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अपनी जिम्मेदारी निभायें

 "अपनी जिम्मेदारी निभायें"

मौलवी,पादरी,निहंग , जैन मुनि,भिक्खू , पंडित  पुजारी आज भी अपनी अपनी धर्म रक्षा के लिए त्याग और बलिदान करते हुए, अधिकतर अविवाहित रहकर प्रचारक बनते हैं, उनका एक ही लक्ष्य है कि मेरे धर्म संस्कृति का ध्वज दुनिया में लहराता हुआ दुनिया को अपनी धार्मिक विचारधारा में चलने के लिए प्रेरित करते रहते हैं। यहीं से इन पंथों में शसक्त और शक्तिशाली एकता का प्रादुर्भाव होता है। जो सत्ता और सरकारों को अपने दरवाजे पर माथा टेकने के लिए मजबूर कर देती है। गोंडवाना के आंदोलन में क्या ऐसे त्याग और बलिदान करने वाले लोग दिखाई देते हैं ? गोंडवाना के इतिहास और संस्कृति के पारंपरिक प्रचारक क्या अपनी भूमिका निभा रहे हैं ? गोंडवाना की रूढ़ि प्रथा और पारंपरिक इतिहास को बचाने की जिम्मेदारी, गांव में बैगा पडिहार, एवं समाज में परधान पठारी की होती है,क्या ये अपनी भूमिका निभा रहे हैं, जिम्मेदारी है तो निभाना चाहिए,मैं यह भी चाहता हूं कि बैगा, पडिहार,परधान पठारी वर्तमान विकास की दौड़ में अव्वल रहे, आगे बढ़े शिक्षा से संपत्ति से अग्रणी रहें,पर शिक्षा संपत्ति के स्तर को बनाए रखते हुए गोंडवाना की परंपराओं रूढ़ियों को सुरक्षित करने की पहल करें। अन्यथा गोंडवाना की पहचान मिट जाने वाली है। आज मप्र में पेसा नामक कानून लागू हो चुका है, गोंडवाना के आदिवासी ग्राम समुदाय अपनी रूढ़ि परंपराओं को सुरक्षित रखने हेतु खुली छूट दी गई है, ऐसे समय में ग्राम समुदाय बैठकर निर्णय ले कि समुदायिक रूढ़ि परंपराओं का पालन नहीं करने वाले व्यक्ति को दंडित कर उसे जनजाति की सूची से बाहर करने का सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित करें। "मेरा गांव मेरी सरकार" 

"मेरे आचार मेरे व्यवहार"

- गुलजार सिंह मरकाम (गोंसक्रांआं)


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"मरकाम गोत्र के टोटम सम्बन्धी किवदन्ती"

मध्यप्रदेश के गोन्ड बहुल जिला और मध्य काल के गोन्डवाना राज अधिसत्ता ५२ गढ की राजधानी गढा मन्डला के गोन्ड समुदाय में अपने गोत्र के पेन(देव) सख्या और उस गोत्र को प्राप्त होने वाले टोटेम सम्बन्धी किवदन्तिया आज भी यदा कदा प्रचलित है । लगभग सभी प्रचलित प्रमुख गोत्रो की टोटेम से सम्बन्धित किवदन्ति आज भी बुजुर्गो से सुनी जा सकती है । ऐसे किवदन्तियो का सन्कलन और अध्ययन कर गोन्डवाना सन्सक्रति के गहरे रहस्य को जानने समझने मे जरूर सहायता मिल सकती है । अत् प्रस्तुत है मरकाम गोत्र से सम्बन्धित हमारे बुजुर्गो के माध्यम से सुनी कहानी । चिरान काल (पुरातन समय) की बात है हमारे प्रथम गुरू ने सभी सभी दानव,मानव समूहो को व्यवस्थित करने के लिये अपने तपोभूमि में आमंत्रित किया जिसमें सभी समूह आपस में एक दूसरे के प्रति कैसे प्रतिबद्धता रखे परस्पर सहयोग की भावना कैसे रहे , यह सोचकर पारी(पाडी) और सेरमी(सेडमी/ ्हेडमी) नात और जात या सगा और सोयरा के रूप मे समाज को व्यवस्थित करने के लिये आमन्त्रित किया ,दुनिया के अनेको जगहो से छोटे बडे देव, दानव ,मानव समूह गुरू के स्थान पर पहुचने लगे , कहानी मे यह भी सुनने को मिलत

गोंडी धर्म क्या है

                                          गोंडी धर्म क्या है   गोंडी धर्म क्या है ( यह दूसरे धर्मों से किन मायनों में जुदा है , इसका आदर्श और दर्शन क्या है ) अक्सर इस तरह के सवाल पूछे जाते हैं। कई सवाल सचमुच जिज्ञाशा का पुट लिए होते हैं और कई बार इसे शरारती अंदाज में भी पूछा जाता है, कि गोया तुम्हारा तो कोई धर्मग्रंथ ही नहीं है, इसे कैसे धर्म का नाम देते हो ? तो यह ध्यान आता है कि इसकी तुलना और कसौटी किन्हीं पोथी पर आधारित धर्मों के सदृष्य बिन्दुवार की जाए। सच कहा जाए तो गोंडी एक धर्म से अधिक आदिवासियों के जीने की पद्धति है जिसमें लोक व्यवहार के साथ पारलौकिक आध्यमिकता या आध्यात्म भी जुडा हुआ है। आत्म और परआत्मा या परम आत्म की आराधना लोक जीवन से इतर न होकर लोक और सामाजिक जीवन का ही एक भाग है। धर्म यहॉं अलग से विशेष आयोजित कर्मकांडीय गतिविधियों के उलट जीवन के हर क्षेत्र में सामान्य गतिविधियों में संलग्न रहता है। गोंडी धर्म

“जय सेवा जय जोहार”

“जय सेवा जय जोहार”  जय सेवा जय जोहार” आज देश के समस्त जनजातीय आदिवासी समुदाय का लोकप्रिय अभिवादन बन चुका है । कोलारियन समूह ( प्रमुखतया संथाल,मुंडा,उरांव ) बहुल छेत्रों में “जोहार” का प्रचलन परंपरागत परंपरा से है । वहीं कोयतूरियन समूह (प्रमुखतया गोंड, परधान बैगा भारिया आदि) बहुल छेत्रों में “जय सेवा” का प्रचलन परंपरागत परंपरा से है साथ ही इन समूहों में हल्बा कंवर तथा गोंड राजपरिवारों में “जोहार” अभिवादन का प्रचलन है । जनजातीय आदिवासी समुदाय का बहुत बडा समूह “भीलियन समूह’( प् रमुखतया भील,भिलाला , बारेला, मीणा,मीना आदि) में मूलत: क्या अभिवादन है इसकी जानकारी नहीं परन्तु “ कणीं-कन्सरी (धरती और अन्न दायी)के साथ “ देवमोगरा माता” का नाम लिया जाता है । हिन्दुत्व प्रभाव के कारण हिन्दू अभिवादन प्रचलन में रहा है । देश में वर्तमान आदिवासी आन्दोलन जिसमें भौतिक आवश्यकताओं के साथ सामाजिक ,धार्मिक, सांस्क्रतिक पहचान को बनाये रखने के लिये राष्ट्रव्यापी समझ बनी है । इस समझ ने “भीलियन समूह “ में “जय सेवा जय जोहार” को स्वत: स्थापित कर लिया इसी तरह प्रत्येंक़ बिन्दु पर राष्ट्रीय समझ की आवश्यकता हैं । आदि