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गोंडियन समुदाय के गोत्र तथा देव व्यवस्था

हमारे एक मित्र तिरूमाल कुरेटी साहब ने गोंडियन समुदाय के गोत्र तथा देव व्यवस्था संबंधाी जानकारी चाही है । हमारी परंपरागत गोंडियन व्यवस्था का आरंभ प्रकृति के ऋण और धन सूत्र के आधार पर स्थापित की गई है । समुदाय की पारंपरिक व्यवस्था में माता और पिता के पक्ष को आधार माना गया है । इसी को व्यवस्थित करते हुए हमारे महान तत्ववेत्ता धर्मगुरू पहांदी पारी कुपार लिंगों ने  आपसी संबंध कैसे हों इसके लिये पारी व्यवस्था दी है । जिसे हम समान्यतया पारी सेरमी के रूप् में देखते हैं ।  चूंकि मानव की आरंभिक अवस्था के पषुवत जीवन से आसपसी समूह संघर्श के हिंसक परिणाम को प्रथम लिंगों ने गंभीरता से लिया । तब एैसे समूहों के बीच आपसी सामंजस्य स्थापित करने के लिये तथा प्रकृति के बीच जीव जगत का संतुलन बनाये रखने के लिये प्रत्येक समूह में गोत्र व्यवस्था को लागू किया । यह गोत्र व्यवस्था आज विष्व के समस्त देषों में आज भी संचालित है । गोत्र व्यवस्था ने सम गोत्रधारियों के बीच आपसी भाईचारे को जन्म दिया । विभिन्न समूहों में समगोंत्रधारी आपस में समा संबंधी के रूप् में स्थापित हुए । गोत्र व्यवस्था ने समूहों के बीच होने वाले आपसी संघर्श को कम किया । परिणामस्वरूप मानव जीवन सुरक्षित होता गया जनसंख्या में लगातार बढोत्तरी होने लगी । इस बढोत्तरी को अनुषाशित करने के लिये  इन गोत्र धारियों के बीच देव व्यवस्था को लाया गया परिणाम स्वरूप विभिन्न गोत्रधारियों को 1 से लेकर 12 देवों में व्यवस्थित किया गया विशम देव समूहों में वैवाहिक संबंधों को मान्यता देकर रक्त षुद्धता को मजबूती दी गई । विष्व समुदाय ने आज भी किसी ना किसी रूप् में गोत्र व्यवस्था को अंगीकार करके रखा है । लगातार संघर्श और परिवर्तन के दौर में भी गोत्र व्यवस्था बरकरार रहना गोंडियन व्यवस्था की एैतिहासिकता का परिचय देता है । पाष्चात्य देषों में मिलर फिटर गोल्डस्मिथ ब्लेकस्मिथ टेलर आदि गोत्र समूह आज भी पाये जाते है । हमारे देष में विभिन्न आक्रमणकारियों के आगमन तथा परिणाम स्वरूप समूह का जाति रूप में विभाजन ने गोत्रव्यवस्था को कमजोर करके जाति के रूप में विकसित किया गोत्र अब समूह नहीें जाति के नाम पर जाना जाने लगा । यही कारण है कि मूलनिवासी समुदाय में अलग अलग जातियां होने के बावजूद गोत्रों में समानता पाई जाती है । कालांतर में सांस्कृतिक आक्रमणों के कारण यह गोत्र समूह वंष और जाति में विभक्त होकर अपने आप को सुरक्षित करने में लग गया । आज भी लगातार सांस्कृतिक आक्रमण के कारण जिस इलाके में जिस व्यवस्था को बचाया जा सकता है बचाने का लगातार प्रयास किया जा रहा है ।
             यही कारण है कि गोंडियन समुदाय के अंतर्गत आने वाली विभिन्न जाति उपजातियों में आरंभिक गोत्र व्यवस्था से लेकर समय समय पर विशम परिस्थितियों में हुए परिवर्तनों की झलक दिखाई देती है । यथा देष के कुछ एैसे क्षेत्र हैं जिनमें गढ के आधार पर रिस्ते नातों का चलन है । तब भी गोत्र सुरक्षित है कुछ इलाके देव संख्या की व्यवस्था के आधार पर अपने आप को व्यवस्थित किये हुए हैं पुरातन पारी व्यवस्था भी काफी बडे भूभाग में संबंधों को बनाये रखा है । फिर भी लगातार परसंस्कृति का हमला जारी है । कुछ इलाकों में विकृति आने लगी है जैसे जाति के अपने समान गोत्र को छोडकर किसी भी अन्य गोत्र से वैवाहिक संबंध बनाये जा रहे हैं जो समाज के लिये घातक हैं । इस पर बुद्धिजीवियों को विचार करना होगा । मूल व्यवस्था को सुरक्षित रखने वाले इस विषिश्ट गोंडियन  समुदाय में जब इतनी विकृति आ चुकी है तब हजारों साल से गोडियन व्यवस्था से दूर हो चुके अन्य मूलनिवासी समुदाय जिसे हम संविधान की भाशा में अनु0जाति जनजाति अन्य पिछडीजाति आदि के नाम से जानते है । उन्हें गोत्र तथा उसके महत्व को कैसे समझाया जायेगा । आज नहीं कल समझाना तो पडेगा ही क्योंकि मानवता को बचाना है । विकृति के कारण आज मनुश्य पषु की भांति व्यवहार करने लगा है । 

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