Skip to main content

''क्रन्तिकारी मंशु ओझा के श्रदांजलि दिवस के अवसर पर विशेष श्रदांजलिसहित ''

''क्रन्तिकारी मंशु ओझा के श्रदांजलि दिवस के अवसर पर विशेष श्रदांजलिसहित ''
आज का दिन २ ८ अगस्त आदिवासी युवाओं के लिए विशेष महत्त्व का है ! घोडाडोंगरी जिला बैतूल मध्यप्रदेश का एक नवजवान मंशु ओझा जो १ ९ ४ २ में मात्र १ ८ वर्ष की उम्र में जेल पंहुचा दिया गया ! इसका दोष इतना था की वह अंग्रेजों के विरुद्ध अपने साथियों के साथ मिलकर आये दिन संघर्ष करता रहता था ! उसे अंग्रेजो की गुलामी बर्दास्त नहीं थी , जंगलों में अपने गाँव के नवजवानों को लेकर रातों रात रेल की पटरियां उखाड देना आये दिन की बात हो गयी थी ! जब मुखबिरों के माध्यम से उनके करतूतों की जानकारी शासन तक पहुची तब सभी नवजवान साथी जंगलों में छिप गए ! शासन के आय का साधन इमारती लकड़ी के कई डिपो रातो रात जला डाले ! ''बकरे की अम्मा कब तक खैर मनाती '' अंततः सारे साथी पकड़ लिए गए बैतूल जेल भर गया , ऐसी स्तिथि में मंशु ओझा को सश्रम कारावास के लिए नरर्सिंहपुर जेल भेज दिया गया ! आजादी के बाद उन्हें तत्कालीन सरकार ने उन्हें ताम्र पत्र देकर अपनी खानापूर्ति कर दिया ! उनका परिवार आज भी घोडाडोंगरी जिला बैतूल में अत्यंत दयनीय स्तिथि में जीवन जी रहा है ! किसी भी सरकार को इनकी सुध नहीं आई चुकी मंशु ओझा आदिवासी समाज के ऐसे कमजोर और पिछडी जाति का हिस्सा थे जिनका कभी भी किसी संसद विधान सभा ,जनपद , जिला पंचायत ,या सरपंची में प्रतिनिधित्व नहीं रहा ! जिसका कोई सुनने वाला नहीं था ! यह क्रन्तिकारी गुमनाम हो चूका था ! गोंडवाना आन्दोलन के मध्यम से मेरा , इस समाज से संपर्क करने का अवसर मिला ! मुझे ज्ञात था की किसी समाज के आत्मविश्वास को स्थापित करने के लिए उनके बीच से उनको प्रेरणा देने वाला कारक होना चाहिए ! गोंडवाना महासभा की अनुसंगी संगठन के रूप में ''गोंडवाना ओझा महासभा''की स्थापना श्री मोहन ओझा (परते ) द्वारा कराइ गयी ! संगठन में आज म ० प्र ० ,छ ० ग ० , उड़ीसा, महारास्ट्र आदि के समस्त ओझा जनजाति एक दुसरे से संपर्क में हैं उन्हें भी लगता है की भले ही हमारा समाज गरीब है ,लेकिन देश की आजादी में हमारा भी योगदान है इसलिए देश के हर लाभ हानि में हमारा भी हिस्सा है ! ''नवजवानों के लिए एक बात समझने समझाने की है कि जब मंशु ओझा १ ८ साल की उम्र में जेल चले गए ! मतलब आन्दोलन का जज्बा उनमे बचपन से रहा ! नवजवानी तो एक्शन की उम्र है ! कहा गया '' पूत के पांव पालने में ही दिख जाते है '' क्रन्तिकारी मंशु ओझा इसी के उदहारण हैं ( गुलजार सिंह मरकाम )

Comments

Popular posts from this blog

"मरकाम गोत्र के टोटम सम्बन्धी किवदन्ती"

मध्यप्रदेश के गोन्ड बहुल जिला और मध्य काल के गोन्डवाना राज अधिसत्ता ५२ गढ की राजधानी गढा मन्डला के गोन्ड समुदाय में अपने गोत्र के पेन(देव) सख्या और उस गोत्र को प्राप्त होने वाले टोटेम सम्बन्धी किवदन्तिया आज भी यदा कदा प्रचलित है । लगभग सभी प्रचलित प्रमुख गोत्रो की टोटेम से सम्बन्धित किवदन्ति आज भी बुजुर्गो से सुनी जा सकती है । ऐसे किवदन्तियो का सन्कलन और अध्ययन कर गोन्डवाना सन्सक्रति के गहरे रहस्य को जानने समझने मे जरूर सहायता मिल सकती है । अत् प्रस्तुत है मरकाम गोत्र से सम्बन्धित हमारे बुजुर्गो के माध्यम से सुनी कहानी । चिरान काल (पुरातन समय) की बात है हमारे प्रथम गुरू ने सभी सभी दानव,मानव समूहो को व्यवस्थित करने के लिये अपने तपोभूमि में आमंत्रित किया जिसमें सभी समूह आपस में एक दूसरे के प्रति कैसे प्रतिबद्धता रखे परस्पर सहयोग की भावना कैसे रहे , यह सोचकर पारी(पाडी) और सेरमी(सेडमी/ ्हेडमी) नात और जात या सगा और सोयरा के रूप मे समाज को व्यवस्थित करने के लिये आमन्त्रित किया ,दुनिया के अनेको जगहो से छोटे बडे देव, दानव ,मानव समूह गुरू के स्थान पर पहुचने लगे , कहानी मे यह भी सुनने को मिलत

गोंडी धर्म क्या है

                                          गोंडी धर्म क्या है   गोंडी धर्म क्या है ( यह दूसरे धर्मों से किन मायनों में जुदा है , इसका आदर्श और दर्शन क्या है ) अक्सर इस तरह के सवाल पूछे जाते हैं। कई सवाल सचमुच जिज्ञाशा का पुट लिए होते हैं और कई बार इसे शरारती अंदाज में भी पूछा जाता है, कि गोया तुम्हारा तो कोई धर्मग्रंथ ही नहीं है, इसे कैसे धर्म का नाम देते हो ? तो यह ध्यान आता है कि इसकी तुलना और कसौटी किन्हीं पोथी पर आधारित धर्मों के सदृष्य बिन्दुवार की जाए। सच कहा जाए तो गोंडी एक धर्म से अधिक आदिवासियों के जीने की पद्धति है जिसमें लोक व्यवहार के साथ पारलौकिक आध्यमिकता या आध्यात्म भी जुडा हुआ है। आत्म और परआत्मा या परम आत्म की आराधना लोक जीवन से इतर न होकर लोक और सामाजिक जीवन का ही एक भाग है। धर्म यहॉं अलग से विशेष आयोजित कर्मकांडीय गतिविधियों के उलट जीवन के हर क्षेत्र में सामान्य गतिविधियों में संलग्न रहता है। गोंडी धर्म

“जय सेवा जय जोहार”

“जय सेवा जय जोहार”  जय सेवा जय जोहार” आज देश के समस्त जनजातीय आदिवासी समुदाय का लोकप्रिय अभिवादन बन चुका है । कोलारियन समूह ( प्रमुखतया संथाल,मुंडा,उरांव ) बहुल छेत्रों में “जोहार” का प्रचलन परंपरागत परंपरा से है । वहीं कोयतूरियन समूह (प्रमुखतया गोंड, परधान बैगा भारिया आदि) बहुल छेत्रों में “जय सेवा” का प्रचलन परंपरागत परंपरा से है साथ ही इन समूहों में हल्बा कंवर तथा गोंड राजपरिवारों में “जोहार” अभिवादन का प्रचलन है । जनजातीय आदिवासी समुदाय का बहुत बडा समूह “भीलियन समूह’( प् रमुखतया भील,भिलाला , बारेला, मीणा,मीना आदि) में मूलत: क्या अभिवादन है इसकी जानकारी नहीं परन्तु “ कणीं-कन्सरी (धरती और अन्न दायी)के साथ “ देवमोगरा माता” का नाम लिया जाता है । हिन्दुत्व प्रभाव के कारण हिन्दू अभिवादन प्रचलन में रहा है । देश में वर्तमान आदिवासी आन्दोलन जिसमें भौतिक आवश्यकताओं के साथ सामाजिक ,धार्मिक, सांस्क्रतिक पहचान को बनाये रखने के लिये राष्ट्रव्यापी समझ बनी है । इस समझ ने “भीलियन समूह “ में “जय सेवा जय जोहार” को स्वत: स्थापित कर लिया इसी तरह प्रत्येंक़ बिन्दु पर राष्ट्रीय समझ की आवश्यकता हैं । आदि