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गोत्रज व्यवस्था के जनक विश्व गुरू पहांदी पारी कुपार लिंगो

गोत्रज व्यवस्था के जनक विश्व गुरू पहांदी पारी कुपार लिंगो गोत्र व्यवस्था की.स्थापना.करके विवेकशील जानवर को इंशान बनाया । प्रकृति की गोद से पैदा हुआ समस्त जीवों में विवेकशील प्राणी इंसान है । इंसान के इसी विवेकशीलता ने उसे समकालीन जीवों से श्रेश्ठ रखा है । प्रकृति ने इस महान जीव को जो विवेक रूपी विशेश अस्त्र दिया है कहीं अतिवादी ना हो जाये उसे अनुशाशित करने के लिये विश्व गुरू पहांदी पारी कुपार लिंगों को इंसानी रूप में प्रस्तुत किया ! गुरू लिंगो प्रथम ने इंसान को जानवर की श्रेणी से उपर लाने के लिये प्रकृति के सथावर जंगम के नियमों तथा उनके बीच आपसी समन्वय तथा विकास के रहस्यों का गूढ अध्ययन किया ! लिंगो के इस अध्ययन ने विश्व मानव को एक व्यवस्था दी जिसे गोत्र व्यवस्था कहा जाता है । इस व्यवस्था को देने के पीछे लिंगों का महान उदेश्य इंसान को चिरकाल तक जीवित रखना था । चूंकि व्यवस्था के बिना इंसान अन्य जानवरों की तरह आपसी संघर्श में नश्ट हो जातेे या शेश जीवन को नश्ट कर लेते । विश्व के सभी देशों में गोत्र व्यवस्था को अंगीकार किया गया । यथा मंडेला मिलर फिटर ओबामा जयसूर्या हुसेन गदाफी मिश्रा दुबे कुशवाहा मरावी मरकाम जोरवाल सोरेन गावस्कर मेश्राम यादव आदि । इस गोत्र व्यवस्था ने प्रकृति संतुलन के आधार को इंसान पर भी लागू किया । परिणामस्वरूप इंसान का इंसान के प्रति लगाव बढा अपनत्व की भावना विकसित हुई । इसी क्रम में लिंगो ने इंसान और अन्य जीवधारियों पेड पौधे जानवर पक्षियों में समन्वय सथापित करने तथा उनके प्रति रक्षा का भाव पैदा करने के लिये इंसान को गोत्रवार एक पेड एक जानवर तथा एक पक्षी तथा जलचर के प्रति सहोदर होने के भाव जागृत किया । अर्थात गोत्र व्यवस्था से इंसान को अतिवादी होने से बचाया प्रकृति के अन्य सथावर जंगम के प्रति अपनत्व के भाव भरे । इस अपनापन से किसी को नुकसान पहुंचाने की गुंजाइस नहीं रहती गौत्रज व्यवस्था को और मजबूत किया जय तो विश्व में मनुष्य के बीच आपस में हो रहे टकराव साम्प्रदायिक संघर्ष नस्ल एवम रंग भेद एजातीय संघर्ष समाप्त हो सकते हैं ! वर्तमान समय में गोत्रज व्यवस्था में आती हुई कमजोरी के कारन इन्सान में अपनत्व की भावना कम होती चली जा रहीं हैं ! परिणामस्वरूप इन्सान का शोषण इन्सान करने लगा ! गोत्रज व्यवस्था के महत्त्व की अनदेखी आज हत्या और बलात्कार के स्तर पर पहुच गया ! इतना ही नहीं ! इन्सान उस आरंभिक अवस्था में आ गया जब वह संस्कारित नहीं हुआ था जानवर की तरह जीवन जी रहा था ! बल्कि उससे भी नीचे गिरता जा रहा है ! जानवर तो कम से कम उम्र या समय देखकर व्यवहार करते हैं घ् परन्तु इन्सान पूरी तरह बेकाबू होता जा रहा है ! अर्थात गुरु लिंगो द्वारा स्थापित समाज व्यवस्था एगोत्र व्यवस्था के पूर्व का जानवर होता चला जा रहा है !दुनिया में इन बदलते हालातों पर काबू पाने के लिए अनेक देशों की सरकारें एन्यायविद एधर्मगुरु एतथा विद्वान अपने अपने तर्क और सुझावों को अमलीजामा पहनाने का कम कर रहे हैं लेकिन स्थिति सुधरने के बजाय बिगडती जा रही है ! ऐसी विषम परिस्थति में गुरु लिंगो के द्वारा विश्व को दी गई अनमोल सौगात श्श्गोत्रज व्यवस्थाश्श् के महान दर्शन के महत्त्व को पुनः समझने की आवश्यकता है ! इन्सान के विकाश के अन्य बिन्दुओं पर यह चर्चा नहीं की जा रही है इसमें केवल गोत्र विषयक चर्चा ही शामिल है गुरु लिंगो के द्वारा दी गई सामाजिक व्यवस्था गोत्र को समझने के लिए इन्सान के जानवर अवस्था से इन्सान होने तक तथा इन्सान से पुनः जानवर पृवर्ती में आने की बात को समझना होगा ! १. दो अलग अलग इंसानों के झुण्ड को अलग अलग समुदाय के रूप में पहचान दी गई ! दो समुदायों के संघर्ष ने प्रत्येक झुण्ड में सामुदायिक भावना को गहरा किया गुरु लिंगो ने इस महत्वपूर्ण सामुदायिक भाव को आधार मानकर अपना कार्य आगे बढाया ! २. गुरु लिंगो जिस समूह की इकाई थे उस समूह को सर्वप्रथम दो वंशों में विभाजित किया एक श्श्माँ का वंशश्श् दूसरा श्श्पिता का वंशश्श् कालांतर में यह पारी के रूप में स्थापित हुआ ! ३. गुरु लिंगो चूँकि पारी के स्थापना कर्ता थे इसलिए इन्हें पारी कुपार लिंगो कहा गया ! इन्सान विकास के कृम में आगे बढ़ रहा था । व्यवस्थित समुदाय अब जानवर से लिंगो के श्श्सामुदायिक भावनाश्श्का ज्ञान लिए सुरक्षित इन्सान होता जा रहा था स्वाभाविक था समुदाय की संख्या में बढ़ोत्तरी घ् ४. लिंगो द्वारा स्थापित पारी व्यवस्था ने अन्य समूहों को भी प्रभावित किया ! समुदाय की संख्या में बढ़ोत्तरी ने समुदाय एवम वंश की पहचान बनाये रखने ताकि सामुदायिक भावना मजबूत होती रहे ।समुदाय को नई पहचान दी गई ! जिसे गोत्र कहा गया ! 5. लिंगो की गोत्र व्यवस्था ने इन्सान को सामाजिक अवस्था तक ला दिया ! इंसानी समाज के बीच भावनाए सवेद्नाएं भाईचारा प्रेम का समाजीकरण हुआ ! ;6 . लिंगो की यह गोत्र व्यवस्था पहांदी पारी कुपार लिंगो के दर्शन को आगे बढ़ाने वाले अन्य लिंगो गुरुओं के माध्यम अगली पीढ़ी तक सुधारों के साथ अनवरत बढती गई जो अपने चरम काल तक चलकर मानवता का परिचायक बनी ! 7. गोत्रज व्यवस्था ने रक्त शुद्धता करते हुए रक्त की आयु में वृद्धी की जिससे इन्सान बलिष्ट और जीवन दीर्घायु हुआ ! दुनिया में गोत्र व्यवस्था फैलने के बाद उसे लम्बे समय तक कायम रखने वाला गोंडवाना भूभाग का समाज गोत्र व्यवस्था को बनाये रखकर लम्बे समय तक विकास के नए नए सोपान स्थापित करता रहा एवहीँ शेष दुनिया अपनी पहचान बनाये रखने के लिए गोत्र को धारण किये रहा लेकिन गोत्र व्यवस्था के नियमों को तोड़ता हुआ पुनः जानवर होने की ओर बढ़ता चला गया ! परिणाम स्वरूप ! ;१ . सामाजिक भावना समाप्त हुई इन्सान मशीन बनता चला गया एवंश बिखर गए एसमुदाय परिवार बिखरते गए अब इन्सान व्यक्तिगत जीवन की ओर बढ़ रहा है ! नाते रिश्ते की समझ ख़त्म हो रही है ! इन्सान पुनः जानवर हो रहा है ! २ .गोंडवाना भूभाग में गोत्र व्यवस्था को आर्यों की जाति व्यवस्था ने चोट पहुचाया ! परिणाम स्वरूप वंश जाति के रूप में बंट गए वंश भावना ने जाति भावना को मजबूत किया एजाति संघर्ष होने लगे ! आर्यों की जाति व्यवस्था को मनु ने भेदभाव परक बना दिया परिणामस्वरूप उपजातियों का जन्म हुआ ! ३ .उपजातीय भावना से जाति संघर्ष बढ़ा गोत्र बने रहे वंश गोत्र भावना समाप्त होती रही ! ४. आज भी गोत्र बने हुए है लेकिन गोत्र भावना तिरोहित है ! देश में विभिन्न जाति उपजाति वंश आज भी एक गोत्र लिए हुए हैं लेकिन गोत्र भावना समाप्त हो चुकी है ! एक संस्कृति एक संस्कार एक ही मान्यता है पर इन्सान एक नहीं है ! ५. दुनिया के साथ साथ हमारा देश गुरु लिंगो के गोत्र को धारण किये हुए है लेकिन गुरु लिंगो ने गोत्र को जिस मकसद से स्थापित किया था उस भावना को त्याग कर हमारे देश के लोग भी पशचिमी देशों की तरह गोत्र धारण किये हुए लेकिन रिश्ते नातों वंश भावना त्यागकर व्यक्तिवादी हो रहा है । मशीन हो रहा है ! व्यक्तिवादी अकेला होता है ! अकेले के बारे में सोचता है ! किसी अन्य के प्रति उसकी कोई भावना नहीं होती ! वह उसे किसी भी तरह का नुकसान पंहुचा सकता है उसे कोई चिंता नहीं ! जैसे जानवर को चिंता नहीं ।

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