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"राजनीतिक दल और उनके प्रकोष्ठ"

"राजनीतिक दल और उनके प्रकोष्ठ"
कभी किसी ने विचार किया कि देश में जितनी भी राजनीतिक पार्टी है उनमें अनुसूचित जाति जनजाति अन्न पिछड़ा और अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ सहित अनेक प्रकोष्ठ बनाए जाते हैं परंतु कोई भी दल "सामान्य वर्ग प्रकोष्ठ" नहीं बनाती आखिर क्यों? क्या इन दलों के मुखिया बिना सामान्य वर्ग को साथ लिये अपने आपको असहाय या कमजोर महसूस करते हैं।या फिर भयभीत रहते हैं। यही कारण है कि देश में जितने भी मूलनिवासी नेतृत्व वाले दल हैं। राष्ट्रीय क्षितिज पर उभर नहीं सके हैं। केवल वही दल उभरे हैं जिन दलों का नेतृत्व सवर्ण करते हैं। यदि मूलनिवासी नेतृत्व वाले दल इन्हें अपने साथ लेना आवश्यक समझते हैं,तो उनके लिए "सामान्य वर्ग प्रकोष्ठ" बनाकर उनकी क्षमता का मूल्यांकन करें। यह नहीं कि मूलनिवासी समुदाय की जनसंख्या पर अपनी छवि बनाकर अपना कद बढ़ाकर अपने आप को श्रेष्ठ होने का परिचय दें। मेरा व्यक्तिगत विचार है कि देश के सभी मूलनिवासियों के नेतृत्व में चलने वाले दल अपनी पार्टी में ऐसे प्रकोष्ठ तैयार कर उनकी राजनीतिक क्षमता का मूल्यांकन करें।तब समझ में आयेगा कि अन्य योग्यताओं की श्रेष्ठता के साथ राजनीतिक श्रेष्ठता में भी सवर्ण कैसे बराबरी करता है। या नहीं या केवल आपकी कमजोरी उसकी श्रेष्ठता का कारण है।
-गुलजार सिंह मरकाम
(राष्ट्रीय संयोजक गोंसक्रांआं)

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