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Showing posts from March, 2018

"संविधान में पांचवीं अनुसूचि का महत्व"

part-1 "संविधान में पांचवीं अनुसूचि का महत्व" संविधान में पांचवीं अनुसूचि का महत्व इसलिये महत्वपूर्ण है कि आदिवासियों के लिये जल जंगल जमीन की रक्षा के साथ साथ अपने अस्तित्व की रक्षा के लिये जिसमें इनके संस्कार संस्कृति और रूढि परंपरायें संरक्षित होती हैं अधिक महत्व रखता है । शरणार्थी सिंधी के पास ना जल जंगल जमीन नहीं थी पर वे अपनी संस्कृति संस्कारों रूढि परंपराओं के बल पर आज देश के सबसे बडे व्यापारी हैं । आज वे सत्ता पर दखल देने लायक हो चुके हैं । मुस्लिम के पास भी इतनी जल जंगल जमी न नहीं पर वे अल्पसंख्यक होने के बावजूद हर जगह पर बराबर के भागीदार बने हुए हैं क्रिकेट , संगीत ,फिलम् व्यापार आदि में उनकी तूती बोलती है । वहीं जैन अल्पसंख्यकों के पास जल जंगल जमीन नहीं पर इनकी व्यापारिक प्रतिष्ठा के सभी लोग कायल हैं । इसलिये पांचवीं अनुसूचि से हमारी जल जंगल जमीन से अधिक हमारे संस्कृति, संस्कारों ,रूढि परंपराआओं को संरक्क्षण है इसलिये आदिवासी समुदाय और इसके युवा बहुकोंणीय लाभ की दृष्टि से पांचवीं अनुसूचि के आन्दोलन को पूरी तरह सफल बनायें -gsmarkam part-2 “रवीस

"निरंकुश सत्ताऐं और साहित्यकार कवियों चित्रकारों की भूमिका"

"निरंकुश सत्ताऐं और साहित्यकार कवियों चित्रकारों की भूमिका" किसी देश का शासक निरंकुश होकर मनमानी करने लगे विपक्ष की भूमिका अप्रासंगिक हो जाये तब साहित्यकारों कवियों चित्रकारों तथा मीडिया को विपक्ष की भूमिका में आ जाना चाहिये ताकि निरंकुश सत्ता को पटरी पर लाया जा सके । कुछ साहित्यकार मीडिया कवि भले ही सत्ता के चाटुकार हो जाते हैं इसका मतलब यह नहीं कि सभी कवियों कलाकारों साहित्यकारों की संवेदनायें मर जाती हैं, नानक और कबीरदास जैसे कवि सत्ताओं के विरूद्ध जोखिम उठना नहीं भूलते । आचार्य रजनीश जैसे विद्धवान हर विषय पर बेबाकी से लिखने और कहने में कोई कोर कसर नहीं छोडते । भारत देश आज संकृमण काल से गुजर रहा है एैसे में चाटुकारों को एक किनारे कर संवेदनशील कवि साहित्यकार चित्राकारों की फौज तैयार करने की आवश्यकता है मूलनिवासियों आदिवासियों में इस विषय के अग्रणी लोग अब अपनी असली भूमिका में आ जायें हास्य और मनोरंजन के साथ साथ ज्वलंत विषयों पर साहित्य और कवितायें लिखें समाज को अपनी कविताओं लेखन से आन्दोलित करें ताकि जनमानस को हकीकत से अवगत कराया जा सके । भारतीय परिवेश में जिन साहित्यकारों

“एट्रोसिटी एक्ट और आरक्छित समुदाय”

“एट्रोसिटी एक्ट और आरक्छित समुदाय” अनु०जाति/जनजाति वर्ग के पढे लिखा व  हर जागरूक व्यक्ति यह समझ ले कि , सरकार के अनु०जाति/जनजाति विरोधी प्रमोशन मे आरच्छण समाप्त करने की नीति पर समाज की ओर से ना ही कर्मचारियों की ओर से कोई बडा आन्दोलन हुआ ! परिणामस्वरूप यह अधिकार बहुत से राज्यों में छिन गया बाकी राज्यों में छिनने की तैयारी में है । सत्ताधारी हमारी कमजोरी को समझ गया है , इसलिये यदि एट्रोसिटी एक्ट पर हम राष्ट्रव्यापी आन्दोलन नहीं खडा कर सके ? सजगता का परिचय नहीं दिये तो संशोधित कानून के बाद  सत्ता का कहर अतिवादियों के माध्यम से समुदाय पर बरपेगा , इसका पहला निशाना शासकीय कर्मचारी होगा । शासकीय सेवक रोजी रोटी और आत्म सुरक्छा या सुविधा खोने के भय से सत्ताधारियों का गुलाम हो जायेगा । इस वर्ग को गुलाम बनाने के बाद इस वर्ग के राजनीतिक प्रतिनिधियों पर शिकंजा कसा जायेगा इनके माधयम से संविधान बदलने की कोशिष होगी । कारण भी है कि संविधान बदलने के लिये अारक्छित वर्ग के ११९ सांसदों की संख्या को साथ लिये बिना आवश्यक बहुमत संभव नहीं है । इसलिये हमारे बुद्धिजीवी  इतने कमजोर ना हो जायें कि हमारे समु

"तानाशाही सत्ता के विरूद्ध चहुंमुखी हमला हो"

"तानाशाही सत्ता के विरूद्ध चहुंमुखी हमला हो" देश की व्यवस्था लगातार बिगडती जा रही है । भारत देश के पूंजीपतियों की पूंजी विदेशों की अर्थव्यवस्था को संवार रही है । पूंजीपतियो के आलीशान भवन और एडवांस टेक्नॉलाजी के कल कारखाने विदेशी नागरिकों को रोजगार मुहैया कर रहे है । विदेशी सरकारें प्रवासियों को बाहर का रास्ता दिखा रहे हैं ! क्या भारत देश के खनिज और प्राक्रतिक संसाधन विदेशों को विकसित करने के लिये बने हैं ? जरा सोचो आज का सत्ताधारी सत्ता के मद में अंग्रेजी सरकार की तरह वर्ताव  करने लगी है । मानव हित और मूलनिवासियों के हित मे बने संविधान के कानूनों में लगातार छेडखानी की जाने लगी है । मूलनिवासियों की लगातार जागरूकता के कारण, सत्ता जाने के भय से तानाशाही रवैया अपनाने लगी है । इसलिये देश के मूलनिवासियों को व्यवस्था परिवर्तन के लिये सम्पूर्ण क्रांति के शंखनाद की आवश्यकता है । अत: आईये देश के सभी मूलनिवासी संगठन बिना कोई भेदभाव के समग्र क्रॉति का प्रथम संखनाद करते हुए १ अप्रेल से संसद घेराव तथा २अप्रेल २०१८ को भारत बंद करके आजादी की लडाई का नींव रखें -gsmarkam

"गोंडी भाषा मानकीकरण" "किस्सा पाटा लोकोक्ति और छोटे बडे वाक्यों का कलेक्शन और डिजिटल स्वर रिकार्ड कर गोंडी भाषा के विकास में अपना योगदान ।"

"किस्सा पाटा लोकोक्ति और छोटे बडे वाक्यों का कलेक्शन और डिजिटल स्वर रिकार्ड कर गोंडी भाषा के विकास में अपना योगदान ।" जैसा कि मैंने लिखा है कि अभी तो मात्र 2800 शब्द हुए हैं गोंडी बोली को भाषा बनने के लिये कम से कम 28000 शब्दों का कलेक्शन करना है यह काम टीम के माध्यम से जारी है और आप सभी से भी विनती है कि अपने आसपास बुजुर्गों के पास बहुत से शब्द हैं जो अभी तक किसी क्षेत्रीय डिक्शनरी में भी नहीं आये हैं उन्हें कलेक्ट कर किसी माध्यम से टीम के पास पहुंचाना है साथ ही गोंडी मुहावरे, कहानियां ,गीत पाटा, व्यंग , डिजिटल स्वर रिकार्ड आदि का भी कलेक्शन करना होगा इतना कलेक्शन माईक्रोसाफट के पास जमा होगा तब गूगल या अन्य एजेन्सी से एप के माध्यम से सबको सीखने समझने और व्यवहार के लिये सरल सुलभ उपलब्ध होगा ! अप्रेल माह में अमरीका से माईकोसाफट की टीम बेंगलोर आ रही है उसके लिये जल्द से जल्द उपरोक्त बिन्दुओ पर काम करना होगा तब कही इसे समृद्ध किया जा सकता है यह सबकी जिम्मेदारी है टीम को जितना आ रहा है प्रयास कर रहा है । सोसल मीडिया के माध्यम से यह कलेक्शन जल्द हो पायेगा-gsmarkam

"सरकारों की नीतियां नहीं, जुगाडों से तरक्की कर रहा है हमारा देश

"सरकारों की नीतियां नहीं, जुगाडों से तरक्की कर रहा है हमारा देश (डीजल इंजन से मालवाहक वाहन का उपयोग करता किसान !" भारत देश जुगाडों की इंजीनियरिंग से चल रहा है जिसका राष्टीय विकास में बहुत बडा योगदान होता है ,लेकिन इसकी गिनती नहीं की जाती । वरना हमारे देश के मोटी मोटी रकम पाने वाले वैज्ञानिक कथित योग्यता वाले इस देश को कुछ नहीं दे पा रहे हैं । आधी से अधिक आबादी जुगाड के स्वास्थ्य अर्थात देशी जडीबूटी, मनोवैज्ञानिक झाडफूंक पर आश्रित है ! देश की सरकारों ने आज तक मानवीय स्चास्थ क ी देखभाल का लक्ष्य हासिल नहीं किया है । एक्सरसाईज के लिये अंग्रेजों की सायकिल को हमारे ग्रामीण ज्ञान ने वाहन के रूप में इस्तेमाल कर शब्जी का, धंधा दूध का धंधा ,पत्नि और तीन बच्चों को सायकिल के आगे पीछे डंडे पर बिठाकर वाहन के रूप में उपयोग आदि के लिये उपयोग कर भारतीय अर्थव्यवस्था में अपना बहुमूल्य योगदान दे रहे हैं ,पर सरकारों को इन ग्रामीणों की चिंता नहीं । एैसे बहुत से क्षेत्रों में स्थानीय ग्रामीण ज्ञान ने भारत की तरक्की में अपना प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष योगदान दिया है जिसे भुलाया नहीं जा सकता !-gsmarkam

"रोजी रोटी पर बंधा अनुशासन"

"रोजी रोटी पर बंधा अनुशासन" देश की मिलिट्री और पुलिस आज रोजी रोटी को ध्यान में रखकर काम करने को मजबूर दिखाई देती है,अन्यथा शासकों के उल्टे सीधे निर्णयों का आंख बंद करके पालन ना करती । इनकी शहादत के बाद उनका परिवार पेंशन के लिये तरसता है, जवानों पर आम जन पत्थरों से हमला कर देता है, ये केवल राष्ट्रवाद के नाम पर संयमित रहते हैं ,इनका यह राष्ट्रवाद मजबूरी में रोजी रोटी के इर्दगिर्द घूमता नजर आता है । ये मजबूरी में अपने ही भाई बन्धु पर लाठी,डंडे और गोलियां बरसाते हैं । बगावत केवल  इसलिये नहीं होती क्योंकि आम सैनिकों के उपर सत्ताधीशों के द्वारा चयनित बडे अधिकारी बैठाये जाते हैं,नौकरी जाने का दंडित होने का भय बनाकर रखा जाता है,ताकि शासकों के उल्टे सीधे गलत निर्णय पर भी सैनिक बगावत ना कर सके,क्योंकि रोजी रोटी का सवाल है । सैनिक मशीन नहीं वह भी किसी का भाई, किसी का बेटा, किसी का बाप, किसी का सुहाग है, किसी का रिस्तेदार है उसके दिल में भी मानवीय संवेदना है पर यह संवेदना संबंधियों की रोटी के लिये सैनिक के दिल को पत्थर बना देती है । यही स्थिती अंग्रेजी शासन काल में भी थी । ध्यान रहे

"सावधान ईवीएम अभी भी अविश्वस्नीय है ।"

"सावधान ईवीएम अभी भी अविश्वस्नीय है ।" लग रहा है कि 2019 आमचुनाव की तैयारी के लिये भाजपा उपचुनावों में ईवीएम से छेडछाड नहीं कर रही है वह अपनी धरातल के ताकत का अंदाजा लगा रही है । कारण भी है कि 2019 के पूर्व भाजपा सरकार कुछ सीटें हारकर कोई अल्पमत में नहीं आ जायेगी । साथ ही ईवीएम पर मतदाताओं का विश्वास बना रहे, शक की गुंजाईस ना रहे । और 2019 के आमचुनाव में पूरी तरह गडवडी करके मनुवाद को स्थापित किया जा सके संविधान को बदला जा सके । सावधान ईवीएम अभी भी अविश्वस्नीय है । जब दुनिया के लगभग सभी देशों ने इसका उपयोग बंद कर दिया है तब इसे हमारे देश के नेता इसे लगातार जारी रखने में क्यों रूचि दिखा रहे हैं । -gsmarkam

“सावधान मप्र में विधान सभा नजदीक है”

“सावधान मप्र में विधान सभा नजदीक है” मप्र में कुछ आदिवासी नेता अपने दलों के प्रति खुलकर प्रतिबद्ध हैं । यथा कॉग्रेस,भाजपा,बसपा,भाकपा,आप,भागोंपा,गोंगपा, बीएमपी,बीएसडी,एपीआई , समानता दल आरपीआई आदि ,चूंकि जानकारी के अनुशार आदिवासी सभी दलों में विद्दमान है इसलिये ! जो व्यक्ति जिस दल पर आस्था रखता है । वह अपनी प्रतिबद्धता शीघ्र उजागर करके अपने नेता और विचारधारा का प्रचार शुरू करे । समुदाय स्वयं निर्णय करेगा कि किसका समर्थन करना है किसका नहीं । केवल टिकिट पाने की लालसा से अपने आपक ो मध्यमार्गी बनाये रखने का प्रयास करोगे तो “घर के रहोगे ना घाट के” अंतत: मीठे अंगूर भी खट्टे लगने लगेंगे । राजनीति बुरी चीज हो जायेगी । समर्पण तो समर्पण है । समर्पित व्यक्ति किसी की परवाह नहीं करता बस अपना रास्ता लेकर चलता है । लाभ हानि उसके खाते की पूंजी नहीं होती , प्रतिबद्धता उसका साहस है । -gsmarkam

“दुविधा मिटाओ, आत्मविश्वास बढाओ”

“दुविधा मिटाओ, आत्मविश्वास बढाओ” धुन्ध छटना चाहिये, हर एक आदिवासी युवा में उसकी पार्टी का रंग दिखना चाहिये। कब तक संगठनों के नाम पर , पर्दा डाल  रहोगे दोस्त । जैसे आरएसएस साथ देता है जिस दल को, इस तरह तुम्हें भी खुलेआम होना चाहिये । जैसे हो और जो भी हो,जिसके भी हो, खुलकर चलो । ताकि हर एक युद्ध सरेआम होना चाहिये । कम से कम यह कौम छदमवेषियों के, से बच सके । कौन अपना और पराया, इसकी भी पहचान होना चाहिये ।।-gsmarkam

"आदिवासी परिवार ही ग्राम का मुखिया है"

आदिवासी परिवार ही ग्राम का मुखिया है" आदिवासी परिवार ही ग्राम का मुखिया है । इसका प्रमुख कारण है कि पुरातन काल से ग्राम स्थापना किसी आदिवासी समूह/परिवार के किसी ना किसी टोटम धारी परिवार से हुआ है। इसके अनेक उदाहरण देश के विभिन्न हिस्सों में  ग्राम के नाम स्थान के नाम पारा,टोला मोहल्ले के रूप में आज भी मौजूद हैं। यथा मरकानार, मरकाम टोला ,उइका बाडा । रावनबाडा सहित किसी टोटम या गोत्र ,परिवार या वन्श पर उल्लिखित हैं। इसी क्रम में उस ग्राम को बसाने वाले प्रमुख को अपनी पारंपरिक समुदाय व्यवस्था में ग्राम प्रमुख,मुखिया तथा मुकद्दम आदि नाम दिया गया, ग्राम स्थापना करने वाला वह परिवार सदैव पीढ़ी दर पीढ़ी सम्माननीय रहता है। भले ही वर्तमान परिस्थितियों में उसकी आर्थिक स्थिति कमजोर या वह परिवार अशिक्षित है पर सामाजिक रूप से सम्माननीय होता है, कारण है कि उस परिवार के पुरखो ने उस गांव को बसाकर व्यवस्थित करने मे आरम्भिक भूमिका निभाई है । ग्राम की आवश्यकतानुशार वैध,भुमका,पुजारी के  साथ साथ उपयोगी क्रषि यन्त्रो के कारीगरो को आमन्त्रित कर ग्राम को सुखी और सम्रद्ध बनाया है । उसके इस योगदान ने ही उसे

“ आदिवासी समुदाय के राजनीतिक कार्यकर्ता समुदाय को धोखे में ना रखें “

“ आदिवासी समुदाय के राजनीतिक कार्यकर्ता समुदाय को धोखे में ना रखें “ “विभिन्न दलों पर अपनी प्रतिबद्धता रखने वाले पदाधिकारी,समर्पित और समर्थक आदिवासी समुदाय के जागरूक मातृशक्ति/पितृशक्तियो से मेरा विनम्र अनुरोध है कि आप जिस राजनैतिक दल में भी काम कर रहे हैं , उसके प्रति ईमानदार रहें । खुलकर राजनीतिक प्रतिबद्धता जाहिर करें ताकि उस दल में आपकी प्रतिबद्धता पर  जरा भी संदेह/या शंका की गुंजाईश ना रहे । इससे आपके प्रतिबद्धता वाले दल में आपका सम्मान बना रहे । राजनीतिक अल्पग्यता के कारण किसी भी दल में काम करने वाला आदिवासी कार्यकर्ता या समर्थक संबंधित दल में संदेहास्पद रहता है । जिसके कारण उसे संबंधित दल में निर्णायक भूमिका नहीं मिलती , यह अवगुण आदिवासी समुदाय का देश की राजनीति में दबाव या दखल को कमजोर बनाती है । छदमवेशी बनकर, मौका देखकर अपने प्रतिबद्ध दल की आंखों से बचकर समुदाय के सामने समाज सेवा के नाम पर  अपनी  स्वच्छ छवि प्रस्तुत करना, स्वयं के साथ समुदाय को भी धोखा देने वाली करतूत होगी । इसलिये मेरा मानना है कि आप जिस दल में कार्यरत हैं उस दल के प्रति वफादारी से काम करें और उस दल की अ

“ जनजातीय समुदाय संविधान और लोकतंत्र का रक्छा कवच बन सकता है “

part -1 “ जनजातीय समुदाय संविधान और लोकतंत्र का रक्छा कवच बन सकता है “ चाहें तो ५अनुसूचित के अन्तर्गत घोषित राज्य , जिले या विकासखंड EVM से चुनाव होना रोक सकते हैं । इसके लिये ५ वीं अनुसूचि के अन्तर्गत प्राप्त अपने विधी के बल (परंपरागत रूढी प्रथा और स्वशासन ) को परिभाषित करते हुए , जिन राज्यों में स्थानीय नियम बने हैं वे राज्य अपनी परंपरागत पंचायतों से पारित प्रस्ताव को जिला कलेक्टर के माध्यम से TAC को या सीधे राज्यपाल को अपनी मंशा से अवगत करा दें । जिन राज्यों में ५ वी अनुसूचि के नि यम नहीं बने हैं ऐसे राज्यों के अनुसूचित छेत्र की परंपरागत पंचायते कलेक्टर के माधयम से सीधे अपने (कस्टोडियन) राष्ट्रपति को अपनी मंशा से अवगत करायें । इससे अच्छा (Evm) को रोकने का कोई त्वरित उपाय नहीं हो सकता । ५ वीं अनुसूचि की यह ताकत EVM पर अविश्वास रखने वाले हर व्यक्ति , समाज और संगठन के लिये सहायक होगा । इसलिये जिन ५ वीं अनुसूचि अन्तर्गत घोषित राज्य , जिले या विकासखंडों में पारंपरिक पंचायतें सक्रिय नहीं , उन्हे अविलंब विधिवत सक्रिय की जाये । मित्रों, आदिवासियों की जीवन शैली और त्वरित नैसर्गिक न्याय प्

"मप्र में गोंडवाना की राजनीति और कुत्ते बिल्ली का खेल"

part-1 "मप्र में गोंडवाना की राजनीति और कुत्ते बिल्ली का खेल" चुनाव 2018 नजदीक है सभी राजनीतिक दल अपनी अपनी राजनीतिक बिसात बिछाने में लगे हैं । सभी दल अपने राजनीतिक बेनर के साथ मैदान में आ रहे हैं एैसी स्थिति में गोंडवाना की राजनीति करने वाले दलों में अभी भी कुत्ते बिल्ली का खेल जारी है । इस खेल में कोई खुलकर सामने नहीं आ रहा है इससे समाज और राजनीतिक विश्लेषणकर्ता गोंडवाना की राजनीतिक मूल्यांकन करने में स्पष्ट नहीं हैं । यह तो स्पष्ट है कि मप्र में गोंडवाना के दो प्रमुख राजनीतिक घट क अभी विद्धमान हैं भागोंपा और गोंगपा दोनो दलों के कार्यकर्ता अंदरूनी तौर पर यह जानते हैं कि कौन किस दल से संबंधित है । समुदाय से दोनों दलों को वोट लेना है । इसलिये दोनों दलों के कार्यकर्ता अपनी बात को लेकर आगे बढें ये नहीं कि समुदाय को गुमराह करें कि हम सब एक हो गये हैं क्या एैसा करके हम समुदाय को अंधेरे में तो नहीं रख रहे हैं । मेरा मानना है कि एक हो चुके हो तो आपस में कोई ठोस निर्णय हुआ है स्पष्ट करें केवल गुमराह करके समुदाय को ज्यादा देर तक बेवकूफ नहीं बनाया जा सकता । भागोंपा के कार्यकर्ता लगा

"गोंडवाना भूमि के आदिवासी नवजवानों आगे बढो"

1“आने वाले समय का राजनीतिक विपक्छ” भाजपा अब खुद के विरूद्ध प्रायोजित विपक्छ (विरोधी) का विकल्प तैयार करने में जुटी है ताकि असली (विरोधी) विकल्प (विचारधारा से)को कमजोर करने करने का प्रयास कर रही है ताकि प्रायोजित विपक्छ का उपयोग वह अपने तरीके से सीटो पर उनके उम्मीदवार खडा करके लाभ ले सकें । इस चुनावी गणित को समझने में कुछ परेशानी हो सकती है पर सीधा सीधा ऐसे समझा जा सकता है कि राजनीतिक विचारधारा v/s प्रायोजित राजनीतिक विचारधारा का विपक्छ । -gsmarkam 2. "गोंडवाना भूमि के आदिवासी नवजवानों आगे बढो" गोंडवाना भूमि के आदिवासी नवजवानों राजनीति या समाजनीति हो समुदाय के हित में किसी भी विधा में खुलकर भाग लो , तुम्हें किसी राजनीतिक दल या संगठन का पिछलग्गू नही बनना है , समुदाय के दिल दिमाग में बस इतनी बात भर दो कि “जमाना हमसे है हम जमाने से नहीं । उदाहरण है “ लखमा कवासी” विधायक कोंटा बस्तर छ०ग० जिसे पार्टी घर जाकर टिकिट देती है । इसलिये कहा गया है कि "खुद को इतना बुलंद कर कि, खुदा तुझसे पूछे कि तेरी रजा क्या है" युवा, वायु का दूसरा रूप है, वह हवा का रूख बदल सकता है । शर्