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सामूहिक संकट की घड़ी में सामूहिक संघर्ष जरूरी है

"सामूहिक संकट की घड़ी में सामूहिक संघर्ष जरूरी है" गांधी के चेले पूना पेक्ट का उल्लंघन करते हुए आरक्षण पर लगातार हमला जारी रखें हुए हैं। ऐसे मौके पर जब आरक्षित वर्ग के हमारे अपने कहे जाने वाले जनप्रतिनिधियों खासकर आदिवासी समाज के लोग जब अपना आशियाना उजड़ता देख चुप्पी साध लेते हैं,तो आदिवासी समुदाय का भविष्य अंधकारमय दिखने लगता है। मुझे यह कहने में जरा भी संकोच नहीं कि भला हो संविधान की समझ रखने वाले अनुसूचित जाति, पिछड़े वर्ग के चंद जनप्रतिनिधियों और आंदोलनकारियों की जिनके आंदोलन से आदिवासी समुदाय को संवैधानिक अधिकार हासिल हो रहे हैं ।अन्यथा मानसिक गुलाम तो हो चुके हैं, शारीरिक गुलाम बन जायेंगे लुट पिट कर गुलाम हो जायेंगे या फिर झूठे गौरव, स्वाभिमान का ढिंढोरा पीटते हुए पुनः वन और कंदराओं की शरण लेने को मजबूर होंगे। आरक्षण जैसे मुद्दे पर संसद में केवल कुछ अनुसूचित जाति, पिछड़ा वर्ग एवं कुछ संविधान का सम्मान करने वाले सामान्य श्रेणी के जनप्रतिनिधियों ने पक्ष रखा लेकिन देश की संसद में बैठे 47 जनजाति के जनप्रतिनिधि ,बेहोश लाचार आदिवासी समुदाय की तरह सदन में भी बेहोश दिखाई दिये। इसी बेहोशी ने सबसे ज्यादा फर्जी जाति प्रमाण पत्र से गैर आदिवासी को शासकीय सेवा में पदस्थ करवाया है। भूमि पर गैर आदिवासी का नामांतरण कराया है। इसलिए समुदाय से आव्हान है कि संविधान में आपके हितों पर हो रहे हमले के विरुद्ध स्वयं आंदोलन करो और संविधान विरोधी कानून बनाने वाला संसद हो या सलाहकार सुप्रीम कोर्ट हो, इसके विरोध में संघर्ष करने वाले जनप्रतिनिधि,और संगठन के साथ कंधे से कंधा मिलाकर तन मन धन से सहयोग प्रदान करें। (गुलजार सिंह मरकाम राष्ट्रीय संयोजक गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन)

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"मरकाम गोत्र के टोटम सम्बन्धी किवदन्ती"

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गोंडी धर्म क्या है

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