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सामूदायिक समस्या के लिये सामूहिक जिम्मेदारी निभाना है !("अनुसूचित वर्गों के प्रमोशन में प्रतिनिधित्व)

"अनुसूचित वर्गों के प्रमोशन में प्रतिनिधित्व (आरक्षण) हटाना, पूर्णतः आरक्षण को हटाने का रिहर्सल है ।"
अनुसूचित वर्गों के प्रमोशन में (प्रतिनिधित्व) आरक्षण हटाना, आरक्षण (प्रतिनिधित्व) को पूर्णतः हटाने का रिहर्सल है । पदों में प्रतिनिधित्व के संवैधानिक नाम को आरक्षण का नाम देकर देश के जनमानस में इन वगौं के विरूद्ध आक्रोस पैदा करना चाहती है वर्तमान केंद्र और राज्य की सरकार तकि आरक्षण को अप्राशंगिक बनाकर पूर्णतः समाप्त करने का रास्ता बनाया जा सके । "जब तक अनुपातिक आधार पर प्रतिनिधित्व नहीं मिलेगा, आरक्षण जारी रहेगा यही हमारा नारा है ।" राजनीति में भी अनुपातिक प्रतिनिधित्व है इसका कोटा पद खाली होने के छः माह के भीतर भरने की अनिवार्यता क्यों है ? इसी तरह शासकीय सेवा का प्रतिनिधित्व को किसी भी कीमत में छः माह के भीतर भरे जाने के लिये कानून बनाया जाये यह भी हमारी मांग हो ।
अतः प्रदेश के समस्त अनुसूचित वर्ग के सामाजिक, सांस्कृतिक, कर्मचारी आदि के संगठन अपनी संस्था पहचान के झण्डे बेनर आदि लेकर आयें ,ताकि समस्त संगठनों की संयुक्त शक्ति का सामूहिक सहभागिता और प्रदर्शन हो सके । कारण कि यह जातीय, सामुदायिक और वर्गीय समस्या है इसलिये इन सबका प्रतिनिधित्व अनिवार्य है ।


सामूदायिक समस्या के लिये सामूहिक जिम्मेदारी निभाना है !

"कुछ प्रतिशत जागरूक अनुसूचित वर्ग के कर्मचारियों के माध्यम से मनुवाद के विरूद्ध आन्दोलन चलाकर शेष लोगों में तथा समाज में जनचेतना पैदा करने वाले मूलनिवासी समाज के प्रमोशन पर हमला छोटी बात नहीं यह हमारे ब्रेनबैंक पर हमला है । कुछ नौकरियां पाकर नौकरी पेशा व्यक्ति अपने बच्चे एवं परिवार को मार्गदर्शन कर आगे बढाने का प्रयास कर रहे हैं उसे रोकने का शडयंत्र । आज समाज ने जो कुछ भी पाया है चपरासी बाबू अधिकारी कर्मचारी बनकर पाया है, अन्यथा विकास के नाम पर समाज को धन धरती इज्जत लुटाना पड रहा है । अधिकारी कर्मचारी तो कुछ हद तक समाज में अपना योगदान लुके छिपे दे देता है, लेकिन मनुवादी राजनीतिक दलों से चुने हुए सांसद, विधायक तथा अन्य जनप्रतिनिधि आज भी आरक्षण के पक्ष की बात करते हैं लेकिन अपनी पार्टी के आकाओं के इशारे के बिना आगे रिस्क उठाने को तैयार नहीं, इसलिये इन गुलामों से आरक्षण की लडाई जीतना संभव नहीं ! अब आन्दोलन में समाज का नौजवान, मजदूर, किसान और चपरासी से लेकर बडे पद पर बैठा समाज ही, आरक्षण की लडाई लड सकता है । सा

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