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जिस बाप का बेटा लायक लायक होता है ,उस बाप की इज्जत होती है !


जिस बाप का बेटा लायक लायक होता है ,उस बाप की इज्जत होती है ! जिस बाप का बीटा नालायक होता है ,उस बाप की इज्जत नहीं होती !गोंडवाना के महापुरुषों के बेटे अब धीरे धीरे लायक होते जा रहे हैं अपने बाप अपने महापुरुषों को सम्मान देने लगे हैं तो ! कमलनाथ जैसे कांग्रेसी नेता महारानी दुर्गावती की प्रतिमा छिंदवाडा शहर में स्थापित करा दिया ,बीजेपी के शिवराज चौहान डिंडौरी जिले में जाकर रानी दुर्गावती की मूर्ति का २४ जून को अनावरण कर रहे हैं ! इसका मतलब है की आप लोग सजग हो रहे हैं ,इसी सजगता के ये मिशल है की हमारे आलावा और भी हमारे महा पुरुषों को अपना मानकर संम्मान देने लगे हैं ! देखिये और आगे आगे होता है क्या ? अभी तो हम और आगे की ओर जा रहे हैं ,जहाँ हमें ''वोट बेंक बनना है ,जिस दिन आदिवासी समाज वोट बेंक के रूप में स्थापित हो जायेगा उस दिन ,समाज जो कहेगा वही नेताओं को करना पड़ेगा ! आज हम अपने समाज के नेताओं को दोष देते हैं ! नेता पार्टियों के गुलाम हैं उनके मालिक जैसा कहेंगे वैसा करेंगे ! और आप उनसे उम्मीद रखते हैं ! वे चमचे हैं ,आज इस चमचे से नहीं तो दूसरा चमचा लेकर कम निकल लेते हैं ! हमें अब चमचा को नहीं चमचा पकड़ने वाले पार्टी रूपी हाथ को कमजोर करना होगा ताकि वह दूसरा चम्मच हाथ में न ले सके ! समाज का वोट बैंक तैयार कर लें ! मेरी बात कुछ अजीब सी लग रही होगी लेकिन यही शाश्वत सत्य है ! बिना वोट बेंक के हमारी ताकत नहीं ?पार्टियाँ किससे डरती हैं ,केवल वोट से ! नेता को क्या चाहिए वोट ! हम सोचते हैं की समाज संगठित हो जाये ? तो लोग हमसे डरेंगे , नहीं ? समाज के संगठन से पार्टियाँ नहीं डरती ,डरती हैं तो बस समाज के वोट से ! वोट बैंक से ,इसलिए संगठित समाज अपना वोट बैंक तैयार करे ! जब आप इस मुहीम में लगेंगे तो बहुत से लोग कहेंगे की वोट के चक्कर को छोडो समाज को संगठित करो ? आपकी ताकत से लोग डरेंगे आदि आदि ? पर आपका जवाब हो की समाज संगठित हो गया है अब इस समाज का वोट बैंक तैयार करना है किसी भी पार्टी का समर्थक हो पहले वह आदिवादी वोट बैंक का सदस्य होना जरुरी है बाद में वह पार्टी का सदस्य है तभी वह समाज के वोट बेंक की पूंजी का भय सम्बंधित पार्टी को दिखा सकता है ! अभी तक समाज का नेता केवल समाज की जनसँख्या का भय बताता था ,उस जनसँख्या का जो अलग अलग बैंकों का खाताधारी होता था ,अब उसे एक ही बेंक का खाते दार बनना है ,'' आदिवासी वोट बैंक का '' कारन भी है पूंजी से आत्म विस्वाश बढ़ता है ,हिम्मत आती है ,इसी हिम्मत और आत्म विस्वास की आवश्यकता है , पार्टी विशेष के पदाधिकारी मेरे इस विचार से असहमत हो सकते हैं ! लेकिन इस फोर्मुले का उपयोग करके वे अपनी पार्टी में आदिवासी वर्चस्व स्थापित कर मान सम्मान पा सकते हैं ?आदिवासी वोट बैंक के कारन एम् .पी .में कांग्रेश से कांतिलाल भूरिया को अध्यक्ष बनाना पड़ा, बीजेपी ने फग्गन सिंह कुलस्ते जैसे फ्लाप नेता को राज्यसभा का सदस्य बनाना पड़ा ! यदि आदिवासी संगठित होकर वोट बेंक के रूप में स्थापित हो जाये तो ,समस्याएं स्वतः ही समाप्त हो जाएँगी ! हम अड़ी डालकर कोई भी बात किसी भी सरकार से मनवा सकते हैं !

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