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जाति कबीला और पारंपरिक रूढि प्रथा

" जाति और कबीला भारत देश में आदिवासी समुदाय के चार प्रमुख कबीले है। १."गोंडियन कबीला " दक्षिण पूर्व की गोंड, प्रधान कोरकू ओझा पनका अहीर/गायकी बैगा भारिया ढीमर आदि समस्त उपजातियां जो एक धार्मिक सांस्कृतिक पहचान रखते हैं। २. "भीलियन कबीला" पश्चिमोत्तर की भील,भिलाला बारेला मीणा शेरिया(शहरिया) और उसकी समस्त उपजातियां जो एक सामाजिक, धार्मिक सांस्कृतिक पहचान रखते हैं। ३."कोलारियन कबीला" उत्तर-पूर्व की मुंडा उरांव कोल संथाल और उसकी समस्त उपजातियां जो एक सामाजिक, धार्मिक सांस्कृतिक पहचान रखते हैं। ४."मंगोलियन कबीला" पूर्वोत्तर की प्रमुख नागा खासी और कुकी जनजाति।और उसकी समस्त उपजातियां जो एक सामाजिक, धार्मिक सांस्कृतिक पहचान रखते हैं। नोट:-(इन्हीं प्रमुख कबीलों से उत्पन्न वर्तमान समूहों (उपजातियों)को वर्गों के रूप में संविधान में उल्लेखित किया गया है। जो विदेशी आक्रमणकारी समूहों यथा शक,हूण,आर्य -यवन, यहूदी, अफगानी पठान-अंग्रेज फ्रांसीसी डचों के संसर्ग में आकर जातियों में विभक्त हो गये ) नोट:-ध्यान रहे जातियों समूहों में विभक्त रहकर पांचवी अनुसूची/पेसा कानून मैं उल्लेखित रूढि परंपराओं को विधि का बल के रूप में उपयोग नहीं कर सकते ? इसके लिए आपको पुनः कबीले के रूप में स्थापित होना होगा । कबीलों की रूढ़ि परंपराएं होती हैं जातियों की नहीं। "जाति और समाज" "उपजातियों की एक जाति दिखाओ " "जातियों का फिर वर्ग बनाओ" "वर्ग मिलाकर एक समाज बनाओ" "तब देश का मूलनिवासी कहलाओ" -गुलजार सिंह मरकाम (GSKA)

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गोंडी धर्म क्या है

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