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" गोंडवाना आन्दोलन को धोखे में मत रखो" "अनापेक्षित विवाद संभव है ।"

" गोंडवाना आन्दोलन को धोखे में मत रखो" "अनापेक्षित विवाद संभव है ।"
निश्चित ही अनापेक्षित विवाद हो रहा है । जो जितने स्तर पर अपनी सोच रखता है वह सब सामने आ गये । मैं जानता हूं बुद्धिमान आदमी "लडैयों में बारूद नहीं खेना चाहता उसे शेर के लिये सुरक्षित रखता है" ।
अब एक प्रश्न के साथ आगे बढते हैं ।
पूर्व की बातें नहीं दुहराई जायेंगी यथा धर्माचार्य वरकडे दादा । ना ही डा0 मरकाम देवहारगढ शक्तिपीठ के संचालक ।
1. अखिल भारतीय गोंडवाना गोंड महासभ छ0ग0 का अब तक विश्वास अर्जित क्यों नहीं कर पाये ।
2. आदिवासी सत्ता मासिक पत्रिका के संपादक की विद्धवता का उपयेग क्यें नहीं कर पाये उल्टा उन्हें कमजोर करने के लिये मंचों में उसका विरोध कर गोंडवाना सत्ता नामक पत्रिका को चलाने का प्रयास किया जा रहा है । किसकी सह पर ।
3. कंगला माझाी सरकार और उसकी संरक्षक तिरूमाय फुलवा देवी का विश्वास अर्जित करने में क्यों असफल रहे ।
4. गुरू बाबा भगत सिदार और गुरू माता निवासी तिवरता का विश्वास क्यों खो दिये
ये सभी बातें किसके लिये हैं अपने आप समझ लेना है । नहीं समझ सके तो गोंडवाना आन्दोलन के लिये केवल अनाडी से कमतर नहीं समझे जाओगे । आन्दोलन के इतिहास का अध्ययन करने के बाद अपनी टिप्पडी लिखें तो बेहतर होगा । लोग मुझे कहते हैं सामने से क्यों नहीं बोलता तो एैसे लोगों को कहना चाहता हूं कि हीरासिंह को केवल दो ही व्यक्ति आमने सामने बोल सके हैं या बोल सकते हैं या तो शीतल मरकाम जी या गुलजार सिंह मरकाम और किसी की हिम्मत नहीं । मानेवाडा रोड के गोंडवाना विकास मंडल के दो राष्टीय अधिवेशन और उसमें उपस्थित पदाधिकारी इसके गवाही के लिये काफी हैं जिसमें दादा कंगाली जी अब नहीं रहे ।
(नोट:- ये सब बातें इसलिये बताने के हैं ताकि आन्दोलन के लिये क्या किया जा सकता है । लक्ष्य कैसे हासिल किया जा सकता है । अन्यथा गोंडवाना विषयक शोध केवल एकपक्ष्ीय और चाटुकारिता पूर्ण लेखन का शिकार ना हो जाये ।)

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