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"सम्मान खोजता आदिवासी"

(1) "सम्मान खोजता आदिवासी" 
सैकडों दसकों ,शताब्दियों से अपना सम्मान खोता जा रहा समुदाय जिसे गैरों ने हमेशा अपने से कमतर माना है और लगातार यह मानसिकता बनी हुई है । आदिवासी समुदाय ने जैसे जैसे अपने स्वाभिमान सम्मान पैदा करने वाले सामाजिक धार्मिक राजनैतिक सांस्कृतिक एैतिहासिक तत्वों को समझने का प्रयास किया है तब सम्मान हासिल करने की यह भूख बढती जा रही है जो समुदाय के लिये शुभ संकेत है । लोग मुझे जाने लोग मेरा सम्मान करें लोग मुझे अच्छा कहें यह मानवीय अभिलाषा है । जब गैरों से सम्मान नहीं मिलता तब एैसी अभिलाषा की पूर्ति की आशा वह अपने समुदाय से करता है, किसी तरह की अभिव्यक्ति से सामाजिक कार्य से ,अपना फोटो दिखाकर, अपने परिवार, बाल बच्चों, शिक्षा दीक्षा और हैसियत बताकर, शोसल मीडिया में उल्टी सीधी हरकते करके अपनी ओर ध्यान आकर्षित करने का प्रयास करता है । यह सही है कि गैरों से सम्मान पाने के लिये समुदाय को अपने आप से सम्मान हासिल करना होगा । अपने आप का सम्मान करना होगा तभी आदिवासी समुदाय गैरों की मासिकता को बदल सकता है । आदिवासी आन्दोलन के इस दौर में यह वातावरण देखने को मिल भी रहा है । समुदाय के अनेक सामाजिक धार्मिक सांस्कृतिक राजनीतिक संगठनों में कार्यरत लोग संगठन को मजबूत करने की बजाय स्वयं को मजबूत करते दिखाई देते हैं । व्यक्तिगत भूख को सामूदायिक भूख में परिवर्तित करने के लिये आदिवासी आन्दोलन के हर एक संगठनों का आपस में समन्वय और सम्मान आवश्यक है । अन्यथा व्यक्तिगत भूख संगठनों को मजबूत होने में बाधक हो सकती है ।

(2) "अपनी योग्यता अपना ज्ञान जिसमें वह दक्षता रखता हो उसी क्षेत्र में काम करे"
"समाज को तैयार करने के लिये समाज के प्रत्येक व्यक्ति को अपनी योग्यता अपना ज्ञान जिसमें वह दक्षता रखता हो उसी क्षेत्र में काम करे जैसे साहित्यकार गीतकार अर्थशास्त्री राजनीति में रूचि रखने वाला आदि चूंकि हर व्यक्ति हर काम नहीं कर सकता । सभी लोग इस तरह लग जाये  तो समाज को पूरी तरह स्वस्थ्य किया जा सकेगा । तब हम वर्तमान कथित विकसित समाज से बराबरी कर पायेंगें । उन्हें कोसने उनसे जलने की आवष्यकता नहीं पडेगी । आज हमारा समाज अस्वस्थ है इसलिये उनकी बराबरी कई मामलों में नहीं कर पा रहे हैं । हम सब अपने समाज को स्वस्थ करनें में लग जायें ।-"gsmarkam

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