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जंतर-मंतर धर्मकोड धरना फरवरी २०२०

"धर्म कोड /कालम और जंतर मंतर पर धरना, प्रदर्शन।" साथियों, आदिवासियों को एक धर्म कोड/कालम मिले इस बाबत दिल्ली के जंतर मंतर मैं दो अलग-अलग संगठनों का धरना और ज्ञापन है इसके कारण लगता है अभी तक किए गए आदिवासियों के धर्म संबंधी एकता के प्रयास असफल दिखाई दे रहे हैं , मेरा मानना है की देश के अलग-अलग भागों में धर्म से संबंधित राष्ट्रीय कोया पुनेम महासंघ १६,१७ फरवरी और राष्ट्रीय इंडिजिनियस धर्म समन्वय समिति १८फरवरी को आयोजन कर रही है ऐसे में अलग-अलग ज्ञापन और कार्यक्रम होने से सरकार पर अलग-अलग संदेश जाने वाला है जिससे हम आदिवासियों का भला नहीं हो सकता ना ही कोड और कॉलम मिलेगा और तो और अन्य का कालम भी हटा दिया जाएगा ऐसी परिस्थितियों में हमें एकता का परिचय देते हुए 16 17 18 फरवरी को एक आंदोलन और एक धरना के रूप में सरकार के सामने प्रस्तुति देकर 1 सूत्रीय ज्ञापन देना होगा अन्यथा एक बार आदिवासी समुदाय संविधान निर्माण के समय अपनी इस विभाजन कारी सोच के कारण बहुत नुकसान में जा चुका है जो इतिहास के पन्ने में काले अध्याय के रूप में अब तक जाना जाता है वह यह है कि संविधान निर्माण के समय राष्ट्रीय आदिवासी धर्म महासभा की ओर से संविधान सभा के सदस्य जयपाल मुंडा जी ने "आदिवासी" शब्द को संविधान में प्रतिस्थापित करने का प्रस्ताव रखा परंतु अखिल भारतीय गोंडवाना गोंड महासभा के तत्कालीन महासचिव एवं संविधान सभा के सदस्य मंगरू गनू उईके नए आदिवासी शब्द का समर्थन नहीं किया जिसके कारण गैर आदिवासी के दुश्मनों को अवसर मिल गया परिणाम स्वरूप इन जातियों को अनुसूची में डाल दिया गया जिसके कारण आदिवासियों की रोटी परंपरा और मान्यताओं को नहीं मानने वाले गैरधर्मी भी इस सूची से संवैधानिक लाभ प्राप्त कर लेते हैं । इसलिए मेरा मानना है कि दोनों संगठनों ने जंतर मंतर में धरना प्रदर्शन का आह्वान किया है तो इस धरना को 18 तारीख तक संचालित किया जाए और 18 को संयुक्त रूप से ज्ञापन देकर सरकार को अवगत कराया जाए इसी में भलाई है अन्यथा एक बार पुनः हम इतिहास के पन्ने में आदिवासी हित के विरुद्ध काला अध्याय लिखने जा रहे हैं। (गुलजार सिंह मरकाम राष्ट्रीय संयोजक गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन)

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