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"बस एक बार ,आखरी बार। एकजुटता की दरकार।"

"बस एक बार ,आखरी बार। एकजुटता की दरकार।"
गोंडवाना आंदोलन की राजनीतिक इकाई में कार्यरत चिंतक समर्थक और समर्पित कार्यकर्ताओं से अनुरोध है,कि विभिन्न कारणों से चुनाव 2018 के विधानसभा चुनाव में, कार्यकर्त्ताओं के बीच आपसी मतभेद बढ़े हैं। इसमें कहीं ना कहीं सामंजस्य और पारदर्शिता की कमी भी एक महत्वपूर्ण कारण रहा है । फिर भी आपके कार्यकर्ता और मतदाताओं ने आपका मन धन से सहयोग कर वोट प्रतिशत को दुगना कर आपके मनोबल को बढ़ाने का काम किया है। अब आपकी बारी है/जिम्मेदारी है कि लोकसभा चुनाव 2019 तक समाज और मतदाताओं के मनोबल को कैसे बनाये रखा जाय, ताकि और भी बेहतर परिणाम मिल सके। आपके सामने चुनौती है, कांग्रेस और भाजपा ! कांग्रेस का प्रयास रहेगा कि या तो गोंडवाना के राजनीतिक आंदोलन को पूरी तरह समाप्त कर दिया जाय परंतु इसमें उसे अधिक मेहनत संगठन में तोड़फोड़ करना पड़ सकता है, इसलिए केंद्र सरकार बनाने के लिए यह आपसे समझौता कर सकती है जिसमें उसे कम ताकत लगाना पड़ेगा। चूंकि चुनाव नजदीक है इसलिए वह कम ताकत लगाकर ज्यादा परिणाम लाने का प्रयास कर सकती है। वहीं भाजपा का प्रश्न है वह ऐसा प्रयास करेगी कि आपको कुछ सीटें जिताने का आश्वासन देकर अधिक से अधिक सीटों पर चुनाव लडने को प्रेरित कर सकती है। ताकि आप केवल वोट काटू पार्टी के रूप में जनता के बीच प्रचारित रहें। अब आपके पास कार्यकर्ता और मतदाताओं के मनोबल को बढ़ाने का करता रास्ता हो सकता है बैठकर तय तय करना होगा।अभी तक मेरे निजी विश्लेषण से दो ही विकल्प सामने आते हैं। कि (1)वोट प्रतिशत का महत्त्व। (2)विजय हासिल करना।
वोट प्रतिशत बढ़ने से कार्यकर्ता पदाधिकारी का मनोबल बढ़ा है । परन्तु सीट हासिल नहीं होने से मतदाता का मनोबल गिरा है। इसलिए संगठन की जिम्मेदारी है कि वह 2019 लोकसभा चुनाव में परिणाम लाने की रणनीति तैयार करें। कम से कम बाकी चार माह के लिए एकजुट होकर कड़ी मेहनत किया जाये। यदि परिणाम नहीं ला सके तो मतदाता का विश्वास पूरी तरह आपसे उठ जाने वाला है। बस एक बार ,आखरी बार। एकजुटता की दरकार।
(गुलजार सिंह मरकाम) राष्ट्रीय संयोजक गोंसक्रांआं

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