Skip to main content

barangdah mdl m.p. temple of godess sharda 500 year ago

बरंगदाह चलो। बारंगदाह चलो ।। बारंगदाह चलो ।।।
मॉं शारदा शक्ति स्थल (मढिया)
बारंगदाह
तह0 नारायणगंज जिला मण्डला
सम्माननीय बन्धुओं
पुरातन काल से हमारे देश में देवशक्तियों के माध्यम से वेन विरंदा विडार के सामाजिक सांस्कृतिक धार्मिक राजनैतिक व्यवस्था व्यवस्थित होती रही है । जिसके कारण सुन्दर स्वस्थ समृद्व समाज एवं राष्ट की कल्पना साकार हुई थी । कालान्तर में इस व्यवस्था में परसंस्कृति के प्रभाव ने हमारी देव संस्कृति व्यवस्था को अंधविश्वास का पर्याय बना दिया यही कारण है कि जिन देव स्थलों पर आमजन का विश्वास था धीरे धीरे कमजोर हुआ । यह अविश्वास वेन विरंदा विडार के एकता संगठन और सामाजिक समरसता के लिये अभिशाप सिद्व हुआ है । कहा जाता है कि हिन्दु जिये नेम के बल गोंड जिये देव के बल । देवशक्तियों के बल पर जीने वाला समाज देवक्तियों से अलग होकर कैसे सुखी हो सकता है । एक ओर हमारी राज व्यवस्था गढ कोट और किलों में राजा मंत्री और सेना से सुरक्षित होती थी दूसरी ओर हमारी सांस्कृतिक धार्मिक व्यवस्था खेर खूंट मेढो मढिया के बैगा गुनिया पंडा के माध्यम से व्यवस्थित होती थी । जो हमारी उदासीनता के कारण अस्तित्व रक्षा के लिये संघर्ष कर कर रही है । इस व्यवस्था को पुनः शसक्त किये बिना वेन विरंदा विडार की उन्नति संभव नहीं । इसी के तहत लगभग 15वीं शताब्दी से भी पूर्व से संचालित आस्था की प्रतीक मां शारदा शक्ति स्थल (मढिया) बारंगदाह की ख्याति को पुनस्र्थापित करने का बीडा उठाया गया है । कारण कि व्यक्ति जागे तो शक्ति जागे शक्ति जागे तो समाज जागे । देवताओं के नव वर्ष चैत्र माह की तिथि 11 दिनांक 18.3.2012 से गढा मण्डला की देवशक्ति मां राजराजेश्वरी की पूजा प्रार्थना आर्शिवाद लेकर भक्तगण गढा मण्डला के चारों दिशाओं में स्थित देवीस्थलों (मढिया) में जाकर पूजा एवं आर्शिवाद प्राप्त करेंगे । तथा बारंगदाह मढिया में तिथि चैत्र 10 दिनांक 2.4.2012 को समस्त बैगा पंडा पुजारी एवं भक्तजनों को विसर्जन में शामिल होने का आव्हान करेंगे । इस अवसर पर बैगा पंडा पुजारियों के प्रवचन की विशाल धर्मसभा एवं सांस्कृतिक कलाकारों द्वारा देवीशक्ति जागरण गीत प्रस्तुत किये जायेंगे ।
अतः समस्त बैगा भुमका पंडा धर्मप्रचारकों एवं आस्थावान मातृ पितृ शक्तियों से अनुरोध है कि बारंगदाह देवी शक्ति स्थल में पधारकर आस्था की प्रतीक मां शारदा शक्ति स्थल बारंगदाह की ख्याति को पुनस्र्थापित करने हेतु तन मन धन से सहयोग करें ।
निवेदक
मां शारदा शक्ति स्थल (मढिया)
जागरण समिति बारंगदाह

Comments

Popular posts from this blog

"मरकाम गोत्र के टोटम सम्बन्धी किवदन्ती"

मध्यप्रदेश के गोन्ड बहुल जिला और मध्य काल के गोन्डवाना राज अधिसत्ता ५२ गढ की राजधानी गढा मन्डला के गोन्ड समुदाय में अपने गोत्र के पेन(देव) सख्या और उस गोत्र को प्राप्त होने वाले टोटेम सम्बन्धी किवदन्तिया आज भी यदा कदा प्रचलित है । लगभग सभी प्रचलित प्रमुख गोत्रो की टोटेम से सम्बन्धित किवदन्ति आज भी बुजुर्गो से सुनी जा सकती है । ऐसे किवदन्तियो का सन्कलन और अध्ययन कर गोन्डवाना सन्सक्रति के गहरे रहस्य को जानने समझने मे जरूर सहायता मिल सकती है । अत् प्रस्तुत है मरकाम गोत्र से सम्बन्धित हमारे बुजुर्गो के माध्यम से सुनी कहानी । चिरान काल (पुरातन समय) की बात है हमारे प्रथम गुरू ने सभी सभी दानव,मानव समूहो को व्यवस्थित करने के लिये अपने तपोभूमि में आमंत्रित किया जिसमें सभी समूह आपस में एक दूसरे के प्रति कैसे प्रतिबद्धता रखे परस्पर सहयोग की भावना कैसे रहे , यह सोचकर पारी(पाडी) और सेरमी(सेडमी/ ्हेडमी) नात और जात या सगा और सोयरा के रूप मे समाज को व्यवस्थित करने के लिये आमन्त्रित किया ,दुनिया के अनेको जगहो से छोटे बडे देव, दानव ,मानव समूह गुरू के स्थान पर पहुचने लगे , कहानी मे यह भी सुनने को मिलत

गोंडी धर्म क्या है

                                          गोंडी धर्म क्या है   गोंडी धर्म क्या है ( यह दूसरे धर्मों से किन मायनों में जुदा है , इसका आदर्श और दर्शन क्या है ) अक्सर इस तरह के सवाल पूछे जाते हैं। कई सवाल सचमुच जिज्ञाशा का पुट लिए होते हैं और कई बार इसे शरारती अंदाज में भी पूछा जाता है, कि गोया तुम्हारा तो कोई धर्मग्रंथ ही नहीं है, इसे कैसे धर्म का नाम देते हो ? तो यह ध्यान आता है कि इसकी तुलना और कसौटी किन्हीं पोथी पर आधारित धर्मों के सदृष्य बिन्दुवार की जाए। सच कहा जाए तो गोंडी एक धर्म से अधिक आदिवासियों के जीने की पद्धति है जिसमें लोक व्यवहार के साथ पारलौकिक आध्यमिकता या आध्यात्म भी जुडा हुआ है। आत्म और परआत्मा या परम आत्म की आराधना लोक जीवन से इतर न होकर लोक और सामाजिक जीवन का ही एक भाग है। धर्म यहॉं अलग से विशेष आयोजित कर्मकांडीय गतिविधियों के उलट जीवन के हर क्षेत्र में सामान्य गतिविधियों में संलग्न रहता है। गोंडी धर्म

“जय सेवा जय जोहार”

“जय सेवा जय जोहार”  जय सेवा जय जोहार” आज देश के समस्त जनजातीय आदिवासी समुदाय का लोकप्रिय अभिवादन बन चुका है । कोलारियन समूह ( प्रमुखतया संथाल,मुंडा,उरांव ) बहुल छेत्रों में “जोहार” का प्रचलन परंपरागत परंपरा से है । वहीं कोयतूरियन समूह (प्रमुखतया गोंड, परधान बैगा भारिया आदि) बहुल छेत्रों में “जय सेवा” का प्रचलन परंपरागत परंपरा से है साथ ही इन समूहों में हल्बा कंवर तथा गोंड राजपरिवारों में “जोहार” अभिवादन का प्रचलन है । जनजातीय आदिवासी समुदाय का बहुत बडा समूह “भीलियन समूह’( प् रमुखतया भील,भिलाला , बारेला, मीणा,मीना आदि) में मूलत: क्या अभिवादन है इसकी जानकारी नहीं परन्तु “ कणीं-कन्सरी (धरती और अन्न दायी)के साथ “ देवमोगरा माता” का नाम लिया जाता है । हिन्दुत्व प्रभाव के कारण हिन्दू अभिवादन प्रचलन में रहा है । देश में वर्तमान आदिवासी आन्दोलन जिसमें भौतिक आवश्यकताओं के साथ सामाजिक ,धार्मिक, सांस्क्रतिक पहचान को बनाये रखने के लिये राष्ट्रव्यापी समझ बनी है । इस समझ ने “भीलियन समूह “ में “जय सेवा जय जोहार” को स्वत: स्थापित कर लिया इसी तरह प्रत्येंक़ बिन्दु पर राष्ट्रीय समझ की आवश्यकता हैं । आदि