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' भागीदारी व्यवस्था के संस्थापक छत्रपति साहू जी महाराज ''

'' भागीदारी व्यवस्था के संस्थापक छत्रपति साहू जी महाराज ''

छत्रपति साहू जी महाराज को आरक्छन व्यवस्था का जनक कहा जाता है ! उनके राज्य काल में ,उस समय की ब्राह्मणवादी व्यवस्था के कारन उनके राजदरबार में ब्राह्मण दरबारी अधिक थे ,कामकाज उन्ही के हवाले रहता था ,साहूजी महाराज के रसोई का संचालक एक ब्राह्मण था !एक बार साहूजी महाराज रसोई की ओर गये ,वहां पर किसी को न देख कर उन्होने रसोई से पानी निकलकर पी लिया ,इतने में रसोई का संचालक उन्हें देख लिया ! जब महाराज वहां से चले गए तो ,उस रसोइये ने रसोईघर को गंगाजल से धोकर पवित्र किया ,इस बात की जानकारी जब राजा को मिली ,तब उनके मन में विचार आया की मेरे रसोई में जाने से रसोई कैसे अपवित्र हो गई जो उसे गंगाजल से पवित्र करना पड़ा ! इस बात का अध्ययन करते हुए उन्हें आत्म अनुभूति हुई पिछला इतिहास खोजने पर पाया की ,मेरे पूर्वज छत्रपति शिवाजी भी इसी तरह अपमानित हुए थे ! कहा जाता है की छत्रपति शिवाजी जब आसपास के राज्यो में अपना अधिपत्य कर लिया था ,छत्रप हो गए थे ,तब उनके राज्याभिषेक का अवसर आया तब उनके राज्याभिषेक के लिए ब्राह्मण द्वारा तिलक किये जाने का रश्म पूरा होना था ,तब महारास्ट्र के सभी ब्राह्मणों ने उनके तिलक का विरोध करते हुए यह कह दिया था की ,भले वे कितने ही राज्य जीत लें लेकिन वे शुद्र हैं ,इसलिए हम उनका राज्याभिषेक तिलक नहीं कर सकते ? ऐसी स्तिथि में राज्य के बाहर बनारस से एक तीसरी श्रेणी के बाह्मण को लाने का परयास किया गया ? कारण यह था की उस काल में यह परम्परा थी की ब्रह्मण के द्वारा तिलक को ही मान्यता थी , बनारस के उस तीसरे दर्जे के बाह्मन का भी महारास्त्र के बह्म्नो ने विरोध किया था लेकिन उस तीसरे दर्जे के बहमन ने अपना विरोध देखकर तिलक करने के लिए शर्त रख दी की मैं तिलक तभी करूँगा जब मुझे मेरे वजन के बराबर सोना दान करेंगे !अंततः कार्यकर्म  निर्धारित हुआ ,तिलक का रश्म प्रारम्भ हुआ ,तब उस बह्मण ने उपुक्त समय में कह दिया की मैं तिलक कर रहा हूँ लेकिन बाएं पैर के अंगूठे से करूँगा चूकि राजा चौथे वर्ण के प्रतिनिधि हैं ,जिसका मनु महाराज ने पैर का प्रतीक दिया है इसलिए मै धर्म के विरुद्ध नहीं जा सकता ,इन परिस्तिथियो में उसने अपने बाएं पैर के अंगूठे से छत्रपति शिवाजी का राज्याभिषेक हुआ ! यही सब जानकारियां हासिल करके साहू जी महाराज को बहुत ग्लानी हुई ! हमारा राज्य हमारी ताकत और हम केवल ब्राह्मण पर आश्रीत हैं , यह सब शिक्छा की कमी का परिणाम है ,भागीदारी की कमी का परिणाम है ! इसलिए उन्होने अपने राजकाज में ब्रह्मणो के आलावा ५० प्रतिशत कथित निम्न समाज को राजकाज में भागीदारी सुनिश्च्ति कर दी ! यह देखकर सारे राज्य में तहलका मच गया ! लेकिन अधिकांश जनता ने राजा की भरपूर सराहना की ! राज्य का कारोबार चलता रहा ,एक दिन अवसर पाकर साहूजी महाराज के एक ब्राह्मण मंत्री ने राजा से पूछ लिया की महाराज इस व्यवस्था में तो राजकाज के कार्य में गिरावट आ सकती है ,चुकी बहुत से लोग पढ़े लिखे नहीं हैं , इनसे बहुत सा काम नहीं होने वाला ? तब राजा ने कह की यदि इन्हें अवसर नहीं दिया जायेगा तो ये लोग ऐसे ही रहेंगे ,कभी भी पढ़ लिख नहीं पाएंगे ,चुकी इन्हें शास्त्रो में पढने लिखने से वर्जित रखा है ,तो कम से कम इन्हें काम में भागीदारी दे दिया है तो ये धीरे धीरे काम सीखकर योग्य तो होँगे अन्यथा ये और कमजोर होते जायेंगे ! उन्होने मंत्री को अपने घुडसाल यानि घोड़ो को बंधने वाले स्थान पर ले जहाँ सभी घोड़े अपनी अपनी जगह बंधे थे ! राजा ने कहा की इनका चारा लाओ एक जगह रख दो ,चारा रख दिया गया ,अब उन्होने कहा इन सब को अपनी जगह से छोड़ दो ,यही किया गया सभी घोड़े चारा पर टूट पड़े ,मजबूत घोड़े चारा पर कब्ज़ा कर बड़े मजे से खाने लगे छोटे मोटे ,कमजोर घोड़े अन्य मजबूत घोड़ो के पीछे चारे की आस में घुमने लगे ,यदि वे कुछ प्रयास भी करते लेकिन मजबूत घोड़े उन्हें चारे के पास फटकने नहीं दे रहे थे , यह नजारा दिखाकर राजा ने कह की अब इन्हें अपने अपने स्थान पर बांध दो ,यही किया गया ! महाराज ने कहा की जितना चारा है ,उनके स्थान में बाँट कर रख दो यही किया गया ! साहूजी महाराज ने कहा की देखो अब चारे के लिए कोई लड़ाई नहीं हो रही है सभी आराम से खा रहे हैं ! साहूजी महाराज के इसी दर्शन के कारन आज सबको अवसर मिल रहा है ,डाक्टर आंबेडकर ने भी साहू जी महाराज के आदर्शों का पालन करते हुए सविंधान में इस बात को मजबूती से रखने में अपना योगदान दिया ! उन परिस्थितियो कितना जरुरी था ,आज भी वंचितो को अवसर नहीं मिला तो उच्च वर्ग के लोग शासन प्रशासन में बड़े पदों पर आसीन है सब हिस्सा खा जायेंगे !आज भी देश की जनसँख्या के ९० प्रतिशत हिस्से को आरक्षन के नाम पर मात्र ४९% हिस्सा वह भी पूरी तरह नहीं मिल रहा है,इस व्यवस्था के समाप्त होने के पूर्व हमें शासन प्रशासन में पूर्ण भागीदारी के लिए संघर्ष कर अपने अधिकार हासिल करने के लिए जनचेतना पैदा कर लेना है ! नहीं तो हमारे लोगो खासकर पिछड़े वर्ग के लोग जानकारी के आभाव में ,मनुवादियो का साथ देकर अपने ही अधिकारो को समाप्त करने में लग जाते हैं !

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