अमीरों/और देश पर भरोसा नहीं रखने वाले लोगों को वापस लाने के लिए हवाई सुविधा देकर लाभ दिया जा रहा है। यानी,बाहर के लोग नागरिक देश के नागरिक के साथ विदेशी विदेशी जैसा सुलूक। जागो भारतवासी। कोरोना की तरह ही nrc और सीसीए है। इसलिए सरकार से डिस्टेन्स बनाओ। (गुलजार सिंह मरकाम राष्ट्रीय संयोजक गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन)

एसी भारत सरकार और अंतर्राष्ट्रीय मांझी सरकार

"एसी भारत सरकार"(श्री केसरी सिंह जी) एवं "अंतर्राष्ट्रीय मांझी सरकार" (श्री कंगला मांझी जी)" हमारे देश में युवा पीढ़ी और अन्य बौद्धिक वर्ग तथा विभिन्न संगठनों के माध्यम से समुदाय और समाज हित में आंदोलन चलाने वाले संगठनों के जिम्मेदार लोग पदाधिकारी गण कृपया निम्नलिखित संगठन भी हमारे अपने हैं परन्तु ये दोनों संगठन जो भारत के "क्राउन और ताज" की बात करते हैं। उनसे बात करना होगा हकीकत से रूबरू होना पड़ेगा दोनों सरकारों से अनुरोध है कि गुजरात से "ए/सी भारत सरकार" कुटुंब परिवार के जिम्मेदार लोग और मध्यप्रदेश छत्तीसगढ़ से अंतरर्राष्ट्रीय "कंगला मांझी सरकार" के प्रमुख जिम्मेदार लोग आपस मैं एक साथ बैठकर संगोष्ठी करें।कि भारत में हमारी (आदिवासियों) भूमिका क्या है। नोट:-कुछ इसी तरह के विचारों को लेकर झारखंड राज्य में "टाना भगत समूह" भी है। उनसे भी मिलकर विमर्श किया जाय। यह सबकी जिम्मेदारी है। (गुलजार सिंह मरकाम राष्ट्रीय संयोजक गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन)

गोंडी पारसी वनकाट ग्रुप के लिए अपील

"विनम्र निवेदन" सगा जनों हमने गोंडी भाषा में संवाद करने के लिए वाटएट में "गोंडी पारसी वनकाट ग्रुप" बनाया है जिन साथियों को यह भाषा आती है ऐसे मित्र ही इस ग्रुप में शामिल हों। इस ग्रुप में सदस्यों से संवाद होगा यह संवाद और ग्रुप में भेजी गई जानकारी को एकत्र किया जायेगा । ताकि भाषा को गूगल माइक्रोसाॅफ्ट के माध्यम से अन्य भाषाओं में ट्रास्लैशन हो सके। आपके एंड्रायड फोन में भी आसानी से किया जा सके। माननीय सुभ्रांसु जी के सहयोग से इस कार्य को आगे बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है। अतः इसमें अपेक्षित सहयोग प्रदान करें। भाषा में चैट नहीं करने वाले किसी साथी को यदि बिना जाने जोड़ लिया गया है तो एडमिन उसे ससम्मान रिमूव कर दे। रिमूव होने वाला भी नाराज ना हो। साथियों ऐसा निवेदन हम भाषा के बड़े मकसद के लिए कर रहे हैं। कृपया सहयोग दें। (गुलजार सिंह मरकाम राष्ट्रीय संयोजक गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन)

सजग रहें अन्यथा समाज गुलाम हो जायेगा

"सजग रहें अन्यथा समाज गुलाम हो जायेगा" मनुवादी विचारधारा पर देश में विभिन्न आंदोलनों के माध्यम से लगातार हमला और इस हमले से कमजोर होती मनुवादी व्यवस्था और उसके संगठन लगातार चिंता में हैं। यही कारण है कि वे जल्द से जल्द संविधान को बदलने की कवायद में राज्यसभा में भी बहुमत हासिल करना चाहते हैं। इसलिए मनुवादी विचारधारा को मजबूत बनाने की मंशा रखने वाला व्यक्ति चाहे वह किसी दल में बैठा हो जल्द से जल्द केंद्रित हो रहा है और साथ ही राज्य सभा में बहुमत बनाने की कौशिश कर रहा है । यह कार्य इतनी तेजी से हो रहा है कि ऐसे मनुवादी नेता का साथ और समर्थन देने वाले एससी एसटी ओबीसी के जनप्रतिनिधियों को भनक तक नहीं कि आगे क्या षड्यंत्र होगा । साथियों मनुवाद की जड़ें हिल चुकी हैं। अम्बेडकर वादी, प्रकृतिवादी, मानवतावादी, समाजवादी जैसी विचारधाराओं के लगातार बढ़ती हलचल ने "अभी नहीं तो कभी नहीं" तथा "येन केन प्रकारेण" "साम दाम दण्ड भेद" जैसे इनके अपने पारंपरिक हथियार को व्यवहार में ला रहे हैं। "सजग रहें अन्यथा समाज नष्ट हो जायेगा" (गुलजार सिंह मरकाम राष्ट्रीय

दलों के दल दल से मुक्त होना होगा

"दलों के दल दल से मुक्त होना होगा" "नेता या दल की प्रतिबद्धता ने प्रजातांत्रिक मूल्यों का गला घोंटा है।" नेता और दल की प्रतिबद्धता ने सदैव जनमत और प्रजातांत्रिक मूल्यों का गला घोंटा है। मप्र नहीं विभिन्न राज्यों में ऐसे कारनामे अनेकों बार हो चुके हैं। यह सब इसलिए होता है कि आम जनमानस को राजनीति की पैंतरे बाजी नहीं आती। जनता ने व्यक्ति को नहीं पार्टी और उसके आका को देखकर वोट दिया है, अब उसे वह बेचे या खरीदे जनता का उस पर कोई बस नहीं चलेगा। जिस दिन जनता व्यक्ति के चाल चरित्र का मूल्यांकन करके वोट करने लगेगी तब वह व्यक्ति जनता के प्रति उत्तरदायी होगा, प्रतिबद्ध होगा,अभी वह दल और दल के नेता के प्रति उत्तरदायी होता है इसलिए दल या नेता जैसा कहता है वह सबकुछ ताक में रखकर वैसा करता है। अब समय आ गया कि जनता को दलों और नेताओं की दलदली राजनीति से मुक्त होना पड़ेगा। दल और नेता के प्रति प्रतिबद्धता रखने वाले प्रत्याशी की परख करनी होगी । अब अपने अपने क्षेत्रों में जनांदोलन खड़ा करके दल विहीन प्रतिनिधि तैयार करना होगा जो जनता के प्रति उत्तरदायी होगा। (गुलजार सिंह मरकाम राष्ट्रीय स

आदिवासी और उसका सांस्कृतिक बल

"आदिवासी और उसका सांस्कृतिक बल" आदिवासियत को देश के मूल सांस्कृतिक आईने से देखोगे तो उसकी जनसंख्या लगभग 25 करोड़ की बनती है जिसे संख्यानुपात में कमजोर दिखाने और संवैधानिक अधिकार और लाभ से वंचित करने के लिए संविधान में लिखित सूची में अलग अलग वर्ग सूचि में डाल दिया गया है। यही कारण है कि केंद्रीय सेवाओं में मात्र 7.50 प्रतिशत की गणना के आधार पर शासकीय सेवा में अनुपातिक आरक्षण का लाभ और अन्य सुविधाओं में भी कमी रह जाती है। सांस्कृतिक संख्या को विभाजित करने के कारण आदिवासी समुदाय का सबसे बड़ा नुक्सान उसके संख्या बल की अल्पता महसूस होने से "हमारी इतनी कम संख्या है हम क्या कर सकते हैं" जैसी मनोबल को हतास करने वाली मानसिकता पनपती है। इसलिए मेरा मानना है ग्रामीण भारत का अधिकांश हिस्सा देश की मूल आदिवासी सांस्कृतिक व्यवस्था से संचालित है। इस सांस्कृतिक व्यवस्था का अक्षरशः पालन करने और इस पर जीने मरने वाला समुदाय आदिवासी है भले ही वह संविधान की सूची में अलग नाम से अधिसूचित है। देश की वर्तमान विषम परिस्थितियों में सांस्कृतिक संघर्ष की आहट है। जिसके सांस्कृतिक एकता के हथियार स

1 अप्रैल 2020 और NPR

"1अप्रेल 2020 से NPR करने वाले को कुछ इस तरह बोलें" NPR के लिए आने वाले किसी कर्मचारी को यह कहकर वापस कर दें कि हम 2021की जनगणना शुरू होगी तब हम उस प्रपत्र में पूरी जानकारी देंगे। इसलिए महोदय जी हमें माफ करो। इस समय हम कोई जानकारी नहीं दे सकते। फिर भी आपको समझाने का प्रयत्न करेंगे ऐसी स्थिति में आप उन्हें बोलें कि आपको तो इस काम के लिए 800 रू का ठेका मिला है। इसलिए ठेका पूरा करने के लिए जबरदस्ती समझा और डरा रहे हो। हमें इससे क्या मिलेगा। बल्कि आप उल्टा सीधा भरके या आधी अधूरी जानकारी लेकर फुर्सत हो जाओगे और और आगे जांच प्रक्रिया में हमें "D"संदिग्ध की सूची में डालकर हमारी नागरिकता को खतरे में डालना चाहते हो। ऐसी बात नहीं कि इसका प्रभाव आप या आपके रिस्तेदारो पर नहीं पड़ेगा, इसलिए आप कुछ राशि के लोभ अपने अपने परिवार रिस्तेदारों और आम नागरिक को संकट में मत डालो। इसलिए हम इसका पूरी तरह बहिष्कार करते हैं। एक बार पुनः कहें कि जब जनगणना का समय आयेगा तब उसमें हम पूरी जानकारी देते हैं। उसी को देखकर सारी जानकारी हासिल कर लेना "धन्यवाद जी" । (गुलजार सिंह मरकाम राष्ट्
"प्रदेश में गोंसक्रांआं को मुख्य भूमिका में आना होगा" प्रदेश में जल्द से जल्द गोंसक्रांआं के प्रदेश संयोजक और जिला संयोजक की नियुक्ति की जाए ताकि वे आंदोलन की विचारधारा के सभी घटकों के बीच समन्वय स्थापित कर सके। अन्यथा जाति समुदाय और समाज के नाम पर बने पंजीकृत अपंजीकृत संगठन अपनी डफली अपना राग अलापने में लगे रहेंगे। इसमें समुदाय और समाज का नुक़सान हो सकता है। संयोजक का चयन ऐसा हो कि वह सभी के बीच समन्वय बना सके। जनजाति है तो जनजाति की वर्गीय मानसिकता विकसित कर सके। अनुसूचित जाति है तो वह उसमें भी वर्गीय मानसिकता भर सके। यही बात अन्य पिछडी जातियों के संगठनों के लिए भी लागू कर सकते हैं।तभी मनुवाद से निपटा जा सकता है,अन्यथा, मनुवाद के विरुद्ध चल रहे आंदोलनों की सफलता में प्रश्नचिन्ह लगता है। (गुलजार सिंह मरकाम राष्ट्रीय संयोजक गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन)

जाति समुदाय और समाज

"जाति, समुदाय और समाज" दुनिया के बहुत से देशों में "जाति" नाम की अवधारणा समाप्त हो चुकी है, वहां अब अंतर समुदाय के बीच है जिसके आधार पर भेद किया जाता है। मुख्य रूप से यह नस्लीय अंतर होता है। जाति अंतर को समाप्त करने में धर्म का विशेष महत्व रहा है। एक धर्म में आने पर जातीय सोच कमजोर हो जाती है और यह एक संप्रदाय के रूप में स्थापित हो जाती है। यथा ईसाई सिख हिंदू मुस्लिम बौद्ध,जैन आदि । यह सांप्रदायिक एकता समुदाय के रूप में जानी जाती है,इसे ही "समुदाय" कहा जाता है। भारत देश में विभिन्न जातियां कम से कम समुदाय की शक्ल में आ जाएं यह सोचकर धर्मनिरेक्ष राष्ट्र की घोषणा के साथ संविधान निर्माताओं ने उन्हें सूचीबद्ध करने का तरीका अपनाया हो।जातीय संकीर्णता समुदाय की शक्ल में आ जाए जिसमें उन जातियों की जीवन शैली, क्रिया कलाप आचार विचार के साथ साथ उनकी सामाजिक आर्थिक सांसकृतिक परिस्थितियों की समानता को मापदंड के रूप में लिया गया। जो हमें आज अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और धार्मिक अल्पसंख्यक वर्ग के रूप में चिन्हित कर सूचीबद्ध किया गया। परन्तु दुर्भाग

गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन

"गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन" गोंड गोंडी गोंडवाना केवल गोंड जाति के लिए नहीं,यह गोंडवाना की विचारधारा को समग्रता से आगे बढ़ाने वाला गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन का आधार है, इसे जाति के संकीर्ण बंधन में बांधने का प्रयास न हो, इसे गोंड जाति की परिधि में बांधकर गोंडवाना के लक्ष्य को हासिल नहीं किया जा सकता। गोंड गोंडी गोंडवाना का लक्ष्य केवल गोंड जाति नहीं, संपूर्ण गोंडवाना का समग्र उत्थान है । गोंड जाति अपने उपजाती के सहोदरों को साथ लिए बिना गोंड गोंडी गोंडवाना,एक समाज एक रिवाज एक आवाज, तथा विरासत रियासत, और सियासत के लक्ष्य को हासिल नहीं कर सकता है। वह गोंड प्रधान, ओझा बैगा अगरिया,गोंडगोवारी आदि महत्त्वपूर्ण अंगों से अलग होकर अपने सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक विरासत को अक्षुण्ण नहीं रख सकता। हमारे पूर्वजों द्वारा ग्राम गणराज्य की संरचना अपने गणों को लेकर स्थापित की गई थी। वर्तमान समय में यह कहीं ना कहीं अव्यवस्थित हो चुकी है। उसे व्यवस्थित करने के लिए गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन की रूपरेखा तैयार करते समय समुदाय के हर उस अंग को विकसित करने का प्रयत्न किया गया, और किया जा र

मप्र में राज्य सभा के तीन पद

"मप्र में राज्य सभा के तीन पद और आदिवासी विधायकों की भूमिका" मप्र के आदिवासी विधायकों आप बामनवादी पार्टियों की टिकट पर चुनाव जीत कर आये हो, आदिवासी या किसी को राज्य सभा सदस्य बनाने के लिए तुम नहीं तुम्हारे पार्टी मालिक तय करेंगे। तुम यदि आदिवासी को राज्य सभा में भेजना चाहते हो तो एस सी/एस टी विधायक एक जुट हो जाओ तीन सीट में एक एस सी/एक एस टी राज्य सभा सांसद चुनकर भेजा सकते हो। समुदाय के प्रतिनिधि हो समुदाय की आरक्षित सीट से जीतकर आते हो,यदि जरा भी स्वाभिमान का पानी है तो अपने विधायक फोरम की बैठक करो और निर्णय लो,"हमारा नहीं तो किसी का नहीं" (गुलजार सिंह मरकाम राष्ट्रीय संयोजक गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन)

असली हिंदू को पहचानो

"असली हिंदू को पहचानो" जब मूलनिवासी समूह से धर्मांतरित जैन बौद्ध मुस्लिम सिख ईसाई समुदाय के लोग संविधान में अल्पसंख्यक की श्रेणी में सूचीबद्घ हैं,तब सभी को एक दूसरे के साथ खड़ा दिखना चाहिए। इसी तरह आदिवासी हिंदू नहीं तो वह भी अल्पसंख्यक की श्रेणी में ही गिना जाएगा,इसी तरह अन्य पिछड़ा वर्ग और अनुसूचित जातियों के सजग लोग यह जानते हैं कि वे शूद्र हैं और हिंदू धर्म को नहीं मानते,फिर असली हिन्दू कौन बचता है केवल सवर्ण उसमें भी अन्य सवर्णों को हाशिए में डालकर रखने वाला "शातिर बामन" जिसने देश के 99 प्रतिशत ज्यूडिशरी 85 प्रतिशत प्रशासनिक सेवा और राजनितिक पदो पर आसीन है।यही हिंदू है,यही आर एस एस है। सभी को मिलकर इन्हे ठीक करना होगा।तभी देश अमन और शांति से रह सकता है। (गुलजार सिंह मरकाम राष्ट्रीय संयोजक गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन)
आदिवासी समुदाय को कोंग्रेस पर कड़ी नजर रखना पड़ेगा,कुछ समझ में नहीं आ रहा है ,केवल लालीपाप दिखाने का काम हो रहा है। 275(1) टीएसपी की राशि को भी ट्राइबल के लिए आबंटित नहीं कर रही,छात्रों की छात्रवृत्ति भी दी नहीं गई अप्लीकेशन पोर्टल समय से पूर्व बंद कर दिया गया । रिजर्व क्लास डॉक्टर नहीं मिल रहे इन्हे सामान्य वर्ग से भरे जा रहे हैं ये पद। Caa NRC पर पार्टी के माध्यम से पत्र दिया गया है जबकि अन्य राज्य अपनी विधानसभा से प्रस्ताव पारित किए हुए हैं। वनाधिकर के आवेदन हेतु बना एप भी फेल हो चुका है सब काम ठंडा है। ऐसे में आदिवासी धीरे धीरे परेशानी महसूस करने लगा है। कांग्रेस पर प्रश्चिन्ह लगाने लगा है। सुप्रीकोर्ट ने सर्विस में रिजर्वेशन इन प्रमोशन राज्यो के हवाले कर दिया इस पर तुरंत विधानसभा का सत्र बुलाकर समस्या का निराकरण नहीं किया जाना भी कांग्रेस को बैकफुट में लेे जाने के लिए काफी है। इसलिए कांग्रेस सरकार समय रहते इन विषयों को गंभीरता से नहीं लेगी तो प्रदेश के आदिवासी इन विषयों को लेकर आंदोलन की तैयारी में है। यदि कांग्रेस आदिवासी समुदाय के हित में कुछ करना चाहती है तो स्वेत पत्र जारी कर

संदिग्ध और अविश्वसनीय होता हुआ सुप्रीम कोर्ट ।

"संदिग्ध और अविश्वसनीय होता हुआ सुप्रीम कोर्ट" सुप्रीम कोर्ट के सारे फैसले मूलनिवासियों के विरुद्ध दिये जा रहे हैं, देश के असली मालिक आदिवासी को तो हाशिए में ही रख दिया गया है। अंग्रेजों की लिखी बात सच हो रही है कि "बामन जाति के न्यायधीश से नैसर्गिक न्याय की उम्मीद नहीं की जा सकती, क्यूंकि वह पक्षपाती होता है" आज की तारीख में सुप्रीम कोर्ट में 99 प्रतिशत जज बामन हैं। इसलिए राष्ट्रपति को चाहिए कि वह कालेजियम नियुक्ति सिस्टम को खत्म करे या सुप्रीम कोर्ट को भंग कर नये सिरे से जजों की नियुक्ति करे। अन्यथा सुप्रीम कोर्ट से जनता का विश्वास लगातार उठता जा रहा है। भविष्य में यदि देश में अराजकता पैदा होती है,तो दुनिया में देश की साख गिरेगी।समय रहते इस पर विचार नहीं किया गया तो देश को भीषण संकट से बचाया नहीं जा सकता। भविष्य में आने वाली पीढ़ी हमें माफ नहीं करेगी। (गुलजार सिंह मरकाम राष्ट्रीय संयोजक गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन)

देश के संगठन दंगों के पक्ष में है या विपक्ष में है दंगाइयों के साथ में है या शांतिप्रिय प्रदर्शनकारियों के साथ"

"देश के संगठन दंगों के पक्ष में है या विपक्ष में है दंगाइयों के साथ में है या शांतिप्रिय प्रदर्शनकारियों के साथ" दिल्ली के दंगे की हवा को सारे देश में फैलाना चाहती है आर एस एस और बीजेपी ताकि बिहार जैसे बड़े राज्य में हिंदू-मुस्लिम करके सत्ता हासिल कर सकें। प्रश्न यह उठता है की यह दंगा एनआरसी के पक्षधर और एनआरसी सीसीए के विरुद्ध चल रहा है तो हमें समझ लेना चाहिए की इस दंगे में भाजपा विरुद्ध अन्य सभी दल एवं सीसीए एनआरसी विरोधी पार्टियां और संगठन है जब सारे देश में एनआरसी के विरुद्ध शांतिपूर्ण प्रदर्शन चल रहे हैं तब दंगे की शुरुआत कौन कर सकता है यह दिल्ली के भाजपाई दंगाई नेताओं और उनको सह देने वाले संप्रदायिक पुलिस ही दोषी है इसलिए सारे देश को यह समझ लेना चाहिए की आर एस एस और भाजपा एक तरफ है और इस देश की सारी पार्टियां और संगठन एक तरफ हैं यदि यह संगठन और पार्टियां एकजुटता का परिचय दें तो इस देश से आर एस एस और भाजपा जैसे संगठनों को और उनके अगुआ ओं को हमेशा के लिए समाप्त किया जा सकता है निर्णय देश की शांतिप्रिय जनता को लेना है कि वे एनआरसी एनपीआर के पक्ष में है या उसके विरुद्ध में

व्यक्तिवादी आंदोलन नहीं प्रजातांत्रिक मूल्यों के साथ चले आंलोलन

"कोई भी आंदोलन प्रजातांत्रिक मूल्यों के साथ चले" "व्यक्तिवादी" और "वन मैन शो" वाले संगठन ज्यादा दिन तक नहीं चलते व्यक्तिवादी संगठन अपने इर्द-गिर्द चमचों की भीड़ इकट्ठा करके रखते हैं जो नेतृत्व का हमेशा गुणगान करते रहते हैं भले ही वह नेतृत्व अंदर ही अंदर क्या गुल खिला रहा है इसे अंधभक्त, समर्थक नहीं समझ पाते और इसलिए व्यक्तिवादी संगठन कुछ दूर चल कर फेल हो जाते हैं इस देश को प्रजातांत्रिक शक्ति के बंटवारे के आधार पर चलने वाले संगठनों की आवश्यकता है अन्यथा मनुवाद,ब्राह्मणवाद से निपटना इतना आसान नहीं है ! (गुलजार सिंह मरकाम राष्ट्रीय संयोजक गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन) में सरकार को

आरक्षित वर्ग के गुलाम जनप्रतिनिधि

"बोलना नहीं था पर अस्तित्व बचाने के लिए बोलना मजबूरी है" अपने आकाओं का गुलाम बैतूल सांसद तो उस नकली प्रमाण पत्र धारी पूर्व सांसद श्रीमती धुर्वे से भी बदतर निकला जो आदिवासी अस्तित्व को ही अपने आकाओं के इशारे पर मिटाने को आतुर है। यह मूर्ख गोडियन धार्मिक सांस्कृतिक व्यवस्था में जिस परधान,पठारी उपजाति से आता है ,इसकी प्रथम जिम्मेदारी बनती है कि वह अपनी धार्मिक सांस्कृतिक व्यवस्था को जो हिंदू से प्रथक है मजबूत करें परंतु यह शख्स उल्टा ही संदेश दे रहा है । गोंड समुदाय ने इस उपजाति को अपने धर्म संस्कृति परंपराओं को संरक्षण की जिम्मेदारी दी गई थी,यह उपजाति का व्यक्ति आदिवासियों की गोंड जनजाति की सांस्कृतिक धार्मिक पारंपरिक विरासत को बचाने के बजाय मिटाने का कृत्य कर रहा है जबकि संविधान की पांचवी अनुसूची और पेशा कानून में स्पष्ट उल्लेख है की आदिवासियों की धर्म संस्कृति रुढ़ी परंपराओं का संरक्षण किया जाए यदि इसकी जिम्मेदारी समुदाय के जिन पंडा पुजारी प्रधानों की रही है यदि वे ऐसा नहीं कर रहे हैं तो सामुदाय का नुकसान कर रहे हैं। इस अपराध के लिए इन्हें जनजाति सूची से पृथक किया जाना चाहि

आदिवासी धर्म कोड" (नई दिल्ली जंतर मंतर १८फरवरी २०२०) दिल्ली जंतर मंतर १८फरवरी

"आदिवासी धर्म कोड" (नई दिल्ली जंतर मंतर १८फरवरी २०२०) दिल्ली जंतर मंतर १८फरवरी २०२०) दिल्ली जंतर मंतर १८फरवरी २०२०) संयुक्त राष्ट्र संघ जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्था जब आदिवासी की जीवन पद्धति को सारी दुनिया में संरक्षित करने की बात करती है जिसे घोषित विश्व आदिवासी दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसका कारण है कि इस धरती को पर्यावरण को,मानवता को बचाने का एकमात्र फॉर्मूला आदिवासी की धर्म संस्कृति और उनके आचार विचार जीवन पद्धति में है इस बात को सभी देशों ने मानकर अपने अपने संविधान में इनकी भाषा धर्म संस्कृति को नष्ट ना हो जाए इस आशय से संविधान में समाहित किया है भारत में संविधान की पांचवी और छठी अनुसूची में इसका स्पष्ट उल्लेख भी है । आदिवासी की पृथक पहचान बनी रहे इस बात का पूरा प्रयास भी है, साथ ही हमारे देश में संविधान के अनुच्छेद 25 में धार्मिक स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार भी लिखित है ऐसा होने के बावजूद आदिवासी अपनी पहचान को बनाए रखने का प्रयास कर रहा है तो क्या गलत बात है ! ऐसा लगता है कि जिस सामाजिक धार्मिकता को राष्ट्र की कथित मुख्यधारा बताए जाने का प्रयास किया जा रहा है वह गुमराह

जंतर-मंतर धर्मकोड धरना फरवरी २०२०

"धर्म कोड /कालम और जंतर मंतर पर धरना, प्रदर्शन।" साथियों, आदिवासियों को एक धर्म कोड/कालम मिले इस बाबत दिल्ली के जंतर मंतर मैं दो अलग-अलग संगठनों का धरना और ज्ञापन है इसके कारण लगता है अभी तक किए गए आदिवासियों के धर्म संबंधी एकता के प्रयास असफल दिखाई दे रहे हैं , मेरा मानना है की देश के अलग-अलग भागों में धर्म से संबंधित राष्ट्रीय कोया पुनेम महासंघ १६,१७ फरवरी और राष्ट्रीय इंडिजिनियस धर्म समन्वय समिति १८फरवरी को आयोजन कर रही है ऐसे में अलग-अलग ज्ञापन और कार्यक्रम होने से सरकार पर अलग-अलग संदेश जाने वाला है जिससे हम आदिवासियों का भला नहीं हो सकता ना ही कोड और कॉलम मिलेगा और तो और अन्य का कालम भी हटा दिया जाएगा ऐसी परिस्थितियों में हमें एकता का परिचय देते हुए 16 17 18 फरवरी को एक आंदोलन और एक धरना के रूप में सरकार के सामने प्रस्तुति देकर 1 सूत्रीय ज्ञापन देना होगा अन्यथा एक बार आदिवासी समुदाय संविधान निर्माण के समय अपनी इस विभाजन कारी सोच के कारण बहुत नुकसान में जा चुका है जो इतिहास के पन्ने में काले अध्याय के रूप में अब तक जाना जाता है वह यह है कि संविधान निर्माण के समय राष्ट्री

सामूहिक संकट की घड़ी में सामूहिक संघर्ष जरूरी है

"सामूहिक संकट की घड़ी में सामूहिक संघर्ष जरूरी है" गांधी के चेले पूना पेक्ट का उल्लंघन करते हुए आरक्षण पर लगातार हमला जारी रखें हुए हैं। ऐसे मौके पर जब आरक्षित वर्ग के हमारे अपने कहे जाने वाले जनप्रतिनिधियों खासकर आदिवासी समाज के लोग जब अपना आशियाना उजड़ता देख चुप्पी साध लेते हैं,तो आदिवासी समुदाय का भविष्य अंधकारमय दिखने लगता है। मुझे यह कहने में जरा भी संकोच नहीं कि भला हो संविधान की समझ रखने वाले अनुसूचित जाति, पिछड़े वर्ग के चंद जनप्रतिनिधियों और आंदोलनकारियों की जिनके आंदोलन से आदिवासी समुदाय को संवैधानिक अधिकार हासिल हो रहे हैं ।अन्यथा मानसिक गुलाम तो हो चुके हैं, शारीरिक गुलाम बन जायेंगे लुट पिट कर गुलाम हो जायेंगे या फिर झूठे गौरव, स्वाभिमान का ढिंढोरा पीटते हुए पुनः वन और कंदराओं की शरण लेने को मजबूर होंगे। आरक्षण जैसे मुद्दे पर संसद में केवल कुछ अनुसूचित जाति, पिछड़ा वर्ग एवं कुछ संविधान का सम्मान करने वाले सामान्य श्रेणी के जनप्रतिनिधियों ने पक्ष रखा लेकिन देश की संसद में बैठे 47 जनजाति के जनप्रतिनिधि ,बेहोश लाचार आदिवासी समुदाय की तरह सदन में भी बेहोश दिखाई दिये।

आदिवासी आगे आएगा तभी देश का संविधान बचेगा

"आदिवासी आगे आएगा तभी देश का संविधान बचेगा" पहले आरक्षण में प्रमोशन को रोकने की बात होगी इसके बाद समान नागरिक संहिता की बात होगी "समान नागरिक संहिता" की हवा बनाने के बाद आरक्षण को समाप्त करने की बात होगी यह सब संसद नहीं करेगा । इनडायरेक्ट में सुप्रीम कोर्ट के 99 परसेंट मनुवादी न्यायाधीशों के माध्यम से की जाएगी अब एसटी/एससी ओबीसी को रिजर्वेशन के मामले में एनआरसी /सी ए ए की तरह राष्ट्रव्यापी जन आंदोलन खड़ा करना पड़ेगा और सुप्रीम कोर्ट को चैलेंज करना पड़ेगा "सुप्रीम कोर्ट" इस देश के आम नागरिक के साथ साथ आदिवासी से बड़ी कोई "हाई अथॉरिटी" नहीं जो इस देश के मूल वंशजों "ऑनर ऑफ इंडिया" को किनारे करके अपनी मनमानी कर सके। ( गुलजार सिंह मरकाम राष्ट्रीय संयोजक गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन)

दिल्ली विधानसभा का परिणाम २०२०

"दिल्ली का परिणाम और आगामी विधानसभा चुनाव" बिहार और बंगाल जैसे बड़े राज्यों को जीतने के लिये भाजपा ने दिल्ली में केजरीवाल के साथ "ईवीएम घुटाला" नहीं किया ताकि जनता के मन में विश्वास हो जाये कि ईवीएम में गड़बड़ी नहीं की जा सकती, इस बात को प्रचारित किया जायेगा कि यदि ऐसा होता तो केजरीवाल दिल्ली में हार जाता ! परन्तु आपको बता दूं भाजपा के लिए यह राज्य इतना महत्त्वपूर्ण नहीं था कारण कि यह केंद्र शासित प्रदेश है जहां की पुलिस प्रशासन और प्रशासनिक तंत्र केंद्र सरकार के अंडर रहती है। साथ ही इस महानगर निगम में भाजपा का कब्जा है, मनुवादी जय श्रीराम का स्थान जय बजरंगबली ने ले लिया। इसलिए कोई परेशानी नहीं। यदि बिहार और बंगाल के लोग ईवीएम को क्लीन चिट देने की गलतफहमी पालते हैं तो, यहां भाजपा पूर्ण बहुमत में आकर यह साबित करने में सफल हो जायगी कि जनमत हमारे साथ है। जनता हमारे हर फैसले से संतुष्ट है। मूलनिवासी सावधान, ईवीएम आपके लिए सदैव खतरे की घंटी है। (गुलजार सिंह मरकाम राष्ट्रीय संयोजक गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन)

फासीवादी दौर और भारत

"फांसीवादी दौर और भारत" देश अब ऐसे मोड़ पर है,जहां अब सत्ता का फासीवादी चेहरा खुलकर आम नागरिक के मौलिक अधिकारों का दमन करने में लग चुका है। आम नागरिक अभी अपनी पहचान बचाने के लिये संघर्ष कर रहा है, तब सत्ता उसे विदेशी पहचान देने में जुटी है ताकि संविधान नहीं सत्ता की विचारधारा के मापदंड में ना आने पर उन्हें डिटेंशन सेंटर में भेजकर एक साथ बम या जहरीली गैस छोड़कर मार दिया जायेगा। इस सत्ता का चरित्र जर्मनी के तानाशाह हिटलर के नक्शे-कदम है। जिस तरह से हिटलर अपने अंधभक्त प्रशिक्षित लोगों(नेताओं) को जनता के बीच दहशत पैदा करके हिटलर के विरोधियों को दबाने का प्रयास करता था ठीक उसी तरह का वातावरण आज की तारीख में भारत देश में दिखाई देता है। सत्ताधारी दल के नेता NRC की सफाई देने जगह जगह जाकर यही कह रहे हैं।कि मोदी और अमित शाह ने जो कहा दिया वहीं सच है।यदि इसका विरोध करोगे तो,जिंदा गडा दिया जायेगा। चाकू,गोली या बम से उडा दिया जायेगा आदि आदि। फिर भी देश के नागरिकों को इससे भयभीत नहीं होना चाहिये ऐसे अतिवाद को मानवतावादी अमनपसंद और संविधान का सम्मान करने वाली पुलिस,मिलिट्री और सुरक्षाबल भी

एन सी आर और एन पी आर

" NPR- एक उलझाव और" 2021 के जनगणना की प्रक्रिया आरंभ हो चुकी है।आम नागरिक इस बात को समझें कि भारत में प्रति 10 वर्ष में देश के नागरिकों की जनगणना होती है। जिसमें परिवार से लेकर धर्म, लिंग ,उम्र,गांव, व्यवसाय विकलांगता सहित शिक्षा से लेकर बहुत से बिन्दुओं का मानक तैयार किया जाता है।फिर भी आज केंन्द्र सरकार को प्रथक से राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर(एनपीआर) को बनाने,और जनता के  पैसे का अपव्यय करने की क्या जरूरत है। जब जनगणना में सभी का रिकार्ड तैयार किया जाता है,तब सरकार को चाहिये कि उसी रिकार्ड से एनपीआर बना लें। परन्तु गरीबी,भुखमरी मंहगाई,बेरोजगारी की तरफ जनता का ध्यान ना जाकर बस इसी में लोग उलझे रहें। और इसी उलझन में फंसकर हिन्दू मुस्लिम के बीच लगातार विरोधाभाषी वातावरण बनाकर आनेवाली लोकसभा में हिंदू राष्ट्र की कल्पना को साकार करने की साज़िश है। ध्यान रहे इस देश में केवल आर एस एस / भाजपा के अंधभक्त ही कट्टर हिंदू हैं । बाकि सब संविधान का सम्मान करने‌ वाले असली भारतीय हैं। जिन्हें ना कट्टर हिन्दुत्व चाहिते ना कट्टर इस्लामियत या इस तरह के अन्य  धर्मांध व्यक्ति या नागरिक। -गुलजा

आर एस एस का गणित और वोट

"आर एस एस का गणित और फीलगुड" यदि आर एस एस हिंदू वोट का ध्रुवीकरण करके अन्य अल्पसंख्यक समुदाय और तीन करोड़ शरणार्थियों को आमंत्रित कर इनके वोट को भाजपा की झोली में डालने को योजना बना रही है तो समझ लो,ईवीएम की कलई जल्द ही खुलने वाली है। सुप्रीकोर्ट ने भी निर्वाचन आयोग को 2014 में हुए आम चुनाव में ई वी एम की गणना में गड़बड़ी के बारे में जवाब मांगा है। चुकीं भाजपा का देश की बिगड़ रही अर्थ व्यवस्था, गरीबी, मंहगाई, बेरोजगारी आदि से कोई सरोकार नहीं है। आपको याद दिला दें। इनकी विचारधारा "फील गुड" की है जमीनी नहीं । जब देश में धीरे धीरे जनता को "ईवीएम की सरकार" के बारे में जानकारी होने लगी,कुछ राजनीतिक दल और नेता इस गड़बड़ी के विरूद्ध लामबंद होते दिखे, जैसे आज  एन आर सी और सीएए के खिलाफ खड़े दिखने लगे हैं। तब ईवीएम के विरूद्ध भी ऐसा ही जनमत तैयार हो गया और २०२४ में फिर से चुनाव में जाना है तब क्या होगा। इसी हड़बड़ाहट ने बहुसंख्यक जनता को फीलगुड कराते हुए 370 से लेकर एनआरसी,सीएए अब एनपीआर जैसी गैरजरूरी  कानून के नाम पर जनता को उलझाकर अपना लक्ष्य साधना चाहते हैं

अंग्रेजी नए साल में एक सोच के साथ आगे बढ़ो

हमारी कोशिश हो की मध्प्रदेश का पूर्व पश्चिम उत्तर दक्छिन का समस्त आदिवासी समुदाय छेत्रियता के दायरे से ऊपर उठकर एक दूसरे से सामाजिक,धार्मिक सांस्कृतिक राजनीतिक भाषिक मेलजोल बढ़ाए ,एक दूसरे पर विश्वास स्थापित करे । यह विश्वास आपको एक दूसरे के दुख तकलीफ को साझा करने में सहायक होगा । साथ ही सामुदायिक उत्तरदायित्व का एहसास कराएगा । जब जब भी समुदाय पर अन्याय होता है ,आपके हक अधिकारों का हनन होता है तब यह सामुदायिक विश्वासआपकी सुरक्छा का संबल होगा।गर्व से कहो हम गोंड हैं गर्व से कहो हम भील है, शहरिया,या कोल हैं,से बात नहीं बनने वाली है।"गर्व से कहो हम आदिवासी हैं" यही आव्हान समुदाय को एक दुसरे के नजदीक ला सकता है। यह विश्वास यदि राज्य का समुदाय कायम करता है तो इसी विश्वास के बल पर देश का पूरब पश्चिम उत्तर दक्छिन "एक सोच एक विचार और एक व्यवहार" से राष्ट्रीय छितिज पर अपना परचम लहरा सकेगा। जहां गोंड,भील,कोल मीणा शहरिया मुंडा,उरांव नहीं " गर्व से कहो हम आदिवासी है" ही गौरव का प्रतीक लगेगा। (गुलजार सिंह मरकाम रासं गों स क्रा आ)