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संगठन और कार्यकर्ताओं का स्वभाव

 "संगठन और कार्यकर्ताओं का स्वभाव"

अंधभक्ति से भरे संगठन या कार्यकर्ताओं का स्वभाव होता है की जब तक कोई व्यक्ति या पदाधिकारी उस संगठन में कार्यरत है तब तक वह उनकी आंखों का तारा होता है या पूजनीय सम्मानित होता है उसकी अंधभक्ति ही उसकी योग्यता और विशेषता होती है भले ही वह कितना अच्छा या बुरा हो उस संगठन के लिए और उनके कार्यकर्ताओं के लिए काम का व्यक्ति होता है ।

            यदि किसी कारणवश वह उस संगठन से अलग होता है तब वह दुनिया का सबसे खराब व्यक्ति हो जाता है, इसी तरह यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य संगठन से चलकर किसी मकसद से अंध भक्तों की टोली या संगठन में आता है,तब उसका जोरदार स्वागत किया जाता है उस वक्त के लिए वह अंध भक्तों की टोली का आंखों का तारा बन जाता है उसकी लाख बुराइयों को अंधभक्त माफ कर देते हैं।

         ऐसी सोच और समझ दक्षिणपंथी विचारधारा वाले संगठन या कार्यकर्ता मैं पाई जाती है, ऐसे संगठन केवल भावनाओं के बल पर टिके होते हैं, ऐसे संगठन कार्यकर्ताओं की बौद्धिकता को माइनस स्टेज पर खड़ा कर देते हैं, नेतृत्व ने हांक लगाई तो सब आंख बंद करके उसका अनुसरण करने में लग जाते हैं वहां बुद्धि विवेक विज्ञान तर्क की कोई गुंजाइश नहीं होती। इसी तरह के संगठन समाज या राष्ट्र को तानाशाही की दिशा मैं ले जाने का प्रयास करते हैं। जरा विचार करें कि हमारे आसपास ऐसे संगठन तो नहीं पनप रहे हैं, या उन संगठनों की प्रवृत्ति कुछ इसी तरह तो नहीं ? ऐसे संगठन और सोच के कार्यकर्ता संकीर्ण मानसिकता के होते हैं जो समाज और राष्ट्र के लिए घातक है।

-गुलजार सिंह मरकाम

(GSKA)


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