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" गोडवाना का सन्कल्प"

" गोडवाना का सन्कल्प"
" सन्कल्प मेरा गोडवाना का स्वाभिमान बढे,सम्मान बढ़े 
इसकी रक्षा के लिये चाहे,रक्त बहे चाहे शीश कटे ।
 माता बहनों की इज्जत पर,सन्कट के बादल घिरे हुए, 
गोडवाना की धन धरती पर,हैं कुटिल निगाहें लगे हुए। 
इनकी रक्षा कर पाउ में,गोडवाना का धन धान्य बढ़े,।१।
जिस जाति धर्म में पैदा हूँ,उसका मुझ पर है कर्ज बड़ा, 
जिसकी मर्यादा रक्षा का,मुझपर सारा दायित्व बढ़ा।
 हे बडादेव तुम शक्ति दो,मेरा साहस दिन रात बढे ।२।
 अत्याचारी अन्यायी ने विश वमन किया है ने ने पर, 
अमरत फैलाने वालों का,रक्षक बन जाउ पल पल का ।
 हो अटल राज गोडवाना का,सबके मन में विश्वास बढ़े ३। 
साहित्य साधना में रत हैं,कुछ राजनीति के पथ में हैं, 
कुछ धर्म नीति विस्तारण में,गायन वादन के लय में है।
 ऐसे समाज के रत्नों का,निश्चय मुझपर विश्वास बढ़े ।४।
 गोडवाना की रक्षा में,कितना ही मेरा वक्त लगे ,
 कर्तव्य मार्ग पर डटा रहूँ,फिर क्यों ना मेरा शीश कटे ।
 केवल है मेरा लक्ष्य यही,गोडवाना का स्वाभिमान बढ़े ।५। 
सन्कल्प मेरा गोडवाना का स्वाभिमान बढ़े सम्मान बढ़े ।

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