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"शोसल मीडिया और आदिवासी"

"शोसल मीडिया और आदिवासी" 
जो समुदाय अखबारों से दूर रहा , रेडियो टीवी तक उसकी उसकी पहुच से कोसों दूर बने रहे ! तब वह अपनी पीड़ा कैसे ,कहा व्यक्त करता ? उसे भी तो सुनाना था अपने जन्गल की कहानी, उसे अपने गौरवशाली अतीत, अपने पुरखो की वीरता का बयान भी तो करना था ! नहीं कर पाया, उसकी जुबानी इतिहास अलिखित तथा परम्परागत, अनवरत चल रही जमीनी, व्यवहारिक क्रियाकलापो को कौन लिखता ? औरों तक कौन पहुंचाता ? औरों ने इनके बारे में लिखा भी , अन्य माध्यमों से इसे पहुंचाने का प्रयास भी किया परन्तु उसके प्रस्तुत करने के ढन्ग ने , परोसने के तरीके ने ! आदिवासी के गौरवपूर्ण इतिहास, परम्परा, आलिखित साहित्य को पिछडापन का पर्याय बना दिया । नैसर्गिक आदिवासी जीवन पद्धति जो देश की मुख्यधारा बनकर राष्ट्र निर्माण के लिये देशभक्तो और श्रमवीरो का उत्पादन करती , इसकी सही प्रस्तुति / सम्प्रेषण के अभाव से देश वन्चित हो गया। आज जिसे राष्ट्र की मुख्यधारा का नाम दिया जाता है यह जबरदस्ती के प्रस्तुति / सम्प्रेषण का परिणाम ही तो है। इसी जबरदस्ती ने दुनिया में हमारे राष्ट्र की साख को हर क्षेत्र में गिराने का काम किया है । आदिवासी समुदाय के लिए वर्तमान शोसल मीडिया जो किसी की अभिव्यक्ति या विचारो पर ताला नही लगाती ? जो चीज जैसी है उसे हूबहू प्रस्तुत करने का अवसर दे रही है । ऐसे मौके पर आदिवासी अपने मौलिक विचारो, समाज के इतिहास और सन्सक्रति का सम्प्रेषण करने मे अपने आप को सहज और निर्भीक पाता है । यही करण है कि शोसल मीडिया के इस दौर में आज वह अपने आप को अनिवार्य रूप से जोडकर जितनी जल्दी हो सके ज्ञान बटोरते हुए समुदाय और राष्ट को अवगत कराना चाहता है । ताकि वह शोसल मीडिया के माध्यम से ही सही आदिवासी समुदाय के सपनो का देश बनाना चाहता है । वर्तमान व्यवस्था जो उसके समुदाय के प्रतिकूल है, उसे अपने अनुकूल करने का प्रयास कर रहा है । " धन्यवाद शोसल मीडिया"

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"मरकाम गोत्र के टोटम सम्बन्धी किवदन्ती"

मध्यप्रदेश के गोन्ड बहुल जिला और मध्य काल के गोन्डवाना राज अधिसत्ता ५२ गढ की राजधानी गढा मन्डला के गोन्ड समुदाय में अपने गोत्र के पेन(देव) सख्या और उस गोत्र को प्राप्त होने वाले टोटेम सम्बन्धी किवदन्तिया आज भी यदा कदा प्रचलित है । लगभग सभी प्रचलित प्रमुख गोत्रो की टोटेम से सम्बन्धित किवदन्ति आज भी बुजुर्गो से सुनी जा सकती है । ऐसे किवदन्तियो का सन्कलन और अध्ययन कर गोन्डवाना सन्सक्रति के गहरे रहस्य को जानने समझने मे जरूर सहायता मिल सकती है । अत् प्रस्तुत है मरकाम गोत्र से सम्बन्धित हमारे बुजुर्गो के माध्यम से सुनी कहानी । चिरान काल (पुरातन समय) की बात है हमारे प्रथम गुरू ने सभी सभी दानव,मानव समूहो को व्यवस्थित करने के लिये अपने तपोभूमि में आमंत्रित किया जिसमें सभी समूह आपस में एक दूसरे के प्रति कैसे प्रतिबद्धता रखे परस्पर सहयोग की भावना कैसे रहे , यह सोचकर पारी(पाडी) और सेरमी(सेडमी/ ्हेडमी) नात और जात या सगा और सोयरा के रूप मे समाज को व्यवस्थित करने के लिये आमन्त्रित किया ,दुनिया के अनेको जगहो से छोटे बडे देव, दानव ,मानव समूह गुरू के स्थान पर पहुचने लगे , कहानी मे यह भी सुनने को मिलत

गोंडी धर्म क्या है

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“जय सेवा जय जोहार”

“जय सेवा जय जोहार”  जय सेवा जय जोहार” आज देश के समस्त जनजातीय आदिवासी समुदाय का लोकप्रिय अभिवादन बन चुका है । कोलारियन समूह ( प्रमुखतया संथाल,मुंडा,उरांव ) बहुल छेत्रों में “जोहार” का प्रचलन परंपरागत परंपरा से है । वहीं कोयतूरियन समूह (प्रमुखतया गोंड, परधान बैगा भारिया आदि) बहुल छेत्रों में “जय सेवा” का प्रचलन परंपरागत परंपरा से है साथ ही इन समूहों में हल्बा कंवर तथा गोंड राजपरिवारों में “जोहार” अभिवादन का प्रचलन है । जनजातीय आदिवासी समुदाय का बहुत बडा समूह “भीलियन समूह’( प् रमुखतया भील,भिलाला , बारेला, मीणा,मीना आदि) में मूलत: क्या अभिवादन है इसकी जानकारी नहीं परन्तु “ कणीं-कन्सरी (धरती और अन्न दायी)के साथ “ देवमोगरा माता” का नाम लिया जाता है । हिन्दुत्व प्रभाव के कारण हिन्दू अभिवादन प्रचलन में रहा है । देश में वर्तमान आदिवासी आन्दोलन जिसमें भौतिक आवश्यकताओं के साथ सामाजिक ,धार्मिक, सांस्क्रतिक पहचान को बनाये रखने के लिये राष्ट्रव्यापी समझ बनी है । इस समझ ने “भीलियन समूह “ में “जय सेवा जय जोहार” को स्वत: स्थापित कर लिया इसी तरह प्रत्येंक़ बिन्दु पर राष्ट्रीय समझ की आवश्यकता हैं । आदि