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gondwana aur aadivasi rajniti

"गोंडवाना और आदिवासी राजनीति का भविष्य" एक विश्लेषण
(लेखक के अपने निजी विचार हैं आवश्यक नहीं कि इससे सभी सहमत हों)
गोंडवाना की भाषा धर्म संस्कृति ऐतिहासिक धरोहर काफी समृद्ध है। परन्तु इसके नाम का राजनीतिक पक्छ काफी कमजोर दिखाई दे रहा है, राजनीति में जिस कोर वोट के दम पर आगे बढ़ा जा सकता था वह कोर आदिवासी हो सकता था परन्तु आदिवासी शब्द का परहेज,या परिणाम मूलक प्रयास नहीं होना भी शायद गोंडवाना के राजनीतिक  भविष्य को स्थापित  नहीं कर सका,यही कारण है कि जिन बड़े आदिवासी समूहों, भील,भिलाला बरेला,कोरकू कोल, शहरिया, भूमिया, और तो और गोंड की उपजातियां प्रधान मवासी बैगा भारिया का भी इस राजनीतिक आंदोलन से दूरी बनाए रखना कहीं ना कहीं इस तरह की राजनीतिक स्वीकारिता को  नजरअंदाज करते नजर आता है। गोंडवाना आंदोलन के अन्य क्रियाकलाप यथा इतिहास धर्म संस्कृति रूडी परंपराओं के विभिन्न धार्मिक सामाजिक सांस्कृतिक संगठनों के प्रयास से यह कोर आदिवासी समुदाय काफी हद तक प्रभावित हुआ है।अपने आचरण में बदलाव ला रहा है। सांस्कृतिक रूप से "जय सेवा जय जोहार" जैसे संयुक्त शब्दावली को आत्मसात कर जय आदिवासी की आवाज बुलंद करते हुए संघर्ष को हवा दे रहा है। यह बदलाव शायद भविष्य में "आदिवासी राजनीति" का नया अध्याय लिखने को अग्रसर हो रहा है। हो सकता है कि "गोंडवाना की राजनीति" का नया सोपान आदिवासी राजनीति से आरंभ हो जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी । जिस तरह आदिवासी राजनीति का झंडा लेकर बीटीपी(भारतीय ट्राइबल पार्टी) आगे बढ़ रही है उसके क्रियाकलाप छग,महाराष्ट्र झारखंड गुजरात राजस्थान आदि में बढ़ रहे हैं इससे लगता है कि आदिवासी राजनीति का यह आगाज़ आदिवासी कोर समुदाय को आकर्षित  करने में सफल हो सकता है । याद रखना चाहिए कि भारत में कोई भी राजनीतिक संगठन बिना कोर समूह(समुदाय) के सहयोग से आगे नहीं बढ़ा है।
मैने कभी कहा था कि-
 "भाषा धर्म संस्कृति को पकड़ कर रखो जकड़ कर रखो,लेकिन वर्तमान में जियो "
(गुलजार सिंह मरकाम राष्ट्रीय संयोजक गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन)

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