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Showing posts from October, 2020

मूलवासी मूल निवासियों का धर्मनिरपेक्ष चश्मा

पहले कॉन्ग्रेस मनुवाद की ए टीम मानी जाती थी जिसने मूलवासी, मूल निवासियों को धर्मनिरपेक्षता का पाठ पढ़ा कर भाजपा रूपी बी टीम को स्थापित करने के लिए मंदिर मस्जिद जैसे ईवीएम जैसे मुद्दों को लाकर भाजपा को ए टीम बनने का अवसर दिया है। देश का मूलवासी मूलनिवासी कांग्रेस को धर्मनिरपेक्षता के चश्मे से देखता रहा जबकि इस देश में जितने भी धर्म है वे अपने अपने धर्मों को मजबूत करते रहे भाषाओं को मजबूत करते रहे अपने सांस्कृतिक पक्ष को मजबूत करते रहे वही देश के आदिवासी की बनी बनाई सांस्कृतिक, धार्मिक विरासत मिट्टी में मिलती गई इसका कौन जिम्मेदार है । इसका मतलब हम धर्मनिरपेक्षता का चश्मा पहने रहें और अन्य लोग अपनी पहचान को मजबूत करते रहें ? आज की तारीख में देश में गांधीवादी अंबेडकरवादी समाजवादी विचारधाराएं चल रही है जिनकी आंतरिक धार्मिक संरचना का लक्ष्य कोई ना कोई धर्म होता है उनके संस्कृति और संस्कार होते हैं, अब हम यह चलने नहीं देंगे । वर्तमान समय में सांस्कृतिक जय पराजय का दौर चल रहा है ऐसे में सामाजिक सांस्कृतिक धार्मिक लामबंदी आवश्यक है। जो सत्ता को प्रभावित करने के लिए आवश्यक है। (Gska)

("GSKA" मध्यस्थता के लिए तैयार है

गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन लंबे समय से अनवरत जारी है आशा है इसी तरह सतत जारी रहे। गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन में जिन सामाजिक धार्मिक आर्थिक सांस्कृतिक भाषाई साहित्यिक जैसी शाखाओं को एक दूसरे से समन्वय कराते हुए आगे बढ़ाया गया परिणाम स्वरूप आज राष्ट्रीय क्षितिज पर यह आंदोलन कहीं ना कहीं अपेक्षित परिणाम दे रहा है परंतु गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन की इन शाखाओं को सुरक्षा और संरक्षण देने के लिए राजनीतिक इकाई को अवसर दिया गया यह इकाई लंबे समय तक कोई अपेक्षित परिणाम नहीं दे पा रही है कारण बहुत से हैं परंतु कहा जाता है ना की राजनीति में धन है ग्लैमर है वाहवाही है इसलिए आंदोलन की आधार शाखाएं भी उससे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकी परिणाम स्वरूप राजनीतिक इकाई अन्य शाखाओं को प्रभावित करने लगी । कायदा तो यही था की अन्य इकाइयां अपनी शाखाओं से व्यक्तियों को तैयार करके राजनीतिक शाखा में स्थापित करने का काम करती परंतु राजनीति के चलते इन शाखाओं के प्रस्तावित प्रतिनिधियों को कभी भी अवसर नहीं दिया गया अतः सामाजिक संगठन भी धीरे धीरे राजनीतिक आंदोलन से किनारा करके अपने तरीके से आंदोलन को चलाने लग

"2 वोट के अधिकार से वंचित समुदाय उसका जनप्रतिनिधि"

अनुसूचित जनजाति घोषित लोकसभा विधानसभा या निकाय क्षेत्रों में गैर आदिवासी वोट बैंक को हासिल करने के लिए आरक्षित वर्ग का जनप्रतिनिधि अपनी धर्म संस्कृति प्रीति और परंपराओं को भी ताक में रख सकता है। क्योंकि गैर जनजाति मतदाता इन आरक्षित क्षेत्रों के मतदान में वेलेंसिंग की भूमिका में रहता है। ऐसा मतदाता सतर्क और जागरूक भी रहता है इसलिए आरक्षित वर्ग के प्रत्याशी जीतने के बाद इनका ज्यादा ख्याल रखते हैं और इनकी भाषा धर्म संस्कृति को सिर आंखों पर बैठा कर रखते हैं। यदि यह लोग अपने समुदाय की भाषा धर्म संस्कृति परंपराओं पर कट्टर होते तो यह कट्टरता गैर आदिवासी मतदाता को अपने साथ चलने के लिए मजबूर कर देते। भविष्य की इसी आशंका को देखते हुए डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जी ने गोलमेज कांफ्रेंस में पृथक निर्वाचन अथवा दो वोट के अधिकार को दिलाने का प्रयास किया था। यदि वह अधिकार मिल गया होता तो आरक्षित क्षेत्र के जनप्रतिनिधि गैर आदिवासी वोट बैंक से भयभीत नहीं होते। (Gska)

समुदाय और समाज

इंसानों का समूह समाज है ,क्योंकि सबकी आवाज समान है। निर्धारित समान उद्देश्यों को लेकर चलने वाला समूह समुदाय है।(gska) ये इसलिए लिखना पडता है कि अनेकों बार समाज और समुदाय को परिभाषित करने का प्रयास किया लेकिन कोल्हू के बैल को सिर्फ चक्कर लगाना आता है किसलिए लगा रहे हैं उससे उसे कोई मतलब नहीं। हिंदी पढ़ते हैं तो कम-से-कम किसी शब्द के मायने की भी छानबीन होना चाहिए। दोनो शब्द अलग-अलग हैं, इसलिए इसके मायने भी अलग हैं। पर क्या करें रट्टू तोता हैं, भेड़ है आदत से मजबूर हैं।