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गोंडी धर्म क्या है

                                        गोंडी धर्म क्या है
 गोंडी धर्म क्या है ( यह दूसरे धर्मों से किन मायनों में जुदा है , इसका आदर्श और दर्शन क्या है ) अक्सर इस तरह के सवाल पूछे जाते हैं। कई सवाल सचमुच जिज्ञाशा का पुट लिए होते हैं और कई बार इसे शरारती अंदाज में भी पूछा जाता है, कि गोया तुम्हारा तो कोई धर्मग्रंथ ही नहीं है, इसे कैसे धर्म का नाम देते हो ? तो यह ध्यान आता है कि इसकी तुलना और कसौटी किन्हीं पोथी पर आधारित धर्मों के सदृष्य बिन्दुवार की जाए।
सच कहा जाए तो गोंडी एक धर्म से अधिक आदिवासियों के जीने की पद्धति है जिसमें लोक व्यवहार के साथ पारलौकिक आध्यमिकता या आध्यात्म भी जुडा हुआ है। आत्म और परआत्मा या परम आत्म की आराधना लोक जीवन से इतर होकर लोक और सामाजिक जीवन का ही एक भाग है। धर्म यहॉं अलग से विशेष आयोजित कर्मकांडीय गतिविधियों के उलट जीवन के हर क्षेत्र में सामान्य गतिविधियों में संलग्न रहता है।
गोंडी धर्म अनुगामी प्राकृतिक का पूजन करता है। वह घर के चुल्हा, बैल, मुर्गी, पेड, खेत खलिहान, चॉंद और सूरज सहित सम्पूर्ण प्राकृतिक प्रतीकों का पूजन करता है। वह पेड काटने के पूर्व पेड से क्षमा याचना करता है। गाय बैल बकरियों को जीवन सहचार्य होने के लिए धन्यवाद देता है। पूरखों को निरंतर मार्ग दर्शन और आशीर्बाद देने के लिए भोजन करने, पानी पीने के पूर्व उनका हिस्सा भूमि पर गिरा कर देते हैं। जड़ी बूटियों का उपयोग करने के लिए धरती माता और वनस्पति से अग्रिम निवेदन और उपादान प्रक्रिया अनिवार्य होती है !   धरती माता को प्रणाम करने के बाद ही खेतीबारी के कार्य शुरू करते हैं।
लेकिन यह पूजन कहीं भी रूढ नहीं है। कोई भी गोंडी धर्मी, लोक और परलोक के प्रतीकों में से किसी का भी पूजन कर सकता है और किसी का भी करे तो भी वह गोंडी धर्मी ही होता है। कोई किसी एक पेड की पूजा करता है तो जरूरी नहीं कि दूसरा भी उसी पेड की पूजा करे। दिलचस्प और ध्यान देने वाली बात तो यह है कि जो आज एक विशेष पेड की पूजा कर रहा है जरूरी नहीं कि वह कल भी उसी पेड की पूजा करे। यहॉं पेड किसी मंदिर, मस्जिद या चर्च की तरह रूढ नहीं है। वह तो विराट प्रकृति का सिर्फ एक प्रतीक है और हर पेड प्रकृति का जीवंत प्रतीक हैए इसलिए किसी एक पेड को रूढ होकर पूजन करने का कोई मतलब नहीं। अमूर्त शक्ति की उपासना के लिए एक मूर्त प्रतीक की सिर्फ आवश्यकता वस वह उस या इस पेड का पूजन करता है।
गोंडी धर्म किसी धार्मिक ग्रंथ और पोथी का मोहताज नहीं है। पोथी आधारित धर्म में अनुगामी नियमों के खूँटी से बॉधा गया होता है। जहॉं अनुगामी एक सीमित दायरे में आपने धर्म की प्रैक्टिस करता है। जहॉं वर्जनाऍं हैं, सीमा है, खास क्रिया क्रमों को करने के खास नियम और विधियॉं हैं, जिसका प्रशिक्षण खास तरीके से दिया जाता।
पोथीबद्ध धर्म के इत्तर गोंडी धर्म, धार्मिकता के उच्च व्यक्तिगत स्वतंत्रता की गारंटी देयता का धर्म है। जहॉं सब कुछ प्राकृतिक से प्रभावित है और सब कुछ प्रकृतिमय है। कोई नियम, वर्जनाऍं नहीं है। आप जैसे हैं वैसे ही बिना किसी कृत्रिमता के गोंडी धर्मी हो सकते हैं और प्राकृतिक ढंग से इसे अपने जीवन में अभ्यास कर सकते हैं। जीवंत और प्राणमय प्रकृति, जो जीवन का अनिवार्य अंग है, आप उसके एक अंग है। आप चाहें तो इसे मान्यता दें या दें। आप पर किसी तरह की बंदिश नहीं है।
आप प्रकृति के प्रति अपनी श्रद्धा की अभिव्यक्ति कहीं भी कर सकते हैं या कहीं भी करें तो भी आपको कोई मजबूर नहीं करेगा, क्योंकि हर व्यक्ति की भक्ति की शक्ति या शक्ति की भक्ति के अपनी अवधारणाऍं हैं। एक समूह का अंग होकर भी आपके  वैचारिक और मानसिक व्यक्तित्व समूह से इतर हो सकता है। अपने वैयक्तिक आवधारणा बनाए रखने और उसे लोक व्यवहार में प्रयोग करने के लिए आप स्वतंत्र है। यही गोंडी धर्म की अपनी विशेषता और अनोखापन है।
यह किसी रूढ बना या ठहरा गए धार्मिक, सामाजिक या नैतिक नियमों से संचालित नहीं होता है। आप या तो पेन ठाना (पूजा स्थल) में पूजा कर सकते हैं या जिंदगी भर करें। यह आपके व्यक्तिगत स्वतंत्रता का भरपूर सम्मान करता है। आप चाहें तो अपने बच्चों को पेन ठाना स्थल में ले जाकर वहॉं प्रार्थना करना सिखाऍं या सिखाऍं कोई आप पर किसी तरह की मर्जी को लाद नहीं सकता है।
आप धार्मिक, सामाजिक और ऐच्छिक रूप से स्वतंत्र हैं। आपको पकड कर कोई प्रार्थना रटने के लिए कहा जाता है ही आपको किसी प्रकार से मजबूर किया जाता है कि आप धार्मिक स्थल जाऍं और वहॉं अपनी हाजिरी लगाऍं और कहे गए निर्देशों का पालन करें गोंडी धर्म के कर्मकांड करने के लिए कहीं किसी को प्रोत्साहन किया जाता है ही इससे दूर रहने के लिए किसी का धार्मिक और सामाजिक रूप से तिरस्कार और बहिष्कार किया जाता है। गोंडी धर्म किसी को धार्मिक, मानसिक, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक रूप से नियंत्रित नहीं करता और ही उन्हें अपने अधीन रखने के लिए किसी भी तरह के बंधन बना कर उन पर थोपता है।
गोंडी धर्मी  बनने या बने रहने के लिए कोई नियम या सीमा रेखा नहीं बनाया गया है। इसमें घुसने के लिए या बाहर निकले के लिए आपको किसी अंतरण अर्थात धर्मांतरण करने की जरूरत नहीं है कोई किसी धार्मिक क्रिया कलाप में शामिल होते हुए भी गोंडी धर्मी  बन के रह सकता है, उसके धार्मिक झुकाव या कर्मकांड में शामिल नहीं होने या दूर रहने के लिए कोई सवाल जवाब नहीं किया जाता है। गोंडी धर्म का कोई पंजी या रजिस्टर नहीं होता है। इसके अनुगामियों के बारे कहीं कोई लेखा जोखा नहीं रखा जाता है, ही किसी धार्मिक नियमों से संबंधित जवाब के देने पर नाम ही काटा जाता है।
गोंडी धर्म अनुगामी जन्म से मरण तक किसी तरह के किसी निर्देशन, संरक्षण, प्रवचन, मार्गदर्शन या नियंत्रण के अधीन नहीं होते हैं। उसे धार्मिक रूप से आग्रही या पक्का बनाने की कोई कोशिश नहीं की जाती है। वह धार्मिक रूप से तो कट्टर होता है और ही धार्मिक रूप से कट्टर बनाने के लिए उसका ब्रेनवाश किया जाता है। क्योंकि ब्रेनवाश करने, उसे धार्मिकता के अंध-कुँए में धकेलने के लिए कोई तामझाम या संगठन होता ही नहीं है। इसीलिए इसे प्राकृतिक धर्म भी कहा गया है। प्राकृतिक अर्थात् जो जैसा है वैसा ही स्वीकार्य है। इसे नियमों ओर कर्मकांडों के अधीन परिभाषित भी नहीं किया गया है। क्योंकि इसे परिभाषा से बांधा नहीं जा सकता है।
जन्म, विवाह, मृत्यु सभी संस्कारों में उनकी निष्ठा का कोई परिचय तो लिया जाता है ही दिया जाता है। हर मामले में वे किसी आधुनिक देश में लागू किए सबसे आधुनिक संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार ही समता, स्वतंत्रतापूर्ण जीवन जीने जैसे मूल अधिकार की तरह  सदियों से व्यक्तिगत और सामाजिक स्वतंत्रता का उपभोग करते रहा है। उसके लिए कोई पर्सनल कानून नहीं है। वह शादी भी अपनी मर्जी जिसमें सामाजिक मर्जी स्वयं सिद्ध रहता है, से करता है और तलाक भी अपनी मर्जी से करता है। लडकियॉं सामाजिक रूप से लडकों की तरह की स्वतंत्र होती है। धर्म उनके किसी सामाजिक कार्यों में कोई बंधन नहीं लगाता है।
गोंडी धर्मी  बनने के लिए किसी जाति में जन्म लेने की जरूरत नहीं है। वह गोंड, बैगा, कोल, भील, मीणा, हल्बा, कंवर, माझी, कोरकू उरॉंव, मुण्डा, हो, संताल, खडिया  कहीं के भी आदिवासी मसलन उत्तर प्रदेश , बिहार, झारखण्ड, प० बंगाल, मध्यप्रदेश, उडिसा, छत्तीसगढ, आंध्रा, तेलंगाना, महाराष्ट्रए गुजरात, राजस्थान, केरल या कर्नाटक का हो जो किसी अन्य किताबों, ग्रंथों, पोथियों  पर आधारित धर्म नहीं मानता है और जिसमें सदियों पुरानी जीवन यापन के अनुसार जिंदगी और सामाज चलाने की आदत रही है, गोंडी धर्म या प्राकृतिक धर्म का अनुगामी कहा जा सकता है। क्योंकि उन्हें नियंत्रित करने वाले तो कोई संगठन है, समुदाय है ही उन्हें मानसिक और मनोवैज्ञानिक रूप से नियंत्रण में रखने वाला बहुत चालाकी से लिखी गई किताबें हैं। कोई भी आदमी गोंडी धर्मी  बन कर जीवन यापन कर सकता है क्योंकि उसे किसी धर्मांतरण के क्रिया कलापों से होकर गुजरने की जरूरत नहीं है।
गोंडी धर्मी  में गोंडी धर्म अनुगामी खुद ही अपने घर का पूजा पाठ या धार्मिक कर्मकांड करता है। लेकिन सार्वजनिक पूजा पाठ जैसे बिदरी में पूजा करना करमा और सैला  में पूजा करना गॉंव देव का पूजा या बीमारी दूर करने के लिए गॉंव की सीमा पर किए जाने वाले डंगरी पूजा, सिवान (मेढ़ो) पूजा वगैरह पडिहार, बैगा करता है। पडिहार, बैगा का चुनाव विशेष प्रक्रिया जिसे थाली और लोटा चलाना कहा जाता के द्वारा किया जाता है। जिसमें चुने गए व्यक्ति को पडिहार बैगा की जिम्मेदारी दी जाती है। लेकिन अलग अलग जगहों में पृथक ढंग से भी पडिहार बैगा का चुनाव किया जाता है। चुने गए  बैगा पडिहार, बैगाई जमीन पर खेती बारी कर सकता है या उसे चारागाह बनाने के लिए छोड सकता है। उल्लेखनीय है कि गोंडी धर्मी  पडिहार बैगा सिर्फ पूजा पाठ करने के लिए पडिहार बैगा होता है। वह समाज को धर्म का सहारा लेकर नियंत्रित नहीं करता है। वह हमेशा पडिहार बैगा की भूमिका में नहीं रहता है। वह सिर्फ पूजा करते वक्त ही पुजारी होता है। पूजा की समाप्ति पर अन्य सामाजिक सदस्यों की तरह ही रहता है और सबसे व्यवहार करता है। वह पडिहार बैगा होने पर कोई विशिष्टता प्राप्त नागरिक नहीं होता है। अन्य धर्मो में पूजा करने वाला व्यक्ति सिर्फ विशिष्ट होता है बल्कि वह हमेशा उसी भूमिका में समाज के सामने आता है और आम जनता को उसे विशिष्ट सम्मान अदा करना पडता है। सम्मान नहीं अदा नहीं करने पर धार्मिक रूप से उदण्ड व्यक्ति को सजा दी जा सकती है, उसकी निंदा की जा सकती है। पडिहार बैगा धार्मिक कार्य के लिए कोई आर्थिक लाभ नहीं लेता है। वह किसी तरह का चंदा भी नहीं लेता है। वह अपनी जीविकोपार्जन स्वयं करता है और समाज पर आश्रित नहीं रहता है।
कई लोग अन्जाने में या शरारत ,वश गोंडी धर्म को हिन्दू धर्म का एक भाग कहते हैं और आदिवासियों को हिन्दू कहते हैं। लेकिन दोनों धर्मो में कई विश्वास या कर्मकांड एक सदृष्य होते हुए भी दोनों बिल्कुल ही जुदा हैं। यह ठीक है कि सदियों से गोंडी धर्मी और हिन्दू धर्म सह अस्तित्व में रहते आए हैं। इसलिए कई बातें एक सी दिखती है।
                 लेकिन आदिवासी गोंडी धर्मी और हिन्दू धर्म के बीच छत्तीस का आंकडा है। आदिवासी मूल्य, विश्वास, आयाम हिन्दू धर्म से बिल्कुल जुदा है इसलिए किसी आदिवासी का हिन्दू होना मुमकिन नहीं है। हिन्दू धर्म कई किताबों पर आधारित है और उन किताबों के आधार पर चलाए गए विचारों से यह संचालित होता है। याद कीजिए इन किताबों का आदिवासी समाज के लिए कोई महत्व नहीं ही प्रभाव है। इन किताबों के लिए आदिवासियों के मन में सम्मान भी नहीं है ही  हेय दृस्टि है। इन किताबों में आत्म, पुर्नजन्म, सृष्टि और उसका अंत,चौरासी कोटी देवी देवता, ब्राह्मणवाद की जमींदारी और मालिकाना विचार आदि केन्द्र बिन्दु है। यह जातिवाद का जन्मदाता और पोषक है और सामांतवाद को यहॉं धार्मिक मान्यता प्राप्त है। यहीं हिन्दू धर्म धर्म के उलट रूप में प्रकट होता है। ब्राहणवाद और जातिवाद से पीडित यह जबरदस्ती बहुसंख्यक, कर्मवीर और श्रमशील लोगों को नीच घोषित करता है और लौकिक और परलौकिक विषयों की ठेकेदारी ब्राह्मण और उनके मनोवैज्ञानिक उच्चता का बोध कराने के लिए बनाए गए नियमों को सर्वोच्चता प्रदान करता है। यह वैज्ञानिक, मनोवैज्ञानिक रूप ये अत्यंत अन्यायकारी और घ़ृष्टतापूर्ण है। इंसानों को अन्यायपूर्ण तरीके से धार्मिक भावनाओं के बल पर जानवरों की तरह गुलाम बनाने के हर औजार इन किताबों में मौजूद है।
ऐसा धार्मिक नियम, परंपरा और लोक व्यवहार गोंडी धर्मी समाज में मौजूद नहीं है। गोंडी धर्मी समाज में जातिवाद और सामांतवाद दोनों ही नहीं है। यहॉं सिर्फ समुदाय है, जो तो किसी दूसरे समुदाय से उॅच्च है नीच है। गोंडी धर्म के समता के मूल्य और सोच के बलवती होने के कारण किसी समुदाय का शोषण की कोई सोच और मॉडल तो विकसित हुई है और ही ऐसे किसी प्रयास को मान्यता मिली है।
कई लोग आदिवासियों के हनुमान और महादेव के पूजन को हिन्दू धर्म से जोडकर इसे हिन्दू सिद्ध करना चाहते हैं। लेकिन गोंडी धर्म  वालों ने कहीं इसका मंदिर तो खुद बनाए हैं ही सामाजिक धर्म और पर्वों में इनके घरों में पूजा की जाती है। ऐतिहासिक रूप से अभी तक कुछ स्पष्ट नहीं हो पाया है लेकिन अनेक विद्वान महादेव को प्रागआदिवासी मानते हैं। हजारों सालों से एक ही धरती पर निरंतर साथ रहने के कारण दोनों के बीच कहीं अंतरण हुआ होगा। लेकिन आदिवासी हिन्दू नहीं है यह स्पष्ट है।
हाल ही में हिन्दुत्व, क्रिश्चिनिटी, इस्लाम से प्रभावित कुछ उत्साही जो अपने को गोंडी धर्मी  के रूप में परिचय देते हैं, लोगों ने गोंडी धर्म    को परिभाषित करने, उसका कोई प्रतीक चिन्ह, तस्वीर, मूर्ति, मठ, पोथी आदि बनाने की कोशिश की है जिसे निहायत ही आईडेंटिटी क्राइसेस से जुझ रहें लोगों का प्रयास माना जा सकता है। इन चीजों के बनने का धर्म के मूल्यों में हृास होगा और इसके अनुठापन खत्म होगा  गोंडी धर्म में विचार, चिंतन की स्वतंत्रता उपलब्ध है वे भी स्वतंत्र हैं अपने धार्मिक चिंतन को एक रूप देने के लिए लेकिन ऐसे परिवर्तन को गोंडी धर्म कहना एक मजाक के सिवा कुछ नहीं है। गोंडी धर्मी किसी मूर्ति, चिन्ह, तस्वीर या मठ का मोहताज नहीं है। फिर यह भी दूसरे धर्म की धार्मिक बुराईयों का शिकार हो जाएगा।
यदि गोंडी धर्म दर्शन के शब्दों में कहा जाए तो यह सब चिन्ह आपनी आईडेंटिटी गढने, रचने और उसके द्वारा व्यैयक्तिक पहचान बनाने के कार्य हैं जिसका इस्तेमालए सामाजिक कम राजनैतिक, सांस्कृतिक और वैचारिक साम्राज्य गढने और वर्चस्व स्थापित करने के लिए एक हथियार के रूप में किया जाता रहा है। ऐसे चीजों का अपना एक बाजार होता है और उसके सैकडों लाभ मिलते हैं। लेकिन गोंडी धर्म दर्शन, सोच, विचार, विश्वास, मान्यता से बाजार का कोई संबंध नहीं है। मिट्टी के छोटे दीया, भांड, घडा आदि हजारों साल से स्थानीय लोगों के द्वारा ही निर्मित होता रहा है और इसका कोई स्थायी बाजार नहीं होता है।

       कु्ल मिला कर यही कहा जा सकता है कि गोंडी धर्मी एक अमूर्त शक्ति को मानता है और सीमित रूप से उसका आराधना करता है। लेकिन इस आराधना को वह सामाजिक राजनैतिक और आर्थिक रूप में नहीं बदलता है। वह आराधना करता है लेकिन उसके लिए किसी तरह के शोशेबाजी नहीं करता है। यदि वह करता है तो फिर वह कैसे गोंडी धर्मी लेकिन किसी मत को कोई मान सकता है और नहीं भी, क्योंकि व्यक्ति के पास अपना विवेक होता है और यह विवेक ही उसे अन्य प्राणी से अलग करता हैए विवेकवान होने के कारण अपनी अच्छाईयों को पहचान सकता है। सब अच्छाईयॉंए कल्याणकारी पथ खोजने के लिए स्वतंत्र है।                                                                                                                              - गुलज़ार सिंह मरकाम

Comments

  1. Kyo to adiwasi bhai to kya dhrm likhe

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    1. हा भाइयों धर्म लिखने से ही गोंड धर्म को मान्यता मिल सकती हैं।
      नहीं तो या हिन्दू या इस्लाम धर्म की तरह हमारे धर्म की पुस्तक होगी तभी तो भावी पीढ़ी को जानकारी मिलेगी
      बक्त है बदलाव का

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    2. Dharam ke Naam par ladae mat karo garv se kahenge hum st hain

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    3. dharam koyapunem or jati gond (koytur) sahi rahega .

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  2. Ydi gondi dhram aur Hindu dhram alag hai to koi bhi form fir vo chahe scolership se related Ho ya fir admission se har jgah apna dhrm Hindu q dalna pdta hai... Or online form me to alag se Gondi dhrm ka bhi option nhi rehta h... Esa q ?

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  3. Ydi gondi dhram aur Hindu dhram alag hai to koi bhi form fir vo chahe scolership se related Ho ya fir admission se har jgah apna dhrm Hindu q dalna pdta hai... Or online form me to alag se Gondi dhrm ka bhi option nhi rehta h... Esa q ?

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    1. Kyonki jab dharmo divdetion chal rh Tha tab koi gond un jagah per nhi Tha jab yah nirdharit kiya gaya aur sabhi kisi jati ke samaj ko apne dharm me jodne Ki kosis karte isliye koi nhi chahta dusara dharm me jaane dene Ki isliye apna koi astitv nhi diya

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    2. Yadi koi sheher main gond rehta hai to bo akela gondi bolegb abhi tutbhi gondi bhasha codkar hindi bol rahaa hai to tera astitva kahan gaya

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  4. Hame yah svikar karna chahiye Ki hum Hindu nhi h apna koi bhi sanskar Hindu se nhi juda hai
    Apni sabhi chije h
    Language gondi
    Dharm gond
    Mai ye manta hu
    Jay seva
    Jay padapen

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    1. 1. Prakriti pooja.
      2. Vanaspatio aur ped paudho ko divya manna.
      3. Ek Ishvara aur anek devtao (purvaj, prakrtik shaktia) ki upasna aur pooja.
      4. Vichar aur chintan ki svatantrata.
      5. Acharan ki svatantrata.

      Udaharan to aur kayi saare hain par ye 5 hi kaafi hain tumhare comment ka khandan karne aur Gondi manyata ka Hinduism ka aadikal se ansh hone.

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    2. 1.Gondi dharam m koi granth nhi h
      2.gond ne kabhi mandiro m puja nhi ki
      3.hamari language bhi gondi h jo hindi se milti julti nhi h
      To app kaise isko ansh bol skte ho kuki adikal se hi bharab bumi ko gondwana land k nam se jana jata h

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  5. Bahut hi rationalistic ideology hai apka . Hum logo ko samjhana hoga sabhi tribals Ko Kyun ki kanhi na kanhi hindukaran ki rajnitik Sajish me unhe fasaya ja rha hai

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  6. Jai seva Jai fadhapen Jai gondvana

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  7. Pure lekh se to yahi pramanit hota hain ki Gondi manyata Hinduism ya Santana Dharma ki hi shakha hain

    Hindu yani Sanatana Dharma ke Vedo me aur Arsha Grantho me koi jaativad, samantvad ityadi nahi hain. Logo ne kalantar me ye kuprathaye utkrit kiye yane ye Dharma ka vachan hain ye koi agyani hi bolega.

    Hindu Dharma me koi kisi niyam ya granth se badhya nahi. Yadi Ved ya kisi bhi granth sahitya me se kuch anuchit lage to voh nakarne ya punahshuddhikaran karne ka purna svatantrata hain.

    Kai pidhio se Hinduo ke Sudhar andolan chalte hain jaha wo ooch neech bhed ko Adharma mante aur jante hain.
    Toh kya we Hindu nahi?

    Post me Gondi lokmanyata ka aisa ek bhi lakshan nahi dikha jo pramanit kare ki vaha Hinduo se bhinn ho. Tantric bhi Vedadi shastro ko nahi mante.

    Gondi manyatao ka koi "granth" ya pothi purana isilie nahi hain filhal kyuki Gondio ke kabhi koi prachin lipi thi hi nahi.. adhunik kaal ki jo Gondi lipi aur Gunjala Gondi lipi hain ve 18 ve sadi se purane nahi aur Hinduo ke Brahmi lipi par hi adharit hain. Yadi Gondio ka koi sarvamanya lipi hoti aur sahitya sabhyata hoti to unka bhi ek Gond Purana vo khud hi nikalte.

    Gond Vedo ko 'nahi mante'... theek waise hi jaise adhiktar Hindu (Brahman aur Savarna bhi shamil) jo Vedo ko nahi mankar Purano par jor dalte hain.

    To Gondio ka koi 'Hindukaran' nahi kar raha.... Hindu shabda ka itihas dekha to Gond usme apne aap aatey hain...



    Ha aap mujse ek baat par sahmat ho sakte ho- Gondi manyata ko "Vaidic" nahi mana jaa sakta. Par Hindu me Vaidic aur Avaidic dono shaamil hain.

    Hindu Dharma ke granth Hindu keval sahitya ke roop me dekhte hain...jo kaam ka ho wahi svikar karte hain aur jo nahi ho wah svikar nahi karte. Ye Sanatana Dharma ki svatantrata hain.

    Prakriti pooja Sanatana Dharma ki jad hain. Pauranic aur Tantric Hinduo ki murti puja yane patthar puja bhi prakriti puja hi hain kyu ki ve murtio ko Purusha (Atma) aur Prakriti ka hi roop manti hain. Vanaspatio ki puja bhi hain... Vaidiko ke havan bhi prakriti ke devi daevatao (sabhi laukik) ke prati hi bhavna hain.

    Purohita Gondio me bhi hain jinhe Pardhan kaha jata hain.

    Alag alag sthano va jatio aur kul va gotro ke Hindu alag alag devi devta yaksha avataro ko divya purvaj ke rup me hi mante hain. Toh ye Gond ke gotra devtao ke pujan se bhinn kaise hua?

    Isilie, Dharma to keval Santana Dharma hi hain, Gondi lokmanyata ya sampradaya Hinduism yani Indian Paganism ka hi ansh hain. Bhinn hone ka koi praman hi nahi.

    Aap jo darshanic shabdo ka bhi upyog kie ho post me waha wakya Vedo aur Upanishado ke Anitya jagat ka hi siddhant hain jo baadke Bauddh mat me bhi hain par thode alag rup se.

    Waise, aap jo Amurta Shakti ki baat kar rahe hain wo bhi Vedo aur Upanishado ke hi nirakar nirvikar amurta Aum hain... jo Srushti ki Amurta Shakti va Aadhar hain.

    Aur ye uprokt sabhi manyataye keval Gondi sampraday aur Hinduism me nahi, duniya ke sabhi Pagan/Shaman/Animist/Spiritualist parampara va sampradaya me milega. Isilie ham sabhi Pagans ek hi jad ke hain... shakhaye bhale hi bhinn ho.

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    1. App koi lipi nhi h keh ry ho apko pta h adivasiyaon dwara ki hui pantaing unki alag hi lipi abhi bhi kai caves m evidence k rup m h

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  8. Bhot achha lgaa padhkar mai ek Tyagi Brahamin Lekin mujhe Aisa lag rha hai ki Gondi hi Sabse purana Dharam hai Or kuch logo ne isko thoda badalkar Hindu Dharam ki Neev rakkh li. Hum sab early Manav k vansaj hi to hain... Hume Dharam Ko thoda alag rakkhne ki koahish karni chahiye. Kuch Ni rakkha fijul ki chkkro m. Jiyo or jeene do. Sabka Malik ek jo katre katre m basta hai. Nirakar.

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  9. Thanks Gondi dharm ke bare mai likhne ke liye

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  10. सेवा जोहार! यह जानकारी बहुत सुंदर है।
    http://www.igondi.xyz/2021/08/Gondi-dance-instruments.html

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  11. Are bhai meko koi bata skta hai kya ki jo gond logo mai ghode rhte hai pen thana mai unko kya bolte hai

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