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tribal population in india


 है कि इनमें से कितने लोग सामाजिक उत्तरदायित्व का निर्वहन करते हैं नहीं करते । प्रत्येक आरक्षित वर्ग को संविधान में हिस्सेदारी उस वर्ग के प्रति उत्तरदायी होने की प्रेरणा देती है । उस वर्ग के सामाजिक धार्मिक सांस्कृतिक आर्थिक षैक्षणिक तथा राजनैतिक पहचान कायम रखते हुए उत्थान की जिम्मेदारी देती है । अर्थात संस्कृति संस्कारों को बचाकर रखने का संवैधानिक अधिकार प्रदान करता है । इसलिये शडयंत्र के कारण आज तक जनजाति की सूचि में षामिल नहीं हैं लेकिन स्वाभाव से जनजातीय संस्कारों में जीवन जीते हुए अपनी मूल पहचान को सुरक्षित रखे हुए हैं । एैसे जाति या समूह को नजदीक लाने तथा उन्हे जनजाति की सूचि में षामिल कराने का प्रयास किया जाये ताकि समाजबोध से भावात्मक एकता कायम हो सके । यह एकता आपकी राश्टीय ताकत होगी जो हर स्तर के संघर्श में प्रभावी भूमिका अदा करेगी ।
          एैसा प्रयास इसलिये आवष्यक है कि जनजातियों की मूल संस्कृति मूल संस्कार जो हमारी पहचान है श्रेणी विभाजन के कारण कमजोर हो रही है । जनजातीय संस्कारों वाला व्यक्ति या समाज श्रेणी विभाजन की संवैधानिक मजबूरी के कारण धीरे धीरे स्थापित श्रेणी के संस्कारों को ग्रहण करता हुआ राश्ट की आत्मा से विलग हो रहा है । जो समाज और राश्ट के लिये घातक है । आज देष की सामाजिक धार्मिक सांस्कृतिक आर्थिक षैक्षणिक तथा राजनैतिक व्यवस्था जिन व्यक्ति या समूह के स्थापित आदर्षो के माध्यम से संचालित है वे जनजातीय आदर्ष जनजातीय संस्कार नहीं है । अन्यथा देष की आज ये दुर्दषा नहीं होती । अन्याय अत्याचार भृश्टाचार बलात्कार देषद्रोह नैतिक पतन आदि वर्तमान व्यवस्था के परिणाम हैं । वर्तमान व्यवस्था के नीतियों संस्कारो तथा आदर्ष एवं नेतृत्व से इस देष का कतई भला नहीं हो सकता इसे जनजातियों की मूल संस्कृति संस्कारों मूल्यों एवं आदर्ष के माध्यम से ही खुसहाल बनाया जा सकता है । जनजाति वर्ग के बुद्धिजीवी चिंतकों विचारकों राजनेताओं से अपेक्षा है कि राश्टीय स्तर पर जनजातीय संस्कृति संस्कारों को स्थापित करने के लिये राश्टीय स्तर की सामाजिक राजनीतिक ताकत पैदा की जाय । अब लगता है कि जनजाति के राजनेता समाज सेवक सामाजिक राजनैतिक विशय पर जिला और प्रदेष की सीमा को तोडकर राजनैतिक सामाजिक सांस्कृतिक एकता कायम कर स्वतंत्र नेतृत्व उभारने का प्रयास कर रहे हैं । यह प्रयास समाज और राश्ट के लिये षुभ संकेत है । इसलिये वह दिन दूर नहीं जब इस देष को एैसी संस्कृति संस्कारों वाली व्यवस्था मिलेगी तथा जनजातीय संस्कारों वाले महानायकों का नेतृत्व प्राप्त होगा । भारत पुनः सोने की चिडिया होगा जय सेवा । जय जोहार ।।

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