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जनजातियों को स्वशासन के लिये स्वयं से व्यवहारिक प्रदर्शन करना होगा”

“जनजातियों को स्वशासन के लिये स्वयं से व्यवहारिक प्रदर्शन करना हो”
५ वीं अनुसूचि के विधिवत क्रियान्वय हेतु अनुसूूचित घोषित विकास खण्डों ,जिलों में ग्राम स्तर ( परंपरागत रूढी पंचायत समिति), विकासखण्ड स्वायत्त सलाहकार समिति( ग्राम स्तर के प्रमुखों द्वारा मनोनीत)एवं जिला स्वायत्त सलाहकार समितियों (विकासखंड स्तर के प्रमुखों द्वारा मनोनीत)का विधिवत गठन किया जाय जिसकी सूचना जिला कलेक्टर के माध्यम से राज्य जनजाति सलाहकार समिति और राज्यपाल को दी जाये ।
ध्यान रहे “पेसा कानून “ ने ७३ वां संविधान संशोधन को अंगीकार करके ५वीं अनुसूचि के महत्वपूर्ण अधिकारों पर डाका डाला है । अर्थात  त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था ने आदिवासियों की राज्यपाल से सीधे सम्पर्क,संवाद और सरोकार को प्रतिबंधित  कर पंचायती राज कानून  व्यवस्था का गुलाम बना दिया है । यहीं नहीं अधिसूचित छेत्रों में नगरीय निकायों की प्रशासनिक  व्यवस्था का तिहरा दबाव सहन करने को मजबूर कर दिया । आदिवासी स्वायत्तता को समाप्तप्राय कर दिया । इसलिये पांचवीं अनुसूचि के प्रावधानों का व्यवहारिक प्रदर्शन स्वयं समुदाय की जिम्मेदारी है । जो  ग्राम+विकासखंड+जिला+राज्य सलाहकार समिति+ राज्यपाल के संरक्छण में आदिवासियों को स्वशासन देता है , का व़्यवहारिक प्रदर्शन करना होगा ।-gsmarkam

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