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Showing posts from 2021

"गोंड समुदाय एवं उनकी उपजातियों की अपनी पारंपरिक रुढी प्रथा"

"गोंड समुदाय एवं उनकी उपजातियों की अपनी पारंपरिक रुढी प्रथा" ""पेनकड़ा व्यवस्थापक एवं व्यवस्था" व्यवस्थापकगण:- 1 - पाटालिर (पाटाड़ी,परधान) , 2 -कड़ा झाड़िया, 3 -अटका भंडारी, 4 - माटिया, 5 -पटाऊ, 6 -गाडवा, 7 -पांच पंच - (भुमका, नाते रिश्तेदार, समधी ग्रुप के हो सकते हैं ।) पेन कड़ा की व्यवस्था:- 1- पाटालिर आने वाली रैयत को उसके दोष के हिसाब से नदी, तालाब, पोखर के पानी में खड़ाकर उसका दोष पूछकर उससे उपस्थित रैयत के समक्ष कुबूल करवाता है और उसके हाथ में तान्दरी(हल्दी चावल) उसे जल छोड़ने एवं आगे गल्ती न दोहराने की हिदायत देता है ( इसे मैली छाटना कहते हैं) २- करा झारिया;-देव खलिहान की साफ सफाई की जिम्मेदारी. ३-अटका भंडारी;-देव खलियान के अंदर बन्ना बनाना जो कुटकी और उड़द दाल का होता है । ४.माटिया;-परिवार घर में कोई घटनाएं घटी या दोष सिद्ध हुआ है उसकी जानकारी देव सवारी के माध्यम से देने वाला. ५-पटाऊ:-परिवार का मुखिया जो परिवार में होने वाले गुण दोष की सजा या खर्चा तय करता है। ६:-गाडवा(पटाऊ की घरवाली):- पटाओ द्वारा दिया गया जो पूजा के सामान का घर में जाकर बनना ब

जाति कबीला और पारंपरिक रूढि प्रथा

" जाति और कबीला भारत देश में आदिवासी समुदाय के चार प्रमुख कबीले है। १."गोंडियन कबीला " दक्षिण पूर्व की गोंड, प्रधान कोरकू ओझा पनका अहीर/गायकी बैगा भारिया ढीमर आदि समस्त उपजातियां जो एक धार्मिक सांस्कृतिक पहचान रखते हैं। २. "भीलियन कबीला" पश्चिमोत्तर की भील,भिलाला बारेला मीणा शेरिया(शहरिया) और उसकी समस्त उपजातियां जो एक सामाजिक, धार्मिक सांस्कृतिक पहचान रखते हैं। ३."कोलारियन कबीला" उत्तर-पूर्व की मुंडा उरांव कोल संथाल और उसकी समस्त उपजातियां जो एक सामाजिक, धार्मिक सांस्कृतिक पहचान रखते हैं। ४."मंगोलियन कबीला" पूर्वोत्तर की प्रमुख नागा खासी और कुकी जनजाति।और उसकी समस्त उपजातियां जो एक सामाजिक, धार्मिक सांस्कृतिक पहचान रखते हैं। नोट:-(इन्हीं प्रमुख कबीलों से उत्पन्न वर्तमान समूहों (उपजातियों)को वर्गों के रूप में संविधान में उल्लेखित किया गया है। जो विदेशी आक्रमणकारी समूहों यथा शक,हूण,आर्य -यवन, यहूदी, अफगानी पठान-अंग्रेज फ्रांसीसी डचों के संसर्ग में आकर जातियों में विभक्त हो गये ) नोट:-ध्यान रहे जातियों समूहों में विभक्त रहकर पांचवी अनुस

भविष्य का संसार

भविष्य के समय का संसार" 21वीं सदी से आरंभ होने वाली प्रमुख घटनाओं के संबंध में किसी महान भविष्यवक्ता की भविष्यवाणी है कि आने वाले समय में युद्ध या महामारी से दुनिया का 25% व्यक्ति ही बच पाएगा जिसमें दुनिया के अनेक देशों की जनसंख्या न्यूनतम हो जाएगी वही विश्व की शक्ल जनसंख्या का 25% व्यक्ति एशिया महाद्वीप यानी भारत सहित प्रकृति की गोद में जंगल पहाड़ों में रहने वाला इंसान ही बच पाएगा। (Gska)

जनजाति घोषित क्षेत्र और शरणार्थी

भारत देश की आजादी 1947 के बाद अनुसूचित जनजाति छेत्र यानी पांचवीं, छठवीं अनुसूची क्षेत्रों में आकर बसे विदेशी शरणार्थी हैं ऐसे लोग इन क्षेत्रों में केवल व्यापार करके लाभ कमा कर अपने मूल स्थान में वापस जा सकते हैं परंतु यहां पर से स्थाई संपत्ति अर्जित नहीं कर सकते ना ही स्थाई निवास कर सकते। ऐसे लोगों के व्यवस्थापन की समस्या भारत सरकार की है ना कि जिसके मूल निवासी आदिवासी की है इसलिए इसी संदर्भ में मंडला डिंडोरी सहित अनेक क्षेत्रों में सिंधी शरणार्थी आकर अवैध रूप से बस हुए हैं ऐसे लोगों की स्थाई संपति जप्त की जाए उन्हें केवल व्यापार करने की अनुभूति के तहत व्यपार करके लाभ कमा के उन्हें जो भारत सरकार में शरणार्थी कैंप बना कर दिए हैं वहां पर निवास करें पांचवे सूची शेत्र में स्थाई निवास का कोई भी पट्टा या रजिस्ट्री पूरी तरह अवैध है ग्रामगण राज्य पार्टी इस विषय पर संवैधानिक तरीके से आंदोलन करके ऐसी कृत्य का विरोध करेगी। गुलजार सिंह मरकाम (gska)

पांचवी अनुसूची बनाम पेशा कानून

"पांचवी अनुसूची बनाम पेसा कानून" संविधान में लिखित पांचवी अनुसूची आदिवासी को पूर्ण स्वायत्तता के लिए स्थापित की गई थी परंतु उसे कमजोर करते हुए अनुसूचित क्षेत्रों में गैर आदिवासी को संतुष्ट करने उनके वोट बैंक को हासिल करने के लिए सत्तारूढ़ मनुवादी पार्टियों ने पेशा कानून के रूप में पांचवी अनुसूची की अनुपूर्ति के उद्देश्य पेसा एक्ट लाया जो आदिवासियों के अधिकारों को सीमित करके गैर आदिवासियों की दखल को मान्यता देता है। पंचायती राज नगर परिषद नगर पालिका का अनुसूचित जनजाति क्षेत्रों में प्रवेश इसका सीधा उदाहरण है। गुलजार सिंह मरकाम(Gska)

जाति और वर्ग

" हमारे देश के संविधान में जातियां वर्ग में समाहित कर दी गई । यथा अजजा,अजा, पिछड़ा , अल्पसंख्यक और सामान्य वर्ग परन्तु हम अभी तक जातीय मानसिकता से उबर नहीं पाये है।" -(गुलजार सिंह मरकाम

2 वोट का अधिकार

"दो वोट के अधिकार का सामाजिक रूप से उपयोग संभव है" पूना पैक्ट मैं गांधी के द्वारा की गई धूर्तता पूर्ण छल कपकपट दो वोट के अधिकार से वंचित किया जाना,को संसद,विधानसभा क्षेत्रों में चुनाव घोषणा के साथ दो वोट के प्रयोग का रिहर्सल करके गांधी की कपटता का जवाब दिया जा सकता है। यथा चुनाव घोषणा के साथ ही निर्वाचन आयोग द्वारा घोषित मतदान तिथि और नामांकन के पूर्व अनुसूचित वर्गो द्वारा आसन्न चुनाव में भाग लेने वाले इच्छुक प्रतिभागियों के बीच प्रथम "एक वोट" का सामाजिक मतदान की व्यवस्था करके सबसे अधिक मत प्राप्त करने वाले प्रत्याशी को ही मुख्य चुनाव में प्रत्याशी बनाया जाये तथा उसे ही समुदाय द्वारा "दूसरा वोट" से मतदान करने की अपील हो । ऐसा करने से किसी भी निर्वाचन क्षेत्र में आपका प्रत्याशी ही विजयी हो सकता है। अनुसूचित वर्गों द्वारा इस तरह का किया गया प्रयास गांधी को पूना पेक्ट का उचित जवाब होगा। --गुलजार सिंह मरकाम (gska)

संघर्ष और मनोरंजन

"संघर्ष और मनोरंजन(नाच गान संस्कृति) अधिकार प्राप्ति में आंदोलन को कमजोर बनाता है।" "संघर्ष और मनोरंजन (नाच गाने संस्कृति) एक साथ चलने से कोई भी आंदोलन धारदार नहीं बन सकता चूंकि एक ओर हम आंदोलन के माध्यम से अपने हक और अधिकार के लिए आक्रामक गुस्सा लिये संघर्ष कर रहे होते हैं, वही एकसाथ सांस्कृतिक आयोजन करके उस गुस्से को मनोरंजन का आयोजन करके ठंडा कर लेते हैं। यही कारण है कि हमें अपने समुदाय को बार बार एक ही विषय पर पुनर्जागरण की आवश्यकता पड़ती है। मेरा मानना है कि समुदाय श्रमजीवी है अधिक शारीरिक श्रम करता उसे शारीरिक मानसिक थकावट के लिए समय समय पर मनोरंजन की भी आवश्यकता है। परन्तु उसके लिए हमारे पुरखों ने ऋतु आधारित मनोरंजन की व्यवस्था निर्धारित की है, परन्तु हमारा समुय इससे सीख लेने की बजाय, पुरखों के व्यवस्थित क्रम को तोड़ देता है। आज का दौर प्रतियोगिता का है ऐसी परिस्थितियों में हमें नाच गान जैसी सांस्कृतिक प्रतियोगिताओं का आयोजन करके मनोरंजन के साथ कला को निखारने की आवश्यकता है।अधिकारों के लिये संघर्ष में केवल संघर्ष दिखाई दे।" -गुलजार सिंह मरकाम ( रा०अ०ग्रागपा)

विश्व आदिवासी दिवस

9 अगस्त विश्व आदिवासी (इंडीजीनियस)दिवस" 9 अगस्त विश्व के आदिवासियों (इंसान के मूलबीज)की जीवन पद्धति उनकी भाषा धर्म संस्कृति साहित्य और परंपराओं को संरक्षित रखते हुए वर्तमान सामान्य विकास की दौड़ में वे पीछे ना रह जाएं इस बावद संयुक्त राष्ट्र संघ ने सभी सदस्य देशों को आव्हान किया है कि सदस्य देशों की सभी सरकारें विभिन्न स्तर पर प्रति वर्ष 9 अगस्त को जन सभा का आयोजन कर अपनी सरकार द्वारा आदिवासियों के उत्थान में वर्ष भर किये गये प्रयास की आदिवासियों के समक्ष समीक्षा एवं रिपोर्ट तैयार कर प्रस्तुति देते हुए कर संयुक्त राष्ट्र संघ को प्रेषित करने का दिवस है। यह कोई उत्सव नहीं जो किसी को खुश करना है, बल्कि सरकारें आदिवासियों को खुश करने के लिए स्वयं सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करें। हमारे समुदाय की जिम्मेदारी यह है कि 9 अगस्त हमारे लिए क्यों महत्वपूर्ण है इसकी जानकारी से सबको अवगत कराते हुए जागरूक करे। - गुलजार सिंह मरकाम

गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन को समझे बिना गोंडवाना आंदोलन समझ में नहीं आएगा

"गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन" को समझे बिना गोंडवाना आंदोलन समझ में नहीं आयेगा। -गुलजार सिंह मरकाम गोंडियन दर्शन के मार्ग पर चलने वाले नवज्ञानी लोगों को मेरा सुझाव है कि जो समुदाय अपने पिछले बीते इतिहास को नहीं जानेगा तब तक नया इतिहास नहीं लिख सकता! लेखन और लेख तो होंगे परन्तु इतिहास नहीं बना सकते। यह भी काफी हद तक सही है कि इतिहास सत्ताओं से प्रभावित भी होता है ,परन्तु विपक्ष को पूरी तरह नहीं नकार पाता। गोंडवाना आंदोलन के कुछ नवज्ञानी जो मात्र अधूरे ज्ञान या अंधभक्ति की पराकाष्ठा में गोंडवाना आंदोलन के इतिहास की महत्वपूर्ण कड़ियों को दरकिनार करके अपनी आत्ममुग्धता में आंदोलन का नुक़सान कर देते हैं। गोंडवाना आंदोलन के महान पुरोधा जो चाहे देश की आजादी के पूर्व के हों या बाद के भी ऐसे नायक गोंडवाना आंदोलन को किसी ना किसी तरह जिंदा रखे। जिसमें मध्य गोंडवाना के राजा लालश्याम शाह हो हर्रई पगारा के राजा ,धोकल सिंह मरकाम ,कंगला माझी मंगरू उईके हों या उनके बाद आंदोलन को चलाने वाले प्रथम पंक्ति में सुन्हेर सिंह ताराम मोतीरावन कंगाली शीतल मरकाम हीरा सिंह मरकाम, व्यंकटेश आत्राम,के बी म

विचारधारा देश और समाज-२

हमारे देश में विचारधाराएं अपने विचार को समाहित किए झंडे, रंगो, स्मृति चिन्हों में संगठन के नामों,नारों, स्थापित स्मारकों, साहित्य के शब्दों में दिखाई पड़ते हैं । इसे ही कहा जाता है एक सोच, एक विचार, एक व्यवहार इसी बल से एक विचारधारा अपेक्षित परिणाम की उम्मीद लिए समाज में अपनी विचार को प्रवाहित करती रहती है । समाज का कुछ हिस्सा जाने अनजाने अति प्रचार या भावुकताता में त्वरित या तात्कालिक लाभ को देखकर उस धारा में बहने लगता है । हमारे देश का जनमानस अनेकों बार अनेकों विचारधारा में बहकर छला जा चुका है और लगातार छला जा रहा है, यह जनमानस विचारधाराओं की नई-नई प्रस्तुतियों से देश के मूल बीज और मूल विचारधारा को भुला बैठा है अब देशवासियों को दक्षिणपंथी मनुवादी हिंदुत्व, कट्टर इस्लामी, साम्राज्यवादी इसाईयत,भौतिकवादी नास्तिक साम्यवाद सहित कथित देसी सामाजिक न्याय की समाजवादी विचार धारा,व्यवस्था परिवर्तन के लिए प्रतिशोध की भावना से स्थापित संगठनों के बहाव में बहना बंद कर देना चाहिए । उपरोक्त सभी विचारधाराएं अपना रंग रूप और लक्ष्य के लिए आपको अपनी अपनी विचारधारा मैं बहाकर अपना लक्ष्य हासिल करना चाहती

विचारधारा देश और समाज -१

"विचारधारा देश और समाज" हमारे देश में दुनिया की लगभग सभी तरह की विचारधाराओं का चलन है । प्रत्येक विचारधारा की एक जड़ होती है जो एक बीज से निकलती है जिसमें उसका तना,शाखा, टहनी,पत्तेफूल तथा अंततः परिणाम के रूप में उसका फल निकलता है ज्ञात हो कि बीज के आंतरिक गुण यदि कड़वाहट के हैं या विषैला होगा तो उसे उपयोग करने वाले पर वह बीज अपने गुणों के अनुरूप प्रभाव डालेगा उस बीज का स्वभाव बीज से बने तना,शाखा,टहनी, पत्ते,फूल,फल पर रहता ही है । विचारधारा विभिन्न आयामों में काम करती है मानव समाज में यह उसके संस्कार,धर्म,संस्कृति,साहित्य,आर्थिक, सामाजिक,राजनीतिक,शैक्षणिक विषयों में छाया की तरह दिखाई देती है, जिसका मूल्यांकन आम समाज के समझ के परे की बात होती है । किसी विचारधारा को समझने के लिए उसके बीज से लेकर पेड़ के सभी अंगों की जानकारी और समझ होना चाहिए आइए हम अपने देश में प्रवाहित कुछ विचार धाराओं पर चर्चा करने का प्रयास करें । मोटे तौर पर विचारधाराओं की जड़ों का पता लगा पाना आसान नहीं होता है कि ये ना जाने कितनी मोटी कितनी गहराई तक हैं सामान्य और औसत बुद्धि को केवल बाहर का आकार प्रकार ही