Skip to main content

हमारी सांस्कृतिक मान्यताएं l

"एक मूर्ख कलेक्टर की सोच " 
हमारी सांस्कृतिक मान्यताएं ,जिसमे गांव के लोग अपने ग्राम का बंदोबस्त करते है जिसमें अन्य बाहरी गांव के लोगों का उस समय आना वर्जित है ,इसे कलेक्टर छिंदवाड़ा द्वारा अंधविस्वास कहा जा रहा है ! उसे क्या पता गांव स्थापना का आधार क्या है ,गांव में क्या संस्कार होते हैं, गांव कैसे बसाये जाते हैं ! जिन गावं ने शहर निर्माण की नींव रखी है उनके संस्कार और वह अन्धविस्वासी ! शहरों के पढ़े लिखे जो पत्थर में पानी चढ़ा रहेस्वर्ग नरक पर विश्वास करते हैं वे ज्ञानी !
1.Harilal Watti प्रकृति के रहश्य को जानने वाला यह कोयतुड़ियन समाज अनावश्यक दिखावा या अव्यहवारिक कोई भी ऐसा कार्य नहीं करते । बल्कि वही कार्य करते हैं जो व्याहवारिक और विज्ञान सम्मत है। उदा. के तौर पर हमारे धर्म गुरु पहांदी पाड़ी कुपार लिंगो बाबा ने चार प्रकार के खून वर्ग समूह के आधार पर अलग अलग गोत्र व्यवस्था स्थापित कर वैवाहिक संबंधों की विज्ञान सम्मत धारणा ( जिसको धारण किया जा सके ) प्रस्तुत की तथा प्रत्येक गोत्र के साथ एक वनस्पति एक जीव को जोड़ा ताकि मनुष्य उस जीव एवं वनस्पति का सम्मान एवं सुरक्षा करे एवं दूसरा व्यक्ति उसे आवश्यकता पड़ने पर उसे अपने जीवन निर्वाह में उपयोग कर सके इसी प्रकार प्रत्येक गोत्र के साथ अन्य जीव एवं वनस्पति को जोड़ा ताकि एक मनुष्य उसको ग्रहण करेगा तो दूसरा उसकी सुरक्षा व् सम्मान करेगा इस प्रकार इस व्यवस्था में प्रकृति के संतुलन का सिद्धांत समाया हुआ है जैसे जीव विज्ञान में भोजन चक्र के विषय में विस्तृत जानकारी दी गई है की प्रकृति में सभी जीव जंतु किस प्रकार एक दुसरे पर निर्भर हैं । जो आज का विज्ञान पर्यावरण संतुलन की बात आज कर रहा है । हमारे धर्म गुरु पहांदी पाड़ी कुपार लिंगो हजारों वर्ष पूर्व इस प्रकृति और विज्ञानं के रहस्य को जानते थे। कोयतुड़ियन धर्म संस्कृति में प्रथ्वी के सभी प्राणी जगत का कल्याण एवं संचालन का दर्शन समाया हुआ है। उदा. न.-2 कोयतुड़ियन समाज में मडमिंग (विवाह ) मड़-सम्बन्ध,मिंग- मधुर, मधुर सम्बन्ध का जो रश्म होता है उसमे प्रकृति को साक्षी मानते हुए उसका अनुसरण एवं सम्मान करते हुए घड़ी के विपरीत दिशा में यानी सीधे व् सही दिशा में फेरे लगाए जाते हैं।क्योंकि प्रथ्वी की घूर्णन गति यही है । ब्रह्ममांड में जितने गृह सूर्य का चक्कर लगा रहे हैं वे भी इसी दिशा में घूम रहे हैं । साफ जाहिर है की हम प्रकृति के विपरीत कोई कार्य करेंगे विनाश निश्चित है। उदा.-3 ट्रेन में उतरते समय यदि हम ट्रेन के बड़ने की दिशा में उतरेंगे तो सुरक्षित रहेंगे यदि ट्रेन की गति के विपरीत दिशा में उतरेंगे तो परिणाम स्वयं समझ सकते हैं क्या होगा उदा.4 प्रकृति में किसी भी प्रकार की लता ( बेल या बेला ) उसे देख सकते हैं वह भी घड़ी की विपरीत दिशा से घूमते हुए ऊपर चड़ता है। उसे किसी ने नहीं सिखाया ऐसे सैकड़ों उदाहरण मौजूद हैं। छिंदवाड़ा कलेक्टर ने जो कोयतुड़ियन समाज की धर्म संस्कृति को अंधविश्वास बताया। उसे यह नहीं मालुम की विश्वविख्यात लेखक एवं इतिहासकारों ने कोयतुड़ियन धर्म संस्कृति का गहराई से अध्ययन करने के बाद कोयतुड़ियन धर्म संस्कृति को विश्व संस्कृति की जननी कहा है। कुछ लोग रट्टा मार मारके भी कलेक्टर हो जातें हैं । यदि ऐसे नहीं है तो आज जितने बड़े बड़े भ्रस्ताचार के मामले है आई. ऐ.एस. एवं नेताओं के नाम है जिनको जनता समझदार एवं जागरूक समझती है क्या ये सभी समझदार होते हैं जो देश चलाने के नाम पर जनता को बेवकूफ बना रहे हैं।
2.Narayan Gajoriya गाँव बाँधना , खैर बिदरी . सँजोरी बिदरी . यह सब अति प्राचीन काल से ग्राम स्थापना के साथ आज भी प्रचलन मेँ है । इसमेँ गाँव की पूरी सीमा को पूजा पद्धति की प्रकिया के तहत घेरा जाता है यानि पुजारी अपने सहायकोँ के साथ पूरी सीमा का चक्कर लगाकर सीमा को सुरक्षा कवच से बाँधा जाता है । इस अवसर पर प्रत्येक घर से अनाज सँचय की रश्म भी अदा की जाती है बरसा कलीन सँकट और आपदा मेँ पीडित के सहयोग का प्रतीक है । देश के भँडार ग्रह उसी से प्रेरित है । इह अवसर पर पुजा का विधान है और केवल गाँव से बाहर के व्यक्तियोँ को ही ग्राम मेँ प्रवेश करने से रोका जाता है बल्कि गाँव के भीतर के लोगोँ के भी बाहर निकलने या बाहर जाने पर रोक रहती है वो इसलिये कि कोई सुरक्षा उपयोँ से बँचित न रहे तथा बाहरी बिषाणुओँ का ग्राम मेँ न हो सके । पूजा के मार्ग मेँ गुनिया बैगा पँडा या पुजारी के सामने आ जाना घातक हो सकता है इसलिए एहतिहात के तौर पर आवाजाही बँद की जाती है । ताकि किसी को किसी प्रकार का नुकसान न पहुँचे । ऐ अफसर महूर्त देखकर पदभार ग्रहण करते है वास्तुशास्त्र पढ़कर ग्रह प्रवेश करते है पत्थरोँ पर पानी चढ़ाते हैँ फिर भी स्वयँ को अँध विश्वासी नहीँ माने सिर्फ आदिवासी सँस्कारगत परम्पराओँ मेँ ही इन्हेँ अन्धविश्वास दिखता है ।

Comments

Popular posts from this blog

"मरकाम गोत्र के टोटम सम्बन्धी किवदन्ती"

मध्यप्रदेश के गोन्ड बहुल जिला और मध्य काल के गोन्डवाना राज अधिसत्ता ५२ गढ की राजधानी गढा मन्डला के गोन्ड समुदाय में अपने गोत्र के पेन(देव) सख्या और उस गोत्र को प्राप्त होने वाले टोटेम सम्बन्धी किवदन्तिया आज भी यदा कदा प्रचलित है । लगभग सभी प्रचलित प्रमुख गोत्रो की टोटेम से सम्बन्धित किवदन्ति आज भी बुजुर्गो से सुनी जा सकती है । ऐसे किवदन्तियो का सन्कलन और अध्ययन कर गोन्डवाना सन्सक्रति के गहरे रहस्य को जानने समझने मे जरूर सहायता मिल सकती है । अत् प्रस्तुत है मरकाम गोत्र से सम्बन्धित हमारे बुजुर्गो के माध्यम से सुनी कहानी । चिरान काल (पुरातन समय) की बात है हमारे प्रथम गुरू ने सभी सभी दानव,मानव समूहो को व्यवस्थित करने के लिये अपने तपोभूमि में आमंत्रित किया जिसमें सभी समूह आपस में एक दूसरे के प्रति कैसे प्रतिबद्धता रखे परस्पर सहयोग की भावना कैसे रहे , यह सोचकर पारी(पाडी) और सेरमी(सेडमी/ ्हेडमी) नात और जात या सगा और सोयरा के रूप मे समाज को व्यवस्थित करने के लिये आमन्त्रित किया ,दुनिया के अनेको जगहो से छोटे बडे देव, दानव ,मानव समूह गुरू के स्थान पर पहुचने लगे , कहानी मे यह भी सुनने को मिलत

गोंडी धर्म क्या है

                                          गोंडी धर्म क्या है   गोंडी धर्म क्या है ( यह दूसरे धर्मों से किन मायनों में जुदा है , इसका आदर्श और दर्शन क्या है ) अक्सर इस तरह के सवाल पूछे जाते हैं। कई सवाल सचमुच जिज्ञाशा का पुट लिए होते हैं और कई बार इसे शरारती अंदाज में भी पूछा जाता है, कि गोया तुम्हारा तो कोई धर्मग्रंथ ही नहीं है, इसे कैसे धर्म का नाम देते हो ? तो यह ध्यान आता है कि इसकी तुलना और कसौटी किन्हीं पोथी पर आधारित धर्मों के सदृष्य बिन्दुवार की जाए। सच कहा जाए तो गोंडी एक धर्म से अधिक आदिवासियों के जीने की पद्धति है जिसमें लोक व्यवहार के साथ पारलौकिक आध्यमिकता या आध्यात्म भी जुडा हुआ है। आत्म और परआत्मा या परम आत्म की आराधना लोक जीवन से इतर न होकर लोक और सामाजिक जीवन का ही एक भाग है। धर्म यहॉं अलग से विशेष आयोजित कर्मकांडीय गतिविधियों के उलट जीवन के हर क्षेत्र में सामान्य गतिविधियों में संलग्न रहता है। गोंडी धर्म

“जय सेवा जय जोहार”

“जय सेवा जय जोहार”  जय सेवा जय जोहार” आज देश के समस्त जनजातीय आदिवासी समुदाय का लोकप्रिय अभिवादन बन चुका है । कोलारियन समूह ( प्रमुखतया संथाल,मुंडा,उरांव ) बहुल छेत्रों में “जोहार” का प्रचलन परंपरागत परंपरा से है । वहीं कोयतूरियन समूह (प्रमुखतया गोंड, परधान बैगा भारिया आदि) बहुल छेत्रों में “जय सेवा” का प्रचलन परंपरागत परंपरा से है साथ ही इन समूहों में हल्बा कंवर तथा गोंड राजपरिवारों में “जोहार” अभिवादन का प्रचलन है । जनजातीय आदिवासी समुदाय का बहुत बडा समूह “भीलियन समूह’( प् रमुखतया भील,भिलाला , बारेला, मीणा,मीना आदि) में मूलत: क्या अभिवादन है इसकी जानकारी नहीं परन्तु “ कणीं-कन्सरी (धरती और अन्न दायी)के साथ “ देवमोगरा माता” का नाम लिया जाता है । हिन्दुत्व प्रभाव के कारण हिन्दू अभिवादन प्रचलन में रहा है । देश में वर्तमान आदिवासी आन्दोलन जिसमें भौतिक आवश्यकताओं के साथ सामाजिक ,धार्मिक, सांस्क्रतिक पहचान को बनाये रखने के लिये राष्ट्रव्यापी समझ बनी है । इस समझ ने “भीलियन समूह “ में “जय सेवा जय जोहार” को स्वत: स्थापित कर लिया इसी तरह प्रत्येंक़ बिन्दु पर राष्ट्रीय समझ की आवश्यकता हैं । आदि